यूपीएससी आईएएस (मेन) हिन्दी अनिवार्य परीक्षा पेपर UPSC IAS (Mains) Hindi Compulsory Exam Paper - 2011

यूपीएससी आईएएस (मेन) हिन्दी अनिवार्य परीक्षा पेपर UPSC IAS (Mains) Hindi Compulsory Exam Paper - 2011

Time Allowed: 3 hours

Maximum Marks: 300

Candidates should attempt ALL questions. Answers must be written in Hindi (Devanagari Script) unless otherwise directed. In the case of Question No. 3, marks will be deducted if the precis is much longer or shorter than the prescribed length. The precis must be attempted only on the special precis sheet provided.

1. निम्नलिखित विषयों में से किसी एक पर लगभग 300 शब्दों में निबंध लिखिए।

(क) राजनीति और व्यक्तिगत नैतिकता का प्रश्न।
(ख) सामाजिक उन्नति का मुख्य प्रेरक कौन, धर्म अथवा विज्ञान?
(ग) सबके लिए भोजनः हमारी प्रजातांत्रिक प्रणाली के लिए एक चुनौती।
(घ) रफतार की संस्कृति जल्दबाजी और अपराधवृति को जन्म देती है।
(ड.) कृत्रिम-बुद्धि, मानव-बुद्धि के विकल्म के रूप में।

2. निम्नलिखित गद्यांश को ध्यान से पढ़िए तथा उसके बाद दिये गए प्रश्नों के सपष्ट, सही और संक्षिप्त रूप में दीजिएः- 6×10 = 60

हम औद्योगीकरण के एक तेज दौर से गुज़र रहे हैं तथा अपने उद्योगों में हम बड़ी संख्याा में लोगों को नियुक्त कर रहे हैं। भारत में कुछ इस प्रकार की धारणा-सी जान पड़ती है कि आप जिस विशेष कार्य को करना चाहते हैं उसके विषय में किना जानते हैं इस बात का महत्व नहीं हैं; इससे अधिक महत्वपूर्ण बात यह है कि आप किसे जानते हैं - ताकि रोजगार पाने के लिए प्रभाव का उपयोग किया जा सके। लोग यह नहीं सोचते हक अच्छे परिणामों के लिए योग्यता आवश्यक है। हमारी शिक्षा में उत्कृष्टता के विकास का एक सुनिश्चित महत्व वाला स्थान है और यदि उत्कृष्टता के विकास को महत्व नहीं दिया जाता है तो इससे योग्यता का अपमान होता है। इस बात से एक ओर तो हामरी शिक्षा प्रणाली विषाक्त औद दूषित होी है तथा एक ओर तो हमारी शिक्षा प्रणाली विषाक्त और दूषित होती है तथा दूसरी ओर समाजिक शिक्षा के लिए आंदालेन प्रारम्भ करने की इच्छाा का गला घुट जाता है।

आईएएस सिविल सेवा परीक्षा के लिए अध्ययन सामग्री

जब किसी पुल का निर्माण किया जाता है अथवा सड़क बनाई जाती है तो बालू, सिमेंट, चुने आदि के उचित मिश्रण के लिए एक निश्चित अनुपात का अनुसरण किया जाता है ताक पुल और सड़क का निर्माण अच्छाा हो सके और वे अधिक समय तक बने रहें। किंतु हमारा अनुभव इस विषय में हमें अधःपतन की कहानी ही सुनाता है और हमें पता चलता है कि किसी बाँध में दरारें आ गई हैं या कोई सड़क वर्षा के कारण बह गई है।

यह विषय गुणवता नियंत्राण से जुड़ा हुआ है, जिसका सम्बन्ध केवल भौतिक सामग्री से नहीं है अपितु मनुष्यों तथा उनके उत्तरदायित्व विषयक बोध से भी है।

दुभाग्यवश हमारी प्रजातांत्रिक व्यवस्था से ऐसी कुछ परिस्थितियों का निर्माण होता है जनमें योग्यता को एक व्यवस्थित रूप से उपेक्षित किया जाता है और लोगों को यह कहते हुए सुना जाता है कि इस देश में गुण का कोई महत्त्व नहीं है। इस बात से यह भावना उत्पन्न होती है कि यहाँ योग्यता, कार्यक्षमता और नैतिक औचित्य को महत्त्व दिये बिना कोई भी लोक सेवा का पद प्राप्त किया जा सकता है और सार्वजनिक कार्य किया जा सकता है।

प्रश्न:

(1) इस देश में लोग अच्छा रोजगार पाने के विषय में क्या सोचते हैं ?
(2) हम योग्यता के प्रति सम्मान कब खो देते है?
(3) योग्यता के प्रति असम्मान का दुष्परिणाम क्या होता है?
(4) जब हम अन्य लोगों के उत्तरदायित्व बोध का सम्मान नहीं करते हैं तो परिणाम क्या होता है?
(5) योग्यता, कार्यक्षमता और उत्तरदायित्व के प्रति उपेक्षा का कारण क्या लगता है?
(6) गद्यांश में रेखांकित वाक्यांशों का अर्थ अपनी भाषा में समझाइए।

3. निम्नलिखित गद्यांश की संक्षेपिका (Precis)  लगभग 190-210 शब्दों में लिखिए। इसके लिए दिए गए विशेष पन्नों का प्रयोग कीजिए। यदि शब्द सीमा का उल्लंघन स्वीकार्य सीमा से अधिक है तो उसी अनुपात में अंक काटे जाएँगे। यदि संक्षेपिका 150 शब्दों से कम या 250 शब्दों से अधिक लम्बी हुई तो उसके लिए बिल्कुल नहीं दिए जा सकते हैं। 60

मैं उस समय लगभग सात वर्ष का रहा होउॅगा जब मेरे पिता राजस्थानिक न्यायालय का सदस्य बनने के लिए पोरबंदर से राजकोट चले आए। वहाँ मुझे एक प्राथमिक विद्यालय में भर्ती करा दिया गया और मुझे उन दिनों की अच्छी तरह याद है, मुझे पढाने वाले शिक्षकों के नाम तथा अन्य विशेषताएं भी याद है। जैसा पोरबंदर में था उसी प्रकार यहाँ भी मेरी पढ़ाई के विषय में कोई विशेष उल्लेखनिय बात नहीं। मैं तो केवल एक औसत दर्जे का विद्यार्थी था। इस विद्यालय से मैं एक उपनगरीय विद्यालय में गया और वहाँ से हाई-स्कूल। तब तक मैं वारह वर्ष का हो चुका था। मुझे याद नहीं कि इस थोड़े से समय में मैंने अपने अध्यापकों अथवा सहपाथियों से कभी भी झूठ बालेा हो। मैं बहुत शर्मीला था और सभी प्रकार के लोगों के साथ से बचा करता था। मेरी मुस्तकें तथा मेरे पाठ ही मेरे एकमात्रा साथी होते थे। ठीक समय पर स्कूल में होना और स्कूल बंद होते ही घर भाग आना-यही मेरी प्रतिदिन की आदत थी। मैं वस्तुतः वापस भागा ही करता था, क्योंकि मैं किसी से बातचीच नहीं कर सकता था। मुझे इस बाता का भी डर था कि कहीं कोई मेरा मजाक न बनाए।

एक घटना ऐसी है जो मेरे हाई-स्कूल के पहले वर्ष की परीक्षा घटी जो उल्लेखनीय है। शिक्षा निरीक्षक मिस्टर जाइल्स निरीक्षण के लिए दौरे पर आए हुए थे। वर्तनी अभ्यास (Spelling exercise) के लिए उन्होंने हमें पाँच शब्द लिखने को दिए। इनमें से एक शब्द था 'Kettle'। मैंने उसकी वर्तनी गलत लिखी हुई थी। मेरे अध्यापक ने अपने जूते के दृारा मुझे उसे ठीक करने के लिए संकेत देने का प्रयास किया, लेकिन मुझे वह सहायता नहीं लेनी थी। यह बातत मेरी समझ से परे थी कि वे चाहते थे कि मैं अपने पास वाले विद्यार्थी की स्लेट पर से स्पेलिंग की नकल कर लूँ क्योंकि मैं तो यह सोचता था कि अध्यापक वहाँ इसलिए हैं कि हमें नकल करने से रोकने के लिए हमारा निरीक्षण करते रहें। परिणाम यह हुआ कि मेरे अतिरिक्त अन्य सभी लड़कों के दृारा लिखे गए प्रत्येक शब्द की स्पेलिंग सही पाई गई। केवल मैं ही बेवकूफ रहा। बाद में शिक्षक महोदय ने इस बेवकूफी की बात मुझे समझाने को प्रयत्न किया किंतु उसका कोई प्रभाव नहीं पड़ा। मैं ‘नकल’ करने की कला कभी सीख नहीं पाया।

फिर भी इस घटना से मेरा अपने अध्यापक के प्रति सम्मान बिल्कुल कम नहीं हुआ। मैं स्वभावे से ही दूसरों के दोष नहीं देखता था। बाद में मुझे इन अध्यापक महोदय की कई अन्य दुर्बलताओं का पता चला, किंतु उनके प्रति मेरा सम्मान वही बना रहा। इसका कारण यह था कि मैंने बड़ो की आज्ञा का पालन करना सीखा था। उनके कार्याें का विश्लेषण करना नहीं। इसी कालावधी से जुड़ी दो अन्य घटनाएं मेरी स्मृति में हमेशा बनी रहीे हैं। विद्यालय के लिए निधारित पुस्तको के अतिरिक्त और कुछ भी पढ़ने से मुझे नियमित रूप से अरूचि थी। प्रतिदिन का निर्धारित अध्ययन तो करना ही था क्योंकि मुझे अध्यापक दृारा दंडित किया जाना उतना ही नापसंद था जितना कि उन्हें धोखा देना। इसलिए मैं प्रायः बिना उनमें मन लगाए हुए अपने पाठ पूरे कर लेता था। इस प्रकार जब मेरे पाठ ही पूर सम्यक् रूप से नहीं तैयार होते थे तो अतिरिक्त अध्ययन का तो काई प्रश्न ही नहीं उठता था। लेकिन मेरे पिताजी दृार खरीदी गई एक पुस्तक पर मेरी दृष्टि किसी प्रकार पड़ गई। वह पुस्तक थी ‘श्रवण पितृभक्ति नाटक’ (श्रवण का उनके माता-पिता के प्रति भक्तिभाव के विषय में नाटक) मैंने उसे गहरे मनायोग के साथ पढ़ा। उसी समय हमारे यहाँ घुमंतू कलाकार आए। मुझे दिखाए जाने वाले चित्रों में से एक श्रवण का था जो अपने कंधों पर पड़ी हुई झोली की सहायता से अपने अंधे माता-पिता को तीर्थ यात्रा पर ले जा रहे थ। इस पुस्तक तथा चित्र ने मेरे मन पर एक अमिट छापव छोड़ी। मैंने अपने आप से कहा, ‘‘यह ऐसा उदाहरण है जिसकी तुम्हें नकल करनी चाहिए’’। श्रवण की मृत्यु पर उनके माता-पिता का करूण रूदन आज भी मेरी स्मृति में ताजा है। उसकी द्रवित कर देने वाली धुन ने मुझे गहराई तक प्रभावित किया और इस धुन को मैंने पिताजी के दृार मेरे लिए खरीदे गए बाजे पर बजाया।

4. निम्नलिखित अवतरण का हीन्दी में अनुवाद कीजिए:- 20

Tulasidas’s imagery covers a vast range. No poet of medieval period — not even his great contemporary Surdas — can vie with Tulasidas in respect of the infinite variety of imagery employed by him. He has collected his images from peasant life, court life, priestly environments, rural and civic life, philosophical treatises, literary classics, mythological works and folk literature. His poetry is a vast gallery of all kinds of images ranging from exquisite miniature paintings to large frescoes. Normally he likes simple and integrated images, but is quite capable of creating complex imager as well. What he seems to abhor is a truncated image of which we can hardly search out a single example. His whole poetic reaction is an endless Endeavour to give a concrete tangible form to the abstract — to impart physical charms and mental qualities of human personality to an absolute concept. Actually the very conception of Personified Godhood is a grand exercise in image-making. In this context, what is of special relevance to the modern reader in Tulasidas’s art is his unconventional approach to literary-cultural tradition and religion. A number of poles in others Indian languages have also produced great literature in this regard, but Tulasi appears to have surpassed them all.

5. निम्नलिखित गद्यांश का अंग्रेजी में अनुवाद कीजिए:- 20

यह सर्वविदित है कि विश्व का निर्माण, विकास व रक्षा प्रकृति पर ही निर्भर है और प्रकृति के निर्माण व रक्षा में वृक्षों, वनों, लता-पादमों, गुल्मों, तृणों का बड़ा महत्व है। वस्तुतः मनुष्य का अस्तित्व ही वृक्षों, वनो पर टिका है। वृक्ष ही मिटी के मुख्य रक्षक हैं। वे आंधियो के वेग को रोकते हैं और मिटी को उड़ने से बचाते हैं। वृक्ष ही पर्वतों का क्षरण रोकनें तथा उनको स्थिर रखने में समर्थ हैं। वनों से ही पशु पक्षियों की रक्षा होती है और पारस्थितिकी संरक्षण संभव होता है। वे ही वर्षा के कारण होते हैं। जहाँ वृक्ष अधिक होते हैं वहाँ वर्ष अधिक होती है परन्तु रेगिस्तान वर्षा के लिए तरसता रहता है। वर्षा से ही अन्न उत्पादन संभव होता है और अन्न से मनुष्य जीवित रहता है। अनेक वृक्षों की पत्तियों को घास के रूप में खाकर पशु जीवित रहते हैं। वृक्षों से ही हमें इंधन व भवन निर्माण के लिए काष्ठ उपलब्ध होता है। रेल, जलयान, वायुयान आदि अनेक साधनों के निर्माण में वृक्षों से प्राप्त लकड़ी का ही प्रयोग होता है। भँाति-भाँति की दवाइयां, गोंद, कागज, दियासलाई, कई तरह के तेल, अनेक प्रकार के स्वादिष्ट व पौष्टिक फलों का अक्षुण्ण स्त्रोत वृक्ष ही हैं। वृक्षों की शीलत छाया हमें ग्रीष्मताप से राहत देती है। इनके फूलों की सुगन्ध हमारे मन-मस्तिष्क् को ताजगी देती है।

6. (क) निम्नलिखित मुहावरों और लाकोक्तियों में से किन्हीं पाँच का अर्थ स्पष्ट करते हुए उनका वाक्यों में प्रयोग कीजिएः- 5×4 = 20

(1) एक पंथ दो काज
(2) पानी पड़ना
(3) हथियार डालना
(4) नाक रगड़ना
(5) नौ दिन चले अढ़ाई कोस
(6) एक और एक ग्यारह होना
(7) जैसी करनी वैसी भरनी
(8) जिन खोजा तिन पाइयां गहरे पानी पैठ
(9) चिराग तले अंधेरा होना
(10) सौ सुनार की एक लुहार की।

(ख) निम्नलिखित में से किन्हीं पांच वाक्यों के शुद्ध रूप लिखिए। 5×2 = 10

(1) मैं ऐसा नहीं समझता जैसा की आप।
(2) उसने अपने हस्ताक्षर नहीं किया।
(3) मैं तुम्हें केवल पांच पुस्तकें ही देने पाउँगा।
(4) परिक्षक की दृष्टि अशुद्धी पर अवश्य पड़ती है।
(5) कोयल बोलता है।
(6) राजा ने चोर को फांसी पर चढ़ाया।
(7) वह पाठ को याद नहीं करने पाया।
(8) आप देर न करें, भोजन करो जी।
(9) वह मकान बिल्कुल फूटा हुआ था।
(10) वह पुराने कपड़े के व्यापारी हैं।

(ग) निम्नलिखित युग्मों में से किन्हीं पांच को वाक्यों में इस प्रकार कीजिए कि उनका अर्थ स्पष्ट हो जाय और उनके बीच का अंतर भी समझ में आ जाय:- 5×2 = 10

(1) लक्ष्य-लक्ष
(2) सम-शम
(3) भवन-भुवन
(4) प्रसाद-प्रासाद
(5) परिणाम-परिमाण
(6) तरंग-तुरंग
(7) मनुज-मनोज
(8) राज-राज़
(9) अकथ-कथक
(10) आहुति-आहूत।

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