अध्ययन सामग्री : भारत का भूगोल "जनसंख्या"
अध्ययन सामग्री भारत का भूगोल
जनसंख्या
सन् 1872 में भारत की पहली जनगणना हुई थी । फिर 1881 के पश्चात् हर दशक के बाद
लगातार भारत में जनगणना हो रही है । मार्च को निर्देश तिथि माना गया ।आज़ादी के बाद
अब तक भारत में जन्म दर में लगातार वृद्धि हो रही है और उसी अनुपात में मृत्यु दर
में भी कमी हो रही है । यही कारण है कि भारत की जनसंख्या तेजी से बढ़ रही है ।
भारत में जनसंख्या वृद्धि को चार चरणों में देखा जा सकता है:-
(1) प्रथम चरण (1891 से 1921): प्रथम चरण के इन 30 वर्षों में जनसंख्या में
वृद्धि 0.19 प्रतिशत प्रतिवर्ष की दर से हुई, जो नगण्य थी । इसका कारण जन्म और
मृत्यु दर का लगभग बराबर होना था । इस चरण में भारतीय जनसंख्या में प्रथम संक्रमण
के लक्षण स्पष्ट हुए ।
(2) द्वितीय चरण (1921 से 1951): द्वितीय चरण के 30 वर्षों में जनसंख्या वृद्धि
1.22 प्रतिशत प्रतिवर्ष की दर से हुई, जो बहुत अधिक नहीं थी । इस वृद्धि का कारण यह
था कि मृत्यु दर में कमी हुई और यह 49 व्यक्ति/हजार से घटकर 27 व्यक्ति/हजार हो गई
। महामारियों पर नियंत्रण पाने के कारण मृत्यु-दर में कमी आयी थी ।
(3) तृतीय चरण (1951 से 1981): आजादी के बाद के इन 30 वर्षों में 2.14 प्रतिशत
प्रतिवर्ष की दर से जनसंख्या में 32.2 करोड़ की रिकार्ड वृद्धि हुई । यह द्वितीय
चरण की वृद्धि दर से लगभग दुगुनी थी । इसका कारण यह था कि इस दौरान जन्म दर में
नाममात्र की कमी आई जबकि चिकित्सा क्षेत्र में नई-नई सुविधाओं के कारण मृत्यु-दर
घटकर 15 व्यक्ति/हजार हो गई । इसके परिणामस्वरूप इस अवधि में देश में
जनसंख्या-विस्फोट हुआ ।
(4) चतुर्थ चरण (1981 से 2001): जनसंख्या नियंत्रण संबंधी विभिन्न उपायों, नीतियों,
षिक्षा के विकास तथा स्वास्थ्य सुविधाओं में विस्तार के फलस्वरूप इस अवधी में
जनसंख्या वृद्धि की दर में थोड़ी गिरावट आई । 1981-91 के दोरान यह दर 24.7 से घरकर
23.5 तथा 2001 में 21.3: हो गई ।1991-2001 के दौरान बिहार में सबसे अधिक जनसंख्या
वृद्धि दर रिकार्ड की गई, जो तथ्यतः 23.4: से बढ़कर 28.4: हो गई ।
केरल, तमिलनाडु, कर्नाटक, महाराष्ट्र, आन्ध्र प्रदेश और हिमाचल प्रदेश के
जन्म एवं मृत्यु दर के आंकड़ों से स्पष्ट होता है कि इन राज्यों में जन्म-दर 30
व्यक्ति/हजार से कम है । इस प्रकार ये राज्य जनसांख्यिक संक्रमण के तीसरे चरण में
पहुंच चुके हैं । दूसरी ओर उत्तर प्रदेश, राजस्थान, हरियाणा, बिहार और मध्य प्रदेश
में जन्म-दर अभी भी बहुत ज्यादा है । इन राज्यों में हमारी देश की कुल आबादी का 44:
भाग है ।
जनसंख्या घनत्व
प्रति इकाई क्षेत्रफल (वर्ग कि.मी. या एक हेक्टेयर) में लोगों की संख्या को
जनसंख्या-घनत्व कहते हैं । 1901 की जनगणना में जनसंख्या-घनत्व मात्र 77 व्यक्ति/वर्ग
कि.मी. था, जो 1991 तक बढ़कर 267 व्यक्ति/वर्ग कि.मी. हो गया । 2001 की जनगणना में
जनसंख्या घनत्व बढ़कर 324 व्यक्ति प्रति वर्ग कि.मी. हो गया है, जो विगत दस वर्र्षों
में 57 व्यक्ति प्रति वर्ग कि.मी. की वृद्धि दर्शाता है ।
प0 बंगाल का घनत्व सबसे अधिक (1904) है । बिहार का दूसरा स्थान (880) है । भारतीय
जनसंख्या की यह एक महत्वपूर्ण विशेषता है कि 1921 ई0 से जनसंख्या-घनत्व लगातार बढ़
रहा है, क्योंकि जनसंख्या में वृद्धि तो हो रही है लेकिन भारत के भौगोलिक क्षेत्रफल
में कोई विस्तार नहीं हो रहा है ।
जनसंख्या-घनत्व में विभिन्नता - भारत के विभिन्न क्षेत्रों में जनसंख्या घनत्व
भिन्न-भिन्न है । राज्यों एवं केन्द्रशासित प्रदेशों में जनसंख्या-घनत्व दिल्ली में
अधिकतम (9,294) और अरुणाचल प्रदेश में न्यूनतम (13) है। देश के पर्वतीय, जंगली एवं
शुष्क प्रदेशों में जनसंख्या-घनत्व साधारणतः कम है, जो विशेषकर उत्तर-पूर्वी राज्यों,
जम्मू-कश्मीर, हिमाचल प्रदेश जैसे हिमालय प्रदेश के राज्यों और राजस्थान में
दृष्टिगोचर होता है ।
भारत के मध्य-भाग में जनसंख्या का घनत्व मध्यम है । मध्य प्रदेश, उड़ीसा, गुजरात,
कर्नाटक, आन्ध्र प्रदेश और महाराष्ट्र ऐसे ही राज्य हैं । तमिलनाडु तथा केरल जैसे
तटवर्ती राज्यों और उत्तरी मैदानी प्रदेश के राज्यों में जनसंख्या का घनत्व अधिक है
। हरियाणा से एक ओर प0 बंगाल की ओर बढ़ने तथा दूसरी ओर पंजाब की ओर बढ़ने पर
जनसंख्या का घनत्व बढ़ने लगता है ।जनसंख्या-घनत्व में अंतर के कारण - किसी क्षेत्र
में जनसंख्या घनत्व की स्थिति उस क्षेत्र की भू-आकृति, जलवायु, जल-आपूर्ति, मिट्टी
की उर्वरता, कृषि उत्पादन तथा अन्य प्राकृतिक संसाधनों की उपलब्धता के साथ-साथ वहाँ
के आर्थिक विकास से जुड़ी होती है ।
साथ ही, जनसंख्या का घनत्व किसी क्षेत्र के ऐतिहासिक, सामाजिक, राजनीतिक एवं जन
सांख्यिकीय तत्वों से भी प्रभावित होता है । एक प्रमाणित सत्य है कि अधिक उर्वरता
वाले और औद्योगिक विकास वाले क्षेत्रों में जनसंख्या घनत्व अधिक होता है । भारत में
जनसंख्या-घनत्व सबसे ज्यादा उन प्रदेशों में है, जहाँ की मिट्टी उर्वर है, नमी
पर्याप्त है, समतल स्थलाकृति है और जलवायु अच्छी है । इस प्रकार, संपूर्ण गंगा-घाटी
मैदान, तमिलनाडु, केरल और महाराष्ट्र के तटवर्ती प्रदेशों में; जहाँ कृषि संसाधन
विकसित हैं, जनसंख्या का घनत्व सबसे ज्यादा है।
इनके अलावा जिन क्षेत्रों में खनिज संसाधन उपलब्ध हैं, औद्योगिक विकास हुआ है और जहाँ
रोजगार के अवसर हैं, वहाँ भी जनसंख्या का घनत्व अधिक है, जैसे दिल्ली, कलकत्ता, आदि
। दूसरी ओर, खराब कृषि-संसाधन, कम नमी और उबड़-खाबड़ भूमि वाले क्षेत्र में
जनसंख्या-घनत्व विरल है । इसलिए राजस्थान और गुजरात के शुष्क प्रदेशों में,
उत्तर-पूर्वी राज्यों के रूखे जलवायु और असमतल तराई वाले उत्तर-पूर्वी राज्यों के
रूखे जलवायु और असमतल तराई वाले प्रदेशों में जनसंख्या घनत्व न्यूनतम है ।
लिंग-अनुपात -
उल्लेखनीय है कि 1901 से लिंग अनुपात में लगातार गिरावट आई है । अपवादस्वरूप
केवल 1981 में यह अनुपात 1971 के 930 से बढ़कर 934 तथा 2001 में 1991 के 927 की
तुलना में 933 हुआ है । पंजाब, हरियाणा, दिल्ली, गुजरात तथा महाराष्ट्र जैसे विकसित
राज्यों में यह अनुपात 900 से भी कम की चिंताजनक स्थिति तक पहुँच गया है ।
केरल एकमात्र ऐसा राज्य है, जहाँ 1000 पुरुषों के अनुपात में 1058 स्त्रियाँ हैं ।
शहरी-ग्रामीण संरचना (जनसंख्या)
शहरी क्षेत्रों में तीव्र औद्योगिकीकरण के कारण रोजगार के बढ़ते अवसरों तथा शिक्षा एवं स्वास्थ्य की बेहतर सुविधा के कारण ग्रामीण जनसंख्या का शहरों की ओर पलायन हो रहा है। फिर भी, विशाल ग्रामीण जनसंख्या यह स्पष्ट करती है कि अभी भी भारतीय अर्थव्यवस्था मुख्यतः कृषि पर आधारित है । 10 लाख से अधिक आबादी वाले नगर (शहर समूह) विकसित देशों की तुलना में भारत में नगरीकरण बहुत कम हुआ है । भारत में तीन सबसे विकसित औद्योगिक राज्यों - महाराष्ट्र, गुजरात एवं तमिलनाडु में देश की 30: जनसंख्या बसती है ।
शहरी - प्रदेश
देश के प्रमुख शहरी क्षेत्र निम्नलिखित हैं:-
(1) उत्तरी प्रदेश:- इसमें गंगा-घाटी के पश्चिम में पंजाब से पूरब में प0 बंगाल तक
के उर्वर क्षेत्र आते हैं । इस प्रदेश की बहुत बड़ी जनसंख्या कृषि-कार्यों में लगी
है । किंतु, साथ ही इन प्रदेशों में बड़ी संख्या में उद्योग हैं, जो यातायात
व्यवस्था से अच्छी तरह से एक-दूसरे से जुड़े हैं । इसलिए दूसरे राज्यों से भी लोग
आकर्षित होकर इन प्रदेशों में आते हैं ।
(2) बंबई-अहमदाबाद प्रदेश:- यह प्रदेश महाराष्ट्र, गुजरात और मध्य प्रदेश राज्यों
में पड़ता है । यह प्रदेश बहुत अधिक औद्योगीकृत है । इस क्षेत्र में नगरीकरण का
मुख्य कारण ग्रामीण क्षेत्रों से लोगों का यहाँ पलायन है ।
(3) दक्षिणी प्रदेश:- इसके अंतर्गत तमिलनाडु, केरल, आन्ध्र प्रदेश और कर्नाटक राज्य
आते हैं। इस क्षेत्र में कई औद्योगिक केन्द्रों के साथ-साथ अनेक बड़े-बड़े बागान तथा
धार्मिक केन्द्र भी हैं ।
(4) दिल्ली एवं आसपास के क्षेत्र:- इसमें दिल्ली के साथ-साथ उसके आसपास के औद्योगिक
शहर फरीदाबाद, गाजियाबाद, मेरठ, मोदीनगर, सोनीपत, लुधियाना, अमृतसर, चंडीगढ़ आदि आते
हैं ।
(5) ऊपरी कृष्णा नदी प्रदेश :- इस प्रदेश में खनिज भंडार एवं जल विद्युत परियोजनाएँ
हैं, जिसके कारण यह एक विकसित औद्योगिक क्षेत्र बन गया है ।
जनजातीय जनसंख्या -
जनजातीय समुदाय मुख्यतः पहाड़ी और जंगली क्षेत्रों में केन्द्रित है, जहाँ स्थायी
कृषि नहीं की जा सकती । उनकी जीवन शैली उनके स्थानीय पर्यावरण के आवश्यकतानुसार है
। उदाहरणस्वरूप, वे खाद्य-संग्रह, शिकार, मछली मारना तथा स्थानान्तरित कृषि करते
हैं ।
भारत में कुल 60 जनजातीय समुदाय हैं, जो मुख्यतः तीन प्रदेशों में केन्द्रित हैं:-
(1) उत्तर-पूर्वी प्रदेश:- इसमें असम, मेघालय, मिजोरम, अरुणाचल प्रदेश, नागालैंड,
मणिपुर और त्रिपुरा राज्य शामिल हैं । इस प्रदेश की प्रमुख जनजातियाँ खासी, गारो,
जैयन्तिया, नागा, लुशाई, कूकी, अंगामी, मिजो, सेमा तथा लोथा आदि हैं ।
(2) केन्द्रीय प्रदेश:- इसमें मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, गुजरात, राजस्थान, उड़ीसा
बिहार और उत्तराखण्ड के जंगली और पहाड़ी क्षेत्र आते हैं । इस प्रदेश की प्रमुख
जनजातियाँ संथाल, भील, गोंड, मुरिया, कोल, मीणा, मुंडा, आदिवासी तथा भुईयाँ आदि हैं
।
(3) दक्षिणी प्रदेश:- इसमें महाराष्ट्र, आन्ध्र प्रदेश, तमिलनाडु, कर्नाटक और केरल
राज्य आते हैं। यह प्रदेश भारत की कुछ प्राचीनतम जनजातियों का निवास-स्थान है । इस
प्रदेश की प्रमुख जनजातियाँ कनिकर, टोडा, इस्ला, युर्वा तथा पानियन आदि हैं ।
धार्मिक संरचना (जनसंख्या)
भारत के प्रमुख धार्मिक समुदाय हिन्दू, मुस्लिम, इसाई, सिख, बौद्ध एवं जैन हैं ।
भारत के अन्य धार्मिक समुदाय यहूदी, पारसी एवं जनजातीय संप्रदाय हैं ।भारत के बाहरी
एवं कुछ अंदरूनी हिस्सों को छोड़कर हिन्दू धर्म भारत के हर क्षेत्र में प्रचलित है
। उड़ीसा के कुछ जिलों में मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश एवं हिमाचल प्रदेश के
उप-हिमालयी जिलों में हिन्दू-जनसंख्या 95: और उससे भी अधिक है । लेकिन पश्चिमी तट
के कुछ जिलों में हिन्दू जनसंख्या 70: या 50: से भी नीचे है ।
पंजाब के लुधियाना, अमृतसर, फिरोजपुर, गुरदासपुर, कपूरथला, भटिंडा और पटियाला
जिलों में हिन्दू जनसंख्या सिख जनसंख्या से कम है । कश्मीर की घाटियों में हिन्दू
आबादी मुस्लिम आबादी से कम है । उत्तर-पूर्वी भारत के जनजातिय क्षेत्रों में हिन्दू
आबादी से अधिक इसाई आबादी है ।मुस्लिम सम्प्रदाय के लोग भारत में अल्पसंख्यक वर्ग
में आते हैं । ये मुख्यतः कश्मीर-घाटी, ऊपरी गंगा मैदान के कुछ क्षेत्रों, पं0
बंगाल और बिहार के कुछ जिलों तथा हरियाणाा, राजस्थान, गुजरात, मध्य प्रदेश, आन्ध्र
प्रदेश और केरल के कुछ जिलों में केन्द्रित हैं ।
भारत की कुल 1/3 इसाई आबादी केरल में है । इसाई आबादी वाले अन्य क्षेत्र गोवा,
तमिलनाडु तथा उड़ीसा, बिहार एवं उत्तर-पूर्वी राज्यों के जनजातीय जिले हैं । सिख
भारत में हर जगह रहते हैं । लेकिन उनकी अधिकांश आबादी पंजाब, पंजाब से सटे हरियाणा
के जिले, उत्तर प्रदेश का तराई क्षेत्र एवं राजस्थान के गंगानगर, अलवर तथा भरतपुर
जिलों में केन्द्रित है ।
भारत के 80: बौद्ध मतावलंबी केवल महाराष्ट्र में ही रहते हैं । इनमें से अधिकांश
नव-बौद्ध हैं, जिन्होंने डा0 भीमराव आंबेडकर के प्रभाव से बड़ी संख्या में
बौद्ध-धर्म को स्वीकार कर लिया था। परंपरागत बौद्ध मुख्यतः लद्दाख, हिमाचल प्रदेश,
सिक्किम, अरुणाचल प्रदेश और त्रिपुरा में बसे हुए हैं ।
जैन मुख्यतः महाराष्ट्र, गुजरात एवं राजस्थान में हैं ।
पारसी भारत का सबसे छोटा धार्मिक समुदाय है, जिसके मतावलंबी मुख्यतः पश्चिमी भारत
में मिलते हैं ।
भाषाई संरचना (जनसंख्या)
भारत के लोग कई भाषाओं एवं बोलियों का प्रयोग करते हैं, जो उनकी क्षेत्रीय पहचान
को बनाये रखती है । एक आंकलन के अनुसार भारत में 1,652 प्रकार की भाषायें बोली जाती
हैं । लेकिन देश की 97: आबादी इनमें से केवल 23 भाषायें ही बोलती है । इन 23 भाषाओं
में से 18 भाषाओं को राष्ट्रीय भाषा के रूप में संविधान की 8वीं अनुसूची में शामिल
किया गया है, जो इस प्रकार हैं:- असमी, बंगाली, गुजराती, हिन्दी, कन्नड़, कश्मीरी,
कौंकणी, मलयालम, मणिपुरी, मराठी, नेपाली, उडि़या, पंजाबी, संस्कृत, सिन्धी, तमिल,
तेलुगु और उर्दू ।
भारत में प्रचलित भाषाओं को चार भाषाई परिवारों में बाँटा गया है:- (1) ऑस्ट्रिक
परिवार (निशाद); (2) द्रविड़ परिवार (द्रविड़); (3) चीनी-तिब्बती परिवार (किरात);
(4) भारोपिय परिवार (इंडो-आर्य)।भारत की 50: से अधिक जनसंख्या इंडो-आर्यन भाषा बोलती
है, जिसमें हिन्दी, बंगाली, मराठी, गुजराती, पंजाबी, उडि़या, असमी, कश्मीरी, सिन्धी,
कोंकणी, नेपाली, उर्दू एवं संस्कृत भाषायें आती हैं । ये भाषायें मुख्यतः गंगा के
मैदानी भागों में प्रचलित हैं । साथ ही, इनका विस्तार प्रायद्वीपीय पठारी प्रदेश
में भी कोंकण क्षेत्र तक है ।
प्रमुख द्रविड़ भाषायें तमिल, तलुगु, कन्नड़ और मलयालम हैं, जो मुख्यतः पठारी
प्रदेशों एवं उसके निकटवर्ती तटवर्ती क्षेत्रों में बोली जाती हैं ।
चीनी-तिब्बती परिवार की भाषाओं में तिब्बत-हिमालयन (भुटिया, लद्दाखी, कनौरी),
उत्तरी-असम (मीरी, अभोर) तथा असम-म्यानमार (बांडो, मणिपुरी, त्रिपुरी) भाषायें
शामिल हैं ।
आस्ट्रियन परिवार (संथाली, निकोबारी) की भाषायें बहुत कम लोगों में प्रचलित हैं ।
भारत में राज्यों का निर्धारण मुख्यतः भाषाई आधार पर किया गया है । लेकिन, राज्य की
सीमायें अनिवार्यतः भाषाओं की सीमा नहीं हैं, बल्कि ये संक्रमण क्षेत्र के परिचायक
हैं, जहाँ एक भाषा धीरे-धीरे दूसरी भाषा के लिए स्थान बनाती है ।