(Sample Material) सामान्य अध्ययन (पेपर -1) ऑनलाइन प्रशिक्षण कार्यक्रम: भारतीय राजव्यवस्था एवं अभिशासन - "केंद्रशासित प्रदेश"
सामान्य अध्ययन ऑनलाइन प्रशिक्षण कार्यक्रम का (Sample Material)
विषय: भारतीय राजव्यवस्था एवं अभिशासन
केंद्रशासित प्रदेश
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संविधान के अनुच्छेद 1 में भारत का राज्य क्षेत्र तीन श्रेणियों में बांटा गया है- (अ) राज्य क्षेत्र (ब) केंद्रशासित प्रदेश और (स) ऐसे अन्य राज्य क्षेत्र, जो भारत सरकार द्वारा किसी भी समय अर्जित किए जाएं। वर्तमान में 28 राज्य, 7 केंद्रशासित प्रदेश हैं, किंतु कोई अर्जित राज्य क्षेत्र नहीं है ।
सभी राज्य भारत की संघीय व्यवस्था के सदस्य हैं और वह केंद्र के साथ शक्ति के विभाजन के सहभागी हैं। दूसरी ओर, केंद्रशासित प्रदेश वह क्षेत्र है, जो केंद्र सरकार के सीधे नियंत्रण में होता है इसलिए ऐसे प्रदेशों को केंद्रशासित क्षेत्र भी कहते हैं। इस प्रकार से ये प्रदेश संघीय प्रणाली से भिन्न हैं। जहां तक इन केंद्रशासित प्रदेशों एवं दिल्ली के संबंध की बात है तो भारत सरकार इस संबंध में पूर्णतः एकांकी है ।
केंद्रशासित प्रदेशों का गठन
ब्रिटिश शासनकाल में वर्ष 1874 में कुछ अनुसूचित जिले बनाए गए। बाद में इसे मुख्य आयुक्तीय क्षेत्र के नाम से जाना जाने लगा। स्वतंत्रता के बाद इन्हें भाग-ग तथा घ राज्यों की श्रेणी में रखा गया। 1956 में 7वें संविधान संशोधन अधिनियम व राज्य पुनर्गठन अधिनियम के तहत इन्हें केंद्रशासित प्रदेशों के रूप में गठित किया गया। धीरे- धीरे, कुछ केंद्रशासित प्रदेशों को पूर्ण राज्य का दर्जा मिल गया। हिमाचल प्रदेश, मणिपुर, त्रिपुरा, मिजोरम, अरुणाचल प्रदेश व गोवा शुरुआत में केंद्रशासित प्रदेश थे लेकिन अब ये सभी पूर्ण राज्य हैं। दूसरी ओर पुर्तगालियों से लिए गए क्षेत्र (गोवा, दमन-दीव और दादरा और नगर हवेली) तथा फ्रंासीसियों से लिया गया क्षेत्र (पुदुचेरी) केंद्रशासित प्रदेश बनाए गए ।
वर्तमान में सात केंद्रशासित प्रदेश हैं, ये हैं (गठन के वर्ष के साथ) - (1) अंडमान एवं निकोबार द्वीप समूह- 1956, (2) दिल्ली- 1956, (3) लक्षद्वीप- 1956, (4) दादरा और नगर हवेली - 1961, (5) दमन व दीव- 1962 (6) पुदुचेरी तथा (7) चंडीगढ़- 1966। 1973 तक लक्षद्वीप को लकादीव, मिनीकाॅय एवं अमिनदिवी द्वीप के नाम से जाना जाता था। 1992 में दिल्ली को श् राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली श् के रूप में जाना जाने लगा। 2006 तक पुदुचेरी को पांडिचेरी के नाम से जाना जाता था ।
केंद्रशासित प्रदेशों का गठन अनेक कारणों से किया गया ये कारण निम्नलिखित हैं-
1. राजनीतिक व प्रशासनिक सोच-दिल्ली एवं चंडीगढ़ ।
2. सांस्कृतिक भिन्नताएं-पुदेचेरी, दादरा और नगर हवेली ।
3. सामरिक महत्व- अंडमान और निकोबार द्वीप समूह तथा लक्षद्वीप ।
4. पिछड़े एवं अनुसूचित लोगों के लिए विशेष बर्ताव व देखभाल-मिजोरम, मणिपुर, त्रिपुरा
व अरुणाचल प्रदेश-ये बाद में पूर्ण राज्य बन गए ।
केंद्रशासित प्रदेशो का प्रशासन
संविधान के भाग VIII के अंतर्गत. अनुच्छेद 239 - 241 में केंद्रशासित प्रदेशों के संबंध में उपबंध हैं। यद्यपि सभी केंद्रशासित प्रदेश एक ही श्रेणी के हैं लेकिन उनकी प्रशासनिक पद्धति में समानता नहीं है ।
प्रत्येक केंद्रशासित प्रदेश का प्रशासन राष्ट्रपति द्वारा संचालित होता है, जो एक प्रशासक के माध्यम से किया जाता है। केंद्रशासित प्रदेश का प्रशासक राष्ट्रपति का एजेंट या अभिकर्ता होता है, न कि राज्यपाल की तरह राज्य प्रमुख्य। राष्ट्रपति, प्रशासक को पदनाम दे सकता है। वे लेफ्टिनेंट-गवर्नर (दिल्ली अंडमान निकोबार द्वीप समूह और पुदुचरी में) या प्रशासक (चण्डीगढ, दमन और दीव तथा लक्षद्वीप में) हो सकते हैं। राष्ट्रपति, किसी राज्य के राज्यपाल को राज्य से सटे केंद्रशासित प्रदेशों का प्रशासक नियुक्त कर सकता है। इस हैसियत में राज्यपाल अपनी मंत्रिपरिषद के बिना स्वतंत्र रूप से कार्य करता है। केंद्रशासित प्रदेश पुदुचेरी (1963) और दिल्ली (1992) में विधानसभा गठित की गई और मंत्रिमंडल, मुख्यमत्री के अधीन कर दिया गया। शेष पांच केंद्रशासित प्रदेशों में इस तरह की राजनीतिक संस्था नहीं हैं परंतु केंद्रशासित प्रदेशों में इस तरह की व्यवस्था बनाने का यह अर्थ बिल्कुल नहीं है कि उन पर राष्ट्रपति व संसद का सर्वोच्च नियंत्रण कम हो गया है ।
संसद, केंद्रशासित प्रदेशों के लिए तीनों सूचियों (राज्य के विषय भी) के विषयों पर विधि बना सकती है। संसद की इस शक्ति का विस्तार पुदुचेरी व दिल्ली तक है, जबकि इनकी अपनी विधायिकायें हैं। इसका अभिप्राय है कि किसी केंद्रशासित राज्य की अपनी विधायिका होने के बावजूद राज्य सूची के विषयों पर संसद की विधायिका शक्ति खत्म नहीं होती है। परंतु पुदुचेरी विधानसभा, राज्य सूची व समवर्ती सूची के विषयों पर विधि बना सकती है ।
इसी तरह दिल्ली भी राज्य सूची (लोक व्यवस्था, पुलिस व भूमि को छोड़कर) व समवर्ती सूची के विषयों पर विधि बना सकती है। राष्ट्रपति, अंडमान व निकोबार द्वीप समूह, लक्षद्वीप, दादरा एवं नगर हवेली तथा दमन एवं दीव में शांति, विकास व अच्छी सरकार के लिए विनियम बना सकता है। पुदुचेरी में भी राष्ट्रपति विधि बना सकता है बशर्ते वहां विधानसभा विद्यटित हो या बर्खास्त हो। राष्ट्रपति द्वारा बनाई गई विधियों की शक्ति व प्रभाव संसद के अधिनियमों की ही तरह है और वह संसद के किसी अधिनियम को समाप्त या संशोधित कर सकता है ।
संसद, किसी केंद्रशासित प्रदेशों में उच्च न्यायालय की स्थापना कर सकती है या उसे निकटवर्ती राज्य के उच्च न्यायालय के अधीन कर सकती है। दिल्ली ही एकमात्र ऐसा केंद्रशासित प्रदेश है, जिसका स्वयं का उच्च न्यायालय (1966 से) है। दादरा और नगर हवेली एवं दमन व दीव, बंबई उच्च न्यायालय के दायरे में हैं। उसी तरह अंडमान व निकोबार द्वीप समूह, चंडीगढ़, लक्षद्वीप और पुदुचेरी क्रमशः कलकत्ता, पंजाब एवं हरियाणा, केरल व मद्रास उच्च न्यायालय के दायरे में आते हैं ।
संविधान में अधिगृहीत प्रदेशों के प्रशासन के लिए अलग से उपबंध नहीं हैं परंतु केंद्रशासित प्रदेशों के प्रशासन के संवैधानिक उपबंध अधिगहीत क्षेत्रों के लिए लागू होते हैं।