(Sample Material) सामान्य अध्ययन (पेपर -1) ऑनलाइन प्रशिक्षण कार्यक्रम: भारतीय राजव्यवस्था एवं अभिशासन - "राजभाषा"

सामान्य अध्ययन ऑनलाइन प्रशिक्षण कार्यक्रम का (Sample Material)

विषय: भारतीय राजव्यवस्था एवं अभिशासन

अध्याय: राजभाषा

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संविधान के भाग ग्टप्प् में अनुच्छेद 343 से 351 राजभाषा से संबंधित हैं। इनके उपबंधों को चार शीर्षकों में विभाजित किया गया है-संघ की भाषा, क्षेत्रीय भाषाएं न्यायपालिका और विधि के पाठ भाषा एवं अन्य विशेष निर्देशों की भाषा ।

संघ की भाषा

संघ के संबंध में, संविधान में निमलिखित उपबंध हैं-

1. देवनागरी लिपि में लिखी जाने वाली हिंदी संघ की है परंतु संघ द्वारा आधिकारिक रूप से प्रयोग की जाने वाली संख्याओं का रूप अंतर्राष्ट्रीय होगा, न कि देवनागरी ।
2. हालांकि संविधान प्रारंभ होने के 15 वर्षों (1950 से 1965 तक) अंग्रेजी का प्रयोग आधिकारिक रूप उन प्रयोजनों के लिए जारी रहेगा जिनके लिए 1950 से पूर्व इसका उपयोग में होता था ।
3. पंद्रह वषों के उपरांत भी संघ प्रयोजन विशेष के लिए अंग्रेजी का प्रयोग कर सकता है ।
4. संविधान लागू होने के पांच वर्ष पश्चात व पुनः दस वर्ष के पश्चात राष्ट्रपति एक आयोग की स्थापना करेगा जो हिंदी भाषा प्रगामी प्रयोग के संबंध में, अंग्रेजी के प्रयोग को सीमित करने व अन्य संबंधित मामलों में सिफारिश करेगा ।
5. आयोग की सिफारिशों के अध्ययन व राष्ट्रपति को इस संबंध में अपने विचार देने के लिए एक संसदीय समिति गठित की जाएगी ।

इसके अनुसार, 1955 में राष्ट्रपति ने बी.जी. खेर की अध्यक्षता में एक आयोग का गठन किया गया। आयोग ने 1956 में अपनी रिपोर्ट राष्ट्रपति को प्रस्तुत की। 1957 में पंडित गोविंद वल्लभ पंत की अध्यक्षता में बनी संसदीय समिति ने इस रिपोर्ट की समीक्षा की। हालांकि 1960 में दूसरे आयोग (जिसकी कल्पना संविधान में की गई थी) का गठन नहीं किया गया। इसके परिणामस्वरूप, संसद ने 1963 में अधिनियम को अधिनियामित कर दिया। इस में संघ के सभी सरकारी कार्यों व संसद की कार्यवाही में, अंग्रेजी के प्रयोग को जारी रखने (1965 के बाद भी) के साथ ही हिंदी के प्रयोग का उपबंध किया गया। ध्यान देने योग्य बात इस में यह थी कि इसमें अंग्रेजी के प्रयोग के लिए कोई समय-सीमा निर्धारित नहीं की गई। सन 1967 में कुछ विशिष्ट मामलों में हिन्दी के साथ अंग्रेजी का प्रयोग अनिवार्य करने के लिए इसमें संशोधन किया गया ।

क्षेत्रीय भाषा

संविधान में राज्यों के लिए किसी विशेष का उल्लेख नहीं है। इस संबंध में कुछ निम्नलिखित उपबंध हैं-

1. किसी राज्य की विधायिका उस राज्य के रूप में किसी एक या एक से अधिक भाषा अथवा हिंदी का चुनाव कर सकती है। जब तक यह न हो उस राज्य की आधिकारिक भाषा अंग्रेजी होगी ।

इस उपबंध अंतर्गत अधिकांश राज्यों ने मुख्य क्षेत्रीय भाषा को अपनी के रूप में स्वीकार किया। उदाहरण के लिए आंध्र प्रदेश ने तेलुगू केरल-मलयालम, असम- असमिया, प. बंगाल-बंगाली, उड़ीसा-उड़िया को अपनाया। नौ उत्तरी राज्यों हिमाचल प्रदेश, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, बिहार, हरियाणा, उत्तराखंड, छत्तीसगढ, झारखंड और राजस्थान ने हिंदी को अपनाया। गुजरात व पंजाब ने हिंदी के अतिरिक्त क्रमशः गुजराती व पंजाबी को अपनाया। गोवा ने कों कणी के अतिरिक्त मराठी व गुजराती को अपनाया। जम्मू व कश्मीर ने उर्दू (कश्मीरी नहीं) को अपनाया। दूसरी ओर कुछ उत्तर-पूर्वी राज्यों जैसे-मेघालय, अरुणाचल प्रदेश और नागालैंड ने अंग्रेजी को स्वीकार किया। ध्यान देने योग्य बात यह है कि राज्यों द्वारा भाषा का चुनाव संविधान की आठवीं अनुसूची में उल्लेखित भाषाओं तक ही सीमित नहीं है।

2. कुछ समय के लिए केंद्र व राज्यों के मध्य तथा विभिन्न राज्यों के मध्य संपर्क भाषा के रूप में संघ की राजभाषा अर्थात अंग्रेजी का प्रयोग होगा परंतु दो या दो से अधिक राज्य, परस्पर संवाद के लिए हिंदी के प्रयोग (अंग्रेजी के स्थान पर) के लिए स्वतंत्र होंगे। राजस्थान, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश व बिहार ने ऐसे समझौते किए। अधिनियम (1963) के अनुसार, संघ व गैर-हिंदी भाषी राज्यों (वे राज्य जहाँ हिंदी नहीं है) के मध्य अंग्रेजी संपर्क भाषा होगी। इसके अतिरिक्त, जहां हिंदी व गैर- हिंदी राज्यों के बीच संपर्क भाषा हिंदी है, वहां पर ऐसे संवाद अंग्रेजी में भी अनुवादित किए जाएंगे।

3. जब राष्ट्रपति (यदि मांग की जाए) इस बात पर संतुष्ट हो कि किसी राज्य की जनसंख्या का अधिकतर भाग उनके द्वारा बोली जाने वाली भाषा को राज्य द्वारा मान्यता चाहता हो, तो वह ऐसी भाषा को राज्य के रूप में मान्यता देने का निर्देश दे सकता है। इस उपबंध का उद्देश्य राज्य के अल्पसंख्यको के भाषायी हितों की सुरक्षा करना है ।