(आँनलाइन निःशुल्क कोचिंग) सामान्य अध्ययन पेपर - 1: भारतीय इतिहास "अध्याय - शैव धर्म"

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विश्वय - भारतीय इतिहास

अध्याय - शैव धर्म

शिव पूजा का प्रमाण सैंधव सभ्यता से ही मिलने लगा परंतु प्रत्यक्ष रूप से शैव धर्म उपनिषदोत्तर काल में सामने आया जब शिव का रूद्र के साथ एकात्म्य स्थापित हुआ। शिव का अर्थ है शुभ लिंग पूजा।

इसका सर्वप्रथम साक्ष्य सिंधु सभ्यता में मिलता है। पतांजलि के महाभाष्य (द्वितीय सदी ई.पू.) में पहली बार शिव की मूर्ति पूजा का उल्लेख मिलता है।

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प्रमुख शैव संप्रदाय

पाशुपत- शैव धर्म के इस प्राचीनतम संप्रदाय के संस्थापक गुजरात के लकुलीश (गुजरात) थे। उन्हें शिव के 18 अवतारों में से एक माना जाता है। इस मत के अनुयायी पंचरार्थिक कहलाये। ‘कालपलिक या कालामुख’ इसमें तंत्रा-मंत्रा, नरबलि तथा पंचतत्व (मद्य, मांस, मैथुन, मत्स्य तथा मदिरा) का प्रचलन था। ‘नाथ संप्रदाय’ इसके संस्थापक मत्स्यंेद्र नाथा थे तथा वसवराज गोरखनाथ थें। ‘कश्मीरी शैव’ वसुगुप्त ने इसकी स्थापना की थी।

महाजनपद तथा मगध का उत्थान

छठी शाताब्दी ई.पू. से पूर्वी उत्तर प्रदेश तथा पश्चिमी एवं उत्तरी बिहार में लोहे का व्यापक प्रयोग होने लगा। जिससे महाजनपदों के निमार्ण की परिस्थिति बन गई। बौद्ध ग्रन्थ अंगुत्तर निकाय में ‘सोलह महाजनपदों’ का वर्णन किया गया है जो कि निम्न हैं।

मगध के राजा एवं राजवंश

हर्यक वश् (543.412 ई. प)

बिम्बिसार (543.492 ई. पू.) यह बुद्ध का समकालीन था। तथा उपमान ‘श्रेणिक’ था। इसने गिरिव्रज को अपनी राजधानी बनाई। इसने कोशल राज्य के राजा प्रसेनजित की बहन कोशल देवी के साथ विवाह किया और काशी प्रांत दहेज में प्राप्त किया। इसकी दूसरी पत्नी लिच्छवी प्रमुख चेटक की बहन चेल्लना तथा तृतीय पत्नी मद्र की राजकुमारी क्षेमा थी। इस तरह उसने वैवाहिक संबंधो द्वारा राज्य को सुदृढ़ता प्रदान किया। इसने अपने चिकित्सक जीवक को अंवति के राजा प्रघोत की चिकित्सा हेतु उज्जैन भेजा था।

अजातशत्रु (492-460ई.पू.) यह अपने पिता की हत्या कर गद्दी पर बैठा। इसका अन्य नाम कुणिक था। इसने काशी व वज्जिसंघ को मगध में मिला लिया। इसने अपने मंत्राी वस्सकार को वज्जिसंघ में फूट डालने के लिए भेजा था।

उदयिन (460-444 ई.पू.) उदयिन ने गंगा एवं सोन नदी के संगम पर ‘पाटलिपुत्रा’ नामक नगर बसाकर मगध साम्राज्य की राजधानी बनाया।

शिशुनाग वंश (412-344 ई.पू.) ने अवंति तथा वत्स को जीतकर मगध  साम्रज्य का अंग बनाया। इसने वैशाली को राजधानी बनाया। कालाशोक (काकवर्ण) ने राजधानी पुनः पाटलिपुत्रा स्थानांतरित कर दी।

नन्द वंश (344-322 ई.पू.) नन्द वंश का संस्थापक महापद्मनन्द था। उसे सर्वक्षत्रांतक तथा उग्रसेन भी कहा गया है। उसकी उपाधि ‘एकराट’ थी। खारवेल के हाथीगुम्फा लेखानुसार वह कलिंग विजित कर जिनवेन की प्रतिमा को उठा लाया था। उसने कलिंग में एक नहर का निर्माण किया था। अंतिम राजा घनानंद था। उसके काल में सिकन्दर ने भारत पर आŘमण किया था। चन्द्रगुप्त मौर्य ने घनानन्द की हत्या कर मौर्य वंश की स्थापना की।

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