(Sample Material) सामान्य अध्ययन (पेपर -1) ऑनलाइन प्रशिक्षण कार्यक्रम: भारतीय राजव्यवस्था एवं अभिशासन - "संविधान की उद्देशिका और उसका महत्व"


सामान्य अध्ययन ऑनलाइन प्रशिक्षण कार्यक्रम का (Sample Material)

विषय: भारतीय राजव्यवस्था एवं अभिशासन

अध्याय: संविधान की उद्देशिका और उसका महत्व


प्रत्येक पुस्तक के प्रारंभ में एक प्राक्कथन होता है जिसमें पुस्तक की विषय-वस्तु उसका उद्देश्य और उसका क्षेत्र तथा उपागम आदि का संक्षिप्त उल्लेख किया जाता है। यह प्राक्कथन पुस्तक का सार होता है जिसे पढ़कर पुस्तक के विषय में प्रारंभिक जानकारी मिल सकती है। ठीक इसी तरह सामान्यतया सभी संविधानों के प्रारंभ में एक प्रस्तावना होती है जिसमें शासन व्यवस्था के मूल आधारों, उसके दर्शन, उसके स्वरूप तथा लक्ष्य आदि का उल्लेख किया जाता है। इसे पढ़कर उस देश की शासन-प्रणाली के स्वरूप, उसके उद्देश्य, उसके कार्य क्षेत्र तथा व्यक्ति और राज्य के संबंधों आदि का ज्ञान हो सकता है। संविधान की प्रस्तावना संविधान का परिचय कराती है। इसे संविधान की आत्मा कहा जाता है। डाॅक्टर सुभाष काश्यप के अनुसार, संविधान राष्ट्र का मूलभूत अधिनियम है। वह राज्य के विभिन्न अंगों का गठन कर उन्हें शरीर देता है, शक्ति देता है। उसके शरीर-गठन के पीछे, अंगों की व्यवस्था के पीछे, एक प्रेरणा होती है, एक आत्मा होती है जिसको शब्द रूप मिलता है प्रस्तावना में। भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने बेरुबारी विवाद में निर्णय देते हुए कहा था कि प्रस्तावना संविधान-निर्माताओं के आशय को स्पष्ट करने वाली कुंजी है।

भारतीय संविधान की उद्देशिका का आधार जवाहरलाल नेहरू द्वारा तैयार किया गया वह उद्देश्य प्रस्ताव है जिसे उन्होंने 13 दिसम्बर 1946 को संविधान-निर्मात्री सभा में प्रस्तुत किया था। इस प्रस्ताव में स्वतंत्र भारत का लिए बनाए जाने वाले संविधान के मूल-सिद्धान्तों और शासन व्यवस्था की एक रूपरेखा प्रस्तुत की गई थी। यह एक प्रकार का घोषणा-पत्र था जिसमें यह बताया गया था कि स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद हम किस प्रकार के शासनतंत्र को स्थापित करेंगें, हमारा लक्ष्य क्या है और हमें किधर जाना है। संविधान-निर्मात्री सभा ने आठ दिनों तक उद्देश्य-प्रस्ताव पर विचार-विमर्श करने के उपरान्त 22 जनवरी 1946 को उसे स्वीकार किया। यह उद्देश्य-प्रस्ताव ही संविधान की प्रस्तावना का मूल खोत था। स्वयं जवाहरलाल नेहरू ने कहा था कि संविधान की प्रस्तावना एक प्रकार से उद्देश्य प्रस्ताव में ही निहित है। इसी उददेश्य प्रस्ताव के परिप्रेक्ष्य मंे संविधान की उद्देशिका तैयार की गई जिसे प्रारूप समिति ने फरवरी 1948 में और संविधान-निर्मात्री सभा ने 17 अक्टूबर 1948 को अन्तिम रूप से स्वीकार किया।

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संविधान की उददेशिका का स्वरूप

मूल संविधान की प्रस्तावना 85 शब्दों से निर्मित थी। 976 में संविधान के 42 वें संशोधन द्वारा उसमें समाजवादी, धर्म-निरपेक्ष और अखण्डता शब्दों को जोड़ दिया गया। इस संशोधन के बाद संविधान की प्रस्तावना का वर्तमान स्वरूप निम्नवत है -

‘‘हम भारत के लोग भारत को एक संपूर्ण प्रभुत्व-संपन्न समाजवादी पंथनिरपेक्ष लोकतंत्रात्मक गणराज्य बनाने के लिए तथा उसके समस्त नागरिकों कोः

"सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक न्याय
विचार, अभिव्यक्ति, विश्वास धर्म और उपासना की स्वतत्रता
प्रतिष्ठा और अवसर की समता
प्राप्त करने के लिए
तथा उन सब में
व्यक्ति की गरिमा और राक की एकता
और अखण्डता सुनिश्चित करने वाली बन्धुता
बढाने के लिए"

दृद्धसंकल्प होकर अपनी इस संविधान सभा में आज तारीख 26 नवम्बर 1949 ई. (मिति मार्गशीर्ष शुक्ला सप्तमी, संवत् दो हजार छह विक्रमी) को एतद्वारा इस संविधान को अंगीकृत, अधिनियमित और आत्मार्पित करते हैं।

संविधान की उद्देशिका यह बताती है कि संविधान किसके द्वारा किस लिए और कब बनाया गया? अध्ययन की सुविधा की दृष्टि से प्रस्तावना को चार भागों में विभाजित किया जा सकता है

1. सत्ता का स्रोत
2. राज्य और सरकार का स्वरूप
3. शासन व्यवस्था के लक्ष्य
4. संविधान का अधिनियमन

1. सत्ता का स्रोत

संविधान की प्रस्तावना ‘हम भारत के लोग’ शब्दों से प्रारम्भ होती ह जो इस तथ्य को स्पष्ट करता है कि भारतीय संविधान का स्रोत जनता है और राजनैतिक सत्ता अन्तिम रूप से जनता में है जिसका प्रयोग करते हुए जनता ने स्वेच्छा से संविधान का निर्माण अथवा अपनी पसंद की शासन व्यवस्था को स्थापित किया है। प्रस्तावना के अन्तिम भाग में भी इसी तथ्य की पुष्टि की गई है कि (हम भारत के लोग)... इस संविधान को अंगीकृत, अधिनियमित और आत्मार्पित करते हैं। इससे इस तथ्य का बोध होता है कि

संविधान किसी वैदेशिक सत्ता या किसी वर्ग विशेष द्वारा भारतवासियों पर आरोपित नहीं किया गया है वरना जनता ने स्वयं इसे बनाया है, इसे स्वीकार किया है और स्वयं अपने को दिया है अर्थात् अपने ऊपर लागु किया है। दूसरे शब्दों में जनता शासक भी है और शासित भी।