अध्ययन सामग्री: भारत का भूगोल "मिट्टी की उर्वरता एवं उर्वरक"
अध्ययन सामग्री: भारत का भूगोल
मिट्टी की उर्वरता एवं उर्वरक
पौधों का पोषण और मिट्टी की उर्वरता -
कार्बन (C), हाइड्रोजन(H), ऑक्सीजन (O), नाइट्रोजन (N) फॉस्फोरस ;(P), सलफर (S), पोटेशियम (K), कैल्सियम (Ca), मैगनीज (Mg), लोहा (Fe), मैंगनीज (Mn), जिंक (Zn), तांबा(Cu), मोलिबेडिनम (Mb), बोरोन ;(B), और क्लोरीन(CL), ये 16 तत्व पौधों के विकास के लिए आवश्यक हैं । इसलिए इन्हें ‘आवश्यक तत्व’ कहा जाता है । इनमें से किसी की भी कमी से पौधों के विकास में बाधा हो सकती है। इस कमी को इन्हें मिट्टी में आवश्यक मात्रा में मिलाकर पूरा किया जा सकता है । इनकी अधिकता भी पौधों के लिए हानिकारक होती है ।
पौधे हवा के कार्बनडाइऑक्साइड से कार्बन, पानी से ऑक्सीजन और हाइड्रोजन और शेष अन्य तत्व मिट्टी से प्राप्त करते हैं । पौधों को आवश्यकतानुसार जिन पोषक तत्वों की अधिक जरूरत होती है, उन्हें वृहत-पोषक तत्व कहते हैं । लोहा, मैंगनीज, तांबा, जिंक, बोरोन, मोलिबोडिम तथा क्लोरीन लघु-पोषक तत्व हैं । शेष अन्य आवश्यक तत्व बृहत-पोषक तत्व कहलाते हैं । लगातार कृषि करने से मिट्टी में पोषक तत्वों की कमी हो जाती है, जिससे उर्वरता तथा उत्पादन दोनों कम हो जाता है । इसे बनाये रखने और बढ़ाने के मुख्यतः दो तरीके हैं:- (i) कार्बनिक तत्वों को डालकर तथा (ii) उर्वरकों का प्रयोग करके ।
प्राकृतिक खाद -
प्राकृतिक खाद मिट्टी के भौतिक विकास तथा उसमें ह्यूमस की वृद्धि के लिए डाला जाता है । यह मुख्यतः जंतुओं के अवशेषों तथा वनस्पतियों से बनता है । इसे डालकर मिट्टी में रहने वाले लाभकारी सूक्ष्म जीवों को जीवित रखा जाता है और कृषि से होने वाले भूमि की उर्वरता के हृास को पूरा किया जाता है । इस प्रकार ये मिट्टियों में पौधों के लिए सभी आवश्यक तत्वों की आपूर्ति करते हैं ।
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खलिहान वाले खाद:-
यह भारत में सबसे ज्यादा प्रचलित और सबसे अधिक पोषण वाला खाद है । यह गोबर, गोशालों के अवशेषों तथा पशुचारों के अवशेषों से बना होता है । इस खाद का महत्व इसमें पाये जाने वाले आवश्यक पोषक तत्वों के साथ-साथ इन कारणों से भी है:- (i) यह मिट्टी की जोताई तथा रंघ्रता को बढ़ाता है; (ii) यह मिट्टी की नमी बनाये रखने की क्षमता को बढ़ाता है तथा ;(iii) यह मिट्टी के सूक्ष्म जीवों को क्रियाशील करता है, जिससे फसलों के लिए पोषक तत्वों का निर्माण होता है । इस खाद की एक विशेषता यह भी है कि यह कार्बनिक पदार्थ की आपूर्ति करता है, जो बाद में ह्यूमस में बदल जाता है ।
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कम्पोस्ट खाद: -
खेतों में कार्बनिक तत्वों को बढ़ाने का एक और उपाय है कि खलिहानों के कूड़े तथा जंतुओं के मल-मूत्र से बना कम्पोस्ट खाद मिट्टी में मिलाया जाय । कम्पोस्ट खाद भूसों, खर-पतवार, पत्तियों, फसलों के अवशेष, घास, घर के कचरे, लकड़ी की राखों, मल-मूत्र तथा गोषाला की मिट्टियों से बनाया जा सकता है । इस कम्पोस्ट खाद मे अच्छी मात्रा में कार्बनिक तत्व होते हैं ।
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वनस्पति खाद:-
जिन क्षेत्रों में यह संभव है, वहाँ वनस्पति खाद भी मिट्टी की उर्वरता बढ़ाने का एक मुख्य तरीका है । इसमें खेत में जल्दी पकनेवाली ऐसी फसलों को लगाया जाता है, जो खेत की उर्वरता बढ़ाती हैं । ये वनस्पति खाद मिट्टी को कार्बनिक तत्व के साथ-साथ नाइट्रोजन भी देते हैं । विशेषकर फली ;स्महनउंद्ध वाली फसलों में यह गुण ज्यादा होता है, जो हवा से नाइट्रोजन लेती हैं और इनकी जड़ में रहने वाले कीटाणु उसे मिट्टी में भेज देते हैं । वनस्पति खाद वाली फसलें मिट्टी को अपरदन और कटाव से भी बचाती हैं । हमारे देश में इन गुणों वाली कुछ फसलें इस प्रकार हैं - चना, ज्वार, लोबिया तथा मसूर-दाल, आदि ।
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नाला और कीचड़:-
इनमें बड़ी मात्रा में पौधों के पोषक तत्व होते हैं, जिन्हें गन्ना, सब्जियों तथा चारा वाली फसलों के लिए थोड़ा शुद्ध करके इस्तेमाल किया जाता है । ऐसी खेती अधिकतर शहरों में होती है । कई स्थानों पर जहाँ ऑक्सीकरण योग्य कार्बनिक पदार्थों से युक्त कीचड़ मिलते हैं, उनका इस्तेमाल भी खाद के लिए किया जाता है । इन कीचड़ों में पौधों के लिए बहुत पोषक तत्व होते हैं । ये खासकर मिट्टी के नाइट्रेट को कम करते हैं । अगर इन्हें शुद्ध किये बिना इस्तेमाल किया जाय, तो लाभ से ज्यादा हानि होती है । मिट्टी जल्दी ही कीचड़ की आदी हो जाती है और इससे मिट्टी में नाइट्रेट की कमी तो होती ही है, साथ ही मिट्टी पर उगायी गईं सब्जियाँ आदि स्वास्थ्य के लिए हानिकारक होती हैं । किसी भी स्थिति में ऐसी मिट्टी पर उपजाई गई फसलों को अच्छी तरह से पकाये बिना नहीं खाना चाहिये ।
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अन्य कार्बनिक खाद:-
तेल की खल्ली, हड्डी का चूरा, मूत्र तथा रक्त भी कार्बनिक तत्वों से भरपूर होते हैं ।
उवर्रक -
उर्वरक सांद्रित प्रकार के अकार्बनिक पदार्थ होते हैं, जिन्हें पौधों को एक या एक से अधिक पोषक तत्व देने के लिए इस्तेमाल किया जाता है; जैसे - पोटाश, पोटेशियम, नाईट्रोजन आदि । उर्वरकों में ये तत्व घुलनशील रासायनिक यौगिकों के रूप में पाये जाते हैं । साधारणतः इन्हें ‘रासायनिक, कृत्रिम या अकार्बनिक’ खाद कहा जाता है ।
- यौगिक उर्वरक:- ये उर्वरक कई तत्वों के यौगिक होते हैं, जो पौधों को एक साथ दो या तीन पोषक तत्व उपलब्ध कराते हैं । यदि मिट्टी में नाइट्रोजन और फॉसफोरस दोनों की कमी होती है, तो उसमें ‘एमोफाँस ’ नामक यौगिक उर्वरक डाला जाता है । इससे दो उर्वरकों को खरीदकर और उन्हें सही अनुपात में मिलाकर डालने का झंझट खत्म हो जाता है ।
- मिश्रित उर्वरक:- यौगिक उर्वरकों में एक निश्चित अनुपात में पौधों के पोषक तत्व होते हैं । अतः इन्हें सभी प्रकार की मिट्टियों में डालना अच्छा नहीं होता है । इसलिए, मिट्टी की आवश्यकतानुसार सही अनुपात में दो या दो से अधिक पोषक तत्व वाले मिश्रित उर्वरकों का प्रयोग अधिक बेहतर होता है । इसमें आवश्यकतानुसार पोषक तत्व होता है और अलग-अलग उर्वरकों को खेतों में डालने की जरूरत नहीं रह जाती । इससे श्रम की बचत होती है । मिश्रित उर्वरक में तीनों पोषक तत्व (नाइट्रोजन, पोटाश और फॉसफोरस ) होने के कारण इसे ‘संपूर्ण उर्वरक’ भी कहा जाता है ।
- मशीनीकरण की आवश्यकता - कृषि के मशीनीकरण से उत्पादन में भी वृद्धि होती है तथा लागत में भी कमी आती है । बंजर भूमि को सुधारने में भी मशीनीकरण उपयोगी है । पश्चिमी देशों में कृषकों की खुशहाली का एक मुख्य कारण वहाँ कृषि का मशीनीकरण होना है । साथ ही, उन देशों में खेती व्यवसायिक रूप से की जाती है और जनसंख्या का एक छोटा भाग ही इसमें शामिल होता है ।
दूसरी ओर भारत में स्थिति बिल्कुल भिन्न है । यहाँ कृषि आजीविका का साधन है । भारत की कुल आबादी के 67: लोग कृषि में लगे हैं और उनमें 31: औरतें हैं । इसलिए भारत में एक वर्ग कृषि के मशीनीकरण का पक्षधर है और दूसरा वर्ग इसका विरोधी है ।
कृषि के मशीनीकरण के पक्ष में तर्क -
(i) मशीन से कृषि कार्यों में तेजी आती है और समय की बचत होती है ।
(ii) मशीन से जोताई, भूमि की सफाई, जंगलों की सफाई, नालियाँ बनाना तथा तेल निकालना आदि आसान हो जाता है ।
(iii) उत्पादन की लागत में कमी आती है ।
(iv) भूमि और श्रम की उत्पादकता में वृद्धि होती है, जिससे कृषि के कुल उत्पादन में भी वृद्धि होती है ।
(v) किसानों की आय में वृद्धि होती है ।
कृषि के मशीनीकरण के विपक्ष में तर्क -
(i) मशीन के प्रयोग से बेरोजगारी में वृद्धि होगी ।
(ii) मशीन के प्रयोग के लिए बड़े-बड़े भूखंड होने चाहिये । जबकि भारत में अधिकांशतः छोटे-छोटे खेत हैं।
(iii) अशिक्षा, अज्ञानता तथा गरीबी के कारण भारतीय किसानों द्वारा विस्तृत तौर पर मशीन को अपनाना कठिन है ।
(iv) ईंधन-तेल की मंहगाई तथा अन्य मशीनी तेल की कमी होने के कारण भारतीय किसान तेल-आधारित उपकरणों का ज्यादा प्रयोग नहीं कर सकते ।
(v) घरेलू-उत्पादन क्षमता में धीरे-धीरे वृद्धि हो रही है और तकनीकी जानकारी की कमी भी नहीं है ।
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