(अध्ययन सामग्री): भूगोल - विश्व का भूगोल "तरंगें"


   अध्ययन सामग्री: विश्व का भूगोल


तरंगें

पानी के हिलने से जो गति पैदा होती है, उसके द्वारा सतह पर निर्मित आकृतियाँ तरंग कहलाती हैं । तरंग के उच्चतम विन्दु को ‘श्रृंग’ तथा न्यूनतम विन्दु को ‘गतर्’ कहते हैं । एक तरंग से दूसरे तरंग के मध्य गति करने में लगे समय को काल कहते हैं ।

सामान्यतः यह माना जाता है कि समुद्रीय जल के धरातल पर जब हवाएँ घर्षण पैदा करती हैं, तो उससे तरंगें बनती हैं ।

तरंग की ऊँचाई कितनी होगी, यह निम्न तीन बातों पर निर्भर करती है -
(1) पवन की गति
(2) किसी दिशा विशेष से पवन के बहने की अवधि तथा
(3) जलीय धरातल का विस्तार क्षेत्र ।
तरंग की गति को जानने का सूत्र है -  तरंग का वेग त्र =(तरंगों की लम्बाई)/ ( दो तरंगों के मध्य का काल)

उदाहरण के लिए -

महत्त्वपूर्ण तथ्य -

  •  तरंगों के माध्यम से जल आगे गतिमान नहीं होता ।

  • जब तरंगें उथल जल में प्रवेश करती हैं, तब वे खंडित हो जाती हैं ।

  • खुले सागर में तेजी के साथ तरंगों के विभिन्न रूप बनते हैं ।

  •  तट के निकट तरंगें अधिक नियमित हो जाती हैं ।

  • खुले सागरों में 1.5 से 4.5 मीटर की ऊँचाई वाली तरंगें उठती हैं । किन्तु शक्तिशाली तूफानों के समय यह ऊँचाई 12 से 15 मीटर तक हो जाती हैं ।

  • महत्त्वपूर्ण बात यह है कि तरंगों की गति में जल के द्रव्यमान का स्थानांतरण नहीं होता ।

  •  तट की रूपरेखा तरंगों की गति में बाधा उत्पन्न करती है ।
     

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