(अध्ययन सामग्री): भूगोल - विश्व का भूगोल "महासागर"


अध्ययन सामग्री: विश्व का भूगोल


महासागर

पृथ्वी केवल ठोस पदार्थ से ही नहीं बनी है, बल्कि जल से भी भरी हुई है । भूमि का प्रतिशत तो केवल 29 ही है । जबकि पृथ्वी की सतह का 71 प्रतिशत भाग पानी से भरा हुआ है। इसलिए पृथ्वी की आन्तरिक संरचना के अन्तर्गत महासागरों की आन्तरिक संरचना को भी समझना आवश्यक हो जाता है ।

पहले महासागरों के तल को समतल माना जाता था । लेकिन अब इसके प्रत्यक्ष साक्ष्य मिले हैं कि उसके तलों में भी ठीक उसी तरह की विविधता होती है, जैसी कि पृथ्वी के ऊपर के धरातल में विविधताएं होती हैं । इसीलिए मसागरों के अन्दर के विविध रूपों के नाम भी पृथ्वी के ऊपर पाये जाने वाले रूपों के अनुसार ही दिये गये हैं । समझने और याद रखने की दृष्टि से ऐसा करना अधिक व्यावहारिक था ।

महासागरीय तल को मुख्यतः 4 भागों मे बाँटा गया है -

(1) महाद्वीपीय मग्न तट -  (continental shelf)   जैसे ही जमीन पर भरे हुए पानी से जमीन के अन्दर जाने की शुरुआत होती है, वैसे ही महाद्वीपीय मग्न तट की शुरुआत हो जाती है। जैसा कि नाम से ही स्पष्ट है, यह एक प्रकार से समुद्र का तट ही है, जो जल में मग्न हो गया है ।

ये मग्न तट मनुष्य के लिए अत्यन्त महत्त्वपूर्ण होते हैं क्योंकि यहीं सबसे अधिक समुद्री खाद्य पदार्थ, खनिज पदार्थ तथा तेल एवं प्राकृतिक गैस प्राप्त होते हैं । ये मछली पकड़ने के भी समृद्धतम स्थल हैं ।

(2) महाद्वीपीय ढाल - (continental slope)  मग्न तट की समाप्ति के बाद ही महाद्वीपीय ढाल शुरु हो जाती है ।

  • इस ढाल की प्रवणता 2-5 अंश तक होती है ।
     

  • यह 35 सौ मीटर की गहराई तक जाती है ।
     

  •  इस ढाल पर केनियन तथा गर्त पाये जाते है।

3) महाद्वीपीय उत्थान - (continental rise)  जैसे-जैसे ढाल नीचे उतरती जाती है, वैसे-वैसे वे अपनी ढाल खोते जाते हैं । जब इस ढाल की प्रवणता 0.5 से एक अंश के मध्य हो जाती है, तो उसे महाद्वीपीय उत्थान कहते हैं । इस उत्थान की समाप्ति वितल मैदान पर हो जाती है ।

(4) वितल मैदान - (Abyyssal plain) यह एक प्रकार से समुद्र का तल ही है । 3 हजार से 6 हजार मीटर की गहराई तक महाद्वीपीय उत्थान के बाद वितल मैदान शुरु हो जाता है । वितल मैदान कुल महासागरीय क्षेत्र का 40 प्रतिशत भाग होता है ।

इसके अतिरिक्त भी महासागरीय उच्चावच के अन्तर्गत महासागर के अन्तर्गत कुछ अन्य संरचाएं भी पाई जाती हैं, जिन्हें जानना उपयुक्त होगा ।

(प) अन्तः सागरीय कटक - ; त्पमकहमद्ध यह एक प्रकार से समुद्र के अन्दर स्थित सैकड़ों किलोमीटर चौड़ी  तथा हाजरो  किलोमीटर लम्बी पर्वतमालाएं हैं । इन रीज़ों की कुल लम्बाई लगभग 75 हजार किलोमीटर है।

(पप) वितलीय पहाड़ी  - समुद्र के अन्दर स्थित छोटी-छोटी पहाडि़यों को वितलीय पहाड़ी कहा जाता है । ये ज्वालामुखियों की क्रियाओं से बनती हैं । समुद्र के तल पर एक हजार मीटर वाली पहाड़ी को समुद्री टीला मै  डवनदजद्ध कहते हैं ।  जिन समुद्री पहाड़ों की चोटियाँ समतल होती हैं, उन्हें निमग्न द्वीप ;ळनलवजद्ध कहते हैं । प्रशान्त महासागर में सबसे अधिक टीले एवं निमग्न द्वीप हैं । इनकी संख्या लगभग 10 हजार बताई जाती है ।

(पपप)
अन्तःसागरीय गर्त - ये महासागर के सबसे गहरे भाग होते हैं । गर्त की गहराई सामान्यतः 55 सौ मीटर होती है । जिन गर्तां की गहराई कम किन्तु लम्बाई अधिक होती है, उन्हें खाई ;ज्तमदबीद्ध कहा जाता है । प्रशान्त महासागर में सबसे अधिक गर्त ;क्ममचद्ध पाये जाते हैं । इनका 11 किलोमीटर से भी अधिक गहरा गर्त मेरिआना है, जो गुआम द्वीप समूह के पास स्थित है ।

(पपप)
तट - तट महाद्वीपीय किनारे पर स्थित एक समतल उभार होता है । भले ही यह भाग महासागर की गहराई को देखते हुए उथले ही कहे जाते हैं, किन्तु यहाँ पानी इतना गहरा होता है कि नौकायें चलाई
जा सकें ।

(पअ) मित्ति
- इसकी रचना जीवित या मृत जीवों के प्रभाव से होती है । देखने में ये टीलों और कटकों की तरह ही दिखते हैं । प्रवाल मित्तियाँ महासागर की विशेष सजावटें हैं । विश्व की सबसे बड़ी प्रवाल मित्ति क्वींसलैंड तट के निकट है, जो आस्ट्रेलिया में है । मित्ति वाले क्षेत्र नौका संचालन के लिए खतरनाक माने जाते हैं ।

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