(अध्ययन सामग्री): भूगोल - विश्व का भूगोल "नदियाँ"
अध्ययन सामग्री: विश्व का भूगोल
नदियाँ
नदियों से हम सभी परिचित हैं । यह पानी की विशाल धारा होती है जो अपने स्त्रोत से निकलकर बहती हुई अन्त में किसी दूसरी नदी, झील या समुद्र में मिल जाती है ।
किसी भी नदी का प्रवाह निम्न मुख्य बातों पर निर्भर करता है -
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नदी वाले क्षेत्र में वर्षा की मात्रा कितनी है । स्वाभाविक है कि वर्षा अधिक होने से नदी में जल का प्रवाह अधिक होगा और इस प्रकार वह एक बड़ी नदी बनती चली जायेगी।
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जिस क्षेत्र में नदी बहती है, उसके धरातल की पारगम्यता क्या है । यदि धरातल बहुत अधिक नर्म होगा, तो नदी का पानी भूमि के अन्दर अधिक जायेगा । इससे नदी में पानी की मात्रा अपेक्षाकृत कम रहेगी ।
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जिस क्षेत्र में नदी बहती है, उसकी आकृति कैसी है । यदि क्षेत्र ढ़लान वाला है, तो नदी सकरी और उसका प्रवाह तीव्र हो जायेगा ।
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नदी वाले क्षेत्र में ऊगने वाली वनस्पति भी कुछ हद तक अपनी भूमिका निभाती हैं ।
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जब नदी में पानी बहता है, तब उस दो शक्तियाँ कार्य कर रही होती हैं । पहली होती है-पृथ्वी की गुरुत्त्वाकर्षण शक्ति, जिसके कारण नदी ढ़लान की ओर अपने-आ बहती चली जाती है । दूसरा होता है घर्षण बल । यह धाराओं के आपस मंे टकराने से तथा तरंगों, नदी में बह रहे पत्थरों एवं तटों से पैदा होता है । यह घर्षण बल मूलतः नदी के प्रवाह का विरोध करता है ।
यही कारण है कि नदी का प्रवाह अलग-अलग स्थानों पर अलग-अलग होता है । चूँकि नदी के मध्य में घर्षण बल कम होता है, इसलिए वहाँ नदी का प्रवाह सबसे अधिक होता है । जबकि तटों पर यह प्रवाह सबसे कम हो जाता है, क्योंकि तटों के टकराने से जो घर्षण बल उत्पन्न होता है, वह प्रवाह की गति को मंद कर देता है ।
नदी की यात्रा के चरण -
जहाँ से नदी का जन्म होता है, उसे उसका स्रोत कहते हैं और जहाँ वह जाकर किसी अन्य में मिल जाती है, उसे मुहाना कहते हैं । इस बीच में नदी का पूरा स्वरूप पहाड़ पर, पठारों पर और मैदानों पर फैला होता है । नदी के जन्म से लेकर समाप्ति तक के जीवन को मुख्यतः निम्न तीन भागों में बाँटा गया है -
पहला - इसे नदी की ‘युवावस्था’ कहते हैं । चूँकि यह नदी की जवानी का काल होता है, इसलिए स्वाभाविक है कि यहाँ उसकी धारा की गति सबसे अधिक होती है । सामान्यतया अधिकाँश नदियों का उद्गम स्थल पहाड़/पहाडि़याँ होती हैं । इसलिए इस चरण में नदी तीखे ढलानों और सकरी घाटियों से होकर गुजरती है ।
अपनी यौवनावस्था में बहती हुई नदी निम्न स्वरूपों की रचना करती है -
अ/ पहाडों पर नदी के साथ छोटे-छोटे पत्थर भी बहते रहते हैं, जो नदी की तलहटी से टकराकर उसे काँटते/छाँटते रहते हैं । साथ ही यहाँ नदी के दोनों किनारे कठोर चट्टानों के बने होते हैं इसलिए यह अधिक चैड़ी नहीं हो पाती । इस प्रकार यहाँ गहरी और सकरी घाटियों वाले गड्ढे बनते हैं, जिसे ‘गार्ज’ कहते हैं । इस गार्ज की चैड़ाई कम किन्तु गहराई बहुत अधिक होती है ।
ब/ अपने इसी चरण में नदियाँ अंग्रेजी के ट के आकार की घाटियों का निर्माण करती हैं ।
द/ केनियन भी इसी चरण में बनते हैं । यह एक प्रकार के बड़े गार्ज होते हैं, जो शुष्क क्षेत्रों में बनते हैं ।
त/ बहती हुई नदी के रास्ते में जब कोई ऐसी बड़ी और कठोर चट्टान आ जाती है, जिसे नदी की धारा काट नहीं पाती, तो वहाँ यह धारा कई धाराओं में बँटकर पहने लगती है। इससे सतधाराएँ बनती हैं ।
थ/ पहाड़ पर बहती हुई नदी जब अचानक ही चट्टान पर से आकर गहरी खाई या घाटी में गिरने लगती है, तो उससे जलप्रपात का निर्माण होता है ।
दूसरा पहाड़ी क्षेत्र से उतरने के बाद नदी मैदानी क्षेत्र में आकर अपनी प्रौढ़ावस्था में पहुँच जाती है । चूँकि अब चट्टानी भूमि के स्थान पर कोमल भूमि आ चुकी है, इसलिए नदी की धारा अपने तटों को काटकर चैड़ा करने में सक्षम हो जाती है । पहाड़ी जैसे ढलान के अभाव में नदी की धारा का वेग भी कम हो जाता है । इसलिए वह अपने तल को गहरा नहीं कर पाती । इसका नतीजा यह होता है कि इस चरण में नदियाँ गहरी कम और चैड़ी अधिक हो जाती हैं । घाटी की चैड़ाई जैसे-जैसे बढ़ती जाती है, वह विसर्प (मियांडर) का निर्माण करती है । वस्तुतः मियांडर चैड़ी घाटी ही है ।
इस चरण में नदी अपने साथ बहते हुए पत्थरों का भी विक्षेप करती चलती है । इसके कारण कहीं-कहीं धारा अपने विसर्प से अलग हो जाती है, जिससे चाप झीलों का निर्माण होता है ।
तीसरा , यह वृद्धावस्था का काल है, जहाँ नदी समुद्र या झील में मिलने वाली होती है । यहाँ तक पहुँचते-पहुँचते नदी की गति काफी कम हो जाती है । इस चरण में नदियाँ मुख्यतः दो प्रकार की आकृतियों का निर्माण करती हैं:-
(अ) डेल्टा - बहती हुई नदी जब मंद गति से समुद्र में गिरती है, तो गिरने से पहले अपने साथ बहाकर लाये गये अवसादों को मुहाने पर धीरे-धीरे इकðा करती जाती है । कालान्तर में एकठा किया हुआ यह अवसाद भूमि के रूप में अलग से दिखाई पड़ने लगता है । इस प्रकार डेल्टाओं का निर्माण होता है । वस्तुतः डेल्टा भूमि की त्रिभुजाकार एक ऐसी आकृति होती है, जो तीन ओर जमीन से घिरी होती है और एक ओर समुद्र समुद्र से जुड़ी हुई ।
(ब) वितरिका - कभी-कभी ऐसा भी होता है कि मुहाने पर अपरदन के जमा होने के कारण नदी की धारा कई धाराओं में बँट जाती है । इसे वितरिका (Distributaries) कहते हैं ।
कुछ प्रमुख तथ्य -
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अफ्रीका महाद्वीप की नील नदी विश्व की सबसे लम्बी (6690 किलोमीटर) नदी है । यह अलक्जेन्ड्रिया के निकट भूमध्य सागर में मिलती है ।
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दक्षिण अमेरीका महाद्वीप की अमेजान नदी एंडीज पर्वत से निकलती है । यह नदी मुख्यतः ब्राजील में बहकर अन्ततः अटलांटिक सागर में गिरती है ।
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यांग टीसीयांग चीन में बहने वाली प्रमुख नदी है ।
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मिसीसिपी उत्तरी अमेरीका की प्रमुख नदी है । यह अमेरीका के इवास्का झील से निकलकर मेक्सिको की खाड़ी में गिरती है ।
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मरे डार्लिंग आस्ट्रेलिया महाद्वीप की नदी है, जो एल्पस से निकलकर हिन्द महासागर की एकाउंटर खाड़ी में गिरती है ।
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वोल्गा रूस से निकलने वाली प्रमुख नदी है ।
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डेन्यूब नदी जर्मनी के वेडन से निकलकर काला सागर में मिल जाती है ।
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