(Download) संघ लोक सेवा आयोग सिविल सेवा - मुख्य परीक्षा विधि Paper-1 - 2014

UPSC CIVIL SEVA AYOG

संघ लोक सेवा आयोग सिविल सेवा - मुख्य परीक्षा (Download) UPSC IAS Mains Exam 2014 विधि (Paper-1)

खण्ड ‘A’

1. निम्नलिखित के उत्तर दीजिए, जो प्रत्येक लगभग 150 शब्दों में होने चाहिए : 

(a) आपके विचार में हमारे संविधान का स्वरूप/प्रकृति क्या है – परिसंघीय, ऐकिकं अथवा अर्ध-परिसंघीय ? प्रारूपण समिति (ड्राफ्टिंग कमेटी) के सदस्यों ने इसको परिसंघीय कहा है, परंतु अनेक अन्य इस अभिधान (टाइटल) का प्रतिवाद करेंगे । इस कथन का समालोचनापूर्वक परीक्षण कीजिए। 

(b) 'संवैधानिकता' से क्या तात्पर्य है ? 'संवैधानिकता' से भारत की परियुक्ति (ट्राइस्ट) और 'संवैधानिक शासन' के संदर्भ में, इस संकल्पना को, इसके नकारात्मक और सकारात्मक दोनों पक्षों में, स्पष्ट कीजिए। 

(c) अनुच्छेद 13 न्यायपालिका को, और विशेषकर उच्चतम न्यायालय को, मूल अधिकारों का संरक्षक, संरक्षी और निर्वचक बनाता है । यदि कोई विधि मूल अधिकार के असंगत हो, तो यह न्यायालयों को उस विधि को 'शून्य' (वौएड) घोषित करने की शक्ति प्रदान करता है और साथ ही साथ ऐसा करने की बाध्यता अधिरोपित करता है | चर्चा कीजिए। 

(d) उच्चतम न्यायालय उच्चतम न्यायालय की 'विशेष इजाज़त अधिकारिता' की व्याप्ति को, जैसे कि उसने इसको प्रतिपादित किया है, स्पष्ट कीजिए। 

(e) 'शक्तियों के पृथक्करण' के सिद्धांत का परीक्षण कीजिए । साथ ही भारत में इस सिद्धांत की प्रासंगिकता का उल्लेख कीजिए। 

2.(a) 'उचित अवसर' की संकल्पना के 'पदावधि प्रसादपर्यन्त' के सिद्धांत पर एक संवैधानिक परिसीमा होने के नाते, संसद या राज्य विधान-मंडल 'उचित अवसर' की विषय-वस्तु की परिभाषा करते हुए और अभियुक्त सरकारी कर्मचारी को कथित अवसर प्रदान करने की कार्यविधि निर्धारित करते हुए, एक विधि का निर्माण कर सकता है । अग्रनिर्णयों का उल्लेख करते हुए इस संकल्पना को स्पष्ट कीजिए। 

(b) 'दैहिक स्वतंत्रता का अधिकार' के अर्थ को, जैसा कि उच्चतम न्यायालय ने पापानाशम श्रमिक संघ बनाम मदरा कोट लिमिटेड (ए.आई.आर. 1995 एस.सी. 2200) में उसका निर्वचन किया है, स्पष्ट कीजिए और पूरी तरह समझाइए । इस संबंध में; माननीय उच्चतम न्यायालय के द्वारा निर्धारित मार्गदर्शी सिद्धांतों का समालोचनापूर्वक विश्लेषण कीजिए। 

(c) शब्द 'लोक सेवक' की परिभाषा कीजिए । साथ ही भारत में लोक सेवकों की भर्ती की कार्यविधि पर चर्चा कीजिए। 

3.(a) भारत में राष्ट्रपति और राज्यपालों की अध्यादेश-निर्माण-शक्ति की संवैधानिक व्याप्ति का परीक्षण कीजिए और सविस्तार स्पष्ट कीजिए। 

(b) किसी पिछड़े वर्ग की पहचान केवल और अनन्य रूप से आर्थिक कसौटी के प्रमाण पर नहीं की जा सकती है । परंतु फिर भी, पिछड़ी जाति की पहचान व्यवसाय-व-आय के आधार पर, जाति की ओर देख बिना ही, की जा सकती है। राज्य द्वारा पिछड़े वर्गों को 'पिछड़ा' और 'अधिक पिछड़ा' के रूप में श्रेणीबद्ध करने पर कोई संवैधानिक पाबंदी नहीं है । क्या आप इस कथन से सहमत हैं ? कारण बताइए। 

(c) 'लोक हित मुकदमेबाजी से क्या तात्पर्य है ? मुकदमेबाजी के इस रूप के क्या प्रमुख पक्ष हैं ? साथ ही इस प्रकार की मुकदमेबाजी की परिसीमाओं पर चर्चा कीजिए।

4.(a) 'संविधानी शक्ति', 'संशोधनकारी शक्ति' और 'विधायी शक्ति' की परिभाषा कीजिए और उनके बीच विभेदन कीजिए । उदाहरण पेश कीजिए।

(b) क्या आप इस कथन से सहमत हैं कि "सभी मानव अधिकार भारत के संविधान द्वारा संरक्षित और मान्यताप्राप्त मूल अधिकार हैं।" कानूनी उपबंधों और निर्णयजन्य विधि का उल्लेख करते हुए, इस पर चर्चा कीजिए ।

(c) जैसे कि वे भारत के संविधान में दिए गए हैं, मूल कर्तव्य गिनाइए । साथ ही, कालांतर में भारत के संविधान में मूल कर्तव्यों को सम्मिलित किए जाने के पीछे के तर्काधार पर चर्चा कीजिए ।

खण्ड "B" 

5. निम्नलिखित में से प्रत्येक के उत्तर दीजिए, जो प्रत्येक लगभग 150 शब्दों में हों : 

(a) अंतर्राष्ट्रीय विधि के आरंभ को चिह्नित करने के लिए इतिहास में किसी परिशुद्ध तारीख या काल को नियत करना असंभव है क्योंकि आरंभ रिकार्ड किए इतिहास से पूर्व का है । समसामयिक अंतर्राष्ट्रीय समाज में अंतर्राष्ट्रीय विधि के इतिहास, प्रकृति, व्याप्ति और · , प्रांसगिकता का समालोचनात्मक परीक्षण कीजिए।

(b) किसी राज्य द्वारा प्रमंडवश अधिकारिता (ज्यूरिसडिक्शन) स्वत: ग्रहण कर लेने पर भी, अंतर्राष्ट्रीय विधि उस पर अत्यंत कम या शून्य परिसीमा नियत करती है। राज्य अधिकारिता' की प्रकृति और व्याप्ति (स्कोप) स्पष्ट कीजिए । 'राज्य अधिकारिता' के सिद्धांतों का परीक्षण कीजिए।

(c) "मान्यता मांगने वाली सत्ता पर, अंतर्राष्ट्रीय विधि के अधीन मान्यता मिल जाना. उस सत्ता को राज्य की विधिक हैसियत प्रदान कर देती है। मान्यता से महत्वपूर्ण विधिक प्रभाव प्राप्त किये जा रहे हैं।'' इस कथन का समालोचनापूर्व

(d) अंतर्राष्ट्रीय संधियां राज्यों या राज्य संगठनों के बीच संविदात्मक प्रकृति के करार होते हैं, जो पक्षों के बीच विधिक अधिकारों और बाध्यताओं (ऑब्लिगेशन्स) को जन्म देते हैं। इस कथन का समालोचनात्मक परीक्षण कीजिए और आधुनिक अंतर्राष्ट्रीय विधि में संधियों के बढ़ते हुए महत्व को स्पष्ट कीजिए। 

(e) आप संकल्पना 'राजनयिक उन्मुक्ति' से क्या समझते हैं ? इस संबंध में अंतर्राष्ट्रीय विधि के अधीन क्या प्रावधान प्रदान किए गए हैं ? चर्चा कीजिए।

6.(a) 'अंतर्राष्ट्रीय मानवहितवादी विधि' की संकल्पना को स्पष्ट कीजिए। इसको किस प्रकार प्राप्त किया जा सकता है ? आधुनिक अंतर्राष्ट्रीय मानवहितवादी विधि के विकास में 'हेग' और 'जेनेवा' अभिसमयो (कनवेंशन्स) की भूमिका का समालोचनापूर्वक परीक्षण कीजिए।

(b) "अनेक पहलुओं में 'ट्रिप्स' करार पारंपरिक 'गैट' उपागम से आगे निकल जाता है और अंतर्राष्ट्रीय व्यापार की विधि का और ज्यादा विकास करता है ।" बौद्धिक संपदा अधिकारों के व्यापार संबंधित पक्षों पर करारों (ट्रिप्स) की महत्वपूर्ण उपलब्धि की परीक्षा कीजिए। 

(c) 'मत्स्य क्षेत्र से क्या तात्पर्य है ? यह 'अनन्य आर्थिक क्षेत्र' से किस प्रकार भिन्न है ? क्या आप इस कथन से सहमत हैं कि 'तटवर्ती राज्य की अपने भूभागीय समुद्र के निकट महासमुद्र (हाई सी) के किसी भी क्षेत्र में जीवित संसाधनों की उत्पादकता के अनुरक्षण में विशेष रुचि होती है' । सविस्तार स्पष्ट कीजिए । 

7.(a) 'विश्व व्यापार संगठन' के उद्देश्य, संरचना और प्रकार्यण क्या हैं ? क्या डब्ल्यू.टी.ओ. पर हस्ताक्षर करना और अनुसमर्थन करना : (रैटिफाइंग) भारत की संसदीय स्वायत्तता को क्षति पहुँचाता है ? चर्चा कीजिए।  

(b) वायुक्षेत्र (एयर स्पेस) पर संप्रभुता से संबंधित अंतर्राष्ट्रीय विधि के विकास की रूपरेखा प्रस्तुत कीजिए । बाह्य अंतरिक्ष (आउटर स्पेस) के उपयोग. और दुरुपयोग के विधिक नियंत्रण की गुंजाइश का समालोचनात्मक परीक्षण कीजिए।

(c) 'मध्यक्षेप'. (इंटरवैन्शन) की परिभाषा कीजिए और उन आधारों का उल्लेख कीजिए जिनके अधीन यह न्यायोचित होता है | अंतर्राष्ट्रीय विधि के इस सिद्धांत के उल्लंघनों पर भी प्रकाश डालिए ।

8.(a) "जब प्रत्यर्पण (ऐक्स्ट्राडीशन) आरंभ हो जाता है, तब शरण (ऐसाइलम) को विराम लगता है।" टिप्पणी कीजिए । साथ ही अग्रणी केसों के उल्लेख के साथ प्रत्यर्पण के विभिन्न सिद्धांतों को स्पष्ट कीजिए ।

(b) अंतर्राष्ट्रीय विधि और राष्ट्रीय विधि (म्यूनिसिपल लौ) के बीच संबंध के संदर्भ में, विरुद्धता (अपोज़ेबिलिटी) की संकल्पना की परिभाषा कीजिए । साथ ही, भारत के विशेष उल्लेख के साथ, आधुनिक काल में, इस संकल्पना की प्रासंगिकता पर चर्चा कीजिए।

(c) समुद्र की विधि पर सं.रा. (यू.एन.) अभिसमय 1982 के अधीन 'बेस लाइन' का क्या महत्व और अर्थ है ? इसका निर्धारण किस प्रकार किया जाता है ?

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