(आँनलाइन निःशुल्क कोचिंग) सामान्य अध्ययन पेपर-1: भारतीय इतिहास (मध्यकालीन भारत) "अध्याय - मुगल साम्राज्य"
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विश्वय - भारतीय इतिहास (मध्यकालीन भारत)
अध्याय - मुगल साम्राज्य
बाबर- (1526-1530 ई.)
बाबर का जन्म 14 फरवरी, 1483 ईo को मावराउन्नहर की एक छोटी सी रियासत ‘फरगना’ में हुआ था। बाबर के पिता का नाम उमरशेख मिर्जा था तथा माता का नाम कुतलुगनिगार खाˇ था। बाबर ने जिन नवीन राजवंश की नींव डाली, वह तुर्की नस्ल का ‘चगताई वंश’ था। बाबर ने 1504 ईo में ‘बादशाह’ की उपाधि धारण की। बाबर ने अपनी आत्मकथा ‘बाबर नामा’ में केवल पांच मुस्लिम शासकों तथा दो हिन्दू शासकों का उल्लेख किया है। बाबर ने भारत पर पहला आŘमण 1519 ईo में ‘बाजौर’ पर किया था और उसी आŘमण में ही उसने ‘भेरा’ के किले को जीता था। पानीपत का प्रथम युद्ध 21 अपै्रल, 1526 को लड़ा गया जिसमें बाबर ने उजबेकों की युद्धनीति ‘तुलगमा युद्ध पद्धति’ तथा तोपों को सजाने में ‘उस्मानी विधि’ का प्रयोग किया। बाबर की मृत्यु 26 दिसंबर, 1530 को हुई। बाबर का मृत शरीर पहले यमुना के किनारे आगरा के रामबाग में दफनाया गया, लेकिन बाद में उसकी इच्छा के अनुसार दफनाया गया। बाबर ने ‘मुबइयान’ नामक एक पद्य शैली का विकास किया। उसने ‘रिसाल-ए-उसज’ की रचना की जिसे ‘खत-ए-बाबरी’ कहा जाता है।
हुमायूˇ (1530-1556 ईo)
बाबर की मृत्यु के 4 दिन पश्चात् हुमायुˇ तेईस वर्ष की आयु में 30 दिसम्बर 1530 को हिन्दुस्तान के सिंहासन पर बैठा। हुमायुˇ का समकालीन अफगान नेता शेरखाˇ था, जो इतिहास में शेरशाह सूरी के नाम से विख्यात हुआ। हुमायुˇ के राजत्व काल में उसका अफगानों से पहला मुकाबला 1532 ईo में दोहरिया नामक स्थान पर हुआ। अफगानों का नेतृत्व महमूद लोदी ने किया। परन्तु अफगानों की पराजय हुई। शेरशाह तथ हुमायुˇ के मčय एक माह की प्रतीक्षा के बाद कन्नौज के पास गंगा किनारे 27 मई, 1540 ईo को कन्नौज का युद्ध (बिलग्रामी का युद्ध) हुआ। इसमें शेरशाह के नेतृत्व में अफगानों ने मुगल सेना को हरा दिया। हुमायुˇ को गद्दी छोड़कर भागना पड़ा और दिल्ली की सल्तनत शेरशाह के अधिकार में चली गई। मार्च 1545 ईo में हुमायुˇ ने कčाांर जीत लिया। फरवरी 1556 में दीनपनाह भवन में स्थित पुस्तकालय की सीढ़ियों से गिर कर उसकी मृत्यु हो गयी।
अर्थव्यवस्था
भू-राजस्व की मुख्य इकाई ग्राम थी जिसमें मालगुजारी (लगान) से सम्बधित दो अधिकारी होते थे- मुकद्दम और पटवारी। परगने में आमिल, कानूनगो तथा अमीन भू-राजस्व के प्रमुख अधिकारी होते थे। अकबर ने अपनी दहसाला प्रणाली को लागू करने के लिए 1573 में बंगाल, बिहार और गुजरात को छोड़कर सम्पूर्ण उत्तरी भारत में किरोड़ी नामक अधिकारी को नियुक्त किया। राज्य में लगान एकत्रा करने का कार्य जमींदार, ताल्लुकदार, मुकद्दम और पाटिल इत्यादि करते थे।
शेरशाह सूरी (1540-1545 ईo)
शेरशाह का जन्म 1472 ईo में बैजवाड़ा (होशियारपुर) नामक स्थान पर हसन की अफगान पत्नी के गर्भ से हुआ था। शेरशाह के बचपन का नाम फरीद था। दक्षिणी बिहार के तत्कालीन शासक मुहम्मद खान नूहानी से उसकी बहादुरी पर प्रसन्न होकर उसे शेर खाˇ की उपाधि प्रदान की। शेरखाˇ ने 1540 ईo में उत्तर भारत में सूरवंश अथवा द्वितीय अफगान साम्राज्य की स्थापना की। शेरशाह ने अपनी उत्तरी-पश्चिमी सीमा की सुरक्षा के लिए वहां ‘रोहतासगढ़’ नामक एक सुदृढ़ किला बनवाया और हैबात खाˇ तथा खवास खाˇ के नेतृत्व में एक शक्तिशाली सेना को नियुक्त किया। 1544 ईo में मालदेव को हराकर शेरशाह ने अजमेर, जोčापुर, मेवाड़ पर अधिकार कर लिया। शेरशाह का अन्तिम युद्ध अभियान 1545 ईo में कालिंजर में माना जाता है, जहां बारूद में विस्फोट होने से 22 मई 1545 ईo को शेरखान की मृत्यु हो गई।
अकबर (1556-1605 ईo)
अकबर का जन्म अमरकोट के रेगिस्तानी किले में 15 अक्टूबर 1542 ईo को हुआ था। हुमायूˇ की मृत्यु के समय अकबर पंजाब में था। 13 वर्ष की आयु में 14 फरवरी, 1556 ईo को कलानौर में ही ईंटों का सिंहासन बनाकर उसका राज्याभिषेक किया गया। बैरम खाˇ को उसका संरक्षक बनाया गया। 1556 ईo में अकबर ने बैरम खाˇ को अपना वकील (वजीर) नियुक्त कर उसे खान-ए-खाना की उपाधि प्रदान की थी। पानीपत की दूसरी लड़ाई (5 नवंबर, 1556 ईo को) अफगान सेनापति हेमू और बैरम खाˇ के नेतृत्व में मुगल के बीच हुई। इसमें गर्दन में तीर लगने पर हेमू के बेहोश हो जाने के पश्चात् सेना पराजित हो गई। हेमू बिहार के अफगान शासक मुहम्मद आदिल शाह का हिन्दू सेनापति था। वह 22 युद्धों मे विजय प्राप्त कर चुका था। उसने ‘राजा विŘम जीत’ की उपčिा भी धारण की। अकबर ने 1562 ईo में दास प्रथा, 1563 ईo में तीर्थ यात्रा कर तथा 1564 ईo में जजिया कर समाप्त कर दिया। अकबर ने चितौड़ विजय की स्मृति में राजधानी फतेहपुर सीकरी में एक बुलन्द दरवाजा बनवाया था। कन्čाार प्रान्त भी सर्वप्रथम अकबर के समय में 1595 ईo में मुगल अधिपत्य मे आया था।
जहांगीर (1605.1627 ई.)
सलीम (जहांगीर) का जन्म 30 अगस्त, 1569 ईo को फतेहपुर सीकरी में स्थित शेख सलीम चिश्ती की कुटिया में आमेर (जयपुर) भारमल की पुत्री मरियम उज्जमानी के गर्भ से हुआ। सलीम का मुख्य शिक्षक अब्दुर्रहीम खानखाना था। अकबर की मृत्यु के बाद 3 नवम्बर 1605 ईo को आगरा के किले में सलीम का राज्याभिषेक हुआ। जहांगीर ने गद्दी पर बैठते ही आगरे के किले की शाहबुर्जी और यमुना के किनारे खड़े एक पत्थर के एक खम्भे के बीच न्याय की एक जंजीर लगवायी। जिसमें 60 घन्टियाˇ थी तथ बारह घोषणाएं प्रकाशित करवायी। जहांगीर की बारह घोषणाएˇ प्रकाशित करवायी। जहांगीर की बारह घोषणाओं को आइने जहांगीरी कहा जाता है। जहांगीर के ज्येष्ठ पुत्रा खुसरों ने 1606 ईo में विद्रोह किया। खुसरों को शरण देने के अपराध में सिख गुरु अर्जुन देव को 7 नवम्बर 1627 ईo को जहाˇगीर की मृत्यु हो गयी ।
शाहजहां (1628-1658 ई.)
शाहजहां का जन्म 6 जनवरी, 1592 ईo का लाहौर मे हुआ। उसकी माता एक राजपूत जगत गोसाई मोटा राजा उदयसिंह की पुत्री थी। उसके बचपन का नाम खुर्रम था। 1607 ईo में जहांगीर ने उसे 8 हजार व पांच हजारी मनसब प्रदान किया। शाहजहां का विवाह 1612 ईo मे आसफ खाˇ की पुत्री ‘अर्जुमन्दबानू बेगम’ से हुआ जो बाद में इतिहास में ‘मुमताज महल’ के नाम से विख्यात हुई। फरवरी 1628 ईo में आगरा में शाहजहां का राज्यारोहण हुआ। उसके शासन काल में कई विद्रोह हुए। इसमें सबसे पहला विद्रोह खाने जहां लोदी का था। जुझार सिंह के नेतृत्व में (1628-29 ईo ) बुन्देलों ने भी विद्रोह कर दिया। उसने 1632 ईo में हुगली स्थित पुर्तगालियों के विरुद्ध अभियान छेड़ा जिसमें पुर्तगाली पराजित हुए। शाहजहां ने दक्षिण भारत में सर्वप्रथम अहमदनगर पर आŘमण किया और 1633 में उसे जीतकर मुगल साम्रज्य में मिला लिया। शाहजहां की मृत्यु 1666 ईo में हुई और उसे भी ताजमहल में उसकी पत्नी को कब्र के निकट साधारण नौकरों द्वारा दफना दिया गया।
औरंगजेब
औरंगजेब का जन्म 3 नवंबर, 1618 को उज्जैन के निकट दोहद नामक स्थान पर शाहजहां की प्रिय पत्नी मुमताजमहल के गर्भ से हुआ था। औरंगजेब ने 21 जुलाई 1650 ईo को दिल्ली में अपना ‘प्रथम राज्याभिषेक’ कराया और ‘अबुल मुजफ्फर आलम गीर’ की उपाधि धारण की। सम्राट बनने के बाद औरंगजेब ने जनता के आर्थिक कष्टों के निवारण के लिए ‘राहदारी’ (आन्तरिक परगमन शुक्ल) और पानदारी व्यापारिक चुंगियाˇ आदि प्रमुख आबवाबों (स्थानीय करों) को समाप्त कर दिया। अपने राज्यकाल के प्रथम चरण (1661 ईo ) में उसने मीर जुमला को बंगाल का गवर्नर बना दिया गया। उसने कूच बिहार के राजधानी पर कब्ज़ा कर सम्पूर्ण राज्य को अपने साम्राज्य में मिला दिया। उसने रंगपुर व कामरूप जिलों पर भी कब्जा कर लिया। 1678 ईo में मारवाड़ के राठौरों को पुष्कर के पास पराजित कर उनके राज्य पर कब्जा कर लिया। उसने राजा जयसिंह को दक्कन का गर्वनर नियुक्त किया। शिवाजी व राजा जयसिंह के बीच पुरन्दर की संधि जून, 1665 ईo में हुई। इसके तहत शिवाजी ने अपने 23 किले राजा जयसिंह को दे दिए। 1679 ईo में औरंगजेब ने गैर मुस्लिमों पर पुनः जजिया कर लगा दिया। 1662 ईo में अपने पुत्रा शाहजादा अकबर का पीछा करते हुए औरंगजेब दक्षिण भारत पहुंचा किन्तु उसके पश्चात् उसे उत्तर भारत में आने का अवसर नहीं प्राप्त हुआ। औरंगजेब ने सिकन्दर आदिलशाह का स्वागत किया उसे ‘खान’ का पद दिया एवं 1 लाख रुपए वार्षिक पेंशन दी गई। 1678 ईo में औरंगजेब ने स्वयं ही गोलकुण्डा पर आŘमण करके किले को घेर लिया। किन्तु आठ महीने के बावजूद भी मुगलों को कोई सफलता नहीं मिली। औरंगजेब का प्रमुख लक्ष्य इस देश को दार-उल-हर्ब के स्थान पर दार-उल-इस्लाम देश बनाना था। औरंगजेब ने 1668 ईo मे हिन्दू त्यौहारों और उत्सवों को मनाये जाने पर रोक लगा दी। औरंगजेब ने गुरुवार (जुमेरात) की राज को परों की मजार एवं अन्य कब्रों पर दीये जलाने की प्रथा को बन्द करवा दिया।
मुगल प्रशासन
मुगलों के राजत्व सिद्धान्त का मूलाधिकार ‘शरीअत’ (कुरान एवं हदीस का सम्मिलित नाम) था। बाबर ने ‘बादशाह’ की उपाधि धारण करके मुगल बादशाहों को खलीफा के नाममात्रा के अधिपत्य से भी मुक्त कर दिया। हुमायुˇ बादशाह को ‘पृथ्वी पर खुदा का प्रतिनिधि’ मानता था। अकबर राजतन्त्रा को čार्म एवं सम्प्रदाय से पर मानता था और उसने रूढ़िवादी इस्लामी सिद्धान्तों के स्थान पर ‘सुलह-ए-कुल’ की नीति अपनायी। मुगल बादशाहों ने निःसन्देह बादशाह के दो कर्तव्य माने थे- ‘जहांबानी’(राज्य की रक्षा) और जहांगीरी (अन्य राज्यों पर अधिकार) अकबर के शासन काल के 11वे वर्ष में पहली बार मनसब प्रदान किये जाने का संकेत मिलता है। अकबर ने अपने अन्तिम वर्षों में मनसबदारी व्यवस्था में ‘जात एवं सवार’ नामक द्वैत मनसब प्रथा को प्रारम्भ किया। अकबर के समय में सबसे छोटा मनसब 10 का तथा सबसे बड़ा 10,000 तक हो गया। जहांगीर और शाहजहां के काल में सरकारों को 8000 तक के मनसब दिये जाने लगे।
जिसकी संख्या उत्तर मुगल काल में 50,000 तक पहुंच गयी। मनसबदारों का वेतन रुपयों के रूप में निश्चित किया जाता था किन्तु उसकी अदायगी ‘जागीर’ के रूप में की जाती थी।