(आँनलाइन निःशुल्क कोचिंग) सामान्य अध्ययन पेपर - 1: भूगोल "अध्याय - भारत के पर्वत"
आँनलाइन नि:शुल्क कोचिंग - पेपर 1 (सामान्य अध्ययन)
विश्वय - भूगोल
अध्याय - भारत के पर्वत
उत्तर में हिमालय पर्वत है जिसे हिम का घर (हिम + आलय) इसकी औसत ऊंचाई 2000 मीटर है कुल लम्बाई 5000 किमी है। इसकी औसत चैड़ाई 240 किमी है तथा क्षेत्राफल लगभग 5 लाख वर्ग किमी का है।
हिमालय पर्वत श्रेणी को तीन भागों में बाँटा गया है -
(1) उत्तरी पर्वत श्रेणियाँ - भारत के उत्तर में पश्चिम से पूर्व दिशा में सिन्धु तथा ब्रह्यपुत्रा नदियों के बीच लगभग 2500 किमी लम्बा हिमालय पर्वत है। इसकी चैड़ाई 150 से 400 किमी है। हिमालय में ही विश्व की सबसे ऊंची चोटी माउंट एवरेस्ट (8850 मी.) है। वास्तव में हिमालय कोई पर्वत नहीं, बल्कि एक दूसरे के लगभग समानान्तर रूप में पै$ली हुई तीन पर्वत मालाएँ हैं। इनका संक्षिप्त उल्लेख निम्नांकित है -
(i) व्रहत हिमालय या आन्तरिक हिमालय यह हिमालय पर्वत की सबसे ऊंची श्रेणी है। इसकी औसत ऊंचाई 6000 मीतथा औसत चैड़ाई 25 किमी है। विश्व की उच्चतम चोटियाँ इस श्रेणी में स्थित है। महत्त्वपूर्ण चोटियाँ निम्नलिखित हैं-
अधिक ऊंचाई के कारण व्रहत् हिमालय सदा बर्फ़ से ढँका रहता है। अत% इसे ‘हिमाद्रि’ के नाम से पुकारा जाता है।
(ii) लघु हिमालय या मध्य हिमालय - यह व्रहत हिमालय के दक्षिण में लगभग उसके समानान्तर पूर्व-पश्चिम दिशा में विस्त्र्त है। इसकी औसत चैड़ाई 80 किमी तथा ऊंचाई 3700 से 4500 मीटर है। इसकी कई शाखाएँ हैं जिनमें पीर-पांजाल तथा धौलाधर प्रसिद्ध है। भारत के अधिकांश पर्वतीय पर्यटक स्थल जैसे - शिमला, मसूरी, डलहौजी, नैनीताल, दार्जिलिंग आदि लघु हिमालय की दक्षिणी ढलानों पर स्थित है।
(iii) बाह्य हिमालय या उप-हिमालय अथवा शिवालिक श्रेणी यह लघु हिमालय के दक्षिण में इसके समानान्तर पूर्व-पश्चिम दिशा में फ़ैली है। इसकी चैड़ाई 10.50 किमी तथा ऊंचाई 900 से 1200 मीटर तक है। यह हिमालय पर्वत श्रंखला की अंतिम श्रेणी है और इसके दक्षिण में भारत का उत्तरी मैदान स्थित है। इस श्रेणी के बीच कहीं-कहीं कुछ समतल संरचनात्मक घाटियाँ पाई जाती हैं। जिन्हें पश्चिम में दून तथा पूर्व में द्वार (दुआरा) कहते हैं, जैसे - देहरादून तथा हरिद्वार।
(2) उत्तर-पश्चिम शाखाएँ - ये शाखाएँ सिंधु नदी से हटकर उत्तर-पूर्व से दक्षिण-पश्चिम दिशा में विस्त्र्त है। इनमें हजारा, सुलेमान, बुगती, किरथर आदि सम्मिलित हैं।
(3) उत्तर-पूर्व शाखाएँ - असम के उत्तर-पूर्व में हिमालय
पर्वतमाला ब्रह्यपुत्रा नदी को पार करके दक्षिण-पश्चिम की ओर मुड़ गई है। ये हिमालय
की पूर्वी शाखाएँ हैं। उत्तर में दक्षिण की ओर इस श्रेणी की मुख्य पहाड़ियों के नाम
पटकाई, मणिपुर, मीजो आदि है। असम में इनकी एक शाखा पूर्व से पश्चिम की ओर विस्त्र्त
है। जिनकी मुख्य पहाड़ियाँ खासी, जयन्तिया, तथा लुषाई आदि हैं। लद्दाख के
उत्तर-पूर्व में काराकोरम पर्वत श्रेणी है इसे कृष्णगिरि भी कहते हैं। इसकी मध्यमान
ऊंचाई 6000 मीटर है। इसकी सबसे ऊंची चोटी का नाम ज्ञ2 अथवा गाॅडविन-आस्टिन है, जिसकी
ऊंचाई 8611 मीटर है। यह भारत की सबसे ऊंची
चोटी है।
प्रायद्वीपीय पर्वत:
1. विन्ध्याचल पर्वत
- यह पर्वतमाला में गुजरात से लेकर पूर्व उत्तर-प्रदेश तक जाती है। विन्ध्याचल पर्वत ही उत्तर व दक्षिण भारत को स्पष्ट रूप से अलग करता है। इसकी औसत ऊंचाई 200 मीटर है।
2. सतपुड़ा पर्वत
- सतपुड़ा पश्चिम में राजपीपला से आरम्भ होकर छोटा नागपुर के पठार तक विस्त्र्त है।
- महादेव और मैकाल पहाड़ियाँ भी इस पर्वतमाला का हिस्सा है। 1350 मी ऊंचा धूपगढ़ चोटी इसकी सबसे ऊंची चोटी है।
3. पूर्वी घाट
इसकी औसत ऊंचाई 615 मीटर है ओर यह श्रेणी 1300 किलोमीटर लम्बी है। इस शष्ंखला की सबसे ऊंची चोटी महेंद्रगिरि (1501 मीटर) है। पूर्वी घाट के अंतर्गत दक्षिण से उत्तर की ओर पहाड़ियों को पालकोंडा, अन्नामलाई, नावादा और षिवराय की पहाड़ियों के नाम से जाना जाता है।
4. पश्चिमी घाट या सह्याद्रि
-
इसकी औसत ऊंचाई 1200 मीटर है और यह पर्वतमाला 1600 किमी लम्बी है। इस श्रेणी में दो प्रमुख दर्रे हैं - थालघाट जो नासिक को मुम्बई से जोड़ता है और भोरघाट। तीसरा दर्रा पालघाट इस श्रेणी के दक्षिणी हिस्से को मुख्य श्रेणी से अलग करता है।
5. अरावली पर्वत
- यह राजस्थान से लेकर दिल्ली के दक्षिण पश्चिम तक विस्त्रत है। इसकी कुल लम्बाई लगभग 880 किमी है। ये विश्व के सबसे पुराने पर्वत हैं। गुरु शिखर (1722 मीटर) इनकी सबसे ऊंची चोटी है। इस पर प्रसिद्ध पर्यटन स्थल माउण्ट आबू स्थित है।
- प्रायद्वीप पर्वतों की सबसे ऊंची चोटी अन्नाईमुड़ी, अन्नामलाई पहाड़ियों में स्थित है। सुदूर-दक्षिण में काडोमम की पहाड़ियाँ हैं।
6. नीलगिरि या नीले पर्वत
- नीलगिरि की पहाड़ियाँ, पश्चिम घाट व पूर्वी घाट की मिलन स्थली है।
- नीलगिरि की सबसे ऊंची चोटी दोद्दाबेटटा है।
भारतीय नदी तंत्र:
भारतीय नदी तंत्रा का वर्तमान स्वरूप नदी विकास की एक लम्बी प्रक्रिया का परिणाम है। नदी तंत्रा के विकास के आधार पर भारतीय नदियों को दो व्रहत् भागों में बाँटा जा सकता है। ये हैं-
- हिमालय की नदिया
- प्रायद्वीपीय नदियाँ।
1. हिमालय की नदियाँ - हिमालय से तीन मुख्य नदी-तंत्रा प्रवाहित होते हैं, जिनके नाम पश्चिम से पूर्व की ओर सिन्धु, गंगा तथा ब्रह्यपुत्रा हैं। विद्वानों का विष्वास है कि ये नदियाँ हिमालय के निर्माण की सभी अवस्थाओं में बहती रहती है। ये नदियाँ बारह महीने प्रवाहित होती हैं। इसके तीन मुख्य नदी तंत्रा निम्नलिखित हैं -
(i) सिन्धु नदी तंत्रा - सिन्धु नदी का उद्गम स्थल तिब्बत (चीन) में मानसरोवर झील के पास स्थित सानोख्याब हिमनद है। इस नदी की कुल लम्बाई 2,880 किमी है, जबकि भारत से इसकी लम्बाई 709 किमी है। यह अन्तत% पाकिस्तान से होकर अरब सागर में विलीन हो जाती है। सिन्धु नदी के साथ बहने वाली सहायक नदियों में जम्मू-कश्मीर की नदियाँ हैं - गरतांग,
गोदावरी, कृष्णा तथा कावेरी प्रमुख नदियाँ हैं। पश्चिमी घाट से पश्चिम की ओर बहने वाली नदियाँ बहुत छोटी हैं। इनमें नर्मदा तथा तापी प्रमुख नदियाँ हैं। अपवाह की दष्ष्टि से प्रायद्वीपीय नदियों को दो भागों में बाँटा गया है-
(i) बंगाल की खाड़ी में गिरने वाली नदियाँ
(ii) अरब सागर में गिरने वाली नदियाँ।
(i) बंगाल की खाड़ी में गिरने वाली नदियाँ - ये सभी नदियाँ बंगाल की खाड़ी में गिरती हैं और डेल्टा बनाती है।
कावेरी दूसरी नदियों के मुकाबले कम मौसमी प्रकृति की है अर्थात् इसमें अधिक समय तक पानी रहता है। इसका कारण है कि इसका ऊपर का हिस्सा गर्मियों में दक्षिण-पश्चिमी मानसून से ओर नीचे का हिस्सा सर्दियों में लौटते हुए उत्तर-पूर्वी मानसून से जल प्राप्त करता है। यह भारत की सबसे ज्यादा प्रयोग में लायी गयी नदी है। इसकी 90.95% सिंचाई व जल-शक्ति क्षमता प्रयोग में ली जा चुकी है।
बंगाल की खाड़ी में गिरने वाली प्रमुख नदियाँ निम्नलिखित हैं:
(ii) अरब सागर में गिरने वाली नदियाँ - नर्मदा भेड़ाघाट (मध्य प्रदेश) में धुआँधार नामक झरने का निर्माण करती है। इसकी मुख्य सहायक नदियाँµहिरन, बुरनेर, बंजर, षेर, षक्कर, तवा आदि है।
- श्रावती नदी पश्चिमी घाट से निकलती है। यह प्रसिद्ध जोग या गरसोंप्पा जलप्रपात बनाती है। जो भारत में सबसे ऊंचा (289 मीटर) जलप्रपात है।
- तापी को नर्मदा की जुड़वाँ नदी के रूप में जाना जाता है। इसकी सहायक नदियाँ - पुराना, बैतूल, अरुणावती आदि है।
- लूनी को लवण नदी के नाम से भी जाना जाता है।
- ये पश्चिम की ओर बहती है तथा डेल्टा नहीं बनाती है।
प्राकृतिक वनस्पति:
वनस्पति के अन्तर्गत वे पेड़-पौधे आते हैं जो जलवायु तथा मिट्टी के प्रभावधीन एक दूसरे के सहचर्य संबंध में रहते हैं और विकसित होते हैं। भारत में अक्षत वनस्पति हिमालय, थार मरुस्थल, सुन्दरवन आदि अगम्य क्षेत्रों में पाई जाती है।
1. वनस्पति जात
2. वन
वन% वनों के प्रकार कई भौगोलिक तत्वों पर निर्भर करते हैं। जिनमें वर्षा तापमान, आर्द्रता, मिट्टी, समुद्रतल से उ$ँचाई तथा भूगर्मिक संरचना महत्त्वपूर्ण है। इस आधार पर वनों का निम्नलिखित वर्गीकरण किया जाता है।
- उष्ण कटिबंधीय सदापर्णी वन
- उष्ण कटिबंधीय पर्णपाती अथवा मानसूनी वन
- उष्ण कटिबंधीय षुष्क वन
- मरुस्थलीय वन
- डेल्टाई वन
- पर्वतीय वन वु$छ प्रमुख तथ्य
भारत में वनावरण पर्याप्त नहीं है। राष्ट्रीय वननीति के अनुसार देश के 33% भाग पर वनावरण होना चाहिए, जबकि वर्तमान में यह सिर्फ़ 23.68% ही है। लक्षद्वीप में किसी भी प्रकार का वन नहीं है, जबकि अंडमान और निकोबार द्वीप समूह में वन क्षेत्रा वाले कुल भू-क्षेत्रा का 86.93 प्रतिशत है। पंजाब और हरियाणा की अधिकतर वन खेती के लिए साफ कर लिये गये हैं और यहाँ वनों का प्रतिशत लगभग 10% ही है।
भारत की मिट्टियाँ:
मिट्टी
पृथ्वी के धरातल पर म्रदा असंघटित पदार्थों की एक परत है, जो अपक्षय और विघटन के कारकों के माध्यम से चट्टानों से बनी है। भारत की मिट्टियों का वर्गीकरण अथवा वितरण निम्न प्रकार से है-
- जलोढ़ मिट्टी
- काली मिट्टी या रेगुड़ मिट्टी
- लाल मिट्टी
- लैटरराइट मिट्टी
- पर्वतीय मिट्टी
- बलुई मिट्टी
- क्षारीय मिट्टी या लवणीय मिट्टी
- पीट एवं जैविक मिट्टी
भारत में कृषि: