(अध्ययन सामग्री): भूगोल - विश्व का भूगोल "महासागरों का तापमान"


अध्ययन सामग्री: विश्व का भूगोल


महासागरों का तापमान

जो अन्तर द्वीप और महाद्वीप में है, लगभग वही अंतर सागर और महासागर में है । जब सागर का रूप बहुत बड़ा हो जाता है, तो वही महासागर कहलाने लगते हैं । जैसा कि हमें ज्ञात है, पृथ्वी के 71 प्रतिशत भाग में जल है । इसीलिए पृथ्वी को कभी-कभी ‘नीला ग्रह’ भी कह दिया जाता है, क्योंकि पानी का रंग नीला दिखाई पड़ता है ।पृथ्वी पर जल का वितरण एक समान नहीं है । उत्तरी गोलार्द्ध की अपेक्षा दक्षिणी गोलार्द्ध में जल की मात्रा अधिक है ।

जहाँ उत्तरी गोलार्द्ध के कुल क्षेत्रफल के 60 प्रतिशत भाग में पानी है, वहीं दक्षिणी गोलार्ध के लगभग 80 प्रतिशत भाग पर पानी है । इस आधार पर कहा जा सकता है कि पृथ्वी के कुल जलीय धरातल का 43 प्रतिशत भाग उत्तरी गोलार्द्ध तथा 57 प्रतिशत दक्षिण गोलार्द्ध में स्थित है ।महत्त्वपूर्ण बात यह है कि पृथ्वी में जितना भी पानी है, उसका 97 प्रतिशत भाग केवल महासागरों में जमा है और महासागरों में भी जितना पानी जमा है ।

उसका 93 प्रतिशत भाग कुल 4 महासागरों के पास है और ये महासागर हैं - प्रशान्त महासागर, अटलांटिक महासागर, हिन्द महासागर तथा आर्कटिक सागर ।

महासागरों के बारे में निम्न तथ्य जानना रोचक होगा -

  •  इनसे प्रतिवर्ष जितना जल वाष्पीकृत होता है, उससे अधिक जल हिम और वर्षा के रुप में प्राप्त होता है ।

  •  महासागरों की ऊपरी सतह सबसे अधिक सक्रिय होती है ।

  • अधिक गहराई पर जल अत्यन्त धीमी गति से प्रवाहित होता है, क्योंकि अधिक गहराई पर महासागर सर्वत्र एक समान अल्प तापमान बनाये रखता है ।

  •  ऊपर का वायुमंडल महासागर की ऊपरी सतह को ऊर्जा एवं सामग्री देता है, जिसके कारण महासागर में तरंगें व धाराएँ बनती हैं ।

  •  तरंगों और धाराओं के कारण ही महासागरों के अन्दर भौतिक एवं रासायनिक गतिविधियाँ होती हैं ।

महासागरों का तापमान -

समुद्री जल का तापमान इसके जल के घनत्त्व का निर्धारण करता है । साथ ही तापमान समुद्र में रहने वाले जीव और वनस्पतियों पर भी प्रभाव डालता है । इसलिए समुद्र विज्ञान के अन्तर्गत समुद्री तापमान का अध्ययन करना महत्त्वपूर्ण हो जाता है ।

महासागरीय जल के तापमान का अध्ययन तीन स्तरों पर किया जाता है -

  • पहला स्तर महासागरीय जल की ऊपरी सतह है । इसकी मोटाई (गहराई) लगभग 500 मीटर मानी गई है । यह पाया गया है कि 500 मीटर की गहराई तक समुद्री जल का तापमान 20 से 25 सेन्टीग्रेड के बीच रहता है । चूँकि ऊष्ण कटिबन्धीय क्षेत्रों में सूर्य सीधा चमकता रहता है, इसलिए तापमान का यह स्तर इसके आसपास के महासागरों में तो साल भर यही रहता है । लेकिन मध्य अक्षांशों में यह तापमान केवल गर्मियों में ही रह पाता है ।
     

  •  द्वितीय स्तर को ताप प्रवणता (थर्मोक्लाइन) कहते हैं । यह 500 मीटर से शुरू होकर 1000 मीटर तक गहरा होता है । इसकी विशेषता यह होती है कि गहराई बढ़ने के साथ-साथ तापमान तेजी से घटता जाता है ।
     

  • तीसरा स्तर गहरे ठण्ड का स्तर है । यह 1000 मीटर से शुरू होकर महासागर के तल तक पहुँच जाता है । ध्रुवों के अक्षांशों पर यह तापमान शून्य सेन्टीग्रेड के आसपास तक रहता है। तृतीय स्तर पर गहराई के साथ तापमान में बहुत कम परिवर्तन होता है ।

    महासागरीय जल को सबसे अधिक ताप सूर्य से प्राप्त होती है । इसके अतिरिक्त उसके तापमान के वातावरण को प्रभावित करने वाले अन्य कारक हैं -
     

  •  अक्षांश रेखाएँ .

  •  स्थल एवं जल की उपस्थिति

  •  उस क्षेत्र में चलने वाली स्थायी, मानसूनी एवं स्थानीय हवाएँ

  •  प्रवाहित होने वाली महासागरीय धाराएँ तथा

  •  स्थानीय मौसम, समुद्र की आकृति, तथा समुद्र के अन्दर की संरचनाएँ; जैसे समुद्री पहाडि़याँ, घाटियाँ, कटक आदि ।
     

कुछ तथ्य -

- सागरों के तापमान में मौसम के अनुसार परिवर्तन नहीं होता ।

- तापमान में परिवर्तन अटलांटिक महासागर में सबसे अधिक होता है ।

- सामान्यतया महासागरों के धरातलीय जल का औसत तापमान 26.7 डिग्री सेल्सियस माना गया है । जिस प्रकार विषुवत रेखा से धु्रवों की ओर बढ़ते जाने से वायुमण्डल का तापमान घटता चला जाता है, ठीक उसी प्रकार समुद्र का तापमान भी घटता जाता है ।

- उत्तरी गोलार्द्ध के महासागरों का औसत तापमान दक्षिण गोलार्द्ध में स्थित महासागरों की अपेक्षा अधिक है । हो सकता है कि इसका कारण उत्तरी गोलार्द्ध में उपस्थित पानी की मात्रा का कम होना हो ।
 

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