(अध्ययन सामग्री): भूगोल - विश्व का भूगोल "जल मण्डल"
अध्ययन सामग्री: विश्व का भूगोल
जल मण्डल (हायड्रोस्फीयर)
ऐसा माना जाता है कि यह धरती पहले धधकता हुआ आग का गोला थी । यह धीरे-धीरे ठण्डी हुई और इस पर पानी इकठा होने लगा । यही वह युग था, जब पानी के कारण इस पृथ्वी पर जीव की उत्त्पत्ति हुई । अतः यह कहना गलत नहीं होगा कि यह पानी इस ग्रह के सभी जीवनों का आधार है । और जिन ग्रहों पर जल नहीं है, वहाँ जीवन भी नहीं है । वैसे तो ‘जल’ शब्द के प्रथम अक्षर ‘ज’ का अर्थ ही होता है - जीवन ।
हमें लगता है कि इस धरती पर स्थल का भाग अधिक होगा लेकिन सच्चाई यह है कि पृथ्वी की सतह के 74 प्रतिशत भाग पर जल है । इस कुल जल का 97 प्रतिशत समुद्रों में तथा 2.16 प्रतिशत बर्फ के रुप में है । मात्र 0.63 प्रतिशत पानी ही भूगर्भीय जल के रुप में उपस्थित है जिसका उपयोग हम अपने दैनिक जीवन में करते हैं ।
पृथ्वी पर जल तीन अवस्थाओं में मिलता है - ठोस (बर्फ), द्रव्य (जल) तथा वाष्प (गैस)। ये तीनों ही अवस्थाएँ परस्पर परिवर्तनशील हैं ।
प्रकृति ने कुछ ऐसी व्यवस्था कर रखी है कि पृथ्वी पर हमेशा जल की उपस्थिति बनी रहती है । पहले महासागर, झील और नदियों का पानी वाष्पीकृत होकर ऊपर जाता है । वायुमण्डल में जाकर यह जलवाष्प संघनित होकर बादलों को जन्म देता है । जब जलवाष्प के ये कण भारी हो जाते हैं, तो वर्षा के रूप में पृथ्वी पर गिर पड़ते हैं ।
इस गिरे हुए जल का एक भाग धरती के द्वारा सोख लिया जाता है । एक भाग बर्फ के रूप में जम जाता है । किन्तु अधिकांश भाग बहकर फिर से समुद्र, झीलों एवं नदियों में चला जाता है । इस प्रकार निरन्तर यह जलीय चक्र चलता रहता है । यहाँ तक कि जमीन द्वारा सोखा गया जल भी आन्तरिक प्रवाह के द्वारा फिर से समुद्र में पहुँच जाता है ।