(अध्ययन सामग्री): भूगोल - विश्व का भूगोल "सूर्य ताप"


अध्ययन सामग्री: विश्व का भूगोल


सूर्य ताप

सूर्य आग का एक धधकता हुआ गोला है । पृथ्वी इस उष्मा का मात्र दो अरबवां भाग प्राप्त करती है । सूर्य से निकली ऊर्जा का जो भाग पृथ्वी की ओर आता है, उसे ‘सूर्यातव (Insolation) कहते हैं

सूर्यातव को प्रभावित करने वाले तत्व -

धरातल पर सूर्य की ऊष्मा भिन्न-भिन्न मात्रा में पहुँचती है । इसके निम्न कारण हैं -- धरातल पर सूर्य की ऊष्मा भिन्न-भिन्न मात्रा में पहुँचती है । इसके निम्न कारण हैं -

1) किरणों का तिरछापन

सूर्य की किरणें जब जिस किसी स्थान पर तिरछी पड़ती हैं, तो वे अधिक क्षेत्र में फैल जाती हैं । इसलिए वहाँ सूर्यातव की तीव्रता कम हो जाती है । शाम को ऐसा ही होता है । साथ ही तिरछी किरणों को वायुमण्डल में अधिक दूरी तय करनी पड़ती है । इसलिए भी रास्ते में ही उनमें बिखराव, परावर्तन और अवशोषण होने लगता है । इसलिए उनकी तीव्रता कम हो जाती है  । जबकि इसके विपरीत दोपहर के समय; जब सूर्य की किरणें पृथ्वी पर बिल्कुल सीधी पड़ती हैं  तो वे अधिक सकेन्द्रीत हो जाती हैं । इसलिए सूर्यातव की तीव्रता बढ़ जाती है। साथ ही यह भी कि अपेक्षाकृत कम दूरी तय करने के कारण इनका अधिक बिखराव, परावर्तन और अवशोषण नहीं हो पाता ।

2) पृथ्वी की दूरी

चूँकि पृथ्वी अपने अंडाकार कक्ष में सूर्य की परिक्रमा करती रहती है, इसलिए सूर्य से उसकी दूरी में परिवर्तन होता रहता है । औसत रूप में पृथ्वी सूर्य से 9.3 करोड़ मील दूर है और 9.15 करोड़ मील निकट है ।

3) वायुमण्डल का प्रभाव

वायुमण्डल की निम्न परतों में आर्द्रता की मात्रा जितनी अधिक होती है, विकीकरण का उतना ही अधिक अवशोषण होता है । इसीलिए आर्द्र प्रदेशों के अपेक्षा शुष्क प्रदेशों को अधिक सूर्यातव की प्राप्ति होती है।

4) सौर विकीकरण की अवधि

हम जानते हैं कि दिन की लम्बाई में ऋतुओं के अनुसार परिवर्तन होता रहता है । शीत ऋतु में दिन छोटे, जबकि ग्रीष्म ऋतु में दिन लम्बे हो जाते हैं। चूँकि सूर्य दिन में ही निकलता है, इसलिए लम्बे दिनों में सूर्यातव अधिक तथा छोटे दिनों में सूर्यातव कम प्राप्त होता है ।

5) सूर्यातव का अपक्षय

सौर विकीकरण को धरातल पर पहुँचने के दौरान वायुमण्डल का मोटा आवरण पार करना पड़ता है । इस यात्रा को ‘सौर विकीकरण का अपक्षय’ (विनाश) कहते हैं । इस अपक्षय के कुछ कारण होते हैं, जो निम्न हैं:-

i. प्रकीर्णन (Scattering) -

इसी के कारण आकाश का रंग नीला और कभी-कभी लाल दिखाई देता है । जब प्रकाश की अलग-अलग लम्बाई वाली तरंगें धूल एवं जलवाष्प से गुरजती हैं, तो उनका प्रकीर्णन हो जाता है । इससे ऊर्जा का क्षरण होता है ।

ii.विसरण (Diffusion)

जब किरणों के रास्ते में ऐसे कण पड़ जाते हैं, जिनका व्यास किरणों की तरंग दैघ्र्य से बड़ा होता है, तब सभी तरंगे इधर-उधर परावर्तित हो जाती हैं । इस प्रक्रिया को ‘प्रकाश का विसरण’ कहते हैं । सांध्य-प्रकाश विसरण की ही देन है ।

iii. अवशोषण (Absorption)

ऑक्सीजन, कार्बन तथा ओजोन गैस पराबैगनी किरणों का अवशोषण करती हैं । वायुमण्डल में व्याप्त जलवाष्प सूर्यातव का सबसे बड़ा अवशोषक है ।

iv.  परावर्तन (Reflection)

प्रकाश की किरणों के कुछ भाग का धरातल से परावर्तन हो जाता है । परावर्तन की यह मात्रा धरातल के चिकनेपन पर निर्भर करती है। जो धरातल जितना चिकना होगा, परावर्तन उतना ही अधिक होगा । पूर्ण मेघाच्छादित धरातल पर सूर्य के प्रकाश में कमी का मूल कारण परावर्तन होता है, न कि अवशोषण ।

 

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