(आँनलाइन निःशुल्क कोचिंग) सामान्य अध्ययन पेपर - 1: भूगोल "अध्याय - चन्द्रमा"
आँनलाइन निःशुल्क कोचिंग - पेपर 1 (सामान्य अध्ययन)
विषय - भूगोल
अध्याय - चन्द्रमा
- पृथ्वी से माध्य दूरी 3,84,365 किमी
- व्यास 3,475 किमी
- चन्द्रमा का द्रव्यमान पृथ्वी के द्रव्यमान के अनुपात में 1: 81.30
- घनत्व (पानी के सापेक्ष) 3.3464 किग्रा/मी3
- घनत्व (पृथ्वी के सापेक्ष) 0.6058
- चन्द्रमा तथा पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण बलों में अनुपात 1 रू 6
- चन्द्रमा की सतह का अदष्ष्य भाग 41%
- चन्द्रमा की पृथ्वी से अधिकतम दूरी (अपभू दूरी) 4,06,000 किमी
- चन्द्रमा की पृथ्वी से न्यूनतम दूरी (उपभू दूरी) 3,64,000 किमी
- चन्द्रमा की पृथ्वी के चारों ओर घूमने की अवधि (परिभ्रमण अवधि) 27 घंटे, 43 मिनट, 11.47 सेकण्ड
- चन्द्रमा की घूर्णन अवधि (अपने अक्ष पर) 27 दिन 7 घण्टे 43 मिनट 11.47 सेकण्ड
- चन्द्रमा पर वायुमण्डल लुप्त (Absent)
- चन्द्रमा के उच्चतम पर्वत की ऊंचाई 35,000 फीट (लीडनिट्ज पर्वत जो कि चन्द्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर स्थित है)
- चन्द्रमा के प्रकाष को पृथ्वी तक पहुँचने में लगा समय 1.3 सेकण्ड
- चन्द्रमा की अपनी धुरी पर घूमने की गति 2287 किमी प्रति घण्टा
चन्द्रमा की पृथ्वी के चारों ओर घूमने की गति (कक्षीय 3,680 किमी प्रति घण्टा चाल)
ग्रहण:
- किसी खगोलीय पिण्ड का अंधकारमय हो जाना ग्रहण कहलाता है।
ग्रहण दो प्रकार के होते हैं-
- चन्द्र-ग्रहण और
- सूर्य-ग्रहण
चन्द्रग्रहण
- जब पृथ्वी, सूर्य व चन्द्रमा के बीच में आ जाती है तो पृथ्वी की छाया चन्द्रमा पर पड़ती है, इस प्रकार चन्द्रग्रहण होता है।
- यह पूर्णिमा के दिन होता है।
- चन्द्रग्रहण प्रत्येक पूर्णिमा को नहीं होता क्योंकि, चन्द्रमा, पृथ्वी एवं सूर्य प्रत्येक पूर्णिमा को एक सीधी रेखा में नहीं आते हैं।
- चन्द्रमग्रहण अधिकतम 1 घण्टे 40 मिनट तक होता है।
सूर्यग्रहण
- चन्द्रमा के पृथ्वी और सूर्य के बीच में आने पर सूर्यग्रहण होता है।
- सूर्यग्रहण केवल अमावस्या के दिन होता है।
-
सूर्यग्रहण प्रत्येक अमावस्या को नहीं होता, क्योंकि चन्द्रमा की कक्षा में पृथ्वी की सूर्य की ओर कक्षा के सापेक्ष 5° झुकाव है, इसी कारण चन्द्रमा की छाया प्रतिमाह पृथ्वी पर नहीं पड़ती है और सूर्यग्रहण नहीं होता।
- पूर्ण सूर्यग्रहण अधिकतम 7 मिनट 40 सेकण्ड तक हो सकता है।
ज्वार भाटा
समुद्री जल दिन में दो बार निष्चित अंतराल पर ऊपर उठता तथा नीचे गिरता है। इस प्रक्रिया को ज्वार भाटा कहते हैं। ज्वार-भाटा की उत्पत्ति सूर्य एवं चन्द्रमा की गुरूत्वाकर्षण शक्ति के कारण होती है चन्द्रमा की ज्वारोत्पादक शक्ति सूर्य से दो गुना ज्यादा होती है क्योंकि सूर्य पृथ्वी से चन्द्रमा के मुकाबले अत्यधिक दूर है।
दो ज्वार भाटा के बीच का अन्तराल 12 घण्टे 26 मिनट होता है। पृथ्वी अपनी दूरी पर 24 घण्टे में घूमती है अतः प्रत्येक स्थान पर ज्वार 12 घण्टे बाद उत्पन्न होना चाहिए परन्तु ऐसा नहीं होता। इसका कारण पृथ्वी का एक घूर्णन पूरा होने तक चन्द्रमा भी अपने पथ पर आगे बढ़ जाता है। चन्द्रमा 1/20½ दिन में पृथ्वी का एक चक्कर पूरा करता है। 24 घण्टे में यह पृथ्वी का 1ध्20 भाग तय कर पाता है, इसलिए पृथ्वी के उस स्थान को चन्द्रमा के समक्ष पहुँचने में 52 मिनट का अतिरिक्त समय लग जाता है। अतः प्रत्येक स्थान पर 12 घण्टे 26 मिबाद दूसरा ज्वार आता है।
ज्वार भाटा दो प्रकार के होते हैं -
- वृहत या दीर्ध ज्वार
- लघु ज्वार
दीर्घ ज्वार - पूर्णिमा एवं अमावस्या वे$ दिन दीर्घ ज्वार की उत्पत्ति होती है क्योंकि इस दिन सूर्य, चन्द्रमा और पष्थ्वी तीनोंएक सीध में होते हैं।
लघु ज्वार - कृष्ण व षुक्ल पक्ष की अष्टमी को लघु ज्वार की उत्पत्ति होती है क्योंकि इस दिन सूर्य, चन्द्रमा, और पष्थ्वी तीनों कोण की स्थिति में होती है।