(अध्ययन सामग्री): भूगोल - विश्व का भूगोल "वाताग"


 अध्ययन सामग्री: विश्व का भूगोल


वाताग(Front)

जब दो अलग-अलग गुणों वाली वायु राशियाँ एक-दूसरे के निकट आती हैं, तो वे मिलती नहीं । उनके सीमान्त छोर दोनों को अलग-अलग बनाये रखते हैं । सीमान्त छोरों की ये अग्ररेखाएँ ही वाताग्र कहलाती हैं । वाताग्र मौसमी क्रियाओं के लिए बहुत अधिक जिम्मेदार होते हैं । चक्रवात तथा तडि़त झंझा इत्यादि की उत्पत्ति इन्हीं वाताग्रों में होती है । दशाएँ - वाताग्रों की उत्पत्ति के लिए निम्न दो दशाओं का होना आवश्यक है ।

  •  भिन्न तापमान - आवश्यक है कि दोनों वायु राशियों का तापमान भिन्न हो
  •  भिन्न दिशा - साथ ही यह भी आवश्यक है कि ये वायु राशियाँ दो अलग-अलग दिशाओं से मिलें अर्थात् इनमें अभिसरण होना चाहिए, अपसरण नहीं ।
  • वाताग्रों के लक्षण -

         1- वाताग्र एक ही रेखा में नहीं पाये जाते, बल्कि उनकी ऊँचाई 3 से 50 किलोमीटर तक होती है ।

         2- वाताग्रों में हवा की गति 50 से 80 किलोमीटर प्रति घंटा होती है ।

         3- वाताग्र लम्बवत रूप से भी गतिशील होते हैं । ये धरातल से तीन किलोमीटर से अधिक ऊँचाई पर नहीं बनते । वाताग्र दाब, पवन दिशा तथा वायु दाब आदि के कारण

           बनते हैं । इसलिए जब ये गुण नष्ट हो जाते हैं, तो वाताग्र भी समाप्त हो जाते हैं ।

  •  वाताग्र वहाँ सबसे अधिक बनते हैं, जहाँ वायु राशियों के तापमान में सबसे अधिक अन्तर पाया जाता है ।
  •  वाताग्र हमेशा अल्प दाब द्रोणिका में ही स्थित रहते हैं ।
     

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