(Download) संघ लोक सेवा आयोग सिविल सेवा - दर्शनशास्त्र (प्रश्न-पत्र-2)-2010
(Download) संघ लोक सेवा आयोग सिविल सेवा - मुख्य परीक्षा-2010 दर्शनशास्त्र (प्रश्न-पत्र-2)
खण्ड़ ‘A’
1. नीचे दिए गए चारों भागों के उत्तर दीजिए, जो प्रत्येक 150 शब्दों से अधिक में न हो :
(क) स्वतंत्रता और समता के बीच के सम्बन्ध की प्रकृति पर चर्चा कीजिए।
(ख) कौटिल्य का यह विचार क्यों था कि प्रभुता सोपानिक होती है? स्पष्ट कीजिए।
(ग) क्या जवाबदेही आवश्यक रूप से नैतिक पूर्णता में योगदान देती है? अपने विचार रखिए।
(घ) क्या मानववाद के बिना सामाजिक प्रगति संभव है? परीक्षण कीजिए।
2. नीचे दिए गए तीनों भागों के उत्तर दीजिए, जो प्रत्येक लगभग 200 शब्दों में हो :
(क) आपके विचार में किस प्रकार का समाजवाद श्रेष्ठ है- कल्पनालोकी या लोकतंत्रीय? क्यों?
(ख) "जाति पाप नहीं है, परंतु जातीय भेदभाव पाप है।" एक चिंतित नागरिक होने के नाते, इस कथन पर समालोचनात्मक टिप्पणी कीजिए।
(ग) क्या संपत्ति का अधिकार आर्थिक असमानता पैदा करता है और मानव बंधुत्व के लिए ख़तरा होता है? चर्चा कीजिए।
3. नीचे दिए गए तीनों भागों के उत्तर दीजिए, जो प्रत्येक लगभग 200 शब्दों में हो :
(क) क्या वर्तमान लोकतंत्रीय सरकारों में बहुसंख्यक शासन अर्थपूर्ण तरीके से प्रतिबिंबित है? उपयुक्त उदाहरणों के साथ अपने उत्तर को प्रमाणित कीजिए।
(ख) क्या महिलाओं का केवल राजनीतिक सशक्तिकरण पुरुष-प्रधान भारतीय समाज में स्त्री-पुरुष भेदभाव को मिटा सकता है? यदि मृत्युदंड वैध रूप से अधिनिर्णीत किया गया हो, तो किसी भी नैतिक-राजनीतिक विचार को उसका ध्वंस नहीं करना चाहिए। इसके पक्ष या विपक्ष में अपनी राय अभिव्यक्त कीजिए।
4. नीचे दिए गए तीनों भागों के उत्तर दीजिए, जो प्रत्येक लगभग 200 शब्दों में हो :
(क) आपके विचार में किस प्रकार का व्यक्ति-उदारवादी या समाजवादी राज्य को अधिक शक्तिशाली बनाने में अपेक्षाकृत अधिक योगदान दे सकता है?
(ख) क्या प्रभुता की बोडिन की थियोरी 'हवा में तैरती है? समालोचनापूर्वक परीक्षण कीजिए। जनसंहार की अनुमति देने वाली विभिन्न 'अनुशास्तियों' की सूची बनाइए और प्रत्येक के विरोध में नैतिक प्रतियुक्तियों पर प्रकाश डालिए।
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खण्ड 'B'
5. निम्नलिखित में से प्रत्येक का 150 शब्दों के भीतर उत्तर दीजिए :
(क) ईश्वर के बिना धर्म में केंद्रीय संकल्पना क्या है? चर्चा कीजिए।
(ख) “अमंगल की समस्या तभी उठती है जब हम निर्दोष व्यक्तियों के कष्टभोग के तथ्य को स्वीकारते हए ईश्वर पर अनंत ज्ञान, शक्ति एवं उत्तमता का गुणारोपण कर देते हैं। अपने स्वयं के अनुभव के सम्बन्ध में कोई ग़लती नहीं कर सकता और कष्टभोग एक अनुभव ही है। अतएव, ईश्वर पर अनंत ज्ञान, शक्ति और उत्तमता इन तीन गुणारोपणों में से कम-से-कम एक तो नहीं हो सकता है।" इस तर्क का मूल्यांकन कीजिए।
(ग) जन्म के मुकाबले पुनर्जन्म को पहचानने के लिए किस प्रकार की कसौटी प्रस्तुत की जा सकती है? चर्चा कीजिए।
(घ) यदि नैतिकता को धर्म का अनुगमन करना आवश्यक हो, तो नैतिक कार्यों के लिए क्या कोई युक्तिसंगत औचित्य हो सकता है? चर्चा कीजिए।
6. निम्नलिखित में से प्रत्येक का लगभग 200 शब्दों में उत्तर दीजिए:
(क) क्या ईश्वर के अस्तित्व के लिए प्रासंगिक तर्क, एक तार्किक कसरत से कुछ अधिक है? चर्चा कीजिए।
(ख) यदि प्रत्येक तर्क के लिए यह मानना जरूरी हो कि उसकी आधारिकाएँ सत्य हैं, तो ईश्वर के अस्तित्व के लिए प्रथम कारण के रूप में क्या कारणात्मक तर्क, उसको सही मान लेने से भिन्न होगा? अपनी स्थिति के पक्ष में तर्क दीजिए।
(ग) मानव मन ही ऐसा है कि वह स्वाभाविक रूप से प्रकृति में व्यवस्था का प्रेक्षण करता है। इस बात को स्वीकार कर लेने के उपरांत, क्या ईश्वर के अस्तित्व के लिए, अभिकल्पना से प्राप्त तर्क का उपयोग किया जा सकता है? चर्चा कीजिए।
7. नीचे दिए गए प्रत्येक भाग का लगभग 200 शब्दों में उत्तर दीजिए :
(क) मोक्ष प्राप्ति के लिए ईश्वर की कृपा की आवश्यकता क्यों होती है? एक उदाहरण प्रस्तुत करते हुए इस पर चर्चा कीजिए।
(ख) 'जीवात्मा' की भारतीय संकल्पना और 'आत्मा' की प्लेटो की संकल्पना के बीच विभेदन कीजिए। यदि कष्टभोग का कारण अज्ञान है, तो ज्ञान से कष्टभोग मिट जाना चाहिए। मुक्ति-प्राप्त व्यक्ति जिस ज्ञान को प्राप्त कर लेता है, उस ज्ञान से क्या अभिप्राय है? चर्चा कीजिए।
8. नीचे दिए गए प्रत्येक भाग का लगभग 200 शब्दों में उत्तर दीजिए :
(क) यदि धार्मिक अनुभव अद्वितीय हो, तो क्या चीज है जो उसको अनुभव बनाती है? तार्किक रूप से, यह अनुभव अकेलापन, सुख आदि के अनुभव से किस प्रकार भिन्न है?
(ख) धार्मिक भाषा कार्य करने के लिए सादृश्य और प्रतीक के लिए प्राकृतिक भाषा पर आश्रित है। ऐसी स्थिति में धार्मिक भाषा को तारप्रेषणी भाषा की भाँति, एक विशेषीकृत भाषा के रूप में क्यों नहीं समझा जाना चाहिए? चर्चा कीजिए। यह तथ्य कि विभिन्न धर्मों की उत्पत्ति विभिन्न स्थानों पर और विभिन्न शताब्दियों में हुई थी, साबित करता है कि धर्मों का अनेकत्व भी एक तथ्य है। यह कहना कहाँ तक सही होगा कि सभी धर्म आवश्यक रूप से एक ही हैं? चर्चा कीजिए।
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Courtesy : UPSC