अध्ययन सामग्री: भारत का भूगोल "पक्ष - विपक्ष "


अध्ययन सामग्री:  भारत का भूगोल


पक्ष - विपक्ष

पक्ष

 - जी. एम. के समर्थन में इसके समर्थकों द्वारा निम्न तर्क दिये जा रहे हैं:-
(1) जी. एम. के द्वारा फसलों के उत्पादन को इतना बढ़ाया जा सकता है कि विष्व की बढ़ती हुई जनसंख्या का पेट भरा जा सकता है अर्थात् इसके द्वारा दुनिया से भुखमरी मिट सकती है ।

(2) जी.एम. फसलों में कीटनाषकों, उर्वरकों व खरपतवार नाषको का कम या लगभग नहीं के बराबर प्रयोग होता है जबकि परंपरागत कृषि में यह दिन-प्रतिदिन बढ़ता जा रहा है ।

(3) इस तकनीकी के द्वारा फसलों के जीनों में मनमुताबिक फेर बदल कर जी.एम. तकनीक द्वारा खाद्यान्नों में पोषक तत्त्वों को बढ़ाया जा सकता है ।

(4) परंपरागत कृषि में एक बार में (एक मौसम में) कोई एक ही फसल उगायी जा सकती है जबकि जी.एम. की मदद से एक मौसम में दो बार फसल उगायी जा सकती है ।

(5) परंपरागत फसलों की अपेक्षा प्रति एकड़ की उपज भी अधिक होती है । जो सभी के लिए लाभदायक सिद्ध होगी ।

(6) मक्के की संवर्धित फसल ने तीन वर्षों की निगरानी में पर्यावरण पर कोई प्रतिकूल प्रभाव नहीं डाला अतः इसे उगाया जा सकता है ।

(7) जेनेटिक इंजीनियरिंग की कला जंगली फसलों, फूलों, फलों को सामान्य और उपयोगी प्रणालियों में तब्दील करने के अलावा फसलों की जैविक अपंगता दूर करने में सक्षम है । इसीलिए इसका मोह छोड़ना आसान नहीं है ।

प्रतिपक्ष -

ब्रिटिष वैज्ञानिकों द्वारा तिलहन, चुकंदर और मक्के की जी.एम. फसलों का तीन साल तक वृहद अनुसंधान किया तथा निष्कर्ष निकाला की जी.एम. फसलें हमारे लिए खतरनाक हैं । अपने निष्कर्ष के संबंध में इन्होंने निम्न तर्क दिए -


(1) तिलहन, चुकंदर व मक्का इन तीनों में से दो फसलें पाइप और कीट प्रजातियों के विनाष का कारण बन रही है । इसीलिए इनके व्यावसायिक उत्पादन की इजाजत नहीं दी जानी चाहिए ।

(2) जी. एम. फसल वाले खेतों में तितलियाँ नहीं आती हैं जो कि परंपरागत फसल की खेती में कीड़े-मकोड़ों का भोजन कर उसे सुरक्षित बनाती हैं ।

(3) जी. एम. (फसल) की कृषि को अपनाने के बाद इसके लिए हमें बहुराष्ट्रीय कंपनियों पर निर्भर रहना पड़ेगा जो कि भविष्य के लिए खतरनाक साबित हो सकता है और धीरे-धीरे परंपरागत खेती की जानकारी भी भूलते जाऐंगे । इससे कृषि प्रधान एषिया, लैटिन अमेरिका और अफ्रीका के लगभग 104 करोड़ किसानों के लिए खतरा साबित हो सकता है।

(4) जी.एम. की फसल 26 किलोमीटर दूर तक परंपरागत फसल के परागों को नष्ट कर सकती है ।

(5) कीड़े-मकोड़ों के लिए जैविक वातावरण को समाप्त करता है जिससे कीड़े-मकोड़े जी.एम. के क्षेत्र में रह नहीं पाते हैं । अर्थात् इससे जैविक प्रदूषण फेलता है ।
 

निष्कर्ष -

 जब तक जी.एम. की जैविक प्रदूषण रहित होने की पुष्टि नहीं हो जाती तब तक हमें जी.एम. फसलों को नहीं अपनाना चाहिए क्योंकि इसके दुष्प्रभावों को देखते हुए पुष्टि से पहले अपनाना जैविक, आर्थिक और सामाजिक स्तर पर खतरनाक सिद्ध हो सकता है । हमारे देष में इसके लिए जेनेटिक इंजीनियरिंग अप्रूवल कमेटी (जी इ एस सी) नाम की संस्था हे, जिसकी इजाजत के बगैर किसी भी तरह की जी.एम. फसल हमारे यहाँ नहीं उगायी जा सकती । लेकिन दुर्भाग्य से यह संस्था इस बारे में जरूरत से कम चैकन्ना है । इसी के तहत गुजरात में कुछ किसानों ने चोरी छिपे बी टी कपास (जी.एम.) के उतपादन को शुरू किया था । इस संस्था को काफी समय बाद इसकी जानकारी मिली थी । अतः इस संस्था को चैकस होने की जरूरत है ।
सबसे बड़ी बात यह है कि हमारे देष में न तो एकसा कोई कानून है और न ही ऐसी कोई प्रक्रिया है जो जी.एम. फसलों से होने वाले जैविक प्रदूषण का पता लगा सके और दोषी को दण्डित हकया जा सके । ऐसे में चोरी छिपे किसान इसके मोह में पड़कर अपना सकते हैं अतः केन्द्र सरकार को इसे रोकने के कारगर कदम उठाने चाहिए ।
 

कार्बनिक-कृषि -

कार्बनिक कृषि एक प्रकार की प्राकृतिक-कृषि विधि है, जिसमें उर्वरक, तथा कीटनाशक, आदि किसी भी चीज का प्रयोग नहीं किया जाता । इसमें बस बीज बो दिया जाता है और फसल काट ली जाती है। इसमें जैविक अवशेषों से मिट्टी की उर्वरता को बढ़ने दिया जाता है । अपने विकसित रूप में यह जैविक प्रक्रियाओं द्वारा उच्च गुणवत्ता तथा उत्पादकता लाती है, जो अक्सर आधुनिक कृषि के उत्पादन के बराबर होती है।

    • कार्बनिक-कृषि के लाभ:-

 (I) प्रदूषण में कमी;
(II) ऊर्जा की बचत,
(III)रासायनिक चीजों के प्रयोग न होने से उनके अवशेषों के दुष्प्रभाव से भी मुक्ति;
(IV) मशीनों का अल्प इस्तेमाल;
 (V) उर्वरकों तथा कीटनाशकों की अनुपस्थिति के कारण कीट भी कम लगते हैं;
(VI) आधुनिक कृषि के बराबर उत्पादन ;
(VII) आधुनिक विधि से उत्पादित खाद्यान्न से अधिक पोषक;
(VIII) विकासशील कृषि की एक अच्छी विधि है ।

    •  कार्बनिक-कृषि की समस्या:-

(I) भूमि-संसाधन को कार्बनिक-कृषि से परंपरागत कृषि में आसानी से बदला जा सकता है, लेकिन इसकी उल्टी प्रक्रिया आसान नहीं है;
(II) यदि तेजी से कृषि को कार्बनिक कृषि में बदला जाय, तो प्रारंभिक फसल की हानि होती है;
(III) पहले इस्तेमाल किये गए रसायनों के कारण जैविक नियंत्रण की मिट्टी की शक्ति कमजोर या नष्ट हो सकती है, जिसे प्राप्त करने में तीन से चार वर्ष लग सकते हैं;
(IV) बिना सरकारी सहायता के किसान इस नई विधि को अपनाने में डर सकते हैं ।

    • कार्बनिक-कृषि का महत्व:-

(I)कृषि की वर्तमान प्रणाली (आधुनिक) में अस्थिरता आज कृषि-क्षेत्र की एक बड़ी समस्या है । इस समस्या की प्रकृति एवं विस्तार को हम इसके इन परिणामों से समझ सकते हैं ।
(II) बिना मिट्टी के संरक्षण का उपाय किये गहन कृषि करने से मरुभूमि का विस्तार होगा ।
(III) बिना पर्याप्त जल-निकासी की व्यवस्था के सिंचाई करने से मिटृटी की क्षारीयता या लवणता में वृद्धि होगी।
(IV) कीटनाशकों, खर-पतवार नाशकों, फफूँदी-नाशकों के बेतहाशा प्रयोग से पर्यावरण-संतुलन बिगड़ सकता है। साथ ही, इनसे कैंसर तथा अन्य रोग भी बढ़ सकते हैं । सिंचाई के लिए भूमिगत जल के अवैज्ञानिक प्रयोग से जल-स्तर बहुत नीचे जा सकता है जबकि युगों से प्राकृतिक कृषि के कारण ये जल हमें अब तक मिलते आ रहे हैं । फसलों के स्थानीय प्रकारों का आधुनिक एवं ज्यादा उत्पादन वाली फसलों द्वारा विस्थापन से ऐसी गंभीर बीमारियाँ हो सकती हैं जिनसे पूरी की पूरी फसल ही नष्ट हो जाय ।

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