(Sample Material) सामान्य अध्ययन (पेपर -1) ऑनलाइन प्रशिक्षण कार्यक्रम: भारतीय राजव्यवस्था एवं अभिशासन - "मूल कर्तव्य"

सामान्य अध्ययन ऑनलाइन प्रशिक्षण कार्यक्रम का (Sample Material)

विषय: भारतीय राजव्यवस्था एवं अभिशासन

अध्याय: मूल कर्तव्य

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यद्यपि नागरिकों के अधिकार और कर्तव्य आपस में संबंधित और अभिभाज्य हैं लेकिन मूल संविधान में मूल अधिकारों को रखा गया, न कि मूल कर्तव्यों को । दूसरे शब्दों में, संविधान निर्माताओं ने यह आवश्यक नहीं समझा कि नागरिकों के मूल कर्तव्यों को संविधान में जोड़ा जाए । हालांकि उन्होंने राज्य के कर्तव्यों को राज्य के निदेशक तत्वों के रूप में शामिल किया । बाद में 1976 में नागरिकों के मूल कर्तव्यों को संविधान में जोड़ा गया । 2002 में एक और मूल कर्तव्य को जोड़ा गया ।

भारतीय संविधान में मूल कर्तव्यों को पूर्व रूसी संविधान से प्रभावित होकर लिया गया है । उल्लेखनीय है कि प्रमुख लोकतांत्रिक देशों, जैसे- अमेरिका, कनाडा, फ्रांस, जर्मनी, आस्ट्रेलिया आदि के संविधानों में नागरिकों के कर्तव्यों को विश्लेषित नहीं किया गया है। संभवतः एकमात्र जापानी संविधान में नागरिकों के कर्तव्यों को रखा गया है । इसके विपरीत समाजवादी देशों ने अपने नागरिकों के मूल अधिकारों एवं कर्तव्यों को बराबर महत्व दिया है । रूस के संविधान में घोषणा की गई कि नागरिकों के अधिकार प्रयोग एवं स्वतंत्रता उनके कर्तव्यों एवं दायित्वों के निष्पादन से अविभाज्य हैं ।
स्वर्ण सिंह समिति की सिफारिशें

1976 में कांग्रेस पार्टी ने सरदार स्वर्णू सिंह समिति का गठन किया, जिसे राष्ट्रीय आपातकाल के (1975-77) दौरान मूल कर्तव्यों, उनकी आवश्यकता आदि के संबंध संस्तुति देनी थी । समिति ने सिफारिश की कि संविधान में मूल कर्तव्यों का एक अलग पाठ होना चाहिए । इसमें बताया गया कि नागरिकों को अधिकारों के प्रयोग के अलावा अपने कर्तव्यों को-निभाना भी आना चाहिए । केंद्र में कांग्रेस सरकार ने इन सिफारिशों को स्वीकार करते हुए 42वे संविधान संशोधन अधिनियम 1976 को लागू किया । इसके माध्यम से संविधान में एक नए भाग प्ट क को जोड़ा गया । इस नए भाग में केवल एक अनुच्छेद था और वह अनुच्छेद 51 क था, जिसमें पहली बार नागरिकों के दस मूल कर्तव्यों का विशेष उल्लेख किया गया । सत्तारूढ़ कांग्रेस पार्टी ने घोषणा की किसंविधान में मूल कर्तव्यों को न जोड़ा जाना ऐतिहासिक भूल थी और दावा किया कि जो काम संविधान निर्माता नहीं कर पाए उसे अब किया गया है ।

यद्यपि स्वर्ण सिंह समिति ने संविधान में आठ मूल कर्तव्यों को जोड़े जाने का सुझाव दिया था, लेकिन 42वें संविधान संशोधन अधिनियम (1976) द्वारा 10 मूल कर्तव्यों को जोड़ा गया ।

समिति द्वारा दी गई कुछ सिफारिशों को कांग्रेस पार्टी द्वारा स्वीकार नहीं किया गया और इन्हें संविधान में शामिल नहीं किया गया। इनमें शामिल हैं-

1. संसद किसी आर्थिकदंडया सजाका प्रावधान तब करसकती है, जब कोई किसी कर्तव्य के अनुपालन से इक्तार कर दे।
2. मूल अधिकारों के लागू करने के आधार या मूल कर्तब्यों के अरुचिकर होने के आधार पर कोई भी कानून इस तरह का अर्थ दंड या सजा लगाने का प्रावधान अदालत द्वारा नहीं करेगा ।
3. कर अदायगी भी नागरिकों का मूल कर्तव्य होना चाहिए।

मूल कर्तव्यों की सूची

अनुच्छेद 51 क के अनुसार भारत के प्रत्येक नागरिक का कर्तव्य होगा कि वह-

(क) संविधान का पालन करें और उसके आदर्शों संस्थाओं राष्ट्र ध्वज और राष्ट्र गान का आदर करें ।
(ख) स्वतंत्रता के लिए हमारे राष्ट्रीय आंदोलन को प्रेरित करने वाले उच्च आदर्शों को हृदय में संजोए रखें और उनका पालन करें ।
(ग) भारत की संप्रभुता, एकता और अखंडता की रक्षा करें और उसे असुण्ण रखें ।
(घ) देश की रक्षा करें और आह्वान किए जाने पर राई की सेवा करें ।
(ड) भारत के सभी लोगों में समरसता और समान भ्रातत्व की भावना का निर्माण करें जो धर्म, धर्म, भाषा और प्रदेश या वर्ग आधारित सभी भेदभाव से परे हों, ऐसी प्रथाओं का त्याग करें जो स्त्रियों के सम्मान के विरूद्ध हैं ।
(च) हमारी सामाजिक संस्कृति की गौरवशाली परंपरा का महत्व समझें और उसका परिरक्षण करें ।
(छ) प्राकृतिक पर्यावरण की, जिसके अंतर्गत वन, झील, नदी और वन्य जीव हैं, रक्षा करें और उसका संवर्धन करें तथा प्राणिमात्र के प्रति दयाभाव रखें ।
(ज) वैज्ञानिक दृटिकोण मानववाद और ज्ञानार्जन तथा सुधार की भावना का विकास करें ।
(झ) सार्वजनिक संपत्ति को सुरक्षित रखें और हिंसा से दूर रहें ।
(ज) व्यक्तिगत और सामूहिक गतिविधियों के सभी क्षेत्रों में उत्कर्ष की ओर बढ़ने का सतत प्रयास करें जिससे राई निरंतर बढ़ते हुए प्रयत्न और उपलब्धि की नई ऊचाइयों को छू के ।
(ट) 6 से 14 वर्ष तक की उम्र के बीच अपने बच्चों को शिक्षा के अवसर उपलब्ध कराना । यह कर्तव्य 86वें संविधान संशोधन अधिनियम, 2002 के द्वारा जोड़ा गया ।

मूल कर्तव्यों की विशेषताएं

निम्नलिखित बिंदुओं को मूल कर्तव्यों की विशेषताओं के संदर्भ में उल्लिखित किया जा सकता है-

1. उनमें से कुछ नैतिक कर्तव्य हैं तो कुछ नागरिक । उदाहरण के लिए स्वतंत्रता संग्राम के उच्च आदर्शों का सम्मान एक नैतिक दायित्व है, जबकि रास्ट्रीय ध्वज एवं राष्ट्रीय गान का आदर करना नागरिक कर्तव्य ।
2. ये मूल्य भारतीय परंपरा, पौराणिक कथाओं, धर्म एवं पद्धतियों से संबंधित हैं । दूसरे शब्दों में, ये मूलतः भारतीय जीवन पद्धति के आंतरिक कर्तव्यों का वर्गीकरण हैं ।
3. कुछ मूल अधिकार जो सभी लोगों के लिए हैं चाहे वे नागरिक हों या विदेशी, लेकिन मूल कर्तव्य केवल नागरिकों के लिए हैं न कि विदेशियों के लिए ।
4. निदेशक तत्वों की तरह मूल कर्तव्य गैर-न्यायोचित हैं ।
संविधान में सीधे न्यायालय के जरिए उनके क्रियान्वयन की व्यवस्था नहीं है । यानी उनके हनन के खिलाफ कोई कानूनी संस्तुति नहीं है यद्यपि संसद उपयुक्त विधान द्वारा इनके क्रियान्वयन के लिए स्वतंत्र है ।