(अध्ययन सामग्री): भूगोल - विश्व का भूगोल "भूमिगत जल"


अध्ययन सामग्री: विश्व का भूगोल


भूमिगत जल

कुल जल का मात्र 0.63 प्रतिशत ही भूमिगत जल के रुप में उपलब्ध है । यह जल का वह भाग है जो पृथ्वी की गुरुत्त्वाकर्षण शक्ति के कारण ज़मीन के क्षेत्रों से होता हुआ अंत में नीचे जाकर ठोस चट्टानों के ऊपर चट्टानों के ऊपर एकठा  हो जाता है । पृथ्वी की गुरुत्त्वाकर्षण की शक्ति के प्रभाव के कारण वर्षा का पानी नीचे उतरते-उतरते अपारगम्य चट्टानों तक पहुँच जाता है । धीरे-धीरे चट्टान के ऊपर की मिट्टी की परतें पूरी तरह संतृप्त हो जाती हैं । इस प्रकार का एकत्र पानी भौम जल परिक्षेत्र की रचना करता है ।

भूमिगत जल के स्तर -

(1) पहले स्तर की चट्टानों एवं मिट्टियों में छोटे-छोटे छिद्र होते हैं । पानी इन छिद्रों से होकर नीचे की ओर चला जाता है इसीलिए इसे असंतृप्त स्तर कहा जाता है ।

(2) दूसरा स्तर अस्थायी संतृप्त जोन का होता है । हाँलाकि छिद्र इसमें भी होते हैं और इनमें भी पानी भरा नहीं रहता । लेकिन भारी वर्षा के पश्चात् इनमें पानी इकट्टा हो जाता है । गर्मी के दिनों तक इस जोन का पानी सूख जाता है ।

(3) यह स्थायी संतृप्त जोन कहलाता है । इस परिक्षेत्र के चट्टानों के छिद्र हमेशा पानी से भरे रहते हैं ।

भूमिगत जल के स्रोत

(1) झरने - जब भूमिगत जल पृथ्वी की सतह को छेदकर बाहर आ जाता है, तो वह झरने के रूप में बहने लगता है । कुछ झरने बारहों महीने बहते रहते हैं तथा कुछ झरने केवल गर्मी और सर्दियों के महीनों में ही निकलते हैं । सामान्यतः झरने का स्रोत जितना गहरा होगा, उसके प्रवाह में उतना ही कम उतार-चढ़ाव देखने को मिलेगा ।

(2) खनिज झरने
- ये वे झरने हैं, जिनके जल में लौह, मेगनिशियम क्लोराइड और सोडियम क्लोराइड जैसे खनिज लवण मिले रहते हैं । इन झरनों में स्थायी गुण पाए जाते हैं ।

(3) गीज़र
- यह पृथ्वी के अन्दर के गर्म जल का पृथ्वी पर आना है । गीज़र वहाँ पाए जाते हैं, जहाँ ज्वालामुखी का लावा पूरी तरह ठण्डा नहीं हुआ है । होता यह है कि भूमिगत जल नीचे ही नीचे रीसकर ज्वालामुखी क्षेत्र में पहुँच जाता है । चूँकि वहाँ की चट्टानंे गर्म रहती हैं, इसलिए वहाँ का पानी उबलने लगता है । उबलने के कारण वह पानी गर्म जलधारा में परिवर्तित हो जाता है । जब धीरे-धीरे उस पानी पर आन्तरिक दबाव पड़ने लगता है, तब वह जल अत्यधिक बल के साथ बाहर आ जाता है।
(4) कुंए - कुंए पृथ्वी पर मनुष्य के द्वारा बनाये गये गहरे गढ्ढे होते हैं, ताकि उनमें पानी आसपास की चट्टानों से रीसकर आ सके ।

(5) पाताल तोड़ कुँआ - जैसा कि नाम से ही स्पष्ट है, यह माना जाता है कि इस कुँए का तल पाताल में स्थित है यानी कि उसका कोई तल नहीं है । वस्तुतः होता यह है कि सरंध्र वाली चट्टानों से पानी रीस-रीसकर नीचे जमा होता जाता है । नीचे की चट्टान अत्यन्त कठोर अर्थात् अपारगम्य होती है। जब ऊपर से पारगम्य चट्टान में छेद कर दिया जाता है, तो अपारगम्य चट्टान के ऊपर एकत्रित पानी तेज़ी के साथ बाहर आने लगता है और लगातार बाहर आता रहता है । चूँकि अपारगम्य चट्टान के ऊपर काफी पानी जमा रहता है, इसलिए इन कुँओं से लगातार पानी निकलता रहता है ।

(6) झील - चारों ओर भूमि से घिरा हुआ पृथ्वी का वह भाग झील कहलाता है, जो पानी से भरा होता है । इसकी मुख्य विशेषता यह मानी जाती है कि ये नदियों से तो जुड़ी होती हैं, किन्तु समुद्र से नहीं। हालाँकि बोलचाल में हम झील को तालाब की तुलना में अपेक्षाकृत थोड़ा बड़ा जलाशय मानते हैं, किन्तु इसका घेरा उससे कई गुना अधिक बड़ा होता है । केस्पियन सागर, मृत सागर व अराल सागर कहने में भले ही सागर कहलाते हों लेकिन वास्तव में ये बड़ी झीलें ही है ।

पृथ्वी पर झीलों के निर्माण के निम्न मुख्य कारण दिखाई देते हैं -

1. अधिकांश झीलें ग्लेशियर तथा वर्षा के कारण बनी हैं ।

2. कुछ झीलों का निर्माण नदियों, समुद्र एवं हवा की गतिविधियों तथा पृथ्वी की गति के कारण हुआ है ।

3. भूकम्प एवं ज्वालामुखी भी झीलों का निर्माण करते हैं ।

4. कुछ झीलों का निर्माण स्वयं मनुष्य ने किया है ।

5. बहती हुई नदियाँ समुद्र में मिलने के पूर्व अपने साथ के कचरों को मुहाने पर जमा करती जाती है। धीरे-धीरे यहाँ इतना अधिक कचरा इकðा हो जाता है कि नदी की धारा को अपनी दिशा बदलनी पड़
जाती है । धीरे-धीरे यह भाग समुद्र से पूरी तरह अलग होकर झील का निर्माण कर देता है ।

6. समुद्र के तट के कटाव से भी झीलें बनती है, जिन्हें ‘लैगून’ कहा जाता है ।

7. जब ज्वालामुखी के ऊपर का भाग तेज़ विस्फोट से उड़ जाता है, तो वहाँ ज्वालामुखी विवर का निर्माण हो जाता है । इस विवर को ज्वालामुखी कुण्ड कहते हैं, जो पानी भरने से बाद में झील बन जाती है। अमेरिका की ओरेगान झील इसी तरह की झील है ।

8. कुछ चट्टानें पानी में घुलने वाली होती हैं । ऐसा विशेषकर चूने के पत्थर वाली कंदराओं में होता है, जहाँ बाद में गढ्ढ़ा हो जाता है । यही झील का रूप ले लेती है ।

9. चट्टानों में भ्रंश के कारण भी झीलों का निर्माण होता है । यह झील प्रायः लम्बी, गहरी और सक्रिय होती है । मृत सागर इसी तरह की झील है ।

10. चट्टानों के एक-दूसरे पर चढ़ने से भी झीलें बनी हैं ज्रिन्हें विवर्तनिक झील कहा जाता है । टीटीकाका झील विश्व की सबसे बड़ी विवर्तनिक झील है ।

11. उद्बिलाव जैसे जीव-जन्तुओं द्वारा भूमि को खोदकर गढ्ढे बनाये जाते हैं । इनमें पानी के भरने से झील बन जाती है । अमेरिका के एलोस्टोन नेशनल पार्क स्थित विवर झील इसका सुन्दर उदाहरण है ।

कुछ महत्त्वपूर्ण तथ्य -

  • तिब्बत के पठार में स्थित टिसो सिकरु झील संसार की सबसे ऊँची झील है ।

  •  जार्डन में स्थित मृत सागर संसार की सबसे नीची झील है ।

  •  केस्पियन सागर संसार की सबसे बड़ी झील है ।

  • उत्तरी अमेरीका के सुपीरियर झील संसार की मीठे पानी की सबसे बड़ी झील है ।

  •  केस्पियन सागर खारे पानी की विश्व की सबसे बड़ी झील है

UPSC IAS सिविल सेवा परीक्षा अध्ययन सामग्री

Get Gist of NCERT Books Study Kit for UPSC Exams (Hindi)

UPSC GS PRE Cum MAINS (HINDI Combo) Study Kit 

<< मुख्य पृष्ठ पर वापस जाने के लिये यहां क्लिक करें