(अध्ययन सामग्री): भूगोल - विश्व का भूगोल "वायु का दाब"


अध्ययन सामग्री: विश्व का भूगोल


वायु का दाब

वायुमण्डल मूलतः गैसों का मिश्रण है, जिसमें जलवाष्प और धूल के कण शामिल होते हैं । यद्यपि यह वायु भारयुक्त होती है, लेकिन जन्म से ही अभ्यस्त होने के कारण हमें उसका अहसास नहीं होता । वायु के भार के कारण पृथ्वी पर जो दबाव पड़ता है, उसे वायु दाब कहा जाता है । इस प्रकार वायुमण्डलीय दबाव का अर्थ है - किसी भी स्थान और समय पर वहाँ की हवा के स्तम्भ का भार ।
हवा के इस दबाव को जिस यंत्र से मापा जाता है, उसे ‘बेरोमीटर’ कहते हैं ।

वायु दाब ऊँचाई बढ़ने के साथ-साथ कम होता जाता है, जबकि तापमान बढ़ने के साथ-साथ घटता जाता है । यदि हवा मे जलवाष्प की मात्रा अधिक होती है, तो दबाव कम हो जाता है और जलवाष्प कम होने से दबाव बढ़ जाता है ।

वायु दाब का वितरण

पृथ्वी के किसी भी स्थान पर वायु का दाब हमेशा एक जैसा नहीं होता । इसमें निरन्तर परिवर्तन होता रहता है । ठीक इसी प्रकार पृथ्वी पर वायु का वितरण भी एक समान नहीं होता ।
वायु का दाब दो प्रकार का होता है - उच्च वायु दाब तथा निम्न वायु दाब । इस आधार पर पृथ्वी पर वायु दाब की चार पेटियों की पहचान की गई हंै, जो निम्न हैं -
 

1/ विषुवत रेखीय निम्न वायु दाब कटिबन्ध

इस विषुवत रेखा के समीप पाँच अंश अक्षांश तक माना जा सकता है । इस पेटी पर वर्षभर सूर्य की किरणें सीधी पड़ती हैं । इसके कारण ठण्डी हवा गर्म होकर ऊपर उठती है और ऊपर की ठण्डी हवा भारी होने के कारण नीचे आ जाती है । नीचे आने पर वह फिर से गर्म होकर ऊपर जाती है । यह क्रम वर्षभर चलता रहता है । इसलिए यहाँ वायु दाब कम रहता है । इस क्षेत्र में धरातल पर भी हवा लगभग गतिमान और शान्त होती है । इसलिए इस क्षेत्र को ‘शान्त कटिबन्ध’ या ‘डोलड्रम्स’ भी कहते हैं ।

2/ उपोष्ण-उच्च दाब कटिबन्ध

इस पेटी का विस्तार दोनों गोलाद्र्धों में 25 से लेकर 35 अंश अक्षांशों के बीच है । विषुवतरेखीय निम्न वायु दाब कटिबन्ध की गर्म हवा हल्की होकर उत्तरी एवं दक्षिणी

ध्रुवों की ओर बढ़ने लगती है । यही हवा ठण्डी होकर 25-35 अक्षांश उत्तर एवं दक्षिण में उतरने लगती है । फलतः यहाँ वायु दाब उच्च हो जाता है । इसे ‘घोड़े का अक्षांश’ भी कहते हैं, क्योंकि प्राचीन काल में वायु दाब की अधिकता के कारण एक घोड़े के व्यापारी को अपने जहाज को बचाने के लिए यहाँ अपने घोड़े समुद्र में फेंकने पड़े थे ।
यहाँ उच्च दाब पाये जाने का कारण पृथ्वी की दैनिक गति भी है । पृथ्वी के घूमने के कारण ध्रुवों के निकट की वायु इन अक्षांशों के बीच एकत्रित हो जाती है, जिससे दबाव बढ़ जाता है ।

3/ उपध्रुवीय निम्न दाब कटिबन्ध

दोनों गोलाद्र्धों में 60 से 70 अंश अक्षांश रेखाओं के निकट निम्न वायु दाब का क्षेत्र पाया जाता है । यद्यपि तापमान के अनुसार यह उच्च दाब का क्षेत्र होना चाहिए था । परन्तु यहाँ निम्न दाब पाया जाता है । ऐसा पृथ्वी के घुर्णन बल के कारण होता है । पृथ्वी की गति के कारण इन अक्षांशों पर हवाएँ फैलकर बाहर की ओर चली जाती है, जिससे यहाँ निम्न दाब बन जाता है ।

4/ धु्रवीय उच्च दाब कटिबन्ध

पृथ्वी के दोनों धु्रवों को औसतन 40 प्रतिशत ही सूर्यातव प्राप्त होता है । यहाँ सूर्य की करणें काफी तिरछी पड़ती हैं । फलस्वरूप यहाँ का तापमान बहुत कम रहता है और धरातल हमेशा बर्फ से ढँका रहता है । इस प्रकार ठण्डी और भारी हवा उच्च दाब क्षेत्र का निर्माण कर देती हैं।

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