यूपीएससी आईएएस (मेन) हिन्दी अनिवार्य परीक्षा पेपर UPSC IAS (Mains) Hindi Compulsory Exam Paper - 1991

यूपीएससी आईएएस (मेन) हिन्दी अनिवार्य परीक्षा पेपर UPSC IAS (Mains) Hindi Compulsory Exam Paper - 1991

1. निम्नलिखित विषयों में किसी एक पर लगभग 300 शब्दों में निबंध लिखिए (क) एक आदर्श नेता की मेरी परिकल्पना (ख) क्या एक विकासशील देश के लिए जनतंत्रा सर्वश्रेष्ठ शासनप्रणाली है? (ग) दक्षिण एशिया के देशों में पारस्परिक सहयोग की आवश्यकता (घ) सारा विश्व मेरा देश है और भलाई करना मेरा धर्म। (ङ) एक अविस्मरणीय स्वपन। 100

2. निम्नलिखित अवतरण को ध्यान से पढ़िए और इसके आधार पर बाद में दिए गए प्रश्नों के उत्तर लिखिएः विभिन्न मूर्खतापूर्ण अभिमतों से, जिनकी ओर मानव-जाति को झुकाव सहज ही हो जाता है, बचने के लिए किसी अतिमानवीय प्रतिभों की आवश्यकता नहीं हैं। थोड़े-से सरल नियम आपको समस्त सामान्य त्राटियों से ही नहीं, वरन् मूर्खतापूर्ण त्रिटियों से भी बचा सके।

यदि कोई मामला ऐसा है कि प्रेक्षण या अवलोकन द्वारा तैय किया जा सकता है, तो आप स्वयं ही प्रेक्षण कर लीजिए। अरस्तू सोचता था कि पुरुषों की अपेक्षा स्त्रियों के दाँत कम होते हें। यदि वह श्रीमती अरस्तू से ही मुँह खुलवाकर उनके दाँत गिन लेता, तो इस गलती से बच सकता था, लेकिन उसने ऐसा किया नहीं, क्योंकि वह सोचता था कि ‘वह जानता है।’ यह सोचना कि आप जानते हैं, जब कि आप वास्तव में ‘जानते नहीं हैं, एक ऐसी घातक भूल है, जिसे करने की एक सहज प्रवृत्ति हम सबमें होती है। बहरहाल, बहुत-से मामलों को अनुभव की कसौटी तक लाना सरल नहीं होता। यदि अधिकांश मानव-जाति की तरह, इस प्रकार के मामलों में आपकी धारणाएँ दृढ़ और आवेगपूर्ण है, तो ऐसे तरीके हैं, जिनसे आप अपने पूर्वग्रह के विषय में अपने को सचेत कर सकते हैं। यदि कोई राय (अभिमत) जो आपकी राय की विरोधी है, आपको क्रोधित कर देती है तो यह इस बात का संकेत है कि आपका अवचेतन यह जानता है कि आप जो सोच रहे हैं, उसका कोई ठीक औचित्य नहीं है। यदि कोई व्यक्ति अपनी इस मान्यता पर जमा रहता है ‘दो और दो पाँच होते हैं; या कि ‘आइसलैंड विषुवत् रेखा पर है’, तो आपको उस पर क्रोध नहीं, दया आएगी। ऐसा सिर्प$ तब नहीं होगा, जब कि आपका गणित या भूगोल का ज्ञान इतना क्षीण हो कि विरुद्ध मत आपकी प्रतिवू$ल धारणा को ही हिला दे। सबसे अधिक क्रूर और बर्बर विवाद उन मामलों को लेकर होते हैं, जिनके बारे में पक्ष या विपक्ष में कोई ठीक साक्ष्य नहीं होता। उत्पीड़न का प्रयोग धर्म शास्त्रा, में होता है, गणित में नहीं होता, क्योंकि गणित में ज्ञान रहता है, पर धर्मशास्त्रा में केवल अभिमत रहता है। इसलिए जब कभी आपको लगे कि आप मत-वैभिन्य को लेकर गुस्से में आ रहे हैं, तो तुरन्त सावधान हो जाएं।

(क) हम मूर्खतापूर्ण अभिमतों से कैसे बच सकते हैं?
(ख) अरस्तू ने क्या गलती की?
(ग) अपने पूर्वग्रह के प्रति अपने को सचेत कैसे किया जा सकता है?
(घ) कोई व्यक्ति क्रोधित होने की बजाय दया को अनुभव कब करता है?
(ङ) धर्मशास्त्रा से उत्पीड़न सर्वसामान्य क्यों है? 12

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3. निम्नलिखित अवतरण का सारांश लगभग 200 शब्दों में लिखिए। जहां तक संभव हो, सारांश आपके अपने शब्दों में हों। सारांश निर्धारित शीट पर ही लिखें और उसे उत्तर-पुस्तिका के अंदर मजबूती से बांध दें। सारांश में प्रयुक्त शब्दों की संख्या का उल्लेख उसके अन्त में कर दें।

विशेष टिप्पणी यदि सारांश के शब्द निर्धारित सीमा से बहुत अधिक या बहुत कम हुए तो अंक काटे जाएंगे।

भारत क्या है? यह एक ऐसा प्रश्न है, जो मेरे मन में बार-बार उठता है हमारे इतिहास के आदिम युग की प्रारंभिक घटनाओं ने मेरे मन को आश्चर्य से भर दिया। यह वस्तुतः एक ऐसी बलवान और तेजस्वी जाति का अतीत था, जिसके पास एक अन्वेषी आत्मा और मुक्त रूप से खोज करने की अन्तः प्रेरणा थी; और जो अपने इतिहास के ज्ञात प्रारंभिक काल में भी एक परिपक्व और सहनशील सभ्यता का प्रमाण देती थी। जीवन और उसके सुखों तथा उत्तरदायित्वों को खोज में लगी थी। इसके एक शानदार भाषा, संस्कृति, का निर्माण किया और इस भाषा, स्थापत्य तथा कलाओं के माध्यम से दूर-दूर तक केन्द्रों को अपना गूँजता हुआ संदेश भेजा। इसने उपनिषदों को, गीत को और बुद्ध को जन्म दिया। संसार में शायद ही किसी भाषा ने किसी जाति के इतिहास में जीवन शक्ति प्रदान करने वाली वह भूमिका अदा की हो, जो संस्कृत ने की। यह उच्चतम मनीषा तथा कुछ श्रेष्ठतम साहित्य की संवाहिक ही नहीं थीं, वरन् भारत के लिए, राजनीतिक विभाजन के बावजूद एकता में बांधने वाला सूत्रा बन गई। हजारों वर्षा तक रामायण और महाभारत हर पीढ़ी के लाखों लोगों के जीवन के ताने-बाने के साथ बुनी गई। मैं अक्सर आश्चर्य से सोचता रहा हूं कि यदि हमारी जाति बुद्ध उपनिषद् और इन महान् महाकाव्यों के भूल जाय, तो इसका रूप कैसा होगा। यह जड़ से उखड़ जाएगी और अपनी इन मौलिक विशेषताओं को खो बैठेगी, जो इसके साथ जुड़ी रही है और पिछले अनेक युगों में दीर्घकाल धीरे-धीरे पराभव प्रारंभ हुआ। विचार अपनी ताजगी खोते गए और बासी हो गए। और, तरूणाई भरे उल्लास तथा प्राणमयता के स्थान पर जटिलता का युग आ गया। जीवन्त साहिसकत्ता की जगह, एक निर्जीव ढर्रे पर चलने वाली जिन्दगी शुरू हो गई। विश्व को देखने की व्यापक तथा अनुप्रेरक सार्वभौग दृष्टि सीमित और संकुचित होती गई और जातिगत विभाजनों, संकुचित सामाजिक रीति-रिवाजों और औपचारिक अनुष्ठानों में खो गई। इतना होते हुए भी भारत में इतनी जीवन-शक्ति थी कि वह मानवता के इस सशक्त महासागर में, बाहर से आने वाले जन-प्रवाहों को आत्मसात् करता गया; और विचारों को इसने कभी नहीं भुलाया, जिन्होंने इसके यौवनपूर्ण ओंज के दिनों में इसे आंदोलित किया था। बाद में, भारत इस्लाम के आगमन और मुस्लिम आक्रमणों से अत्यन्त सशक्त रूप से प्रभावित हुआ। तदनन्तर पश्चिमी औपनिवेशिक शक्तियाँ आई, जो एक नए प्रकार का आधिपत्य ओर नया उपनिवेशवाद लाई, लेकिन वे, इनके साथ ही, नए विचारों का संधात-संपर्व$ भी लाई। एक लम्बे संघर्षग् के साथ इस युग का पर्यवसान स्वतंत्राता में हुआ। अब, हम अतीत के समस्त बोझ और भविष्य के अस्त-व्यस्त सपनों और मानसिक हलचलों को लिए हुए, भविष्य के सामने खड़े हैं उस भविष्य के जिसका निमार्ण हम करना चाहते हैं।

आज इन समस्त युगों का प्रतिनिधित्व करने वाले तत्व हमारे भीतर और हमारे देश के भीतर मौजूद हैं। भारत में हमारे पास नुक्लीय विज्ञान तथा अणुशक्ति का उत्पादन है और हमारे पास गोबर-युग भी है। अपने समय के कोलाहल और अस्त-व्यस्तता के माहौल में, दोनों दिशाओं में खिंचते हुए, हम दोनों का सामना कर रहे हैं। आगे की और भविष्य का और पीछे की और अतीत का। इस संघर्ष का निवारण हम कैसे करें। और कैसे एक ऐसी जीवन-पद्धति का निवास करें, जो हमारी भौतिक आवश्यकताओं की पूर्ति करे, और साथ ही, हमारे मन और हमारी भावनात्मक शक्ति को सुरक्षित रखे। किन नए आदर्शों को या किन पुराने आदर्शों को नए विश्व के अनुरूप बनाकर या बदलकर हम अपनी जनता के सामने रख सके हैं। और अपनी जनता में नए प्राण पूँ$ककर जागृति और क्रियाशीलता पैदा कर सकते हैं? परिवर्तन अनिवार्य है, पर निरन्तरता भी आवश्यक है। भविष्य का निर्माण उस नीव पर होता है, जो अतीत और वर्तमान में रखी जाती है। अतीत को नकार देना और उससे पूरी तरह टूट जाना, अपने के जड़ से देना और रसहीन करके सुखा डालना है। यह गांधी जी का आंतरिक नैतिक गुण था कि उन्होंने अपनी जाति और भूति की वैभवपूर्ण परंपरा में अपने पैर मजबूती से जमाए रखे और साथ ही क्रांतिकारी घरातल पर क्रियाशील बने रहे। 60

4. Translate the following passage into Hindi. 20

Does culture mean some inner growth in the man? Of course, it must. Does it mean the way is behaves to other? Certainly it must. Does it mean the capacity to understand the other person? I suppose so. It means all that. A person who cannot understand another's viewpoints is to that extent limited in mind and culture, because, nobody, perhaps, barring some very extraordinary human beinngs, can presume to have fullest knowledge and wisdom. The other party or the other group may also have some inkling of knowledge or wisdom or truth, and if we shut our minds to that, then we not only deprive ourselves of it but we cultured man. The cultured mind rooted in itself, should have its doors and windows open. It should have the capacity to understand the other's viewpoint fully even through it cannot always agree with it. The question of agreement or disagreement only arises when you understand a thing. Otherwise it is blind negation which is not a cultured approach to any question.

5. निम्नलिखित अवतरण का अंग्रेजी में अनुवाद कीजिएः 20

समस्त नैतिकतावादी ईमानदारी की अभिशंसा (सिफारिश) एक सदगुण के रूप में करते हें। क्या पॉलीसी के रूप में भी इसकी अभिशंसा की जानी चाहिए? क्या समस्त स्थितियों में, यह कार्य की एक बुद्धिमत्तापूर्ण योजना है? उत्तर है कि यह है। आगे चलकर ईमानदारी सफल ही नहीं होती, वरन् परस्पर आस्था और विश्वास भी पैदा करती है। एक ईमानदार व्यक्ति को किसी बात से डरने की जरूरत नहीं होती और ईमानदार व्यक्ति को किसी बात से डरने की जरूरत नहीं होती और उसे मानसिक शांति रहती है। एक बेईमान आदमी की तरह, जो अपने कपट-भरे कर्मों के परिणामों को सोचता है, उसे हर समय घबराने और तनाव में रहने की आवश्यकता नहीं होती। ईमानदारी सुरक्षा निश्चित कर देती है और विश्वास जगाती है। यही कारण है कि हम कह सकते हैं कि एक श्रेष्ठ सदगुण होने के साथ-साथ, यह श्रेष्ठतम पॉलिसी है।

एक बार एक चोर चोरी करने के लिए एक मकान के पास आया; लेकिन वह कुत्ते द्वारा जा जोर-जोर से भोंकने लगा, रोक दिया गया। माँस का एक लुभाने वाला टुकड़ा दिखाकर चोर ने उसे चुप, रहने के लिए फुसलाने की कोशिश की। कुत्ते ने कहाµ‘नहीं, माँस के एक कौर के लिए मैं अपने मालिक को और अपने को नहीं बेचूंगा; क्योंकि मुझे विश्वास है कि मेरे मालिक को खत्म करने के बाद; तुम मुझे भी खत्म कर दो गे। माँस का टुकड़ा बहुत लुभाने वाला है, पर मैं ईमानदारी को अधिक प्यार करता हूँ। माँस का टुकड़ा वास्तव में विषाक्त था।

6.

(क) निम्नलिखित मुहावरों और लोकोक्तियों में से किन्हीं पाँच का अर्थ लिखिए, और उनका वाक्यों में प्रयोग कीजिएः (i) कौड़ी के मोल बिकना (ii) कान भरना (iii) काठ की हांडी चढ़े न दूजी बार (iv) पाँसा पलटना (v) काला अक्षर भैंस बराबर (vi) आंख का अंधा और गांठ का पूरा (vii) गाल बजाना (viii) धरती पर पांव न रखना (ix) हवा हो जाना (x) मुंह काला होना। 20

(ख) निम्नलिखित युग्मों में से किन्हीं दो में दिए हुए शब्दों का अपने बनाए वाक्यों में इस प्रकार प्रयोग कीजिए कि दोनों पारस्परिक अन्तर यथासंभव स्पष्ट हो जाएः (i) श्रद्धा, प्रेम (ii) धर्म, संप्रदाय (iii) राजभाषा, राष्ट्र-भाषा (iv) भद्र, भद्दा। 10

(ग) निम्नलिखित में से किन्हीं पाँच के विरुद्धर्थी शब्द लिखिए 10
(i) प्रशसंक (ii) पुण्य (iii) निर्भीक (iv) संस्कृति (v) सदाचार (vi) आकर्षण (vii) घृणा (viii) शाश्वत (ix) निर्माण (x) आदरणीय।

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