(आँनलाइन निःशुल्क कोचिंग) सामान्य अध्ययन पेपर - 1: भारतीय इतिहास "अध्याय - पुष्यभूति वंश एवं हर्षवर्धन"

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विश्वय - भारतीय इतिहास

अध्याय - पुष्यभूति वंश एवं हर्षवर्धन

पूष्यभूति वंश के बारे में जानकारी का स्रोत हैं. बाणभट्ट का हर्षचरितए बांस खेड़ा (628 ई)  एवं मधुबन (631 ई) ताम्रपत्रा अभिलेखए नालंदा एवं सोनीपत ताम्रपत्रा अभिलेखए ह्वेनसांग एवं इतिसंग के यात्रा वृतांत। श्हर्षचरित इस ग्रन्थ का लेखक बाणभट्ट हर्षवर्धन का दरबारी कवि था। ऐतिहासिक विषय पर महाकाव्य लिखने का यह प्रथम सफल प्रयास था। इसके पांचवेंए छठे अध्याय में हर्ष का वर्णन है।

आरंभिक शासक

ह्वेनसांग ने हर्ष को श्फी.शे जाति अर्थात वैश्य बताया है। हर्षचरित में पुष्यभूति वंश की तुलना चंद्र से की गर्इ है। पुष्यभूति वंश का संस्थापक पुष्यभूति था। इस वंश का प्रथम प्रसिद्ध शासक प्रभाकरवर्धन था जो हर्षवर्धन का पिता था। प्रभाकरवर्धन की उपाधि हूणहरिण केशरी तथा गुर्जर प्रजागर थी। उसने हूणों के साथ युद्ध किया था। उसकी राजधानी श्थानेश्वर (हरियाणा के करनाल के पास थानेसर नामक स्थान थी।

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हर्षवर्धन (606.647  ई)

हर्षवर्धन ने एक बौद्ध दिवाकरमित्रा के सहायता से अपनी बहन राजश्री को बचाया तथा कन्नौज का शासनभार अपने ऊपर ले लिया। हर्ष ने कन्नौज को राजधानी बनाया और पांच राज्यों.पंजाबए कन्नौजए गौड़ (बंगाल) मिथिला तथा उड़ीसा पर आधिपत्य स्थापित किया। लगभग 620  ई)् में हर्ष का दक्षिण के शासक पुलकेशिन द्वितीय के साथ नर्मदा के तट पर युद्ध हुआ। इसके बाद हर्ष उत्तर भारत तक ही सिमट कर रह गया।

शासन व्यवस्था

हर्ष ने दिन को भागों में बांट दिया था। एक भाग में प्रशासनिकए एक भाग में धार्मिक तथा अन्य में व्यकितक कार्य करता था। राजा की सहायता के लिए मंत्रिपरिषद होती थी। मंत्री को सचिव या आमात्य कहा जाता था। अधिनस्थ  शासक महाजन अथवा महासामंत कहे जाते थे। संदेशवाहक दिर्घध्वज तथा गुप्तचर सर्वगतरू कहे जाते थे।

14 शिलालखों में उल्लेखित अशोक के निर्देश

  1. प्रथम शिलालेख में पशु हत्या सामाजिक उत्सवों पर प्रतिबंध्ा का उल्लेख है।
  2. द्वितीय में समाज कल्याण का कार्य जैसे मनुष्यों तथा पशुओं के चिकित्साए मार्ग निर्माण आदि का उल्लेख है। इसमें चोलए चेरए पांडयए सत्तियपुत्त तथा ताम्रपर्णि राष्ट्रों का उल्लेख है।
  3. तृतीय में अभिभावकोंए ब्राह्राणोंए श्रमणों के प्रति सम्मानजनक व्यवहारए मितव्यय आदि अच्छे गुणों को अपनाने का उल्लेख है।
  4. चतुर्थ में धम्म का उल्लेख है।
  5. पंचम में धम्म महामांत्रो की नियुकित का उल्लेख है।
  6. षष्ठम में राजा (स्वंय) से किसी भी वक्त मिल सकने की सुविधा का उल्लेख है।
  7. सप्तम में सभी संप्रदायों को सहिष्णुता बनाये रखने का आदेश है।
  8. अष्टम में सम्राट द्वारा आखेट का त्याग कर ध्ार्मयात्राएं आरंभ करने का उल्लेख है।
  9. नवम में रंगारंग समारोह के स्थान पर धम्म समारोह आरंभ करने का आदेश है।
  10.  दशम में ख्याति व गौरव की निंदा तथा धम्म नीति को श्रेष्ठ बताया गया है
  11. ग्यारहवें में धम्म नीति की व्याख्या की गयी है।
  12. बारहवें में पुनरू संप्रदायों के बीच सहिष्णुता बनाये रखने का आदेश है।
  13. तरहवें में कलिंग युद्ध के स्थान पर धम्म विजयए तथा पांच यूनानी राजाए एणिटयाकसए टालमीए एणिटगोनसए मागस तथा अलेक्जेंडर का उल्लेख है। इसमें आटविक जातियों को अशोक की चेतावनी का भी उल्लेख है।
  14. चौदहवें में जनता को धार्मिक जीवन जीने की प्रेरणा दी गयी है।

प्राचीन भारत की प्रसिद्ध पुस्तकें:

मौर्योत्तर कला

गंधार कला (50 ई.पू. - 500 ई.पू.)- इसका दूसरा नाम ‘ग्रीक-बौद्ध शैली’ है। इसके अंतर्गत मूर्तियों में शरीर की आकृति को सर्वथा यथार्थ व पारदर्शी दिखाने का प्रयत्न किया गया। यहां की मूर्तियों में बुद्ध का मुख युनानी देवता अपोलो से मिलता है। ये मूर्तियां विशेष प्रकार के स्लेटी रंग के पत्थरों से निर्मित हैं।

सर्वाधिक बुद्ध मूर्तियों का निर्माण गंधार कला में हुआ।

मथुरा कला (150-300 ई.)- यह देशी कला कंेद्र था, जो जैन धर्मानुयायियों द्वारा मथुरा में प्रथम सदी में आरंभ किया गया। यह आदर्शवादी कला थी। इसे कुषाणों का संरक्षण मिला। मूर्तियां लाल बलुआ पत्थर से बनती थीं। यह कला आदर्शवादी थी। सारनाथ की खड़ी बौद्ध मूर्ति का निर्माण मथुरा में हुआ था।

अमरावती कला (150 ई.पू. - 400 ई.)- इस शैली के अंतर्गत सफेद संगमरमर से मूर्तियांे का निर्माण आरंभ हुआ। सातवाहन राजाओं के संरक्षण में नासिक, भोज, कार्ले मेें निर्मित चैत्यों पर इस शैली का प्रभाव है।

हर्ष कालीन अधिकरी:

गुप्त कालीन अधिकारी:

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