(Download) संघ लोक सेवा आयोग सिविल सेवा - मुख्य परीक्षा विधि Paper-2 - 2018

UPSC CIVIL SEVA AYOG

संघ लोक सेवा आयोग सिविल सेवा - मुख्य परीक्षा (Download) UPSC IAS Mains Exam 2018 विधि (Paper-2)

खण्ड ‘A’

1. निम्नलिखित प्रत्येक का उत्तर लगभग 150 शब्दों में दीजिए। विधिक प्रावधानों व न्यायिक निर्णयों की सहायता से अपने उत्तर का समर्थन कीजिए 

(a) "क्या लैटिन भाषा की सूक्ति एक्टस नॉन फैसिट रियम निसी मेन्स सिट रिया' सामान्यतः और एक स्वतन्त्र सिद्धान्त के रूप में 'मेन्स रिया' का कॉमन लॉ सिद्धान्त विशेष रूप से भारतीय दण्ड संहिता के उपबन्धों के निर्वचन में प्रासंगिक है?" उपर्युक्त को विधिवेत्ताओं के मतों और न्यायिक निर्णयों के आलोक में स्पष्ट कीजिए। 

(b) नुकसानी की दूरस्थता से सम्बन्धित विधि के विकास का समालोचनात्मक परीक्षण कीजिए। नुकसानी की दूरस्थता के विनिश्चयन हेतु आप किस परीक्षण को वरीयता देते हैं और क्यों? अपने उत्तर के लिए कारण प्रस्तुत कीजिए। 

(c) अरुणा शानबाग के मामले में दी गई स्थिर राय को और अनुकम्पा-मृत्यु के सामाजिक-विधिक, चिकित्सकीय और संवैधानिक महत्व को ध्यान में रखते हुए क्या आप उच्चतम न्यायालय की संवैधानिक पीठ के कॉमन कॉज (एक पंजीकृत संगठन) बनाम भारत संघ (2018) में व्यक्त विचार को निश्चायक मानते हैं। समालोचनात्मक टिप्पणी कीजिए। 

(d) "अपकृत्य विधि का सर्वोपरि कार्य हानियों के समंजन तथा उनकी संभावित कीमत के नियतन में महत्त्वपूर्ण विनियामक भूमिका प्रदान करना है और कल्याणकारी राज्य के अभ्युदय तक अपकृत्य विधि ही पीड़ित व्यक्ति की व्याथा का उपशमन करने का एकमात्र स्रोत था।" उपर्युक्त कथन के आलोक में, अपकृत्य विधि की प्रकृति और विस्तार की विवेचना कीजिए और अग्न बाद-विधि की सहायता से अपने उत्तर की सम्मुष्टि कीजिए। साथ ही भारत में स्थिति का विवेचन कीजिए।

(e) "एक हमलावर की मृत्यु कारित करने की सीमा तक प्राइवेट प्रतिरक्षा का अधिकार अनुमान और निराधार कल्पना पर आधारित नहीं हो सकता है। अभियुक्त को निश्चित ही वास्तविक भय के अन्तर्गत होना चाहिए, कि मृत्यु अथवा गम्भीर उपहति हमले का परिणाम होगा, यदि वह अपनी प्रतिरक्षा नहीं करेगा। आशंका की विद्यमानता को अभिनिश्चित करना सदैव एक तथ्य का प्रश्न रहता है।" उपर्युक्त प्रतिपादन को विद्यमान विधिक उपबन्धों और न्यायिक निर्णयों के आलोक में स्पष्ट कीजिए। 

2. (a) "भारतीय दण्ड संहिता की धारा 300(4) उन मामलों में लागू होगी, जहाँ अपराधी का ज्ञान व्यक्ति की मृत्यु की संभाव्यता की व्यावहारिक निश्चितता के निकट होगा।" उपर्युक्त कथन को सोदाहरण समझाइए। 

(b) 'सहमति के कार्य में क्षति नहीं होती (लेटिन भाषा की सूक्ति 'बोलेंटी नॉन फिट इंजूरिया) की व्याख्या कीजिए। क्या जोखिम का ज्ञान तथा जोखिम उठाने की सहमति एक ही बात नहीं है? अपने उत्तर को न्यायिक प्रतिपादनों से समर्थित कीजिए। 

(c) पीड़ित के प्रति रेप कारित करने के सामान्य आशय से व्यक्तियों के एक समूह ने मिलकर क्रिया करने का निर्णय किया। समूह के एक से अधिक व्यक्तियों ने, सामान्य आशय के अग्रसरण में, पूर्व-नियोजित योजना के अनुसार रेप किया। समूह की एक महिला सदस्य ने समूह के कई व्यक्तियों को रेप करना सुगम बनाया। ऐसी परिस्थिति में दायित्व का मूल तत्त्व सामान्य आशय का अस्तित्व है। समूह के निम्नलिखित सदस्यों के आपराधिक दायित्व का बिनिश्चय कीजिए:

(i) जो योजना के सदस्य तो थे, पर जिन्होंने रेप में सहभाग नहीं किया था

(ii) जिन्होंने रेप किया था

(iii) अकेली महिला सदस्य, जिसने रेप को आसान करने में पूरी सुविधा दी थी 

3.(a) छः व्यक्तियों ने गांव के एक बैंक में डकैती करने का निर्णय लिया। वे बैंक-डकैती के लिए गए, लेकिन पुलिस द्वारा रोके गए। उनमें से सभी भागने लगे। पुलिस द्वारा पीछा करने पर उनमें से एक डकैत (X) ने श्रीमान् ४ को, जो उसके रास्ते में बाधा बनने का प्रयास कर रहा था, मार डाला। भारतीय दण्ड संहिता की धाराओं 391 और 396 के प्रकाश में उनमें से एक के द्वारा की गई हत्या के लिए दायित्व विनिश्चय कीजिए।

 (b) "एक स्वामी अपने सेवक द्वारा नियोजन के दौरान किए गए सभी कार्यों के लिए उत्तरदायी होता है।" इसे सामान्य रूप में और विशेष कर भारतीय परिप्रेक्ष्य में स्पष्ट कीजिए।

(c) लोक सेवकों द्वारा भ्रष्टाचार एक गम्भीर समस्या बन चुकी है। व्यापक स्तर पर भ्रष्टाचार राष्ट्र निर्माण के कार्यों की प्रगति में बाधक होता है और प्रत्येक व्यक्ति को इसको भुगतना पड़ता है। लोक सेवक की दक्षता तभी बढ़ सकेगी, जब लोक सेवक अपने दायित्व की पूर्ति सत्यता और ईमानदारी से करे। अतः ऐसे मामलों में दण्ड में नरमी बरतने का कोई भी तर्क स्वीकार करना कठिन होता है (म. प्र. राज्य बनाम शम्भू दयाल नागर (2006) sscc693)। टिप्पणी कीजिए। 

4. (a) "भारत में अभिवाक् सौदेबाजी लघुमात्र है, क्योंकि यह केवल दण्ड के मामलों में प्रयोज्य है न कि आरोप के। समान रूप से यह न्यायालय की देख-रेख में होने वाली एक प्रक्रिया है सिवाय इसके कि इसमें एक उपखण्ड पीड़ित को प्रतिकर दिलाता है।" भारतीय आपराधिक न्याय व्यवस्था में ऐसे उपबन्ध को पारित किए रहने का समालोचनात्मक विश्लेषण कीजिए। उन सुधारों को भी सुझाइए, यदि कोई है, जिन्हें आप आवश्यक समझते हैं।

(b) "एम० सी० मेहता बनाम भारत संघ में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा पूर्ण दायित्व का नियम प्रतिपादित किया जा चुका है।" यह कठोर दायित्व के नियम पर किस सीमा तक सुधार है? टिप्पणी कीजिए। 

(c) "भारतीय दण्ड संहिता की धारा 304-A के अन्तर्गत, एक चिकित्सक के आपराधिक दायित्व के निर्धारण के लिए यह सिद्ध करना आवश्यक है कि चिकित्सक के विरुद्ध की गयी शिकायत ऐसे उतावलेपन या उपेक्षा की उच्च डिग्री दर्शित करे जिससे उसकी मनोदशा ज्ञात हो, जिसे रोगी के प्रति उसकी पूर्ण उदासीनता के लिए दर्शाया जा सके। ऐसी गम्भीर उपेक्षा अकेले ही दण्डनीय है।" अद्यतन न्यायिक प्रतिपादनों के आलोक में, उपर्युक्त कथन को स्पष्ट कीजिए।

खण्ड-'B'

5. निम्नलिखित प्रत्येक का उत्तर लगभग 150 शब्दों में दीजिए। उपयुक्त विधिक उपबन्धों और निर्णीत वादों की सहायता से अपने उत्तर का समर्थन कीजिए : 

(a) यदि कतिपय वस्तुओं (सामानों) को या तो शो विन्डो या दुकान के भीतर प्रदर्शित किया जाए और उन वस्तुओं के साथ कीमत चिप्पियाँ भी हों, तो विवेचना कीजिए कि क्या यह प्रदर्शन बेचने की पेशकश है। निर्णीत वादों की सहायता से पेशकश और पेशकश का आमन्त्रण के मध्य भेद स्पष्ट कीजिए। 

(b) अनुचित प्रभाव के आधार पर एक संविदा के परिहार करने के कार्य में बादी को दो बिन्दुओं को सिद्ध करना होता है। उन बिन्दुओं और विभिन्न प्रकार के सम्बन्धों, जो अनुचित प्रभाव की उपधारणा की ओर ले जाते हैं जिससे स्वतन्त्र सहमति दूषित होती है, की व्याख्या कीजिए।  

(c) भारतीय संविदा अधिनियम, 1872 की धारा 28 विधिक कार्यवाहियों के अवरोधार्थ करारों को शून्य बनाती है। क्या इस नियम के कोई अपवाद है? सुसंगत प्रावधानों और निर्णीत वादों की सहायता से विवेचना कीजिए। 

(d) भारत में लोकहित मुकदमेबाजी (पी० आइ० एल०) कुछ समय से न केवल जिनका प्रतिनिधित्व नहीं हो सकता था और जो कमजोर थे, उनका प्रतिनिधित्व करने के लिए प्रयुक्त की गई है बल्कि अन्यों के हितों को भी आगे बढ़ाने के लिए की गई है। भारत में लोकहित मुकदमेबाजी की प्रयोज्यता, उपयोग और दुरुपयोग के सम्बन्ध में नबीन प्रवृत्तियों पर टिप्पणी कीजिए। 

(e) प्रौद्योगिकीय संरक्षण उपायों (टी० पी० एम०) के प्रस्तुतीकरण और मान्यता के बावजूद, अंकीय कॉपीराइट निरन्तर असुरक्षित और बिना गारण्टी के बना हुआ है। भारत में अंकीय कॉपीराइट के संरक्षण पर कॉपीराइट अधिनियम, 1957 के 2012 के संशोधनों के प्रभाव को स्पष्ट कीजिए। 

6.(a) "यह भली प्रकार सुस्थापित है कि यदि और जब नैराश्य होगा, संविदा स्वतः भंग हो जाएगी ...। यह दोनों में से किसी पक्षकार की पसंद या चयन पर निर्भर नहीं करता है। यह संविदा के पालन की संभावना के बस्तुतः घटित होने के प्रभाव पर निर्भर करता है।" संविदा के नैराश्य के प्रभावों की विवेचना कीजिए।

(b) "यदि कोई व्यक्ति मिथ्या व्यपदेशन करता है कि वह किसी अन्य का एजेंट है, मालिक ऐसे कार्य का अनुसमर्थन कर सकेगा यद्यपि कि वह कार्य बिना उसके प्राधिकार के किया गया था।" उपर्युक्त कथन के आलोक में, विधिमान्य अनुसमर्थन के आवश्यक तत्त्वों और उसके प्रभाव की विवेचना कीजिए। 

(c) 'संपोषणीय विकास' पारिस्थितिकी और विकास के मध्य एक संतुलनकारी संकल्पना के रूप में स्वीकार किया गया है। भारत में पर्यावरण संरक्षण सम्बन्धी कानूनों के तहत इस सिद्धान्त की मान्यता और अनुप्रयोग की विवेचना कीजिए। 

7.(a) यदि सरकार की गुप्तचर एजेंसी का एक अधिकारी गुप्त सूचनाएं देने के लिए प्रतिफल के रूप में एक करार के आधार पर एक चेक प्राप्त करता है, तो क्या परक्राम्य लिखत अधिनियम, 1881 की धारा 138 के तहत ऐसे चेक को प्रवर्तनीय कराया जा सकता है? अधिनियम की धाराओं 138 और 139 के अधीन चेककर्ता (आदेशक) के विधितः प्रवर्तनीय दायित्व के क्षेत्र-विस्तार की विवेचना कीजिए। 

(b) "ई-गवर्नेस शासन के एक ऐसे नये स्वरूप को प्रकट करती है जिसके लिए प्रौद्योगिकीय उन्नति के साथ कदम मिलाकर चलने वाली गत्यात्मक विधियों की आवश्यकता होती है।" भारत में प्रभावी ई-गवर्नेस को सुनिश्चित करने में सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 की उपयुक्तता पर टिप्पणी कीजिए। 

(c) यद्यपि सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 की धारा 89 सिविल न्यायालय में प्रस्तुत सिबिल विवादों के न्यायालय से बाहर निपटारे की व्यवस्था देती है, तथापि वैकल्पिक विवाद समाधान (ए० डी० आर०) के माध्यम से ऐसे निपटारे का प्रभाव अति कमजोर प्रतीत होता है। ए० डी० आर० पद्धतियों के माध्यम से विवादों के समाधान की असफलता के कारणों का विश्लेषण कीजिए। 

8.(a) मानक रूप संविदा के कमजोर पक्षकार का बचाव करने में न्यायालयों ने बड़ी कठिनाई पाई है, और इसलिए ऐसी संविदाओं में अन्तर्निहित शोषण की संभावना के विरुद्ध ऐसे कमजोर पक्षकार के हित की संरक्षा के लिए न्यायालयों ने कुछ तरीके विकसित किए हैं। मानक रूप संविदा में कमजोर पक्षकार को उपलब्ध संरक्षण के तरीकों को स्पष्ट कीजिए। 

(b) आपराधिक मामलों में मीडिया द्वारा विचारण, कुछ मामलों में न्यायालय का अवमान होने के अलावा, स्वतन्त्र और निष्पक्ष विचारण की संकल्पना का तिरस्कार प्रतीत होता है। मीडिया द्वारा विचार का मोटे तौर पर आपराधिक न्याय के प्रशासन पर और विशेष कर स्टेकहोल्डरों पर प्रभाव का विश्लेषण कीजिए। 

(c) "राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी ने कहा था कि वास्तविक स्वतन्त्रता का अभिप्राय कुछ के द्वारा सत्ता प्रामि नहीं है, बल्कि उसका अभिप्राय ऐसी सत्ता के दुरूपयोग पर प्रश्न चिह्न लगाने की क्षमता को प्राप्त करना है।" उपर्युक्त कथन के आलोक में, लोक प्राधिकारियों के दायित्वों का परीक्षण कीजिए और व्याख्या कीजिए कि क्या पिछले लगभग सात दशकों के दौरान उन्होंने इसका प्रभावशाली रूप से अनुपालन किया है। 

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