अध्ययन सामग्री: भारत का भूगोल "बाढ़"


अध्ययन सामग्री:  भारत का भूगोल


बाढ़

बाढ़ तथा सूखा मानसूनी जलवायु की विशेषता है । अतिवृष्टि बाढ़ को तथा अनावृष्टि सूखा को जन्म देती है । भारतीय मौसम विज्ञान विभाग के अनुसार ‘‘जब नदी का जलस्तर खतरे के निशान से ऊपर प्रवाहित होने लगता है, तो बाढ़ की स्थिति उत्पन्न होती है ।’’
भौगोलिक वितरण की दृष्टि से भारत के बाढ़ प्रभावित क्षेत्र को चार प्रमुख वर्गों में विभाजित किया गया है -
1. उत्तर-पूर्वी भारत - इस क्षेत्र में ब्रह्मपुत्र एवं उसकी सहायक नदियों के जलस्तर में प्रतिवर्ष भारी उछाल आता है । इस क्षेत्र में बाढ़ की सर्वाधिक गहनता असम में होती है ।
2. पूर्वी भारत - इसके अंतर्गत पूर्वी उत्तरप्रदेश, बिहार तथा पश्चिम बंगाल की नदियों में आने वाले बाढ़ को रखा गया है । इस क्षेत्र में बाढ़ के लिए मुख्य उत्तरदायी नदियाँ - गंगा, कोसी, दामोदर, राप्ती, गंडक, घाघरा, सोन, पुनपुन, कमला एवं वलान आदि हैं ।
3. पूर्वी तटीय प्रदेश - पूर्वी तट पर स्थित आन्ध्र प्रदेश तथा तमिलनाडु के तट चक्रवातीय वर्षा के कारण बाढ़ की चपेट में आ जाते हैं । इसके अलावा ज्वारीय तरंग तथा गोदावरी एवं कृष्णा नदी के जल स्तर में वृद्धि भी बाढ़ की समस्या उत्पन्न करती है ।
4. पश्चिमी भारत - यहाँ बाढ़ की आवृत्ति बहुत कम होती है । बाढ़ का मुख्य कारण अच्छे मानसून से भारी वर्षा का होना है । पंजाब में रावी, चिनाव और सतलज में बाढ़ की संभावना रहती है । नर्मदा तथा ताप्ती का प्रभाव गुजरात में अनुभव किया जाता है ।

बाढ़ के कारण

1. अनिश्चित तथा भारी मानसूनी वर्षा ।
2. चक्रवात व तेज पवन ।
3. मैदानी भारत में नदी घाटी के उथले तथा विस्तृत होने से तेजी से जल का फेलाव ।
4. नदियों के टेढ़े-मेढ़े मार्ग तथा उनका मार्ग परिवर्तन भी बाढ़ लाता है ।
5. स्रोत क्षेत्र में तीव्र ढ़ाल का होना ।
6. नदी स्रोत क्षेत्र से वनों की कटाई जल बहाव को तीव्र करता है, जो मैदानी भाग में आकर फैल जाता है ।
7. नदी की तली में अपरदित पदार्थों का जमाव इसकी जल धारण की क्षमता को कम कर देता है । अतः अतिरिक्त पानी बाढ़ लाता है ।
8. ग्रीष्मकाल में हिम का पिघलना ।
9. नदी तटबन्ध का टूट जाना ।
10. अवैज्ञानिक नियोजन भी बाढ़ का प्रमुख कारण है । कई बाढ़ग्रस्त नदियों पर बाँध बनाकर एक क्षेत्र को तो बचा लिया जाता है । पर दूसरे क्षेत्र में यह जल अपना प्रभाव दिखाता है ।

बाढ़ का प्रभाव

1. मानव तथा पशु सम्पत्ति का नाश ।
2. खाद्य एवं चारे की कमी तथा फसलों की बर्बादी ।
3. मृदा अपरदन ।
4. कंकड़-पत्थर का उपजाऊ भूमि पर जमाव ।
5. यातायत तथा संचार व्यवस्था का ठप्प होना ।
6. आवास की समस्या ।
7. जल-जमाव की समस्या ।
8. महामारी व अन्य बीमारी फैलने की आशंका ।
9. जल-प्रदूषण, लवणता की समस्या व पेयजल की समस्या, तथा
10. सम्पत्ति की बर्बादी, आदि ।

बाढ़ नियंत्रण के उपाय एवं सुझाव

बाढ़ भारत की एक जटिल एवं दीर्घकालीन समस्या है, जिससे प्रतिवर्ष करोड़ों की सम्पत्ति की बर्बादी एवं जान-माल का नुकसान होता है । अतः इस प्राकृतिक आपदा पर नियंत्रण हेतु कई कदम उठाये गए हैं-

संरचनात्मक नीतियाँ

1. 1954 में राष्ट्रीय बाढ़ नियंत्रण बोर्ड की स्थापना ।
2. दीर्घकालीन बहुउद्देशीय योजना का निर्माण, यथा - दामोदर घाटी परियोजना, भाखड़ा-नांगल परियोजना, नागार्जुन सागर बांध, हीराकुंड बांध आदि ।
3. भूमि उपयोग पर नियंत्रण ।
4. वनों की कटाई पर रोक, वनों का वर्गीकरण एवं वनीकरण ।
5. बाढ़ प्रतिरोधी फसल तथा बीज संबंधी अनुसंधान ।
6. बाढ़ में मत्स्य-पालन ।
7. मवेशियों का उचित प्रबंध ।
8. वैज्ञानिक तरीके से सिंचाई पर बल ।

गैर संरचनातमक नीतियाँ

1. आपदा से रक्षा के लिए कानून ।
2. बीमा सुविधा (फसल एवं मवेशियों के लिए) ।
3. सस्ते लघु ऋण की योजना ।
4. पंचायती राज संस्थानों की क्षमता तथा शक्ति का विस्तार ।
5. सूचना, शिक्षा व संचार व्यवस्था पर बल ।
6. आपदा सहन करने की क्षमता का पता लगाकर प्राथमिकता के आधार पर राहत कार्यक्रम (सरकारी तथा निजी संगठनों द्वारा)
7. उपयुक्त चेतावनी प्रणाली का प्रयोग ।
भारत सरकार के कृषि मंत्रालय ने ‘‘आपदा तैयारी के संबंध में सामूहिक जागरूकता’’ नामक परियोजना प्रायोजित की है । 1990-2000 के दशक को प्राकृतिक आपदा में कमी लाने के अन्तर्राष्ट्रीय दशक के रूप में घोषित किया गया था ।
आठवीं पंचवर्षीय योजना में बाढ़ की समस्या के समाधान हेतु एक नया दृष्टिकोण अपनाया गया। इनमें दो महत्वपूर्ण नीतियाँ थीं -
(1) अवरोधक बाँध नीति (Check Dam Policy)
(2) जलग्रहण क्षेत्र विकास नीति (Catchment Areas Dev. Policy)
अतः हम देखते हैं कि स्वतंत्रता के बाद से ही बाढ़ नियंत्रण की दिशा में काफी प्रयास किए जा रहे हैं । इसके बावजूद इस समस्या से स्थायी छुटकारे के लिए एक दीर्घकालीन नीति-निर्माण की आवश्यकता है। बाढ़ को नियंत्रित करने के प्रयास के साथ-साथ बाढ़ को एक अनिवार्य परिस्थितिकी के रूप में देखने की आवश्यकता है । भारतीय किसान बाढ़ की आपदाओं को झेलने के लिए तैयार रहता है, क्योंकि इसके बदले में उसे हर साल उपजाऊ मिट्टी मिलती है जिस पर वह कम से कम उर्वरक का प्रयोग करके भी अच्छी फसल उपजा लेता है।

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