अध्ययन सामग्री: भारत का भूगोल "परिवहन"


अध्ययन सामग्री: भारत का भूगोल


 परिवहन

रेल परिवहन

भारतीय रेलवे देष का सबसे बड़ा राष्ट्रीय प्रतिष्ठान है । भारतीय रेलवे भारतीय अर्थव्यवस्था के सभी क्षेत्रों यथा कृषि, उद्योग, व्यापार सेवा, आदि के विकास में सहयोग प्रदान करता है । इसके अतिरिक्त भारतीय रेल परिवहन राष्ट्रीय सुरक्षा, शान्ति व्यवस्था, सांस्कृतिक एवं भौगोलिक एकता स्थापित करने एवं उसे बनाए रखने में भी अहम् भूमिका निभाता है ।

भारत में रेलमार्गों का निर्माण 1850 में तत्कालीन वायसराय लॉर्ड्ड डलहौजी के कार्यकाल में आरम्भ हुआ था । इंग्लैण्ड की ईस्ट इण्डियन रेलवे कम्पनी तथा ग्रेट इण्डियन पेनिन्सुलर रेलवे कम्पनी ने भारत में रेलवे लाइन बिछाने का कार्य प्रारम्भ किया और मुम्बई से थाना तक 32 कि.मी. रेल मार्ग पर भारत की पहली रेलगाड़ी 16 अप्रैल, 1853 को चलाई गई । वर्ष 1925 में सर्वप्रथम बम्बई वी. टी. तथा कुर्ला के बीच विद्युत रेलगाड़ी (EMU)  आरम्भ की गई ।

स्वतन्त्रता के पूर्व भारत में कुल 65.6 हजार किलोमीटर लम्बी लाइन थी, किन्तु देष के विभाजन के बाद भारत के हिस्से में केवल 54.4 हजार किलोमीटर लम्बी रेल लाइन ही आई; जो सन् 2002 तक 63 हजार किलोमीटर हो गई । अब यह एषिया की सबसे बड़ी तथा विष्व की दूसरे स्थान की रेल प्रणाली हो गई है ।

भारतीय रेलवे में लगभग 15 लाख लोगों को रोजगार मिला हुआ है, जो देष के किसी भी सार्वजनिक उपक्रम में सबसे अधिक है, केन्द्रीय कर्मचारियों की कुल संख्या का 40: है ।
वर्ष 1924-25 से ही रेलवे वित्त को सामान्य राजस्व से अलग रखा जा रहा है । इसलिए रेलवे बजट अलग से प्रस्तुत किया जाता है, जिसे रेलमंत्री पेष करते हैं । इस बजट का महत्त्व इसी से समझा जा सकता है कि सन् 2003 तक इसके पास 36 हजार करोड़ रूपये की परिसम्पत्तियाँ थीं ।

रेलवे ने अपने प्रषासन को 16 जोनों में विभाजित किया है । इनमें से 5 नये ज़ोन सन् 2002 में दक्षिण-पष्चिम रेलवे (हुबली), पूवी तटवर्ती रेलवे (भुवनेष्वर), उत्तर-मध्य रेलवे (इलाहाबाद), पष्चिम-मध्य रेलवे (जबलपुर) तथा दक्षिण-पूर्व मध्य रेलवे (बिलासपुर) हैं ।

26 जनवरी 1998 को कोंकण रेलवे यात्रा का शुभारम्भ किया गया है । यह रोहा से मंगलोर तक की 760 किलोमीटर लम्बी रेल लाइन है । इसी ट्रेक के बीच में 6.5 किलोमीटर लम्बी सबसे लम्बी सुरंग है।
सन् 1972 में प्रारम्भ की गई कलकत्त मेट्रो रेल सन् 1995 में पूरी तरह शुरू हुई । दमदम से टोलीगंज तक इस भूमिगत रेलमार्ग की कुल लम्बाई 16.45 किलोमीटर है । लगभग इसी तरह की मेट्रो रेल 25 दिसम्बर 2002 को दिल्ली में शुरू की गई । इस रेल की विषेषता यह है कि चलते ही मात्र 65 सेकिण्ड में यह 80 किलोमीटर प्रति घण्टे की रफ्तार पकड़ लेती है ।

सड़क परिवहन

भारत की सड़क प्रणाली विष्व की एक विषालतम सड़क परिवहन प्रणाली है । सड़कों को 5 वर्गों में बांटा गया -

1. राष्ट्रीय राजमार्ग

2. राजकीय राजमार्ग

3. जिला मार्ग

4. सम्पर्क सड़कें, तथा

5. सीमान्त सड़कें ।

राष्ट्रीय राजमार्ग के विकास की जिम्मेदारी केन्द्र सरकार की है । देष में 51.99 हजार कि.मी. राष्ट्रीय राजमार्ग (National Highway) है । देष में कुल 77 राष्ट्रीय राजमार्ग हैं । देष का सबसे लम्बा राष्ट्रीय राजमार्ग नं.-7 है, जो वाराणसी से कन्याकुमारी तक जाता है । इसकी लम्बाई 2369 कि.मी. है । राष्ट्रीय राजमार्गों की कुल लम्बाई देष की कुल सड़कों की लम्बाई का मात्र 2: ही है, लेकिन इसके जरिए कुल सड़क यातायात का 45: आवागमन होता है । राज्यों में सड़कों की सबसे अधिक लम्बाई महाराष्ट्र में है।

राज्य राजमार्ग व जिला ग्रामीण सड़कों की जिम्मेदारी राज्य सरकारों पर है । इनका रखरखाव राज्य-केन्द्रषासित प्रदेष की विभिन्न एजेन्सियाँ करती हैं । ग्रामीण क्षेत्र में न्यूनतम आवष्यकता कार्यक्रम (MNP)  और प्रधानमंत्री ग्रामीण सड़क योजना के तहत 500 तक आबादी वाले सभी गाँवों को वर्ष 2007 तक बारहमासी सड़कों से जोड़ना है ।

केन्द्रीय भूतल परिवहन मन्त्रालय अब सुपर राष्ट्रीय राजमार्गों के निर्माण की योजना बना रहा है, जिसके अन्तर्गत लम्बे सुपर राष्ट्रीय राजमार्ग बनाकर देष के बड़े बन्दरगाहों को प्रमुख शहरों के सड़के मार्ग से जोड़ने की योजना है । इन सुपर राष्ट्रीय राजमार्गों का निर्माण सरकार निजी क्षेत्र के सहयोग से (BOT (Built Operate and Transfer)  आधार पर करेगी ।

स्वर्णिम चतुर्भुज परियोजना (Golden Quadilateral Project)

भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण ; छभ्।प्द्ध ने देष के चार महानगरों - दिल्ली, कोलकाता, मुम्बई एवं चेन्नई को 4 लेन वाले द्रुतगामी सड़क मार्ग से जोड़ने के लिए 21,000 करोड़ रुप्ये के व्यय वाली स्वर्णिम चतुर्भुज परियोजना (Golden Quadilateral Project)  का शुभारम्भ किया है । 5,800 कि.मी. लम्बे सड़क मार्ग की यह योजना सन् 2004 तक पूरी होने की आषा है ।
इस प्रकार चार महानगरों दिल्ली, कोलकाता, मुम्बई तथा चेन्नई को चार और छः लेन के सुपर-नेषनल मार्गों से जोड़ने वाली सड़क को ‘स्वर्णिम चतुर्पथ’ कहते हैं ।

भारत में सुपरनेषनल राजमार्ग  (Supernational Highway in India)

किसी देष के आर्थिक विकास में सड़कों की महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है । इसी दृष्टि से हमारे देष भारत में राष्ट्रीय राजमार्ग का विकास किया गया । किन्तु देष के कृषि एवं औद्योगिक क्षेत्र में तीव्र आर्थिक विकास के साथ-साथ तीव्र गति से बढ़ती जनसंख्या के फलस्वरूप इन राष्ट्रीय राजमार्गों पर दबाव बढ़ता जा रहा है ।

इस दृष्टि से देष के निम्न सात राजमार्गों को सुपर नेषनल राजमार्ग घोषित किया गया है, जो 4 तथा 6 लेन की हैं -

भारत के सुपरनेषनल राजमार्ग

राष्ट्रीय राजमार्ग

कहाँ से कहाँ तक

सुपर नेषनल राजमार्ग नं. 1 कन्याकुमारी, बंगलौर, मुम्बई, अहमदाबाद, जयपुर तथा दिल्ली । दिल्ली तथा जयपुर के मध्य महाराज अग्रसेन मार्ग, जयपुर-आगरा के मध्य महर्षि वाल्मीकि मार्ग तथा अहमदाबाद-कौंडला के मध्य झूलेलाल मार्ग।
सुपर नेषनल राजमार्ग नं. 2 कन्याकुमारी, चेन्नई, प्रायद्वीप, कोलकाता, धनबाद, पटना, दिल्ली, अमृतसर । अमृतसर, चण्डीगढ़ के मध्य, गुरु गोविन्द सिंह मार्ग तथा चेन्नई-कन्याकुमारी के मध्य तिरुवल्लुअर मार्ग ।
सुपर नेषनल राजमार्ग नं. 3 जालंधर, पठानकोट, जम्मू तथा श्रीनगर । जालंधर-पठानकोट के मध्य सन्त रविदास मार्ग ।
सुपर नेषनल राजमार्ग नं. 4 पटना से गुवाहाटी तक । इसे रविन्द्रनाथ टैगोर मार्ग भी कहा जाता है ।
सुपर नेषनल राजमार्ग नं. 5 बंगलौर, हैदराबाद, नागपुर, आगरा, दिल्ली । दिल्ली-आगरा के मध्य भगवान महावीर मार्ग ।
सुपर नेषनल राजमार्ग नं. 6 मुम्बई, नागपुर, राउरकेला तथा धनबाद । मुम्बई-नागपुर को भगवान परषुराम मार्ग भी कहा जाता है ।
सुपर नेषनल राजमार्ग नं. 7 बंगलौर-चेन्नई । इसे स्वामी दयानन्द मार्ग भी कहा जाता है ।

जल परिवहन (Water Transportation)

परिवहन के साधनों में जल परिवहन बहुत ही प्राचीन साधन है । प्राचीनकाल से ही जल परिवहन अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार का एक प्रमुख साधन था ।
जल परिवहन दो प्रकार का होता है -
1. आन्तरिक अथवा अन्तर्देषीय जल परिवहन (Inland Water Ways),  तथा
2. जहाजरानी परिवहन (Shipping)

1. आन्तरिक जल परिवहन (Inland Water Transportation)

भारतीय अर्थव्यवस्था में आन्तरिक जल परिवहन का महत्त्वपूर्ण स्थान है । आन्तरिक जल परिवहन का निम्नलिखित महत्त्व है -
1. सर्वाधिक सस्ता परिवहन
2. सबसे कम प्रदूषणकारी ।
3. नाव बनाने में लकडि़यों का प्रयोग, तथा
4. दलदलों, क्रीक तथा पश्चजल तक पहुँच, जहाँ रेल तथा सड़क मार्ग नहीं जा सकता ।

भारत में अन्तर्देषीय जल परिवहन का 14,500 कि.मी. लम्बा जलमार्ग है । देष की प्रमुख नदियों में 3,700 कि.मी. की दूरी यान्त्रिक नौकाओं से पूरी की जा सकती है । लेकिन इस क्षमता का पूर्ण उपयोग नहीं किया जा सका है और केवल 2000 कि.मी. मार्ग का ही उपयोग किया जा रहा है । अन्तर्देषीय जल मार्गों के विकास के लिए अक्टूबर 1986 में ‘भारतीय देषीय जलमार्ग प्राधिकरण’ का गठन किया गया, जिसके अन्तर्गत देष में प्रमुख नदियों को आन्तरिक जल-परिवहन मार्ग घोषित किया गया है । जिस नदी में जल की गहराई वर्षभर 1.8 मी. या इससे अधिक हो, उसे पूर्ण नौगम्य नदी कहा जाता है । इस दृष्टि से कुछ नदियों को राष्ट्रीय आन्तरिक जल मार्ग घोषित किया गया है । इनमें गंगा, ब्रह्मपुत्र तथा गोदावरी शामिल हैं ।

समस्याएँ -

देष के आन्तरिक जल-परिवहन के समक्ष निम्न समस्याएं हैं -
1. वर्षा-पूरित नदियों में वर्ष भर जल नहीं रहता ।
2. ऊँची-नीची भूमि, जिसमें नदी के मार्ग के जल प्रपात तथा क्षिप्रिकाएं नौ-परिवहन में बाधक होते हैं ।
3. भूस्खलन से नदी का मार्ग अवरुद्ध हो जाता है ।
4. वननाशन तथा नगरीकरण द्वारा नदी की घाटी का अवसादीकरण होता है, जिससे नौगम्यता कम हो जाती है ।
इन समस्याओं के उपरांत भी आन्तरिक जल-परिवहन के विकास की देष में पर्याप्त सम्भावनाएं हैं जिसके लिए निम्न परियोजनायें कार्यरत हैं -
1. राष्ट्रीय जल ग्रिड
2. माला नहर प्रणाली (गारलैण्ड नहर प्रणाली), तथा
3. नदियों की ड्रेजिंग

जहाजरानी परिवहन(Shipping)

भारत में जहाजरानी परिवहन के विकास का शुभारम्भ 1854 में उस समय हुआ, जब बिटिष इण्डिया स्टीम नेवीगेषन कम्पनी की स्थापना हुई । आज भारतीय जहाजरानी का विष्व में 17वाँ तथा एषिया में दूसरा स्थान है । वर्तमान में भारतीय जहाजरानी की क्षमता विष्व जहाजरानी में केवल 1.7 प्रतिषत है । देष में 31 मार्च, 1998 को 83 जहाजरानी कम्पनियाँ षिपिंग कार्य कर रही थी, जिनमें सार्वजनिक क्षेत्र का उपक्रम ‘षिपिंग कारपोरेषन ऑफ़  इण्डिया (SCT)  भी सम्मिलित है, जो देष की सबसे बड़ी जहाजरानी कम्पनी है ।

भारत में 5,000 कि.मी. लम्बे समुद्र तट पर 11 बड़े तथा 139 छोटे और मध्यम आकार के बन्दरगाह हैं। बड़े बन्दरगाहों के प्रबन्ध एवं विकास की जिम्मेदारी केन्द्र सरकार उठाती है । जबकि छोटे एवं मध्यम आकार वाले बन्दरगाह समवर्ती सूची में हैं । बड़े बन्दरगाह कुल बन्दरगाहों के 90 प्रतिषत माल को संचालित करते हैं।

देश के बड़े बन्दरगाह -

1. कांडला, 2. मुम्बई, 3. मझगांव 4. न्यू मंगलौर 5. कोचीन, 6. न्हावासेवा (जवाहरलाल नेहरू बन्दरगाह मुम्बई - सबसे अधिक सुसज्जित एवं नवीनतम बड़ा बन्दरगाह है) 7. तूतीकोरिन, 8. चेन्नई, 9.विषाखापट्टनम (सबसे गहरा बन्दरगाह) 10. पाराद्वीप, 11. हल्दिया, 12. कोलकोता.

भारतीय जहाजरानी के सफल संचालन के लिए भारतीय जहाजरानी संगठन में तीन संस्थाएं बनाई गई हैं -

1. राष्ट्रीय नौवहन बोर्ड (केन्द्रीय सरकार की सलाहकारी संस्था)

2. जहाजरानी समन्वय समिति (केन्द्रीय भूतल परिवहन मन्त्रालय के अन्तर्गत कार्य करने वाली समिति, जो सरकार एवं जहाज कम्पनियों के बीच समन्वय करती है ।)

3. अखिल भारतीय जहाजरानी परिषद् (षिपिंग कम्पनियों के बीच किराया एवं अन्य समस्याओं पर समझौता कराने वाली संस्था)

वायु परिवहन CIVIL AVIATION

वायु परिवहन सबसे नवीनतम, सबसे अधिक विकासषील एवं सबसे अधिक चुनौतीपूर्ण परिवहन माध्यम है । हांलाकि भारत में प्रयोगात्त्मक उड़ानें 1919 में आरम्भ की गई थी, लेकिन आधुनिक विमान परिवहन का शुभारम्भ 1927 में नागरिक उड्डयन विभाग की स्थापना के साथ हुआ । स्वतंत्रता के पूर्व वायु सेवा सरकारी नियन्त्रण में नहीं थी । स्वतन्त्रता के बाद सरकार ने 1953 में वायु सेवा का राष्ट्रीयकरण कर दिया और कार्यरत आठ कम्पनियों का कार्य अपने हाथों में लेकर दो निगमों की स्थापना की -

1. भारतीय विमान निगम (Indian Airlines Corporation), देष के अन्दर आन्तरिक सेवाओं के लिए,

2. अन्तर्राष्ट्रीय भारतीय वायु निगम (Air India International Corporation) , देष के बाहर की सेवाओं के लिए ।

भारतीय विमान निगम  (Indian Airlines Corporation)


इण्डियन एअरलाइन्स का मुख्यालय दिल्ली में है । यह वायु सेवा मुख्यतः देष की घरेलू उड़ानों के लिए कार्य करती है । किन्तु वर्तमान में इस सेवा की कार्य परिधि में 9 पड़ोसी राष्ट्रों - नेपाल, पाकिस्तान, श्रीलंका, मालद्वीप, सिंगापुर, बंगलादेष, अफगानिस्तान, थाईलैण्ड के लिए भी विमान सेवा को सम्मिलित कर दिया गया है ।

अंतर्राष्ट्रीय भारतीय वायु निगम (AirIndia And International Corporation)

एयर इण्डिया भारत की अन्तर्राष्ट्रीय विमान सेवा है, जिसका मुख्यालय मुम्बई है । अन्तर्राष्ट्रीय उड़ानों के लिए दिल्ली, मुम्बई, कोलकाता, चेन्नई तथा तिरुवनन्तपुरम के हवाई अड्डों का दर्जा दिया गया है, जिनका प्रबन्धन अब तक अन्तर्राष्ट्रीय विमान पतन  (International Air Port Authority of India-AAI) प्राधिकरण द्वारा किया जाता था । किन्तु 1 अप्रैल, 1995 को राष्ट्रीय विमानपत्तन प्राधिकरण NAA का विलय करके भारतीय विमानपत्तन प्राधिकरण ;(Airports Authority of India-AAI)  की स्थापना कर दी गई ।

20 जनवरी, 1981 को वायुदूत सेवा की स्थापना निगम ;(Vayudoot Service) के रूप में की गई, ताकि पूर्वोत्तर क्षेत्र की हवाई सेवा की आवष्यकताओं को पूरा किया जा सके । बाद में अन्य क्षेत्रों में भी इस सेवा का विस्तार किया गया ।

हेलीकॉप्टर  कारपोरेषन ऑफ़ इण्डिया की स्थापना 15 अक्टूबर, 1985 को एक निगम के रूप में की गई । किन्तु 5 मई, 1987 में इसे बदल कर पवन हंस हैलीकापटर्स लि. (PHHL)  कर दिया गया । इस सेवा की स्थापना मूलतः तेल एवं प्राकृतिक गैस आयोग (ONGC) की तेल सम्बन्धी अन्वेषण के लिए हेलीकॉप्टर सहायता उपलब्ध कराने के लिए की गई थी । वर्तमान में पवन हंस देष के दुर्गम क्षेत्रों में नियमित विमान सेवाएं भी उपलब्ध कराता है।

भारत में 1 अप्रैल, 1995 से 6 एयर टैक्सी आपरेटरों को निजी एयरलाइन्स का दर्जा प्रदान कर दिया है । इस प्रकार वायु सेवा पर अब सरकारी क्षेत्र के साथ-साथ निजी क्षेत्र का भी अधिकार हो गया है। फिलहाल घरेलू हवाई यातायात के लगभग 60 हिस्से का प्रबंध निजी आपरेटरों के द्वारा किया जा रहा है । निजी क्षेत्र का पहला हवाई अड्डा कोचीन में है, जिसका नाम कोचीन इन्टरनेषनल एयरपोर्ट लि. है।

समस्याएं

1. वायुयान दुर्घटना
2. निजी उड्डयन से प्रतिस्पर्धा
3. खराब मौसम
4. विमान अपहरण, तथा
5. महंगा परिवहन साधन

सम्भावनाएँ -

वायुयान के अन्तर्राष्ट्रीय तथा अन्तर्राज्यीय रेखाजाल के विकास की निम्न रूपों में पर्याप्त सम्भावनाएं हैं, जिसके निम्न कारण हैं -
1. देष में तीव्र वाणिज्यीकरण ।
2. पर्वतीय एवं दलदली क्षेत्रों में पहुँच  की आवष्यकता, तथा
3. तीव्र सेवा ।

<< मुख्य पृष्ठ पर वापस जाने के लिये यहां क्लिक करें