(GIST OF YOJANA) पूर्वोत्तर का पुनरोदय [April-2018]


(GIST OF YOJANA) पूर्वोत्तर का पुनरोदय [April-2018]


पूर्वोत्तर का पुनरोदय

  जब हम पूर्वोत्तर के बारे में सोचते हैं, तो हमारे मन में काजीरंगा के . गैंडे मेघालय के बादल, बांस संबंधी हस्तकला हैंडलूम के बेहतरीन परिधान और चाय बागानों के दृश्य उभरते हैं। हम पूर्वोत्तर से ताल्लुक रखने वाले स्कूल और कॉलेज के अपने पुराने दोस्तों को भी याद करते हैं, जो हमारे साथ छात्र या सहकर्मी की तरह रहे।
हालांकि, पूर्वोत्तर सिर्फ आनंदादायक पर्यटन स्थलों, बेहतरीन हैंडलूम और हस्तकला और यहां के अच्छे लोगों अच्छे लोगो से जुड़ा मामला नहीं है। इस इलाके की अपनी अलग पहचान है। अलग तरह का स्थान होने के कारण यह देश की भौगोलिक मुख्यधारा से कटा है। सिक्किम और पूर्वोत्तर की सात बहनों ने ऐसी संस्कृति और पहचान विकसित की है, जो बाकी भारत से अलग । नियोजन से सभी मंचों आठ , , नगालैंड, अरुणाचल प्रदेश, हैजड़े पर इन राज्यों- असम, मेघालय, त्रिपुरामिजोरम मणिपुर और सिक्किम की चर्चा एक पूर्ण इकाई के तौर पर होती है। चाहे बजट आवंटन हो या अवसंरचना सुविधाओं के लिए आवंटित विकास परियोजनाओं का मामला , तमाम चीजों की योजना इस पूरे क्षेत्र को ध्यान में रखकर तैयार की जाती है। इससे इस इलाके के अलग होने और देश के बाकी हिस्सों के मुकाबले अनोखा रहने की छवि बनी है।
भौगोलिक अलगाव और कुछ अन्य अंतर के कारण इस इलाके को कई मोचों पर पिछड़ेपन और विकास की अनदेखी का सामना करना पड़ा है। फसलों का कम उत्पादन बैंकों से कर्ज की दिक्कतबड़े उद्योगों की कमी और अवसंरचना सुविधाओं का अभाव आदि ने इस क्षेत्र के समग्र विकास को बाधित किया है। 

     केद्र सरकार पिछले कुछ समय से पूर्वोत्तर का समानांतर और संतुलित विकास सुनिश्चित करने के लिए कदम उठा रही है। पूर्व की ओर देखो' नीति हकीकत में बदलने पर के से क्षेत्र उम्मीदें जगी हैं। मेघालय के मदापाथर असम को मौजूदा सरकार जोर इस के लिए से के गुवाहाटी तक पहली बार ट्रेन चलाने, ओएनजीसी त्रिपुरा कंपनी लिमिटेड विद्युत प्लांट की यूनिट-2 की स्थापना, असम में देश का सबसे लंबा यानी 9.15 किलोमीटर का पुल (ढोला-सदिया पुल), आईआईआईटी गुवाहाटी की आधारशिला का रखा जाना आदि ऐतिहासिक पहल से पूर्वोत्तर के विकास की रफ्तार तेज हुई । पूर्वोत्तर के लिए बजट में भी बढ़ोतरी की गई है। यह फिलहाल तकरीबन 48 000 करोड़ है।
इस इलाके में आजीविका का मुख्य साधन खेती है। हालांकि , कृषि उत्पादन कम रहने और झूम प्रणाली जैसी पारंपरिक खेती में होने वाली मुश्किलों के कारण इस क्षेत्र में आजीविका की समस्या पैदा हो गई है। ऐसी स्थिति से निपटने के लिए सरकार ने राष्ट्रीय बांस मिशन। पर नए सिरे से पहल करने का फैसला किया है और इसके लिए 1290 करोड़ रुपये आवंटित किए गए । इससे बड़े पैमाने पर बांस उद्योग के विकास की उम्मीद है।

     इस क्षेत्र के विकास में है। यातायात सुविधाओं का अभाव बडी बाधा रही सड़क और रेल से जुड़ाव की खराब हालत और हवाई संपर्क नहीं के बराबर होने के कारण यहां की अर्थव्यवस्था सुस्त हो गई। लिहाजा, यहां से देश के अन्य हिस्सों तक वस्तुओं और सेवाओं की आवाजाही मुमकिन नहीं हो पाती है।
सरकार ने अब अवसंरचना सुविधाओं के लिए बड़े पैमाने पर बजट आवंटन किया है इस क्षेत्र में इस क्षेत्र में रेल संपर्क को बढ़ावा देने के लिए पिछले चार वर्षों में 5886 करोड़ रुपये देने का ऐलान किया गया, जबकि 2014-19 के दौरान नई सड़क, पुल आदि में निवेश ' के लिए 2 लाख करोड़ का आवंटन किया गया है। इसके अलावा इस क्षेत्र के 50 हवाई अड्डों को बेहतर बनाने के लिए 1,014 करोड़ रुपये देने की बात कही गई है। इससे न सिर्फ देश के बाकी हिस्सों बल्कि म्यांमार, भूटान और बांग्लादेश जैसे पड़ोसी देशों के साथ भी पूर्वोत्तर के संपर्क को बढ़ावा मिलेगा।

     इस इलाके में मौजूदा विद्युत परियोजनाओं के लिए 1,292 करोड़ रुपये आवंटित किए हैं, जबकि सौर ऊर्जा विकसित करने के लिए 234 करोड़ का अतिरिक्त आवंटन किया गया है। शिक्षा के लिए बेहतर सुविधाओं की कमी और कौशल विकास की दिक्कत के कारण युवाओं को पढ़ाई के लिए अन्य इलाकों में जाने को मजबूर होना पड़ता था। इसी तरह, रोजगार के अवसरों की कमी ने युवाओं को भी दूसरे क्षेत्रों में पलायन के लिए मजबूर कर दिया था।
रोजगार सृजन मिशन और असम राज्य आजीविका मिशन, मेघालय राज्य कौशल विकास सोसायटी आदि योजनाओं की पहल से पूर्वोत्तर में युवाओं को रोजगार के लिए कौशल हासिल करने का नया ठिकाना मिला है। इससे पलायन को गैरजरूरी बनाने में मदद मिलेगी।

     इस क्षेत्र में लंबे समय से महिलाओं को दबाया जाता रहा है और परिवार और वित्तीय मामलों में उनका कोई दखल नहीं होता। स्वयं सहायता समूह बनाने जैसी पहल से इस क्षेत्र में महिलाओं के सशक्तीकरण में मदद मिली है। ऊंचे इलाकों के लिए पूर्वोत्तर क्षेत्र समुदाय ) संसाधन प्रबंधन परियोजना (एनईआरसीएमपी) और प्राकृतिक संसाधन प्रबंधन समूह (एनएआरएमजी) जैसी इकाइयों ने लैंगिक सशक्तीकरण लाने में कारगर औजार के तौर पर काम किया है
समाज के सभी के विकास और पुनर को हिस्सा की के जरिये यह सुनिश्चित तबकों साथ विकास प्रक्रिया का बनाने कोशिशों किया गया है कि इस क्षेत्र के लोग कभी भी विकास या सांस्कृतिक लिहाज से देश के बाकी हिस्सों के मुकाबले अलग नहीं माने जाएं।

     भारत के पूर्वोत्तर क्षेत्र में अरुणाचल प्रदेश, असम, मणिपुर, मेघालयमिजोरम, नगालैंड, सिक्किम और त्रिपुरा समेत आठ राज्य है। इस समस्त क्षेत्र का कुल क्षेत्रफल 262.179 वर्ग किलोमीटर है। भारत के कुछ राज्य जैसे राजस्थान, मध्य प्रदेश या महाराष्ट्र से तुलना करें तो क्षेत्रफल के आधार पर इनमें से प्रत्येक राज्य पूर्वोत्तर के इस संपूर्ण क्षेत्र के मुकाबले अधिक बड़े हैं। भारत के शेष हिस्सों के साथ पूर्वोत्तर भारत भौगोलिक रूप से पश्चिम बंगाल के सिलीगुड़ी क्षेत्र के निकट एक पतले से गलियारे के माध्यम से जुड़ा हुआ है, जिसे आमतौर पर चिकन नेक कहा जाता है। पूर्वोत्तर की सीमा पांच देशों से मिलती है। ये देश हैं- बांग्लादेश, भूटान, चीन, नेपाल और म्यांमार। पूर्वोत्तर की केवल तीस से पैंतीस प्रतिशत भूमि ही समतल है। यह मुख्यतया तीन घाटियों- ब्रह्मपुत्र, बराक और इम्फाल घाटियों के रूप में हैं। शेष भूभाग पहाड़ी क्षेत्र है। पूर्वोत्तर क्षेत्र की लगभग तीन चौथाई भूमि ऐसी है, जिसकी राजस्व की दृष्टि से सर्वेक्षण अथत नाप-जोख या जमाबंदी नहीं हुई है। इस तरह से यहां ऐसी विशाल भूमि है जिसके भूस्वामित्व का कोई लेखा-जोखाप्रमाणीकृत भू रिकॉर्ड उपलब्ध नहीं है।

      पूर्वोत्तर की आबादी में पिछली शताब्दी की शुरुआत की तुलना में असामान्य वृद्धि हुई है। भारत की जनसंख्या 1901 में (जब पाकिस्तान और बंगलादेश भारत का ही अंग थे) 29 करोड़ से अधिक थी, उस समय पूर्वोत्तर के इस क्षेत्र की जनसंख्या महज  44 लाख थी। अब 2011 तक इस क्षेत्र की आबादी बढ़कर 450 लाख हो चुकी है। इस बीच 1901 के समय भारत में सम्मिलित भूभागों को जोड़कर यहां की कुल जनसंख्या 15600 लाख या 156 करोड़ ( भारत की जनसंख्या 121 करोड़, पाकिस्तान की 18 करोड़ और बांग्लादेश की 17 करोड़हो गई है। इस प्रकार 1901 के समय जा भारत था। उसकी जनसंख्या में तब से 2011 के बीच .4 गुना वृद्धि हुई है। पूर्वोत्तर की आबादी इस अवधि में दस गुना से अधिक बढ़ गई है। यहां जनसंख्या की इस अप्रत्याशित बढ़ोतरी का कारण आसपास के इलाकों से लोगों का निरंतर आ बसना है। इसका एक नतीजा यह है कि यहां जो थोड़ी बहुत कृषि योग्य भूमि है, उसका औसत रकबा घट कर एक हेक्टेयर रह गया है।

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   इन प्राकृतिक और मानव निर्मित (प्रवासन) कारणों के बावजूद, पूर्वोत्तर की आर्थिक स्थिति विभाजन के समय देश के बाकी हिस्सों के समतुल्य थी। लेकिन 1947 के बाद से निम्नलिखित प्रमुख ऐतिहासिक घटनाओं ने पूर्वोत्तर की स्थितियों को आकस्मिक तौर पर परिवर्तित कर दिया है और इसने इस क्षेत्र में विकास को बाधित भी किया है। ये घटनाएं हैं:

i) देश का विभाजन: जब पूर्वोत्तर को बाकी देश में जोड़ने वाली प्रमुख सड़क, रेल और नदी मार्ग की संपर्क व्यवस्था अचानक । भंग हो गई।

ii) 1962 का चीनी अतिक्रमण: जब चीनी सेना ने अरुणाचल प्रदेश में प्रवेश किया (उस समय नेफा अर्थात पूर्वोत्तर सीमा क्षेत्र) वापस लौट गई जाहिर है इस घटनाक्रम ने निजी निवेशकों के मन में यहां बड़े पैमाने पर पूंजी निवेश करने में हिचक उत्पन्न हो गई सही हो या गलत, पर एक तरह का भाव उत्पन्न हो गया। कि यहां बड़े पैमाने पर निवेश के लिए कुछ समय इंतजार किया जा सकता है।

iii) 1971 के बांग्लादेश मुक्ति संग्राम: जब बांग्लादेश से शरणार्थी के रूप में करोड़ों लोग पूर्वोत्तर के कुछ राज्यों में - आ गए। हालांकि अधिकांश शरणार्थियों को बांग्लादेश लौटा दिया गया था, लेकिन बांग्लादेश की सीमावर्ती पूर्वोत्तर के कुछ राज्यों में बड़े पैमाने पर जनसांख्यिकीय परिवर्तन हो गया है। पिछली शताब्दी के सत्तर के दशक के अंत से असममेघालय त्रिपुरा और मणिपुर जैसे राज्यों में उग्रवाद की समस्याएं प्रारंभ हो चुकी हैं। नगालैंड और मिजोरम तो वैसे भी पिछली शताब्दी के पांचवें और साठ के दशक से उग्रवाद प्राकृतिक और मानव निर्मित (प्रवासन ) कारणों के बावजूद पूर्वोत्तर की आर्थिक स्थिति विभाजन के समय देश के बाकी हिस्सों के समतुल्य थी। लेकिन 1947 के बाद से निम्नलिखित प्रमुख ऐतिहासिक घटनाओं ने पूर्वोत्तर की स्थितियों को आकस्मिक तौर पर परिवर्तित कर दिया है और इसने इस क्षेत्र में विकास को बाधित भी किया है। से प्रभावित रहे। इस क्षेत्र में केंद्रीय और राज्य सरकारों के प्रयासों और विभिन्न कार्यो के कारन यह अब उग्रवाद उतनी बढ़ी चिंता का विषय नहीं रहा।

  पूर्वोत्तर क्षेत्र में पिछले चार दशकों के दौरान अधिकारीयों के सम्मुख स्वय को प्रस्तुत कर चुके हजारो अप्राविसियो का समुचित पुर्नवास इस क्षेत्र में उल्लेखनिय प्रगति है।
पूर्वोत्तर के मूल निवासियों की संख्या हालांकि लगभग तीन करोड़ से कम है, वे सौ से अधिक समूहों में विभक्त हैं। इनमें से कई समूह ऐसे भी हैं, जिनकी जनसंख्या बीस हजार प्रति समूह से भी कम है। ऐसे अनेक छोटे-छोटे जातीय समूह हैं जो हाशिए पर आते जा रहे हैं।

उपरोक्त प्राकृतिक एवं ऐतिहासिक चुनौतियों के अतिरिक्त पूर्वोत्तर भारत के लिए कुछ अन्य प्रमुख चुनौतियां निम्नलिखित हैं:

i) कम कृषि उत्पादकता (लगभग 2000 किलो चावल प्रति हेक्टेयर) चावल (धान) इस क्षेत्र की मुख्य फसल है।
ii) कम फसल तीव्रता (लगभग 15)।
iii) असिंचित भूमि की प्रचुरता एव सिंचाई सुविधाओं की कमी
iv) रासायनिक उर्वरकों का कम प्रयोग
v) बैंक ऋण सुविधाओं की कमी पूर्वोत्तर में पूर्वोत्तर ऋण एवं जमा अनुपात पचास प्रतिशत से कम है।
vi) सभी क्षेत्रों में किसानों के लिए वर्षों भर प्रमाणित बीज और अच्छी गुणवत्ता वाली रोपण सामग्री की उपलब्धता अपर्याप्त होना।
vii) गोदामों, भंडारण और कोल्ड स्टोरेज आदि सुविधाओं की अपर्याप्तता।
vii) कुछ कुछ जगहों को छोड़ कर क्षेत्र में अच्छी तरह से सुसज्जित आधुनिक बाजार या मंडियों का अभाव।
ix) राष्ट्रीय औसत की तुलना में प्रति व्यक्ति बिजली की कम खपत।
x) सिंचाई के लिए बिजली का बहुत कम उपयोग
xi) लौह, एल्यूमीनियमतांबे, जस्ता टिन, सीसा और निकल आदि जैसे औद्योगिक रूप से उपयोगी धातुओं के अयस्कों तथा अभ्रक और सल्फर आदि जैसे पदाथों का अनुलब्धता।
xii) अच्छी गुणवत्ता वाले कोयले के बड़े भंडार की अनुपलब्धता। पूर्वोत्तर में वर्तमान में जो कोयला पाया जाता है उसमें सल्फर की मात्रा का प्रतिशत अक्सर अधिक होता है जिसकी वजह से यह कोयला उद्योग में उपयोग के लिए अनुपयुक्त होता है।
xiii) पॉलिटेक्निक और इंजीनियरिंग चिकित्सा और नर्सिग आदि के अध्ययन प्रशिक्षण के लिए उच्च स्तरीय संस्थानों की अपर्याप्तता।
xiv) संपूर्ण पूर्वोत्तर क्षेत्र में शिक्षक प्रशिक्षण एक और बड़ा विषय है। इस क्षेत्र में शिक्षा के सामान्य मानक के समग्र सुधार के लिए इस ओर तुरंत ध्यान दिए जाने की बहुत अधिक आवश्यकता है। पूर्वोत्तर में स्कूलों में गणित और विज्ञान पढ़ाने के लिए भी इस दिशा में विशेष प्रयास किए जाने की जरूरत है।
XV ) चार तेल रिफाइनरी और दो पेट्रोकेमिकल परिसरों को छोड़कर बड़े उद्योगों की अनुपस्थिति आदि।
असम और पूर्वोत्तर राज्य में पिछली शताब्दी की शुरुआत से रेल लाइन, चाय उद्यान और तेल और चावल की मिलों की अच्छी खासी संख्या रही है। लेकिन पिछले कुछ दशकों में पूर्वोत्तर के संपूर्ण क्षेत्र में सड़क, रेल और हवाई संपर्क और दूरसंचार के क्षेत्र में उल्लेखनीय सुधार हुआ है। पिछले दो दशकों में यहां कई नए विश्वविद्यालय मेडिकल कॉलेज और इंजीनियरिंग कॉलेज स्थापित हुए हैं। अब एक आईआईटी और एक आईआईएम भी है।
इस क्षेत्र में प्रति व्यक्ति औसत वार्षिक आय राष्ट्रीय औसत का लगभग 70 प्रतिशत है। क्षेत्र की सारक्षता दर (74.48) राष्ट्रीय दर (74.04) के बराबर है।
आजादी के सात दशक बीत जाने के बाद भी उपरोक्त समस्याओं की वजह से पूर्वोत्तर अपेक्षाकृत अधिक पिछड़ा है। व्यापक स्तर पर विनिर्माण औद्योगिक आधार के गैर मौजूदगी के कारण इस क्षेत्र का भविष्य मुख्य रूप से निम्न क्षेत्रों के विकास पर निर्भर है:
i) कृषि जिसके अंतर्गत बागवानी और फूलों की खेती सम्मिलित है;
ii) दुग्ध उद्योग;
iii) बकरी पालन;
iv) सूअर पालन;
V) कुक्कुट पालन;
vi) बत्तख पालन;

असम और पूर्वोत्तर राज्य में पिछली शताब्दी की शुरुआत से रेल लाइन, चाय उद्यान और तेल और चावल की मिलों की अच्छी खासी संख्या रही है। लेकिन, पिछले कुछ दशकों में पूर्वोत्तर के संपूर्ण क्षेत्र में सड़क, रेल और हवाई संपर्क और दूरसंचार के क्षेत्र में उल्लेखनीय सुधार हुआ है। पिछले दो दशकों में यहां कई नए विश्वविद्यालय, मेडिकल कॉलेज और इंजीनियरिंग कॉलेज स्थापित हुए हैं।
vii) मत्स्य पालन ;
Xiii) खाद्य और मांस प्रसंस्करण;
1X ) पर्यटन
x) रेशम उत्पादन एवं बुनाई; हथकरघा तथा धागे के उत्पादन तथा डिजाइन में सुधार के माध्यम से कपड़ा उत्पादन में वृद्धि;
xi) जैविक चाय, जैविक खाद्य , मशरूम और शहद का उत्पादन ;
xii) डिब्रूगढ़ में ब्रह्मपुत्र क्रैकर और पॉलिमर लिमिटेड में निर्मित उच्च और निम्न घनत्व वाले पॉलीथीन से प्लास्टिक के सामान का उत्पादन;
xiii) बांस, गन्ना, जूट, धान के भूसी और औषधीय पौधे यहां भारी संख्या में हैं। इनपर आधारित लघु और मझौले स्तर के उद्योगों को स्थापित करना;
xiv) स्थानीय रूप से उपलब्ध अदरक और हल्दी की गुणवत्ता में सुधार और पैकेजिंग के लिए उद्योगों का विकास ;
x) स्थानीय नदियों और जल प्रपातों के माध्यम से उपलब्ध प्रचुर मात्रा में पानी का उपयोग पनबिजली उत्पन्न करने और सिंचाई सुविधाओं का प्रबंधन;
vi) वस्त्रों , फार्मास्यूटिकल्स कागज और चीनी आदि बनाने के लिए उद्योगों की स्थापना (अत्यधिक वर्षा के कारण मृदा में नमी की वजह से पूर्वोत्तर में गन्ने, दाल तिलहन और ऑर्किड जैसे बहुमूल्य फूलों के बड़े पैमाने पर उत्पादन के लिए पूर्वोत्तर बहुत उपयुक्त है);
XVii) नर्सिग, चिकित्सा सहायकों औषधि निर्माण संस्थानों और ट्रांसफार्मरों और टेलीविजनएयर कंडीशनर, कंप्यूटर, कपड़े धोने की मशीन, मोटर वाहन और रेफ्रिजरेटर आदि की तरह की वस्तुओं की मरम्मत के लिए पर्याप्त संख्या में पॉलिटेक्निक की स्थापना;

  पूर्वोत्तर भारत सांस्कृतिक रूप से अत्यधिक समृद्ध है। यहां के युवा संगीत नृत्य और पेंटिंग इत्यादि क्षेत्र में विशेष रूप से अत्यंत प्रतिभावान हैं। यदि गायन, नृत्य और विभिन्न संगीत वाद्ययंत्र बजाने के लिए पर्याप्त संख्या में विद्यालयों की स्थापना की जाए, तो युवाओं को इन क्षेत्रों में काफी संख्या में रोजगार उपलब्ध हो सकता है।
अगर उपरोक्त क्षेत्रों में बड़े स्तर पर निवेश की व्यवस्था की जाती है तो स्थानीय लोगों के लिए पर्याप्त रोजगार विकसित हो सकते है

  वर्तमान में कद्र सरकार ने इस क्षेत्र का समग्र एवं समावेशी विकास करने के लिए कई अत्यंत प्रशंसनीय कदम उठाए हैं। केद्र ने ‘एक्ट ईस्ट नीति' पर जोर देना और इस दिशा में आगे बढ़ने के साथ इस क्षेत्र की जनता में नई उम्मीदों को संचार किया है। दक्षिण पूर्व एशियाई देशों, बांग्लादेश, नेपाल और भूटान के लिए भारत के इस अंचल को सुगम करना, इस प्रकार पूर्वोत्तर को एक हब के रूप में विकसित करने की योजना को कार्यरूप देने के लिए आवश्यक है कि केद्र इस क्षेत्र को आर्थिक रूप से अधिक गतिशील और समृद्ध बनाए। उपरोक्त देशों को पूर्वोत्तर के साथ सड़क, रेल लाइन, नदी के मार्ग और हवा के माध्यम से जोड़ने के क्रम में पूर्वोत्तर से लोगों का आना-जाना , एवं असबाब आवागमन । बढ़ेगा और और इसके साथ स्वत: ही तकनीक और विचारों के आदान-प्रदान एवं प्रवाह में वृद्धि होगी। उपरोक्त देशों के लोगों के लिएपूर्वोत्तर में धार्मिक, पारिस्थितिकीय, साहसिक और चिकित्सीय, पर्यटन के लिए व्यवस्थाएं विकसित की जा सकती हैं। इससे पूर्वोत्तर एवं अन्य आसपास के क्षेत्र के लोग, जिनमें उपरोक्त देश भी सम्मिलित हैं, के मध्य परस्पर सांस्कृतिक और शैक्षणिक संबंधों में भी सुधार होगा।

पूर्वोत्तर में भंयकर बेरोजगारी भी है। इसके समाधान के लिए रेलवे, राष्ट्रीयकृत बैंकों, असम राइफल्स सहित केंद्रीय अर्थ सैन्य बलों, एयरलाइंस, तेल रिफाइनरी और अन्य बड़े केंद्रीय सार्वजनिक उपक्रमों में पूर्वोत्तर के युवाओं को भर्ती करने के लिए विशेष प्रयास किए जाने चाहिए।

   कुल मिलाकर, पूर्वोत्तर में कृषि, उद्योग और व्यापार के विकास के लिए प्रोत्साहन देने के सुधार लिए भूमि बेहद जरूरी है। इसके अंतर्गत वन रहित क्षेत्रों का राजस्व के लिए सर्वेक्षण कर भू-अभिलेखों को तैयार किया जाना तथा प्रचलित कानून में सभी पात्र व्यक्तियों को भू-स्वामित्व व अधिकार प्रदान किया जाना सम्मिलित है।

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Courtesy: Yojana