(Sample Material) सामान्य अध्ययन (पेपर -1) ऑनलाइन प्रशिक्षण कार्यक्रम: भारतीय राजव्यवस्था एवं अभिशासन - "मूल अधिकार"

सामान्य अध्ययन ऑनलाइन प्रशिक्षण कार्यक्रम का (Sample Material)

विषय: भारतीय राजव्यवस्था एवं अभिशासन

अध्याय: मूल अधिकार

संविधान के भाग 3 में अनुच्छेद 12 से 35 तक मूल अधिकारों का विवरण है। इस संबंध में संविधान निर्माता अमेरिकी संविधान (यानि अधिकार के विधेयक से) से प्रभावित रहे ।

संविधान के भाग 3 को भारत का मैग्नाकार्टा की संज्ञा दी गयी है, जो सर्व था उचित है ।इसमें एक लंबी एवं विस्तृत सूची में न्यायोचित मूल अधिकारों का उल्लेख किया गया है। वास्तव में मूल अधिकारों के संबंध में जितना विस्तृत विवरण हमारे संविधान में प्राप्त होता है, उतना विश्व के किसी देश में नहीं मिलता चाहे वह अमेरिका ही क्यों न हो।

संविधान द्वारा बिना किसी भेदभाव के हर व्यक्ति के लिए मूल अधिकारों के संबंध में गारंटी दी गई है। इनमें प्रत्येक व्यक्ति के लिए समानता, सम्मान, राष्ट्रहित और राष्ट्रीय एकता को समाहित किया गया है ।

मूल अधिकारों का तात्यर्य राजनीतिक लोकतंत्र के आदर्शों की उन्नति से है। ये अधिकार देश में व्यवस्था बनाए रखने एवं राज्य के कठोर नियमों के खिलाफ नागरिकों की आजादी की सुरक्षा करते हैं। ये विधानमंडल के कानून के क्रियान्वयन पर तानाशाही को मर्यादित करते हैं। संक्षेप में इनके प्रावधानों का उद्देश्य कानून की सरकार बनाना है न कि व्यक्तियों की ।

मूल अधिकारों को यह नाम इसलिए दिया गया है, क्योंकि इन्हें संविधान द्वारा गारंटी एवं सुरक्षा प्रदान की गई है, जो राष्ट्र कानून का मूल सिद्धांत है। ये श् मूल श् इसलिए भी हैं क्योंकि ये व्यक्ति के चहुंमुख्यी विकास (भौतिक, बौद्धिक, नैतिक एवं आध्यात्मिक) के लिए आवश्यक हैं ।

मूल रूप से संविधान ने सात मूल अधिकार प्रदान किए-

1. समता का अधिकार (अनुच्छेद 14 - 18) ।
2. स्वतंत्रता का अधिकार (अनुच्छेद 19 - 22) ।
3. शोषण के विरुद्ध अधिकार (अनुच्छेद 23 - 24) ।
4. धर्म की स्वतंत्रता का अधिकार (अनुच्छेद 25 - 28) ।
5. संस्कृति और शिक्षा संबंधी अधिकार (अनुच्छेद 29 - 30) ।
6. संपत्ति का अधिकार (अनुच्छेद 31) ।
7. सांविधानिक उपचारों का अधिकार (अनुच्छेद 32) ।

हालांकि, संपत्ति के अधिकार को 44वें संविधान अधिनियम, 1978 द्वारा मूल अधिकारों की सूची से हटा दिया गया है।

इसे संविधान के भाग XII में अनुच्छेद 300 -क के तहत कानूनी अधिकार बना दिया गया है। इस तरह फिलहाल छह मूल अधिकार है ।

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मूल अधिकारो की विशेषताएं

मूल अधिकारों को संविधान में निम्नलिखित विशेषताओं के साथ सुनिश्चित किया गया है-

1. उनमें से कुछ सिर्फ नागरिकों के लिए उपलब्ध हैं, जबकि कुछ अन्य सभी व्यक्तियों के लिए उपलब्ध हैं चाहे वे नागरिक, विदेशी लोगों या कानूनी व्यक्ति, जैसे-परिषद् एवं कंपनियां हों।

2. ये असीमित नहीं है, लेकिन वादयोग्य होते हैं। राज्य उन पर युक्तियुक्त प्रतिबंध लगा सकता है। हालांकि ये कारण उचित है या नहीं इसका निर्णय अदालत करती है। इस तरह ये व्यक्तिगत अधिकारों एवं पूरे समाज के बीच संतुलन कायम करते हैं। यह संतुलन व्यक्तिगत स्वतंत्रता एवं सामाजिक नियंत्रण के बीच होता है ।

3. कुछ मामलों को छोड़कर इनमें से ज्यादातर अधिकार राज्य के मनमाने रवैये के खिलाफ हैं, जैसे-राज्य के खिलाफ कोई कार्यवाही या व्यक्ति के खिलाफ कार्रवाई। जब अधिकार राज्य कार्यवाही के खिलाफ हों और किसी व्यक्ति द्वारा इसका उल्लंघन हो रहा हो, तो वे संवैधानिक उपाय नहीं, बल्कि व्यक्तिगत प्रतिकार हैं।

4. इनमें से कुछ नकारात्मक विशेषताओं वाले होते हैं, जैसे- राज्य के प्राधिकार को सीमित करने से संबंधितः जबकि कुछ सकारात्मक होते हैं, जैसे-व्यक्तियों के लिए विशेष सुविधाओं का प्रावधान ।

5. ये न्यायोचित हैं। ये व्यक्तियों को अदालत जाने की अनुमति देते हैं। जब भी इनका उल्लंघन होता है ।

6. इन्हें उच्चतम न्यायालय द्वारा गारंटी व सुरक्षा प्रदान की जाती है। हालांकि पीड़ित व्यक्ति सीधे उच्चतम न्यायालय जा सकता है। यह आवश्यक नहीं है कि केवल उच्च न्यायालय के खिलाफ ही वहां अपील को लेकर जाया जाये ।

7. ये स्थायी नहीं हैं। संसद इनमें कटौती या कमी कर सकती है लेकिन संशोधन अधिनियम के तहत, न कि साधारण विधेयक द्वारा। यह सब संविधान के मूल ढांचे को प्रभावित किए बिना किया जा सकता है (मूल अधिकारों के संशोधन को अध्याय 10 में विस्तार से वर्णित किया गया है) ।

8. राष्ट्रीय आपातकाल की सक्रियता के दौरान (अनुच्छेद 20 और 21 में प्रत्याभूत अधिकारों को छोड्कर) इन्हें निलंबित किया जा सकता है। अनुच्छेद 19 में उल्लिखित 6 मूल  अधिकारों को तब स्थगित किया जा सकता है, जब युद्ध या विदेशी आक्रमण के आधार पर राष्ट्रीय आपातकाल की घोषणा की गई हो। इसे सशस्त्र विद्रोह (आंतरिक आपातकाल) के आधार पर स्थगित नहीं किया जा सकता ।
(राष्ट्रीय आपातकाल के दौरान मूल अधिकारों का निलंबन अध्याय 15 में विस्तार से वर्णित किया गया है। )

9. अनुच्छेद 31 क (संपत्ति आदि के अधिग्रहण पर कानून की रक्षा) द्वारा इनके कार्यान्वयन की सीमाएं हैं। अनुच्छेद 3 1ख (कुछ अधिनियमों और विनियमों का विधि मान्यीकरण 9वीं सूची में शामिल किया गया) एवं अनुच्छेद 31ग (कुछ कुछ निदेशक तत्वों को प्रभावी करने वाली विधियों की व्यावृत्ति) आदि ।

10. सशस्त्र बलों, अर्द्ध सैनिक बलों, पुलिस बलों, गुप्तचर संस्थाओं और ऐसी ही सेवाओं से संबंधित सेवाओं के क्रियान्वयन पर संसद प्रतिबंध आरोपित कर सकती है (अनुच्छेद 33) ।

11. ऐसे इलाकों में भी इनका क्रियान्वयन रोका जा सकता है, जहा ंफौजी कानून प्रभावी हो। फौजी कानून का मतलब श् सैन्य शासन श् से है, जो असामान्य परिस्थितियों में लगाया जाता है (अनुच्छेद 34)। यह राष्ट्रीय आपातकाल से भिन्न है।

12. इनमें से ज्यादातर अधिकार स्वयं प्रवर्तित हैं, जबकि कुछ को कानून की मदद से प्रभावी बनाया जाता है। ऐसा कानून देश की एकता के लिये संसद द्वारा बनाया जाता है, न कि विधान मंडल द्वारा ताकि संपूर्ण देश में एकरूपता बनी रहे ।