(अध्ययन सामग्री): भूगोल - विश्व का भूगोल "वायुमण्डल"
अध्ययन सामग्री: विश्व का भूगोल
वायुमण्डल
पृथ्वी के चारों तरफ कई सौ किलोमीटर ऊँचाई तक व्याप्त गैस का भाग वायुमण्डल कहलाता है । वैज्ञानिकों का मानना है कि शुरूआत में पृथ्वी से हिलीयम और हाइड्रोजन जैसी बहुत ही हल्की गैसों के अलग हो जाने से वायुमण्डल का निर्माण हुआ होगा। चूँकि ये दोनों ही गैसें बहुत अधिक हल्की होती हैं, इसलिए स्वाभाविक रूप से ये गैस वर्तमान में भी सबसे अधिक ऊँचाई पर पाई जाती हैं ।
जलवायुशास्त्र के वैज्ञानिक क्रिचफील्ड के अनुसार वर्तमान वायुमण्डल 50 करोड़ वर्ष पुराना है । अर्थात् क्रेम्ब्रीयन युग में अस्तित्त्व में आया होगा । यह वायुमण्डल पृथ्वी की गुरूत्त्वाकर्षण शक्ति के कारण उससे बँधा हुआ है।
वायुमण्डल पृथ्वी के लिए ग्रीन हाउस प्रभाव (विशाल काँचघर) की तरह काम करता है । यह सौर विकीकरण की लघु तरंगों को तो पृथ्वी पर आने देता है, किन्तु पृथ्वी द्वारा लौटाई गई दीर्घ तरंगों को बाहर जाने से रोक देता है । यही कारण है कि पृथ्वी का औसत तापमान 35 अंश सेन्टीग्रेड तक बना रहता है ।
वायुमण्डल में व्याप्त तत्त्व
वायुमण्डल में अनेक तरह की गैसों के अतिरिक्त जलवाष्प तथा धूल के कण भी काफी मात्रा में पाये जाते हैं । वायुमण्डल के निचले हिस्से में कार्बनडायऑक्साइड तथा नाइट्रोजन जैसी भारी और सक्रिय गैसे पाई जाती हैं । ये क्रमशः पृथ्वी से 20 किलोमीटर, 100 किलोमीटर तथा 125 किलोमीटर की ऊँचाई पर व्याप्त हैं ।
इसके अतिरिक्त नियाँन, मिप्टान और हिलीयम जैसी हल्की गैसे भी हैं, जिनका अनुपात काफी कम है । उल्लेखनीय है कि वायुमण्डल में कार्बनडायऑऑ क्साइड का अनुपात मात्र 0.03 ही है । किन्तु पृथ्वी पर जीवन के संदर्भ में यह बहुत अनिवार्य है, क्योंकि यह गैस ताप का अवशोषण कर लेती है, जिसके कारण वायुमण्डल की परतें गर्म रहती हैं ।
जबकि इसके विपरीत वायुमण्डल में नाइट्रोजन 79 प्रतिशत तथा ऑक्सीजन 21 प्रतिशत होती है । बहुत अधिक ऊँचाई पर कम मात्रा में ही सही ; लेकिन ओजोन गैस का पाया जाना भी जलवायु की दृष्टि से अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है । ओजोन मण्डल सूर्य से निकलने वाली पराबैगनी किरणों को आंशिक रूप से सोखकर पृथ्वी के जीवों को अनेक तरह की बीमारियों से बचाता है ।
धूल के कण -
वस्तुतः वायुमण्डल में गैस और जलवाष्प के अतिरिक्त जितने भी ठोस पदार्थों के कण मौजूद रहते हैं, वे धूल-कण ही हैं । इनका जलवायु की दृष्टि से बहुत अधिक महत्त्व है। ये विकीकरण के कुछ भाग को सोखते हैं और उनका परावर्तन भी करते हैं । इन्हीं के कारण आकाश नीला तथा सूर्योंदय एवं सूर्यास्त के समय लाल दिखाई देता है।
वायुमण्डल की संरचना
व्यावहारिक रूप में धरातल से आठ सौ किलोमीटर की ऊँचाई ही वायुमण्डल की दृष्टि से अधिक महत्त्वपूर्ण है । अंतरिक्ष वैज्ञानिकों ने वायुमण्डल की इस ऊँचाई को अनेक समानान्तर स्तरों पर विभाजित किया है । इस विभाजन का आधार वायुमण्डल में तापमान का वितरण है ।
ये स्तर निम्न हैं:-
(i) क्षोभ मण्डल (Trotosphere) यह वायुमण्डल की सबसे निचली परत है जो पृथ्वी से 14 किलोमीटर ऊपर तक मानी जाती है । जलवायु एवं मौसम की दृष्टि से यह परत विशेष महत्त्वपूर्ण है, क्योंकि सभी मौसमी घटनाएँ इसी स्तर पर सम्पन्न होती हैं ।
इस मण्डल की एक प्रमुख विशेषता है - ऊँचाई में वृद्धि के साथ तापमान में गिरावट का होना । इस परत में प्रति किलोमीटर 6.5 डिग्री सेल्सियस तापमान कम हो जाता है । चूँकि इस परत पर बादल और तूफान आदि की उत्पत्ति होती है, इसीलिए विमान चालक इस मण्डल में वायुयान चलाना पसन्द नहीं करते । शायद इसीलिए इसे ‘‘क्षोभ मण्डल’’ भी कहा जाता है ।
(ii) समताप मण्डल (Stratosphere) इसकी शुरूआत क्षोभ मण्डल से होती है जो 30 किलोमीटर ऊपर तक मानी जाती है । इसे स्तरण मण्डल (Region of staratification) भी कहा जाता है । इस मण्डल की विशेष बात यह है कि इसमें ऊँचाई में वृद्धि के साथ तापमान का नीचे गिरना समाप्त हो जाता है । वायुमण्डल की यह परत विमान चालकों के लए आदर्श होती है । चूँकि इस मण्डल में जलवाष्प एवं धूल के कण नहीं पाये जाते, इसलिए यहाँ बादलों का निर्माण नहीं होता ।
(iii) मध्य मण्डल (Mesosphere) यह 30 किलोमीटर से शुरू होकर 60 किलोमीटर की ऊँचाई पर स्थित है । इसे ओजोन मण्डल भी कहा जाता है । चूँकि इस परत में रासायनिक प्रक्रिया बहुत होती है इसलिए इसे ‘केमोसफियर भी कहते हैं ।
वस्तुतः इस मण्डल में ओजोन गैस की प्रधानता होती है जो पराबैगनी किरणों को छानने का काम करता है । साथ ही यह सौर विकीकरण के अधिक भाग को सोख लेता है। इसलिए यह जीवन के लिए बहुत उपयोगी मण्डल है ।
(iv) ताप मण्डल(Thermosphere) मध्य-मण्डल के बाद वायुमण्डलीय घनत्त्व बहुत कम हो जाता है । यहाँ से तापमान बढ़ने लगता है, जो 350 किलोमीटर की ऊँचाई तक पहुँचते-पहुँचते लगभग 12 सौ डिग्री सेल्सियस हो जाता है । इस क्षेत्र में लौह कणों की प्रधानता होती है, इसलिए इसे ‘आयनोस्फियर’ भी कहा जाता है । इन कणों की प्रधानता के कारण ही यहाँ रेडियो की तरंगें बदलती रहती हैं । यह मण्डल 80 किलोमीटर से शुरू होकर 640 किलोमीटर ऊँचाई तक फैला हुआ है।
(v) ताप मण्डल (Exosphere) यह वायुमण्डल की सबसे ऊपरी परत है । इसकी ऊँचाई 600 से 1000 किलोमीटर तक मानी जाती है । इसे अन्तरिक्ष और पृथ्वी के वायुमण्डल की सीमा माना जा सकता है । इसके पश्चात् अन्तरिक्ष प्रारंभ हो जाता है ।