(Sample Material) सामान्य अध्ययन (पेपर -1) ऑनलाइन प्रशिक्षण कार्यक्रम: भारतीय राजव्यवस्था एवं अभिशासन - "नागरिकता"
सामान्य अध्ययन ऑनलाइन प्रशिक्षण कार्यक्रम का (Sample Material)
विषय: भारतीय राजव्यवस्था एवं अभिशासन
अध्याय: नागरिकता
अर्थ एवं महत्व
किसी अन्य आधुनिक राज्य की तरह भारत मैं दो तरह के लोग हैं, नागरिक और विदेशी । नागरिक भारतीय राज्य के पूर्ण सदस्य होते हैं और उनकी इस पर पूर्ण निष्ठा होती है । इन्हें सभी सिविल और राजनीतिक अधिकार प्राप्त होते हैं । दूसरी ओर, विदेशी किसी अन्य राज्य के नागरिक होते हैं इसलिए उन्हें सभी नागरिक एवं राजनीतिक अधिकार प्राप्त नहीं होते हैं । इनकी दो श्रेणियां होती हैं- विदेशी मित्र एवं विदेशी शत्रु विदेशी मित्र वे होते हैं, जिनके भारत के साथ सकारात्मक संबंध होते हैं । विदेशी शत्रु वे हैं, जिनके साथ भारत का युद्ध चल रहा हो । उन्हें कम अधिकार प्राप्त होते हैं तथा वे गिरफ्तारी और नजरबंदी के विरुद्ध सुरक्षित नहीं होते अनुच्छेद 22)
संविधान भारतीय नागरिकों को निम्नलिखित अधिकार एवं विशेषाधिकार प्रदान करता है । विदेशियों को नहीं-
1. धर्म, मूलवंश, जाति, लिंग या जन्मस्थान के आधार पर विभेद के
विरूद्ध अधिकार (अनुच्छेद 15 )।
2. लोक नियोजन के विषय में समता का अधिकार।
3. वक्र स्वातंव्य एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, सम्मेलन, संघ, संचरण, निवास व
व्यवसाय की स्वतंत्रता ( अनुच्छेद 19 ) ।
4. संस्कृति औरर शिक्षा संबंधी अधिकार (अनुच्छेद 29 व 30)।
5. लोकसभा और राज्य विधानसभा चुनाव में मतदान का अधिकार ।
6. संसद एवं राज्य विधानमंडल की सदस्यता के लिए चुनाव लड़ने का अधिकार ।
7. सार्वजनिक पदों जैसे-राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, उच्चतम एवं उच्च न्यायालय के
न्यायाधीश, राज्यों के राज्यपाल, महान्यायवादी एवं महाधिवक्ता की योग्यता रखने का
अधिकार ।
उपरोक्त अधिकारों के साथ नागरिकों को भारत के प्रति कुछ कर्त्व्यों का भी निर्वहन करना होता है । उदाहरण के लिए कर भुगतान, राष्ट्रीय ध्वज एवं राष्ट्रगान का सम्मान, देश की रक्षा आदि भारत में नागरिक जन्म से या प्राकृतिक रूप से राष्ट्रपति बनने की योग्यता रखते हैं, जबकि अमेरिका में केवल जन्म से नागरिक ही राष्ट्रपति बन सकता है ।
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संवैधानिक उपबंध
संविधान के भाग-11 में अनुच्छेद 5 से 11 तक में नागरिकता के बारे
में चर्चा की गई है । इस संबंध में इसमें स्थायी और विस्तृत उपबंध नहीं हैं, यह
सिर्फ उन लोगों की पहचान करता है, जो
संविधान लागू होने के समय (अर्थात् 26 जनवरी, 1950) भारत के नागरिक बने । इसमें न
तो इनके अधिग्रहण एवं न ही नागरिकता की हानि की चर्चा की गई है । यह संसद को इस बात
का अधिकार देता है कि वह नागरिकता से संबंधित मामलों की व्यवस्था करने के लिए कानून
बनाए । इसी प्रकार संसद ने नागरिकता अधिनियम, 1955 को लागू किया, जिसका 1986, 1992,
2003 और 2005 में संशोधन किया गया ।
संविधान निर्माण के उपरांत (26 जनवरी, 1950) संविधान के अनुसार चार श्रेणियों के लोग भारत के नागरिक बने-
1. एक व्यक्ति, जो भारत का मूल निवासी है और तीन में से कोई एक शर्त पूरी करता है । ये शर्ते हैं-यदि उसका जन्म भारत में हुआ होय या उसके माता-पिता में से किसी एक का जन्म भारत में हुआ हो, या संविधान लागू होने के पांच वर्ष पूर्व से भारत में रह रहा हो ।
2. एक व्यक्ति, जो पाकिस्तान से भारत आया हो और यदि उसके माता-पिता या दादा-दादी अविभाजित भारत में पैदा हुए हों और निम्म दो में से कोई एक शर्त पूरी करता हो, वह भारत का नागरिक बन सकता है- यदि वह 19 जुलाई, 1948 से पूर्व स्थानांतरित हुआ हो, अपने प्रवसन की तिथि से उसने सामान्यतः भारत में निवास किया होय और यदि उसने 19 जुलाई, 1948 को या उसके बाद भारत में प्रवसन किया हो तो वह भारत के नागरिक के रूप में पंजीकृत हो, लेकिन ऐसे व्यक्ति का पंजीकृत होने के लिए छह माह तक भारत में निवास आवश्यक है (अनुच्छेद 6)।
3. एक व्यक्ति, जो 1 मार्च, 1947 के बाद भारत से पाकिस्तान स्थानांतरित हो गया हो, लेकिन बाद में फिर भारत में पुनर्वास के लिए लौट आए तो वह भारत का नागरिक बन सकता है। उसे पंजीकरण प्रार्थना-पत्र के बाद छह माह तक रहना होगा (अनुच्छेद 7) ।
4. एक व्यक्ति, जिसके माता-पिता या दादा-दादी अविभिाजित भारत
में पैदा हुए हों लेकिन वह भारत के बाहर रह रहा हो। फिर भी वह भारत का नागरिक बन
सकता है, यदि उसने भारत के नागरिक के रूप में पंजीकरण कूटनीतिक तरीके या पार्षदीय
प्रतिनिधि के रूप में आवेदन किया हो । यह व्यवस्था भारत के बाहर रहने वाले भारतीयों
के लिए बनाई गई है ताकि वे भारत की नागरिक ग्रहण कर सकें । (अनुच्छेद 8)
कुल मिलाकर ये व्यवस्थाएं नागरिकों की चर्चा करती हैं-(1) व्यक्ति जो भारत का मूल
निवासी हो, (।।) व्यक्ति पाकिस्तान से स्थानांतरित हुआ हो, (111 ) व्यक्ति
पाकिस्तान स्थानांतरित हुआ हो, लेकिन बाद में लौट आया हो, (4) भारतीय मूल का व्यक्ति
जो बाहर रह रहा हो ।
नागरिकता संबंधी अन्य संवैधानिक प्रावधान इस प्रकार हैं-
1. वह व्यक्ति भारत का नागरिक नहीं होगा या भारत का नागरिक नहीं
माना जायेगा, जो स्वेच्छा से किसी अन्य देश की नागरिकता ग्रहण कर लेगा ( अनुच्छेद 9
) ।
2. प्रत्येक व्यक्ति, जो भारत का नागरिक है या समझा जाता है, यदि संसद इस प्रकार के
किसी विधान का निर्माण करे (अनुच्छेद 10) ।
3. संसद को यह अधिकार है कि वह नागरिकता के अर्जन और समासि के तथा नागरिकता से
संबंधित अन्य सभी विषयों के संबंध में विधि बना सकती है (अनुच्छेद 11) ।
नागरिकता अधिनियम, 1955
नागरिकता अधिनियम (1955 ) संविधान लागू होने के बाद अर्जन एवं समाप्ति के बारे में उपबंध करता है । इस अधिनियम को अब तक चार बार संशोधित किया गया है ।
ये संशोधन इस प्रकार हैं-
1. नागरिकता (संशोधन) अधिनियम, 1986
2. नागरिकता (संशोधन) अधिनियम, 1992
3. नागरिकता (संशोधन) अधिनियम, 2003
4. नागरिकता (संशोधन) अधिनियम, 2005