संघ लोक सेवा आयोग सिविल सेवा - मुख्य परीक्षा UPSC Mains Exam Hindi - SYLLABUS (प्राणि विज्ञान - Zoology)

संघ लोक सेवा आयोग सिविल सेवा - मुख्य परीक्षा UPSC Mains Exam Hindi - SYLLABUS

(प्राणि विज्ञान - Zoology)


प्रश्न पत्र-1


1. अरज्जुकी और रज्जुकी :

(क) विभिन्न फाइलों का उपवर्गों तक वर्गीकरण एवं संबंध; एसीलोमेटा और सीलोमेटा; प्रोटोस्टोम और डयूटेरोस्टोम, बाइलेटरेलिया और रेडिएटा, प्रोटिस्टा पेराजोआ, ओनिकोफोरा तथा हेमिकॉरडाटा का स्थान; सममिति ।

(ख) प्रोटोजोआ:  गमन, पोषण तथा जनन, लिंग पेरामीशियम, मॉनोसिस्टिस प्लाज्मोडियम तथा लीशमेनिया के सामान्य लक्षण एवं जीवन वृत्त ।

(ग) पोरिफेरा: कंकाल, नालतंत्र तथा जनन ।

(घ) नीडेरिया : बहुरूपता; रक्षा संरचनाएं तथा उनकी क्रियाविधि; प्रवाल भित्तियां और उनका निर्माण, गेटाजेनेसिस, ओबीलिया और औरीलिया के सामान्य लक्षण एवं जीवन वृत्त ।

(ड.) प्लैटिहेल्मिथीज: परजीवी अनुकूलन; फैसिओला तथा टीनिया के सामान्य लक्षण एवं जीवन वृत्त तथा उनके रोगजनक लक्षण।

(च) नेमेटहेल्मेंथीज : एस्केरिस एवं बुचेरेरिया के सामान्य लक्षण, जीवन-वृत्त तथा परजीवी अनुकूलन

(छ) एनेलीडा : सीलोम और विखंडता, पॉलीकीटों में जीवन-विधियां, नेरीस (नीऍथीस).कैचुआ (फेरिटिमा) तथा जॉक के सामान्य लक्षण तथा जीवन वृत्त ।

(ज) आर्थ्रोपोडा: क्रस्टेशिया में डिंबप्रकार और परजीविता, आथ्रोपोडा (झींगा, तिलचट्टा तथा बिच्छु) में दृष्टि और श्वसन, कीटों (तिलचिठ्ठा, मच्छर, मक्खी, मधुमक्खी तथा तितली) में मुखांगों का रूपांतरण, कीटों में कार्याांतरण तथा इसका हार्मोनी नियमन, दीमकों तथा मधु-मक्खियों का सामाजिक व्यवहार।

(झ) मोलस्का: अशन, श्वसन, गमन, लैमेलिडेन्स, पाइला तथा सीपिया के सामान्य लक्षण एवं जीवन-वृत्त, गैस्ट्रोपोड़ों में ऐंठन तथा अव्यावर्तन।

(ञ) एकाइनोडमेंटा: अशन, श्वसन, गमन, डिब्ब प्रकार, एस्टीरियस के सामान्य लक्षण तथा जीवन वृत्त ।

(ट) प्रोटोकॉडेंटा: रज्जुकियों का उदभव, ब्रेकियोस्टोमा तथा हर्डमानिया के सामान्य लक्षण तथा जीवन वृत्त ।

(ठ) पाइसीज: श्वसन, गमन तथा प्रवासन

(ड) एम्फिबिया: चतुष्पादों का उद्भव, जनकीय देखभाल, शावकांतरण।

(ढ) रेप्टीलिया वर्ग : सरीसृपों की उत्पति, करोटि के प्रकार, स्फेनोडॉन तथा मगरमच्छों का स्थान ।

(ण) एवीज; पक्षियों का उद्भव, उड्डयन-अनुकूलन तथा प्रवासन।

(त) मैमेलिया: स्तनधारियों का उद्भव, दंतविन्यास, अंडा देने वाले स्तनधारियों, कोष्ठाधारी, स्तनधारियों, जलीय स्तनधारियों तथा प्राइमेटों के सामान्य लक्षण,अंतःस्रावी ग्रंथियां (पीयूष ग्रंथि, अवटु ग्रंथि, परावटु ग्रंथि, अधिवृक्क ग्रंथि अग्न्याशय, जनन ग्रंथि) तथा उनमें अंतसंबंध।

(थ) कशेरुकी प्रणियों के विभिन्न तंत्रों का तुलनात्मक कार्यात्मक शरीर (अध्यावरण) तथा इसके व्युत्पाद, अंत: कंकाल, चलन अंग, पाचन तंत्र, श्वसन तंत्र, हृदय तथा महाधमनी चापों सहित परिसंचारी तंत्र, मूत्र-जनन तंत्र, मस्तिष्क तथा ज्ञानेन्द्रियां ( आंख तथा कान) ।

2. पारिस्थितिकी:

(क) जीवनमंडलः जीवनमंडल की संकल्पना बायोम, जैवभूरसायन चक्र, ग्रीन हाउस प्रभाव सहित वातावरण में मानव प्रेरित परिवर्तन, पारिस्थितिक अनुक्रम, जीवोम तथा ईकोटोन। सामुदायिक पारिस्थितिकी

(ख) पारितंत्र की संकल्पना, पारितंत्र की संरचना एवं कार्य, पारितंत्र के प्रकार, पारिस्थितिक अनुक्रम, पारिस्थितिक अनुकूलन।

(ग) समष्टि, विशेषताएं, समष्टि गतिकी, समष्टि स्थिरीकरण । (घ) प्राकृतिक संसाधनों का जैव विविधता एवं विवधता संरक्षण |

(ड.) भारत का वन्य जीवन ।

(च) संपोषणीय विकास के लिए सुदूर सुग्राहीकरण।

(छ) पर्यावरणीय जैवनिम्नीकरण, प्रदूषण तथा जीवमंडल पर इसके प्रभाव एवं उसकी रोकथाम।

3. जीव पारिस्थितिकी :

(क) व्यवहारः संवेदी निस्यंदन, प्रतिसंवेदिता, चिह्न उद्दीपन, सीखना एवं स्मृति वृत्ति, अभ्यास, प्रानुकूलन, अध्यंकन।

(ख) चालन में हार्मोनों की भूमिका, संचेतन प्रसार में फीरोमोनों की भूमिका : गोपकता, परभक्षी पहचान, परभक्षी तौर तरीके, प्राइमेटों में सामाजिक सोपान, कीटों में सामाजिक संगठन।

(ग) अभिविन्यास, संचालन, अभीगृह, जैविक लय; जैविक नियतकालिकता, ज्वरीय, ऋतुपरक तथा दिवसप्राय लय ।

(घ) यौन द्वंद्व, स्वार्थपरता, नातेदारी एवं परोपकारिता समेत प्राणी-व्यवहार के अध्ययन की विधियां।

4. आर्थिक प्राणि विज्ञान :

(क) मधुमक्खी पालन, रेशमकीट पालन, लाखकीट पालन, शफरी संवर्ध, सीप पालन, झींगा पालन, कृमि संवर्ध

(ख) प्रमुख संक्रमाक एवं संचरणीय रोग (मलेरिया, फाइलेरिया, क्षय रोग, हैजा तथा एड्स), उनके वाहक, रोगाणु तथा रोकथाम।

(ग) पशुओं तथा मवेशियों के रोग, उनके रोगानणु (हेलमिन्थस) तथा वाहक (चिंचड़ी, कुटकी, टेबेनस, स्टोमोक्सिस) ।

(घ) गन्ने के पीड़क (पाइरिला परपुसिएला), तिलहन का पीड़क (ऐकिया जनाटा) तथा चावल का पीड़क (सिटोफलस ओरिजे) ।

(ड.) पारजीनी जंतु। (च) चिकित्सकीय जैव प्रौद्योगिकी, मानव आनुवंशिक रोग एवं आनुवंशिक काउंसिलंग, जीन चिकित्सा |

(छ) विविध जैव प्रौद्योगिकी।

5. जैवसांख्यिकी :

प्रयोगों की अभिकल्पना : निराकरणी परिकल्पना; सहसंबंध, समाश्रयण, केन्द्रीय प्रवृत्ति का वितरण एवं मापन, काई-स्कवेयर, विद्यार्थी-टेस्ट, एफ-टेस्ट (एकमार्गी तथा द्विमार्गी एफ टेस्ट) ।

6. उपकरणीय पद्धति :

(क) स्पेक्ट्रमी प्रकाशमापित्र प्रावस्था विपर्यास एवं प्रतिदीप्ति सूक्ष्म दर्शिकी, रेडियोऐक्टिव अनुरेखक, द्रुत अपकेन्द्रित्र, जेल एलेक्ट्रोफोरेसिस, PCR, ALISA, FISH एवं गुणसूत्रपेंटिंग |

(ख) लेक्ट्रिॉन सूक्ष्मदर्शी (TEM, SEM) 1

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प्रश्न पत्र-2


1. कोशिका जीव विज्ञान :

(क) कोशिका तथा इसके कोशिकांगों (केंद्रक, प्लाज्मका, झिल्ली, माइटोकौड्रिया, गॉल्जीकाय, अंतर्द्रव्यी जालिका, राइबोसोम तथा लाइसोसोम्स) की संरचना एवं कार्य, कोशिका विभा (समसूत्री तथा अर्द्धसूत्री), समसूत्री तर्क तथा समसूत्री तंत्र, गुणसूत्र गति क्रोमोसोम प्रकार पॉलिटीन एवं लैव्रश, कोमैटिन की व्यवस्था, कोशिकाचक्र नियमन ।

(ख) न्यूक्लीइक अम्ल सांस्थितिकी, DNA अनुकल्प, DNA प्रतिकृति, अनुलेखन, RNA प्रक्रमण, स्थानांतरण, प्रोटीन वलन एवं परिवहन।

2. आनुवंशिकी :

(क) जीन की आधुनिक संकल्पना, विभक्त जीन, जीन-नियमन, आनुवंशिक-कूट।

(ख) लिंग गुणसूत्र एवं उनका विकास, ड्रोसोफिला तथा मानव में लिंग-निर्धारण । (ग) वंशागति के भेंडलीय नियम, पुनर्योजन, सहलग्रता, बजहुयुग्म विकल्पों, रक्त समूहों की आनुवंशिकी, वंशावली विश्लेषण, मानव में वंशागत रोग।

(घ) उत्परिवर्तन तथा उत्परिवर्तजनन ।

(ड.) पुनर्योगज DNA प्रौद्योगिकी, वाहकों के रूप में प्लैजमिड्स, कॉसमिड्स, कृत्रिम गुणसूत्र, पारजीनी, DNA क्लोनिंग तथा पूर्ण क्लोनिंग (सिद्धांत तथा क्रिया पद्धति) ।

(च) प्रोकैरियोट्स तथा यूकैरियोट्स में जीन नियमन तथा जीन अभिव्यक्ति।

(छ) संकेत ,अणु, कोशिका मृत्यु, संकेतन पथ में दोष तथा परिणाम |

(ज) RFLP RAPD एवं AFLP तथा फिंगरप्रिंटिंग में अनुप्रयोग, राइबोजाइम प्रौद्योगकी, मानव जीनोम परियोजना, जीनोमिक्स एवं प्रोटोमिक्स |

3. विकास :

(क) जीवन के उद्दभव के सिद्धांत

(ख) विकास के सिद्धांत प्राकृतिक वरण, विकास में परिवर्तन की भूमिका, विकासात्मक प्रतिरूप, आण्विक ड्राइव, अनुहरण विभिन्नता, पृथक्करण एवं जाति उद्धवन।

(ग) जीवाश्म आंकड़ों के प्रयोग से घोड़े, हाथी तथा मानव का विकास।

(घ) हार्डी-वीनबर्ग नियम।

(ड.) महाद्वीपीय विस्थापन तथा प्रणियों का वितरण ।

4. वर्गीकरण विज्ञान :

(क) प्राणिवैज्ञानिक नामावली, अंतर्राष्ट्रीय नियम, क्लैडिस्टिक्स, वाण्विक वर्गिकी एवं जैव विविधता।

5. जीव रसायन :

(क) कार्बोहाइड्रेटों, वसाओं, वसाअम्लों एवं कोलेस्टेरॉल, प्रोटीनों एवं अमीनो अम्लों, न्यूक्लिइक अम्लों की संरचना एवं भूमिका, बायो एनर्जेटिक्स।

(ख) ग्लाइकोलाइसिस तथा क्रब्स चक्र, ऑक्सीकरण तथा अपचयन, ऑक्सीकरणी फास्फोरिलेशन, ऊर्जा संरक्षण तथा विमोचन, ATP चक्र, चक्रीय AMP इसकी - संरचना तथा भूमिका ।

(ग) हार्मोन वर्गीकरण (स्टेराइड तथा पेप्टाइड हार्मोन), जैव संश्लेषण तथा कार्य

(घ) एंजाइम: क्रिया के प्रकार तथा क्रिया विधियां।

(इ.) विटामिन तथा को एंजाइम

(च) इम्यूनोग्लोब्यूलिन एवं रोधक्षमता।

6. कार्यिकी (स्तनधारियों के विशेष संदर्भ में) :

(क) रक्त की संघटना तथा रचक, मानव में रक्त समूह तथा RH कारक, स्कंदन के कारक तथा क्रिया विधि; लोह उपापचय, अम्ल क्षारक साम्य, तापनियमन, प्रतिस्कंदक।

(ख) हीमोग्लोबिन: रचना प्रकार एवं ऑक्सीजन तथा कार्बनडाईऑक्साइड परिवहन में भूमिका।

(ग) पाचन एवं अवशोषण पाचन में लार ग्रंथियों, चकृत, अग्न्याशय तथा आंत्र ग्रंथियों की भूमिका

(घ) उत्सर्जन : नेफान तथा मूत्र विरचन का नियमन, परसरण नियमन एवं उत्सर्जी उत्पाद ।

(ड.) पेशी: प्रकार, कंकाल पेशियों की संकुचन की क्रिया विधि, पेशियों पर व्यायाम का प्रभाव।

(च) न्यूरॉन: तंत्रिका आवेग उसका चालन तथा अंतग्रंथनी संचरण: न्यूरोट्रांसमीटर।

(छ) मानव में दृष्टि, श्रवण तथा घ्राणबोध।

(ज) जनन की कार्यिकी, मानव में यौवनारंभ एवं रजोनिवृत्ति ।

7. परिवर्धन जीवविज्ञान :

(क) युग्मक जनन; शुक्र की रचना, मैमेलियन शुक्र की पात्रे एवं जीवे धारिता। अंड जनन, पूर्ण शक्तता, निषेचन, मार्पोजेनिसस एवं मार्कोजेन, ब्लास्टोजेनिसस, शरीर अक्ष रचना की स्थापना, फेट मानचित्र, मेढ़क एवं चूजे में गेस्टुलेशन, चूजे में विकासाधीन जीन, अंगांतरक जीन, आंख एवं हृदय का विकास, स्तनियों में अपरा।

(ख) कोशिका वंश परंपरा, कोशिका-कोशिका अन्योन्य क्रिया, आनुवंशिक एवं प्रेरित विरूपजनकता, एंजीविया में कायांतरण के नियंत्रण में वायरोक्सिन की भूमिका, शवकीजनन एवं चिरभ्रूणसाता, कोशिका मृत्यु, कालप्रभावन।

(ग) मानव में विकासीय जीन, पात्रे निषेचन एवं भ्रूण अंतरण, क्लोनिंग।

(घ) स्टेमकोशिका स्रोत, प्रकार एवं मानव कल्याण में उनका उपयोग।

(इ.) जाति अवर्तन नियम।

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