(Sample Material) सामान्य अध्ययन (पेपर -1) ऑनलाइन प्रशिक्षण कार्यक्रम: भारत और विश्व का भूगोल - "शैल एवं खनिज"

सामान्य अध्ययन ऑनलाइन प्रशिक्षण कार्यक्रम का (Sample Material)

विषय: भारत और विश्व का भूगोल

शैल एवं खनिज

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शैलों की परिभाषा (Definition of Rocks)

साधारणतः शैल अथवा चट्टान शब्द से ऐसे पदार्थ का बोध होता है जो पत्थर की भाँति हो परन्तु वैज्ञानिक भाषा में वे समस्त पदार्थ जिनसे भू- पर्पटी का निर्माण हुआ है चाहे वे ग्रेनाइट की भाँति कठोर हो या चीका , रोड़ी अथवा मिट्टी की भाँति नरम एवं मुलायम हो , शैल कहलाते हैं।

शैलों का वर्गीकरण (Classification of Rocks)

उत्पत्ती के आधार पर शैलों को निम्न तीन भागो मे बाँटा जाता हैः

1. आग्नेय शैल (Igneous Rocks)
2. अवसादी अथवा तलछटी शैल (Sedimentary Rocks)
3. रूपान्तरित अथवा कायान्तरित शैल (Metamorphic Rocks)

शैलों का विस्तृत वर्गीकरण निम्न प्रकार किया जा सकता हैः

1. आग्नेय शैल (Igneous Rocks)

आग्नेय शब्द लातीनी भाषा के शब्द इग्नीस से लिया गया है जिसका अर्थ आग होता है (Latin Ignis = Fire) अतः ये ऐसी शैले है जिनका निर्माण पृथ्वी के भीतरी भाग मे उपस्थित गर्म द्रव के ठण्डा होने से हुआ है। (Igneous rocks are formed through the solidification of molten materials) सभी शैलों का मूल पदार्थ गर्म, तरल तथा चिपचिपा मैग्मा है जो भू -गर्भीय ताप के कारण 60से 100 कि0 मी0 की गहराई से दरारो से होता हुआ धरातल की ओर बढ़ता है। तरल मैग्मा जब पृथ्वी के तल पर पहुँचता है तो उसका गैसीय अंश वायुमंडल मे विलीन हो जाता है और यह लावा मे परिवर्तित हो जाता है। आग्नेय शैलो को मूल शैल कहा जाता है क्योकि अन्य सभी शैलो का निर्माण इन्ही शैलों से होता है।

आग्नेय शैलों का वर्गीकरण (Classification of Igneous Rocks): आग्नेय शैलो को रासायनिक संघटन तथा गठन के आधार पर वर्गीकृत किया जाता हैः

(1) रासायनिक संघटन के आधार पर आग्नेय शैलों का वर्गीकरणः भूगर्भ से निकलने वाले मैग्मा के रासायनिक विभेदन के अधार पर दो प्रकार की आग्नेय शैले मानी जाती है। इनके नाम मैफिक (Mafic) तथा फल्सिक (Felsic) है मैफिक आग्नेय शैलो मे फेरोमैग्नीशियम खनिज पाया जाता है, जिसमे लोहा तथा मैग्नीशियम की प्रचुरता होती है। फेल्सिक आग्नेय शैलो में फेल्सपार अधिक होता है इसमे सोडियम कैल्शियम , पोटेशियम के साथ एल्यूमीनियम के सिलिकेट की प्रचुरता होती है।

(2) गठन के आधार पर आग्नेय शैलों का वर्गीकरणः आग्नेय शैलों के गठन का अर्थ उनमे उपस्थित खनिजों के क्रिस्टलों के आकार तथा गठन है। इन शैलो के क्रिस्टलों का आकार मैग्मा के ठंडा होने की दर पर निर्भर करता है। सामान्यतया जब मैग्मा शीघ्र ठंडा होता है तो क्रिस्टल छोटे आकार के होते है। इसके विपरीत जब मैग्मा धीरे - धीरे ठंडा होता है तो बड़े आकार के क्रिस्टल बनते है । जब मैग्मा अतिशीघ्र ठंडा होता है तो प्राकृतिक कांच अथवा ग्लास की उत्पत्ति होती है। यह क्रिस्टलविहिन होता है। अधिक गहराई पर मैग्मा धीरे -धीरे ठंडा होता है क्योंकि मैग्मा चारो ओर से घेरने वाली शैले ऊष्मा के निष्कासन मे बाधा डालती हैं। भू - पर्पटी के ऊपर लावा शीघ्र ही ठंडा हो जाता है क्योंकि इसकी उष्मा का द्दास वायुमंडल तथा ऊपर स्थित समुद्री जल मे शीघ्रतापूर्वक होता है । क्रिस्टलो के आकार के अनुसार उन्हें विभिन्न नाम दिए गए हैं -

1. दृश्यक्रिस्टली (Phaneritic)- पर्याप्त बड़े क्रिस्टल जो आँखो अथवा हाथ के लेंस से देखे जा सकते है, दृश्यक्रिस्टली कहलाते है।
2. एफान (Aphan) क्रिस्टल- जो क्रिस्टल केवल माइक्रोस्कोप की सहायता से देखे जा सकते हैं, एफान क्रिस्टल कहलाते हैं।
3. समकणिक (Porphyritic) - जिस शैल के क्रिस्टल लगभग एक ही आकार के होते है, उस शैल गठन को समकणिक कहते हैं।
4. अंतर्वेशी अथवा पाॅर्फिराइटिक (Porphyritic)- जिस गठन मे लक्ष्यक्रिस्टल (Phenocrysts) कहलाने वाले बड़े क्रिस्टल छोटे क्रिस्टलो के आव्यूह मे अंतःस्थापित होते हैं उसे अंतर्वेशी गठन कहते हैं।

2. अवसादी अथवा तलछटी शैलें (Sedimentary Rocks)

यद्यपि अवसादी शैले भू- पर्पटी के पूरे आयतन का केवल 5% ही बनाती है तो भी ये पृथ्वी के स्थलमंडल के 75%भाग को घेरे हुए है। इसका तात्पर्य यह है कि ये चट्टानों की तुलना मे बहुत ही कम हैं, परन्तु पृथ्वी के तल पर ये विस्तृत रूप मे फैली हुई हैं। संक्षेप मे अवसादी शैलें अपने महत्व को केवल विस्तार तक ही सीमित रखती है। न कि भू- पृष्ठ की गहराई के लिए।

तलछटी चट्टाने उन पदार्थ से बनती है। जिन्हे अनाच्छादन के साधन (जैसे नदी हिमनदी, वायु, आदि) निम्न प्रदेशों मे एकत्रित करते है। अनाच्छादित पदार्थ को तलछट कहते है। यह तलछट परत (Strata or Layer) के रूप मे एकत्रित होता है। इस प्रकार एक परत के ऊपर दूसरी परत बिछ जाती है। कालान्तर मे ऊपरी दबाब के कारण यहा तलछट सख्त हो जाता है और एक चट्टान का रूप धारण कर लेता है। जिसे तलछटी या अवसादी चट्टान (Sedimentary or Stratified Rock) कहते हैं।

बलुआ पत्थर तथा खड़िया अवसादी शैलो के दो महत्वपूर्ण उदाहरण हैं। बलुआ पत्थर बालू के कणों से बनते है जो प्राकृतिक रूप से एक दूसरे से जुड़े हुए होते है। खड़िया करोड़ो सूक्ष्म जीवो के छोटे छोटे कैल्शियम कार्बोनेटी (चूना) अवशेषों से बनती है।

पृथ्वी के भूवैज्ञानिक इतिहास मे महाद्वीपो के अनुकूल क्षेत्रों तथा महासागरों अधस्थलों पर अवसाद की मोटी परते जम जाती है। जब नदी स्थलीए भाग से समुद्र मे प्रवेश करती है तो अपने साथ लाया हुआ तलछट समुद्र के नितल पर बिछा देती है। सबसे पहले बजरी फिर रेत तथा अन्त मे चीका बिछाती है और अधिक गहराई पर जीवाशेष मिलते है। निरन्तर तह के ऊपर तह बिछती रहती है और तलछटी चट्टानों का निर्माण होता रहता है (चित्रा 6.1) समुद्र चट्टानों मे लाल मिट्टी (Red clay) सिन्धुपंक (Oozes) तथा प्रवालों द्वारा निर्मित चट्टानों प्रमुख है। आस्ट्रेलिया के पूर्वी तट पर मूँगे की दीवार (Great Barrier Reef) इसी प्रकार बनी है।

अवसादी शैलों का निर्माण

जैसे ही नई परते बनती हैं, पुरानी परते क्रमशः नीचे दब जाती है । ऊपर से दाब निरंतर बढ़ता जाता है और अवसाद से जल निकल जाता है । परिणामस्वरूप अवसाद अधिक ठोस व मजबूत हो जाता है और अवसादी शैलों का निर्माण हो जाता है। इस प्रक्रिया को शिलीभवन (स्पजीपपिबंजपवद) कहते हैं। कभी-कभी अवसादों मे निक्षेप के पश्चात रासायनिक परिर्वतन भी होते हैं। भौतिक तथा रासायनिक पनिर्वतनों की सभी प्रक्रियाएँं जो अवसादो के उनके ठोस शैल मे परिर्वतित होने के दौरान प्रभावित करती हैं, प्रसघना (क्पंहमदमेपे) कहलाती हैं।