(आँनलाइन निःशुल्क कोचिंग) सामान्य अध्ययन पेपर - 1: भारतीय इतिहास "अध्याय - जैन धर्म"
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विश्वय - भारतीय इतिहास
अध्याय - जैन धर्म
इस धर्म की स्थापना प्रथम तीर्थंकर ऋषभदेव ने किया था। 23वें जैन तीर्थंकर ने जैन धर्म को व्यवस्थित रूप प्रदान किया। परंतु वास्तविक रूप से जैन धर्म को समाज में प्रतिष्ठित करने का श्रेय 24वें तीर्थंकर महावीर स्वामी का है।
महावीर स्वामी
इनका जन्म कुंडग्राम में 540ई.पू. में हुआ था। इनके माता-पिता सिद्धार्थ (ज्ञातृक क्षत्रिय) तथा त्रिशला (लिच्छवी नरेश चेटक की बहन) थीं। इनके बालपन का नाम वर्धमान था। याशोदा उनकी पत्नी तथा अणोज्जा प्रियदर्शनी पुत्राी थीं। 30वर्ष की अवस्था में इन्होंने गृहत्याग कर 12 वर्षों तक तपस्या की। जम्भिग्राम के निकट ऋजुपालिका नदी के तट पर साल वृक्ष के नीचे इन्हें सर्वाेच्च ज्ञान (कैवल्य) प्राप्त हुआ।
जैन धर्म के सिद्धांत
त्रिरत्न - सम्यक दर्शन, सम्यक ज्ञान, सम्यक आचरण। जैन धर्म में कर्मवाद एवं पुनर्जन्म की मान्यता है परंतु देवताओं को ‘जिन’ के नीचे का दर्जा दिया गया है। जैन धर्म में संसार को वास्तविक, शास्वत तथा दुःखमूलक माना गया है। ईश्वर को सृष्टिकर्ता नहीं माना गया है। 23वें तीर्थंकर को ‘चतुर्थी’ तथा उनके अनुयायियों को ‘निग्र्रन्थ’ कहा जाता है। महावीर के 11 शिष्यों को ‘गणधर’ कहा गया। जिनके साथ उन्होंने जैन धर्म की स्थापना की।
जैन धर्म के संप्रदाय
श्वेताम्बर एवं दिगम्बर चैथी सदी ई.पू. में जैन धर्म में हुए विभाजन के बाद जैन मुनि भद्रबाहु के साथ अनेक लोग दक्षिण भारत चले गये। नग्न रहने के कारण वे दिगम्बर कहलाये। स्थूलभद्र के नेतृत्व में जो जैन लोग मगध में रह गये वे श्वेत वò धारण करने के कारण श्वेताम्बर कहलाये। ‘थेरापंथी’ श्वेताम्बर संप्रदाय का वह समूह जिसने मूर्ति पूजा की जगह ग्रंथ पूजा आरंभ किया।