(GIST OF YOJANA) पूर्वोत्तर भारत की जैव विविधता [April-2018]


(GIST OF YOJANA) पूर्वोत्तर भारत की जैव विविधता [April-2018]


पूर्वोत्तर भारत की जैव विविधता

अर्थव वेद में खा गया है अखय प्राविधि स्योनमस्तुते अर्थात हे ! धरती तुम्हारे ऊपर लहराते हुए हरे - भरे जंगल सुखदायक हो।

     जंगलों की उपस्थिति सुखदायक होती है। भारत का पूर्वोत्तर क्षेत्र जंगलों से आच्छादित है। इसे हम भारत की हरित भूमि भी कह सकते हैं। यह अनछुए जंगलों और जनजातियों की बहुलता का क्षेत्र है। पूर्वोत्तर भारत अद्भुत पारिस्थितिकी का क्षेत्र है जिसके कारण यहां की जैव विविधता भी अनुपम है। यह क्षेत्र सात भारतीय राज्यों का प्रतिनिधित्व करता है, अर्थात् असम, अरुणाचल प्रदेश, मणिपुर, मेघालयमिजोरम नागालैंड और त्रिपुरा। अक्सर इन सात पूर्वोत्तर राज्यों को सात बहनों के रूप में जाना जाता रहा है, जिसमें अब आठवें राज्य क के रूप में सिक्किम भी शामिल है। इन सबकी अपनी विशेषतायें हैं। ये क्षेत्र भूटान, चीन, म्यांमार और बांग्लादेश आदि देशों की सीमाओं से जुड़े ह। यहां की पारिस्थितिकी का कारण यहां की भौतिक संरचनाएं एवं भौगोलिक स्थितियां हैं। भौतिक संरचनाओं में पूर्वी हिमालय, पटकाई-नागा, लुसाई एवं मेघालय पहाड़ियां, ब्रह्मपुत्र एवम् बराक नदी घाटी के मैदान इत्यादि सम्मिलित हैं। यह क्षेत्र व्यापक भौगोलिक अंतर दिखाता है जो असम के बाढ़ के मैदानों से अलग होकर सिक्किम में कंचनजंघा (8586 मीटर) के उच्चतम पर्वत शिखर भी हैं। इसके अतिरिक्त अपनी भौगोलिक के स्थिति कारण यह स्थान उच्च व वर्षा क्षेत्र में आता है, (विश्व में सर्वाधिक है। वृष्टि के स्थान मौसिनराम तथा चेरापूंजी यहीं अवस्थिति है ) यहां की जलवायु मुख्यत : नम उप उष्णकटिबंधीय है , कुछ क्षेत्रों में पर्वतीय जलवायु भी मिलती है। यही भौतिक एवम भूगौलिक स्थितियां इस स्थान की अदभुत पारिस्थितिक का निर्माण करती है।

जैव विविधता

    हमारा जैवमण्डल विभिन्न प्रकार के जीवों का विशाल संग्रहण है। जंतुओं में विशालकाय नीली व्हेल से लेकर अति सूक्ष्म जीवाणुओं तक शामिल हैं जबकि पौधों में भी 100 मीटर की ऊंचाई वाले रेडवुड से लेकर विशालकाय पीपल और बरगद जैसे पेड़ हैं तो सूक्ष्म शैवाल भी हैं। विभिन्न प्रकार के जीवों के बीच की यही विविधता, विभिन्नता एवं परिवर्तनशीलता जैव विविधता कहलाती है। वर्ष 1992 के रियो डी जेनेरियो के पृथ्वी सम्मेलन में जैव विविधता को परिभाषित करते हुये कहा गया कि “धरातलीय, महासागरीय एवं अन्य जलीय पारिस्थितिक तंत्रों में उपस्थित अथवा उससे सम्बंधित तंत्रों में पाए जाने वाले जीवों के बीच की विविधता जैव विविधता है।'' साथ ही यह तय किया गया कि धरती पर उपस्थित सभी प्रजातियों का पता लगा कर उनका वैज्ञानिक नामाकरण किया जाये। अब तक लगभग 1.5 लाख प्रजातियों का पता लगाया जा चुका है। और एक अनुमान के अनुसार यह भाग कुल संख्या के 2 से 15 प्रतिशत तक हो सकता है। यह माना जाता है कि सभी प्रजातियों के बारे में पता करना लगभग नामुमकिन है। क्योंकि कई प्रजातियां मानवीय गतिविधियों के कारण असमय समाप्त हो रही हैं। इसमें सबसे प्रमुख योगदान जंगलों की कटाई एवं प्रदूषण तथा वैश्विक वातावरण में आ रहा परिवर्तन है। लेकिन इन सबके बाद भी अभी भी लगभग करोड़ों प्रजातियां ऐसी हैं जिनके बारे में हम कुछ भी नहीं जानतेविशेषज्ञों के अनुसार अनुमानतविश्व में जीव-जातियों की संख्या 1 से 10 करोड़ तक हो सकती है। प्रजातियों की यह विविधता विश्व में एक समान रूप से वितरित नहीं है। कुछ देशों में यह अन्य स्थानों की तुलना में है। ऐसे देशों को उच्च विविधता वाले देश कहते हैं। कॉनजर्वेशन डॉट ऑर्ग ने ऐसे 17 देशों को सूचीबद्ध किया है जिनमें भारत भी है। केवल 2.5 प्रतिशत क्षेत्रफल के साथ भारत विश्व के लगभग 6 प्रतिशत जैव विविधता का घर है। जैव विविधता के संरक्षण के प्रयास बहुत लम्बे समय से किये जा रहे हैं, प्राचीन काल में भी इसके लिये प्रयास किये जाते रहे हैं उदाहरण स्वरूप यजुर्वेद में कहा गया है “मापो मौषधीय सीधेम्नो: धानो राजेंस्ततो वरुण नो मुंच (622)" अर्थात् हे। राजन, आप अपने राज्य के स्थानों में जल और वनस्पतियों को हानि मत पहुंचायें, ऐसा । उद्यम करो जिससे हम सभी को जल एवं वनस्पतियां सतत् मिलती रहें। आधुनिक काल में भी इस प्रकार के प्रयास होते रहे हैं। वर्ष 1798 में वेदानथंगल पक्षी विहार की स्थापना * हुयी, जिसे 1858 में चेंगलपट्टू के कलेक्टर घ ने मान्यता प्रदान की।

पूर्वोत्तर की जैव विविधता

    यह क्षेत्र भारत के अधिकांश वनस्पतियों एवं जंतुओं के लिए एक भौगोलिक प्रवेश द्वार माना जाता है और असाधारण जैव विविधता और अपेक्षाकृत जटिल जैवभूगोल को दर्शाता है। मोटे तौर पर, इस क्षेत्र में देश के कुल जैव विविधता का एक तिहाई से अधिक हिस्सा शामिल हैं। भारत के कुल भौगोलिक क्षेत्र का लगभग 8 प्रतिशत हिस्सा होने के बाद भी यहां के जंगलों के कारण अतुलनीय जैव विविधता को समर्थन देता है।
तालिका 1 से स्पष्ट है कि यह क्षेत्र जंगलों की दृष्टि से बेहद समृद्ध है इसी कारण यह जैव विविधता के लिये भी इतना महत्वपूर्ण है।

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पादप विविधता

   इस क्षेत्र में फूलों के पौधों की कम से कम 8000 प्रजातियां हैं, जिनमें लगभग 800 ऑर्किड, 58 बांस, 64 साइट्रस शामिल हैं। इसके अलावा, इसमें 28 से अधिक कॉनिफ़र500 मौस , 700 फर्न और 728 लीकेन प्रजातियां हैं। साइट्रसकेले और चावल के महत्वपूर्ण जीन पूल में से कुछ इस क्षेत्र से उत्पन्न हुये हैं। पूर्वोत्तर भारत की लगभग एक-तिहाई वनस्पति इस क्षेत्र के लिए स्थानिक हैं। पूर्वी हिमालय का क्षेत्र दुनिया के सबसे विकसित अल्पाइन वनस्पतियों में से एक है, जिसमें उच्च स्तरीय स्थानियकता है, और पूर्वी हिमालय में चौड़ी पत्तियों वाले समशीतोष्ण वन दुनिया में सबसे अधक प्रजाति-समृद्ध समशीतोष्ण वनों में से एक है। भारत में पाये जाने वाले फूल के पौधों का लगभग 50 प्रतिशत पूर्वोत्तर में हैं। इसी कारण इस क्षेत्र को फूलों के पाध का गढ़" कहा जाता है। यह क्षेत्र कई दुर्लभ वानस्पतिक का स्थान है जिसमें सप्रिया हिमालयी ग्रिफ (परिवार राफ्लसियासीए) भी शामिल है। के बड़े जो विश्व सबसे जड़ परजीवी में से एक है। यहां कीटभक्षी पौधे भी पाये जाते हैं जिनमें से कई स्थानिक हैं। जैसे नेपेथिस खासिआना केवल मेघालय में पाया जाता है और इसे साईट्स की अनुसूची (ए) के साथ-साथ वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972 की अनुसूची 6 में भी में सूचीबद्ध किया गया है। भारत में पौधों के बहुत से परिवारों में एक ही जींस पायी जाती है और उनकी भी एक या दो प्रजातियां इसी क्षेत्र में पाई जाती हैं, उदाहरण के लिए कोरीरियासी, नेफ्थेसी, टर्नरएसी, इलिकिसिया, इत्यादि भारत में खाद्य पौधों के रूप में उपयोग की जाने वाली 800 प्रजातियों में से, लगभग प्रजातियां 300 पूर्वी हिमालय में हैं।
ओर्चिड्सी जो पौधों का सबसे आकर्षक और अत्यधिक विकसित समूह है, की विविधता पूर्वोत्तर क्षेत्र में अद्भुत है और यह भारत में कुल ऑर्किड का 57 प्रतिशत से अधिक का प्रतिनिधित्व करता है। विशेष रूप से 545 प्रजातियों के साथ अरुणाचल प्रदेश [12 प्रजातियां लुप्तप्राय, 16-असुरक्षित और 31-संकटग्रस्त] एक अद्वितीय स्थिति रखता है। बेंतपूर्वोत्तर भारत के सबसे महत्वपूर्ण लकड़ी के वन उत्पादों में से एक है। भारत में इसकी 60 प्रजातियां मिलती हैं, जिसमें पूर्वोत्तर क्षेत्र में 26 प्रजातियां हैं। इसी तरह, भारत में पाए जाने वाले बांस के 150 प्रजातियों में से, 63 प्रजाति लक्ष्य क्षेत्र में पाए जाते हैं। पूर्वोत्तर क्षेत्र में लगभग 25 प्रजाति के बांसों को दुर्लभ माना जाता है। सुदूर और अगम्य होने के कारण अभी भी यहां के क्षेत्रपूरी तरह से अन्वेषित नहीं किए गये हैं जबकि नए पौधे की खोजों के लिए अपरिमित क्षमता है।

    पूर्वोत्तर भारत के जीवों के बारे में अन्वेषण और शोध की कमी दिखाई दे रही है। इस क्षेत्र की दूरी, मुश्किल इलाके और साथ ही कई हिस्सों में आसपास के लोगों द्वारा किए गए गंभीर शिकार दबावों से इस क्षेत्र के जीवों का अध्ययन कठिन हो जाता है। एक अनुमान के अनुसार यहां 3,624 प्रकार के कीट-पतंगे, 236 प्रकार ) , के उभयचर137 की मछलियां 64 तरह , किस्म के सरीसृप, 600 प्रकार के पक्षी तथा 160 किस्म के स्तनधारी जीव पाए जाते हैं। कई प्रजातियां अन्यत्र दुर्लभ हैं। इनमें झूलक,गोल्डन लंगूर और कई प्रकार के बन्दर, चितकबरे तेंदुए बर्फ में रहने वाले तेंदुए में अनेक प्रकार के जीव जन्तु और चमगादड़ जैसे रात्रिचर पाए जाते हैं। भारत में पाए। जाने वाले जंगली हाथियों की 33 प्रतिशत आबादी यहां है। वास्तव में अकेले असम में म्यांमार, थाईलैंड, इंडोनेशिया या एशिया के किसी भी अन्य देश से अधिक हाथी रहते हैं। ग्रेट इंडियन राइनोसेरस (राईनेकाइरस द यूनिकॉर्निस) अर्थात एक सींग वाला गुंडा दुनिया के सभी गेंडों में दूसरे सबसे बड़े गुंडे हैं और ये केवल पूर्वोत्तर भारत के असम में काजीरंगा, मानस, पबिताड़ा और ओरंग तक सीमित हैं। कई प्रकार के दरियाई घोड़े चीनी पंगोलिन अनेक प्रकार के हिरण इस बेंत, पूर्वोत्तर भारत के सबसे महत्वपूर्ण लकड़ी के वन उत्पादों में से एक है। भारत में इसकी 60 प्रजातियों मिलती हैं , जिसमें पूर्वोत्तर क्षेत्र में 26 प्रजातियां हैं। इसी तरह, भारत में पाए जाने वाले बांस के 150 प्रजातियों में से, 63 प्रजाति लक्ष्य क्षेत्र में पाए जाते हैं। पूर्वोत्तर क्षेत्र में लगभग 25 प्रजाति के बांसों को दुर्लभ माना जाता है। सुदूर और अगम्य होने के कारण अभी भी यहां के क्षेत्र, पूरी तरह से अन्वेषित नहीं किया गये हैं और नए पौधे की है खोजों के लिए अपरिमित क्षमता है।

    क्षेत्र में मिलते हैं। ब्रो-एंटेलर्ड डीयर मणिपुर राज्य के लिए स्थानिक है, जिन्हें स्थानीय स्तर पर संगाई के नाम से जाना जाता है। यह दुनिया में हिरणों की सबसे दुर्लभ और सबसे स्थानीय उपप्रजातियों में से एक है। 1951 में विलुप्त होने की सूचना मिलने के बाद 1974 में इस हिरण को बाद में लोकतक झील में एक ‘फामड़ी' के ऊपर पाया गया। पहली बार जनगणना में इनकी संख्या 14-18 तक गिनी गयी थी, फिर भी उनकी संख्या में लगातार वृद्धि हुई है। लोकतक झील अब एक रामसर स्थल है और इस क्षेत्र में अब लगभग 150-200 संगाई होने का अनुमान है। यह निस्संदेह विश्व के सबसे नाजुक आवास में से है।

     इस क्षेत्र में सेरो, गोरल और लाल गोरल भी पाये जाते हैं जिनकी आबादी बेहद तेजी से कम हो रही है। इस इलाके में प्राइमेट्स की ।। प्रजातियों की उपस्थिति दर्ज की गयी है। भारत दुनिया की छह सबसे बड़ी बिल्लियों का घर है और अरुणाचल प्रदेश राज्य एशिया की चार बड़ी बिल्लियों को आवास देने के लिए गर्व करता है- बाघ (पैंथरा टाइगरिस), तेंदुएहिम तेंदुए और क्लाउडेड (बादल) तेंदुए। इनमें से, बादल तेंदुए की भारतीय आबादी उत्तरी क्षेत्र तक ही सीमित है। चढ़ाई के लिए संतुलन के लिए बड़े पंजे के साथ बहुत लंबी पूंछइन्हें पेड़ की ऊंचाईयों तक पहुंचने में मदद करती है। क्षेत्र के सभी आठ राज्यों में इस मायावी जानवर की उपस्थिति के बावजूद, इसका आवास खतरनाक दर से सिकुड़ रहा है। विशेष रूप से अरुणाचल प्रदेश राज्य में वनों का विशालकाय क्षेत्र, जहां पशु भय मुक्त रहता है, इस शानदार पशु के लिए सुरक्षित रह सकता है, बशर्त ऐसे जंगल सड़कों के निर्माण सहित विकास गतिविधियों से दूर रखा जाए। बाघ पूरे क्षेत्र में एक बहुत दुर्लभ जानवर बन गया है और शायद असम इस बड़ी बिल्ली के लिए सबसे सुरक्षित आश्रय प्रदान करता है। अधिक अनुकूलनीय तेंदुए अधिक संख्या में जीवित रहने में कामयाब रहे हैं। हिम तेंदुए की स्थिति के बारे में बहुत कम जानकारी है, जो अरुणाचल प्रदेश और सिक्किम के ऊंचेऊंचे इलाकों में रहते हैं। पूर्वोत्तर भारत छोटे मांसाहारी जीवों को भी आवास देता है। यह क्षेत्र संभवत: पूरे ग्रह पर छोटे मांसाहारी जंतुओं के लिए सबसे महत्वपूर्ण क्षेत्र है। क्षेत्रफल के अनुसार बेहद छोटे राज्य मणिपुर, मांसाहारी प्राणियों की विविधता के मामले में बहुत ऊंचे पायदान पर है। मणिपुर अपने केवल 22327 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में, तीन बड़ी बिल्लियों के साथ कई छोटी बिल्लियों जैसे मार्बल (संमरमरी) बिल्ली सुनहरी बिल्ली, तेंदुआ बिल्ली, मत्स्य बिल्ली ड और जंगली बिल्ली को आवास प्रदान करता व है। इसमें 3 मोस्टिस और 7 विवर भी हैं: व पीलेगले वाले मार्टन (मार्टस फ्लैविगुला), वे फेरेट बेजर (मेलोगेल प्रजाति), होग बेजर न (आक्नीक्स कॉलरिस), यूरेशियन ओटर के (लुटा लुटा); और वीव में, लघु भारतीय सिविट (वीवरःला इंडिका), बड़े भारतीय सिवेट (वीवररा जिबेथा), कॉमन पाम सिवेट (पैराडोक्सुरस हेमप्रद्रितस). हिमालयी पाम सिविट (पगुमा लारवाटा). बिंद्राग (आर्टिकटिस बिंद्रांग) और स्पॉटोड लिनशांग (प्रियोडनॉन पर्डिकोलर)। जबकि अरुणाचल प्रदेश और सिक्किम में मणिपुर की तुलना में छोटे मांसाहारी की अधिक प्रजातियां हो सकती हैं।

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Courtesy: Yojana