संघ लोक सेवा आयोग सिविल सेवा - मुख्य परीक्षा UPSC Mains Exam Hindi - SYLLABUS (वनस्पति विज्ञान-Botany)
संघ लोक सेवा आयोग सिविल सेवा - मुख्य परीक्षा UPSC Mains Exam Hindi - SYLLABUS
(वनस्पति विज्ञान-Botany)
प्रश्न पत्र-1
1. सूक्ष्मजैविकी एवं पादपरोग विज्ञान: विषाणु, वाइराॅइड, जीवाणु, पंफगाई एवं माइकोप्लाज्मा संरचना एवं जनन । बहुगुणन । कृषि, उद्योग चिकित्सा तथा वायु एवं मृदा एवं जल में प्रदूषण-नियंत्राण में सूक्ष्मजैविकी के अनुप्रयोग। प्रायोन एवं प्रायोन घटना ।
विषाणुओं, जीवाणुओं, माइक्रोप्लाज्मा, पंफगाई तथा सूत्राकृमियों द्वारा होने वाले प्रमुख पादप रोग । संक्रमण और पैफलाव की विधियाँ । संक्रमण तथा रोग प्रतिरोध् के आण्विक आधर । परजीविता की कार्यिकी और नियंत्राण के उपाय । कवक आविष । माॅडलन एवं रोग पूर्वानुमान, पादप संगरोध् ।
2. क्रिप्टोगेम्स:शैवाल, कवक, लाइकन, ब्रायोपफाइट, टेरीडोपफाइट-संरचना और जनन के विकासात्मक पहलू । भारत में क्रिप्टोगेम्स का वितरण और उनका परिस्थितिक एवं आर्थिक महत्व ।
3. पुष्पोद्भिद: अनावृत बीजी: पूर्व अनावृत बीजी की अवधरणा । अनावृतबीजी का वर्गीकरण और वितरण । साइकैडेलीज, गिंगोऐजीज, कोनीपेफरेलीज और नीटेलीज के मुख्य लक्षण, संरचना व जनन । साईकैडोपिफलिकैलीज, बैन्नेटिटेलीज तथा कार्डेटेलीज का सामान्य वर्णन । भूवैज्ञानिक समयमापनी, जीवाश्मप्रकार एवं उनके अध्ययन की विधियाँ । आवृतबीजी: वर्गिकी, शारीरिकी, भ्रूणविज्ञान, परागाणुविज्ञान और जातिवृत । वर्गिकी सोपान, वानस्पतिक नाम पद्दति के अंतर्राष्ट्रीय कूट, संख्यात्मक वर्गिकी एवं रसायन-वर्गिकी शारीरिकी, भ्रूण विज्ञान एवं परागाणु विज्ञान से साक्ष्य । आवृत बीजियों का उद्गम एवं विकास, आवृत बीजियों के वर्गीकरण की विभिन्न प्रणालियों का तुलनात्मक विवरण, आवृत बीजी कुलों का अध्ययन-मैग्नोलिएसी, रैननकुलैसी, ब्रैसीकेसी, रोजेसी, पेफबेसी, यूफार्बिएसी, मालवेसी, डिप्टेरेकार्पेसी, एपिएसी, एस्क्लेपिडिएसी, वर्बिनेसी, सोलैनेसी, रूबिएसी, कुकुरबिटेली, ऐस्टीरेसी, पोएसी, ओरकेसी, लिलिएसी, म्यूजेसी एवं आॅकिडेसी । रंध्र एवं उनके प्रकार, ग्रंथीय एवं अग्रंथीय ट्राइकोम, विसंगत द्वितीयक वृद्दि, सी-3 और सी-4 पौधें का शरीर । जाइलम एवं पफलोएम विभेदन, काष्ठ शरीर । नर और मादा युग्मकोदृभिद् का परिवर्धन, परागण, निषेचन । भ्रूणपोष-इसका परिवर्धन और कार्य । भ्रूण परिवर्धन के स्वरूप । बहुभ्रूणता, असंगजनन, परागाणु विज्ञान के अनुप्रयोग, परागभंडारण एवं टेस्ट ट्यूब निषेचन सहित प्रयोगात्मक भ्रूण विज्ञान ।
4. पादप संसाध्न विकास:पादप ग्राम्यन एवं परिचय, कृष्ट पौधें का उद्भव, उद्भव संवर्धी वैवीलोव के केद्र, खाद्य, चारा, रेशों, मसालों, पेय पदार्थों, खाद्य तेलों, औषध्यिों, स्वापकों, कीटनाशियों, इमारती लकड़ी, गोंद, रेजिनों तथा रंजकों के स्रोतों के रूप में पौध्े, लेटेक्स, सेलुलोस, मंड और उनके उत्पाद । इत्रासाजी । भारत के संदर्भ में नुकुलवनस्पतिकी का महत्व । उफर्जा वृक्षरोपण, वानस्पतिक उद्यान और पादपालय ।
5. आकारजनन: पूर्ण शक्तता, ध्रुवणता, सममिति और विभेदन । कोशिका, उफतक, अंग एवं जीवद्रव्यक संवर्धन । कायिक संकर और द्रव्य संकर । माइक्रोप्रोपेगेशन, सोमाक्लोनल विविधता एवं इसका अनुप्रयोग, पराग अगुणित, अम्ब्रियोरेस्क्यु विधियाँ एवं उनके अनुप्रयोग ।
प्रश्न पत्र-2
1. कोशिका जैविकी: कोशिका जैविकी की प्रविधियाँ । प्राक्केंद्रकी और सुकेंद्रकी कोशिकाएँ,संरचनात्मक और परासंरचनात्मक बारीकियाँ । कोशिका बाह्य आधत्राी अथवा कोशिकाबाह्य आव्यूह ;कोशिका भित्तिद्ध तथा झिल्लियों की संरचना और कार्य-कोशिका आसंजन, झिल्ली अभिगमन तथा आशयी अभिगमन । कोशिका अंगकों ;हरित लवक सूत्राकणिकाएँ, ई आर, डिक्टियोसोम, राइबोसोम, अंतःकाय, लयनकाय, परआॅक्सीसोमद्ध की संरचना और कार्य । साइटोस्केलेटन एवं माइक्रोट्यूब्यूल्स, केंद्रक, केंद्रिक, केंद्री रंध््र सम्मिश्र । क्रोमेटिन एवं न्यूक्लियोसोम । कोशिका संकेतन और कोशिकाग्राही । संकेत पारक्रमण । समसूत्रण और अर्धसूत्रण विभाजन, कोशिका चक्र का आण्विक आधर । गुणसूत्रों में संख्यात्मक और संरचनात्मक विभिन्नताएँ तथा उनका महत्व । क्रोमेटिन व्यवस्था एवं
जीनोम संवेष्टन, पाॅलिटीन गुणसूत्रा, बी-गुणसूत्रा-संरचना व्यवहार और महत्व ।
2. आनुवंशिकी, आण्विक जैविकी और विकास:आनुवंशिकी का विकास और जीन बनाम युग्मविकल्पी अवधरणा ;कूट विकल्पीद्ध, परिमाणात्मक आनुवंशिकी तथा बहुकारक । अपूर्ण प्रभाविता, बहुजननिक वंशागति, बहुविकल्पी सहलग्नता तथा विनिमय, आण्विक मानचित्रा ;मानचित्रा प्रकार्य की अवधरणद्ध सहित जीन मानचित्राण की विधियाँ । लिंग गुणसूत्रा तथा लिंग सहलग्न वंशागति, लिंग निर्धरण और लिंग विभेदन का आण्विक आधर । उत्परिवर्तन ;जैव रासायनिक और आण्विक आधरद्ध कोशिकाद्रव्यी वंशागति एवं कोशिकाद्रव्यी जीन ;नर बंध्यता की आनुवंशिकी सहितद्ध । न्यूक्लीय अम्लों और प्रोटीनों की संरचना तथा संश्लेषण । अनुवंशिक कूट और जीन अभिव्यक्ति का नियमन । जीन नीरवता, बहुजीन कुल, जैव विकास-प्रमाण, क्रियाविध तथा सिद्दांत । उद्भव तथा विकास में त्छ। की भूमिका ।
3. पादप प्रजनन, जैव प्रोद्योगिकी तथा जैव सांख्यिकी: पादप प्रजनन की विधियाँ-आप्रवेश, चयन तथा संकरण । ;वंशावली, प्रतीप संकर, सामूहिक चयन, व्यापक पद्दतिद्ध उत्परिवर्तन, बहुगुणिता, नरबंध्यता तथा संकर ओज प्रजनन । पादप प्रजनन में असंगजनन का उपयोग । DNA। अनुक्रमण, आनुवंशिक इंजीनियरी-जीन अंतरण की विधियाँऋ पारजीनी सस्य एवं जैव सुरक्षा पहलू, पादप प्रजनन में आण्विक चिर्किं का विकास एवं उपयोग । उपकरण एवं तकनीक-प्रोब, दक्षिणी ब्लास्टिंग, DNA फिंगरप्रिंटिग, PCR एवं FISH मानक विचलन तथा विचरण गुणांक ;सी बीद्ध, सार्थकता परीक्षण, ;जैड-परीक्षण, टी-परीक्षण तथा काई-वर्ग परीक्षणद्ध । प्रायिकता तथा बंटन ;सामान्य, द्विपदी तथा प्वासों बंटनद्ध संबंध्न तथा समाश्रयण ।
4. शरीर क्रिया विज्ञान तथा जैव रसायनिकी:जल संबंध्, खनिज पोषण तथा आयन अभिगमन, खनिज न्यूनताएँ । प्रकाश संश्लेषण-प्रकाश रसायनिक अभिक्रियाएँ, पफोटो पफोस्पफोरिलेशन एवं कार्बन पिफक्सेशन पाथवे, C3 एव C4 और कैम दिशामार्ग । फ्रलोएम
परिवहन की क्रियाविधि श्वशन(किण्वन सहित अवायुजीवीय और वायुजीवीयद्ध) इलेक्ट्राॅन अभिगमन शृंखला और आॅक्सीकरणी पफास्पफोरिलेशन पफोटो श्वसन, रसोपरासरणी सिद्दांत तथा ATP संश्लेषण । लिपिड उपापचय, नाईट्रोजन स्थिरीकरण एवं नाइट्रोजन उपापचय । किण्व, सहकिण्व, उफर्जा अंवरण तथा उर्जा संरक्षण । द्वितीयक उपापचयजों का महत्व । प्रकाशग्राहियों के रूप में वर्णक ;पलैस्टिडियल वर्णक तथा पादप वर्णकद्ध, पादप संचलन, दीप्तिकालिता तथा पुष्पन, बसंतीकरण, जीर्णन । वृद्दि पदार्थ,उनकी
रासायनिक प्रकृति, कृषि बागवानी में उनकी भूमिका और अनुप्रयोग,वृद्दिसंकेत, वृद्दिगतियाँ । प्रतिबल शारीरिकी ;ताप, जल, लवणता, धतुद्ध । पफल एवं बीज शारीरिकी । बीजों की प्रसुप्ति, भंडारण तथा उनका अंकुरण ।फल का पकना,इसका आण्विक आधर तथा मैनिपुलेशन ।
5. परिस्थितिकी तथा पादप भूगोल:परितंत्रा की संकल्पना, पारिस्थितिक कारक । समुदाय की अवधरणाएँ और गतिकी पादप अनुक्रमण । जीव मंडल की अवधारणा । पारितंत्रा, संरक्षण । प्रदूषण और उसका नियंत्राण ;पफाइटोरेमिडिएशन सहितद्ध। पादप सूचक, पर्यावरण ;संरक्षण अधियमन । भारत में वनों के प्रारूप,वनों का पारिस्थितिक एवं आर्थिक महत्व । वनरोपण, वनोन्मूलन तथा सामाजिक वानिकी । संकटापन्न पौध्, स्थानिकता, IUCN कोटियाँ, रेड डाटा बुक । जैव विविधता एवं उसका संरक्षण, संरक्षित क्षेत्र नेटवर्क, जैव विविधता पर सम्मेलन, किसानों के अधिकारएवं बौद्दिक संपदा अधिकार, संपोषणीय विकास की संकल्पना, जैव-भू-रासायनिक चक्र, भूमंडलीय तापन एवं जलवायु परिवर्तन, संक्रामक जातियाँ, पर्यावरणीय प्रभाव मूल्यांकन, भारत के पादप भूगोलीय क्षेत्र ।