(आँनलाइन निःशुल्क कोचिंग) सामान्य अध्ययन पेपर - 1: भारतीय इतिहास "अध्याय - मौर्योत्तर काल"

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विश्वय - भारतीय इतिहास

अध्याय - मौर्योत्तर काल

शुंग वंश (185 ई.पू- 73 ई.पू.)

शंगु वंश की जानकारी के स्रोत हैं- दिव्यावदान, मालविकाग्निमित्रा ग्रंथ, अयोध्या एवं विदिशा से प्राप्त अभिलेख आदि। 185 ई.पू. मे पुष्यमित्रा शुंग ने अंतिम मौर्य शासक वृहदरथ की हत्या कर शुंग वंश की नींव डाली। शुंग वंश ब्राह्ममण राजवंश था। इसकी राजधानी विदिशा थी। पुष्यमित्रा की उपाधि सेनानी थी। इसने दो अश्वमेघ यज्ञ किये तथा पतांजलि इन यज्ञों के पुरोहित थे। पतांजलि ने इसके काल में अष्टाध्यायी पर महाभाष्य लिखा।

कण्व वंश (73ई.पू.-28ई.पू.)

शुंगवंश के शासक देवभूमि की हत्या कर वासुदेव ने कण्ववंश की स्थापना की। इस वंश का शासन केवल बिहार तथा पूर्वी उत्तर प्रदेश तक था। यह भी ब्राह्मण राजवंश था। इस वंश के अंतिम शासक सुशर्मन को विस्थापित कर सातवाहनों ने अपने राजवंश की स्थापना की।

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सातवाहन वंश

पुराणों में सातवाहनों को ‘आंध्रभृत्य’ कहा गया है। उनके पूर्वज पहले मौर्यों के सामंत थे। ‘सिमुक’ ने (30ई.) सातवाहन राज्य को स्थापित किया। सातवाहनों की राजधानी प्रतिष्ठान (पैठन) थी जो एक प्रमुख व्यापारिक नगर भी था। के.पी.जायसवाल के अनुसार सातवाहन अशोक के अभिलेखों में वर्णित ‘सतियपुत’ थे। इस वंश का प्रथम प्रसिद्ध राजा ‘शातकर्णी प्रथम’ था। इसकी उपाधियां अप्रतितचक्र, दक्षिणापथपति थीं। इसने दो अश्वमेघ में इसके बारे में जानकारी दी है। राजा ‘हाल’ (20 ई.-24 ई.) ने प्राकृत भाषा में ‘गाथा सप्तशती’ नामक ग्रन्थ की रचना की।

प्रशासन, अर्थव्यवस्था, समाज

सातवाहन ब्राह्मण थे तथा उनकी राजकीय भाषा प्राकृत थी। शासकों ने अपनी तुलना राम, केशव, भीम आदि से की। सर्वप्रथम भूमि अनुदानों का अभिलेख साक्ष्य सातवाहनों का ही है। इस समय विदेशी व्यापार विशेषकर रोमनों से व्यापार का काफी विकास हुआ।

इंडो-ग्रीक शासक (हिंद-यवन शासक)

मौर्यत्तर काल में भारत पर अक्रमण करने वाला प्रथम सफल आक्रमण इंडो ग्रीक शासक ‘डेमेट्रियस’ ने किया। उसने सिंध और पंजाब पर अपना अधिपत्य स्थापित किया। उसकी राजधानी ‘साकल’ थी। हिन्द-यवन शासक यूक्रेटाइडीज ने भी भारत के कुछ भागों को विजित कर ‘तक्षशिला’ को राजधानी बनाया। हिन्द-यवन शासकों में सबसे प्रसिद्ध शासक मिनांडर था। वह डेमेट्रियस का सेनापति था। उसकी राजधानी स्यालकोट या साकल थी। भड़ौंच के बाज़ार में उसके सिक्के चलते थे।

उनकी शक्ति का केंद्र सिंध था। वहां से वे भारत के पंजाब, सौराष्ट्र आदि स्थानों पर फैल गये।

अशोक कालीन प्रांत:

अर्थशास्त्रा में वर्णित अध्यक्ष:

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