(Sample Material) सामान्य अध्ययन (पेपर -1) ऑनलाइन प्रशिक्षण कार्यक्रम: भारतीय राजव्यवस्था एवं अभिशासन - "राज्यपाल"
सामान्य अध्ययन ऑनलाइन प्रशिक्षण कार्यक्रम का (Sample Material)
विषय: भारतीय राजव्यवस्था एवं अभिशासन
अध्याय: राज्यपाल
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भारत के संविधान में राज्य में सरकार की उसी तरह परिकल्पना की गई है, जैसे कि केंद्र के लिए। इसे संसदीय व्यवस्था कहते हैं। संविधान के छठे भाग में राज्य में सरकार के बारे में बताया गया है लेकिन यह व्यवस्था जम्मू और कश्मीर राज्य के लिए लागू नहीं होती। इसे विशेष दर्जा प्राप्त है और राज्य का स्वयं का अपना संविधान है।
संविधान के छठे भाग के अनुच्छेद 153 से 167 तक राज्य कार्यपालिका के बारे में बताया गया है। राज्य कार्यपालिका में शामिल होते हैं-राज्यपाल, मुख्यमत्री, मंत्रिपरिषद और राज्य के महाधिवक्ता (एडवोकेट जनरल)। इस तरह राज्य में उपराज्यपाल का कोई कार्यालय नहीं होता जैसे कि केंद्र में उपराष्ट्रपति होते हैं ।
राज्यपाल, राज्य का कार्यकारी प्रमुख्य (संवैधानिक मुखिया) होता है। राज्यपाल, केंद्र सरकार के प्रतिनिधि के रूप में भी कार्य करता है। इस तरह राज्यपाल कार्यालय, दोहरी भूमिका निभाता है।
सामान्यतःप्रत्येक राज्य के लिए एक राज्यपाल होता है, लेकिन सातवें संविधान संशोधन अधिनियम 1956 की धारा के अनुसार एक ही व्यक्ति को दो या अधिक राज्यों का राज्यपाल भी नियुक्त किया जा सकता है ।
राज्यपाल की नियुक्ति
राज्यपाल न तो जनता द्वारा सीधे चुना जाता है और न ही अप्रत्यक्ष रूप से राष्ट्रपति की तरह संवैधानिक प्रक्रिया के तहत उसका चुनाव होता है।
उसकी नियुक्ति राष्ट्रपति के मुहर लगे आज्ञापत्र के माध्यम से होती है। इस प्रकार वह केंद्र सरकार द्वारा मनोनीत होता है लेकिन उच्चतम न्यायालय की 1979 की व्यवस्था के अनुसार, राज्य में राज्यपाल का कार्यालय केंद्र सरकार के अधीन रोजगार नहीं है। यह एक स्वतंत्र संवैधानिक कार्यालय है और यह केंद्र सरकार के अधीनस्थ नहीं है ।
संविधान में वयस्क मताधिकार के तहत राज्यपाल के सीधे निर्वाचन की बात उठी लेकिन संविधान सभा ने वर्तमान व्यवस्था यानी राष्ट्रपति द्वारा राज्यपाल की नियुक्ति को ही अपनाया जिसके निम्नलिखित कारण हैंश् -
1. राज्यपाल का सीधा निर्वाचन राज्य में स्थापित संसदीय व्यवस्था
की स्थिति के प्रतिकूल हो सकता है ।
2. सीधे चुनाव की व्यवस्था से मुख्यमत्री और राज्यपाल के बीच संघर्ष की स्थिति पैदा
हो सकती है ।
3. राज्यपाल सिर्फ संवैधानिक प्रमुख्य होता है इसलिए उसके निर्वाचन के लिए चुनाव की
जटिल व्यवस्था और भारी धन खर्च करने का कोई अर्थ नहीं है ।
4. राज्यपाल का चुनाव पूरी तरह से वैयक्तिक मामला है इसलिए इस चुनाव में भारी संख्या
में मतदाताओं को शामिल करना राष्ट्रहित में नहीं है।
5. एक निर्वाचित राज्यपाल स्वाभाविक रूप से किसी दल से जुड होगा और वह निष्पाक्ष व
निस्वार्थ मुखिया नहीं बन पाएगा ।
6. राज्यपाल के चुनाव से अलगाववाद की धारणा पनपेगी, जो राजनीतिक स्थिरता और देश की
एकता को प्रभावित करेगी।
7. राष्ट्रपति द्वारा नियुक्ति की व्यवस्था से राज्यों पर केंद्र का नियंत्रण बना
रहेगा ।
8. राज्यपाल का सीधा निर्वाचन, राज्य में आम चुनाव के समय एक गंभीर समस्या उत्पन्न
कर सकता है ।
9. मुख्यमंत्री यह चाहेगा कि राज्यपाल के लिए उसका उम्मीदवार चुनाव लड़े, इसलिए
सत्तारूढ़ दल का दूसरे दर्जे का आदमी बतौर राज्यपाल चुना जाएगा।
इसलिए अमेरिकी माॅडल, जहां राज्य का राज्यपाल सीधे चुना जाता है, को छोड़ दिया गया एवं कनाडा, जहां राज्यपाल को केंद्र द्वारा नियुक्त किया जाता है, संविधान सभा द्वारा स्वीकृत किया गया।
संविधान ने राज्यपाल के रूप में नियुक्त किए जाने वाले व्यक्ति के लिए दो अर्हताएं निधार्रित की। वे हैं-
1. उसे भारत का नागरिक होना चाहिए ।
2. वह 35 वर्ष की आयु पूर्ण कर चुका हो ।
इन वर्षों में इसके अतिरिक्त दो अन्य परंपराएं भी जुड़ गई है-पहला, उसे बाहरी होना चाहिए यानी कि वह उस राज्य से संबंधित न हो जहां उसे नियुक्त किया गया है ताकि वह स्थानीय राजनीति से मुक्त रह सके। दूसरा, जब राज्यपाल की नियुक्ति हो तब राष्ट्रपति के लिए आवश्यक हो कि वह राज्य के मामले में मुख्यमत्री से परामर्श करे ताकि राज्य में संवैधानिक व्यवस्था सुनिश्चित हो, यद्यपि दोनों परंपराओं का कुछ मामलों में उल्लंघन किया गया है ।
राज्यपाल के पद की शर्ते
संविधान में राज्यपाल के पद के लिए निम्नलिखित शतों का निर्धारण करता है-
1. उसे न तो संसद सदस्य होना चाहिए और न ही विधानमंडल का सदस्य।
यदि ऐसा कोई व्यक्ति राज्यपाल नियुक्त किया जाता है तो उसे सदन से उस तिथि से अपना
पद छोड़ना होगा, जब से उसने राज्यपाल का पद ग्रहण किया है ।
2. उसे किसी लाभ के पद पर नहीं होना चाहिए।
3. बिना किसी किराये के उसे राजभवन (कार्यालय) उपलब्ध होगा ।
4. वह संसद द्वारा निर्धारित सभी प्रकार की उपलब्धियो, विशेषाधिकार और भत्तों के
लिए अधिकृत होगा ।
5. यदि वही व्यक्ति दो या अधिक राज्यों में बतौर राज्यपाल नियुक्त होता है तो ये
उपलव्यियां और भत्ते राष्ट्रपति द्वारा तय मानकों के हिसाब से राज्य मिलकर प्रदान
करेंगे ।
6. कार्यकाल के दौरान उनकी आर्थिक उपलब्धियों व भत्तों को कम नहीं किया जा सकता ।
2008 में संसद ने राज्यपाल का वेतन 36,000 रु. से बढ़ाकर 1.10 लाख प्रतिमाह कर दिया है? राष्ट्रपति की तरह राज्यपाल को भी अनेक विशेषाधिकार और उत्रक्तियां प्राप्त हैं। उसे अपने शासकीय कृत्यों के लिए विधिक दायित्व से निजी उमुक्ति प्राप्त होती हैं। अपने कार्यकाल के दौरार्न उसे आपराधिक कार्यवाही (चाहे वह व्यक्तिगत क्रियाकलाप हो) की सुनवाई से उमुक्ति प्राप्त है। उसे गिरक्तार कर कारावास में नहीं डाला जा सकता है। यद्यपि दो महीने के नोटिस पर व्यक्तिगत क्रियाकलापों पर उनके विरुद्ध नागरिक कानून संबंधी कार्यवाही प्रारंभ की जा सकती है ।
कार्यभार ग्रहण करने से पहले राज्यपाल सत्यनिष्ठा की शपथ लेता है। शपथ में राज्यपाल प्रतिज्ञा करते हैं-
(अ ) निष्ठापूर्वक दायित्वों का निर्वहन करेगा ।
(ब ) संविधान और विधि की रक्षा संरक्षण और प्रतिरक्षा करेगा ।
(स ) स्वयं को राज्य की जनता के हित व सेवा में समर्पित करेगा।
राज्यपाल को शपथ, संबंधित राज्य के उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश दिलवाते हैं। उनकी अनुपस्थिति में उपलब्ध वरिष्ठतम न्यायाधीश शपथ दिलवाते हैं। किसी अन्य व्यक्ति को भी राज्यपाल के पद के दायित्वों का निर्वहन करने पर इसी प्रकार की शपथ लेनी होती है ।
राज्यपाल की पदाविधि
सामान्यतया राज्यपाल का कार्यकाल पद ग्रहण से पांच वर्ष की अवधि के लिये होता है किंतु वास्तव में वह राष्ट्रपति के प्रसादपर्यत पद धारण करता है। इसके अलावा वह कभी भी राष्ट्रपति को संबोधित कर अपना त्यागपत्र दे सकता है।
उच्चतम न्यायालय ने यह व्यवस्था दी है कि राज्यपाल के ऊपर राष्ट्रपति के प्रसादपर्यंत का मामला न्यायपूर्ण नहीं है। राज्यपाल के पास न तो कार्यकाल की सुरक्षा है और न ही कार्यालय की निश्चिंतता है। उसे राष्ट्रपति द्वारा किसी भी समय वापस बुलाया जा सकता है।
संविधान ने ऐसी कोई विधि नहीं बनाई है, जिसके तहत राष्ट्रपति, राज्यपाल को हटा दे। इसलिए वी.पी. सिंह के नेतृत्व वाली राष्ट्रीय मोर्चा सरकार (1989) ने उन सभी राज्यपालों से त्यागपत्र मांग लिया था, जिन्हें कांग्रेस सरकार द्वारा नियुक्त किया गया था। अंततः कुछ राज्यपालों को बदला गया था, जबकि कुछ को बने रहने दिया गया। यही प्रक्रिया 1991 में दोहराई गई, जब पीवी. नरसिम्हा राव के नेतृत्व में कांग्रेस की सरकार बनी। वी.पी. सिंह और चंद्रशेखर सरकार द्वारा नियुक्त चैदह राज्यपालों को बदल दिया गया था ।
राष्ट्रपति, एक राज्यपाल को उसके बचे हुए कार्यकाल के लिए किसी दूसरे राज्य में स्थानांतरित कर सकते हैं। इसी तरह एक राज्यपाल, जिसका कार्यकाल पूरा हो चुका है, को भी उसी राज्य या अन्य राज्य में दोबारा नियुक्त किया जा सकता है।
एक राज्यपाल पांच वर्ष के अपने कार्यकाल के बाद भी तब तक पद पर बना रह सकता है जब तक कि उसका उत्तराधिकारी कार्य ग्रहण न कर ले। इसके पीछे यह तर्क है कि राज्य में अनिवार्य रूप से एक राज्यपाल रहना चाहिए ताकि रिक्तता की कोई स्थिति पैदा न होने पाए ।
राष्ट्रपति को जब यह लगे कि अकस्मात कोई घटना हो रही है, जिसका संविधान में उल्लेख नहीं है तो वह राज्यपाल के कार्यों के निर्वहन के लिए उपबंध बना सकता है, यथा-वर्तमान राज्यपाल का निधन। ऐसी परिस्थिति में संबंधित राज्य के उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायधीश को अस्थायी तौर पर राज्यपाल का कार्यभार सौंपा जा सकता है ।
राज्यपाल की शक्तियां एवं कार्य
राज्यपाल को राष्ट्रपति के अनुरूप कार्यकारी, विधायी, वित्तीय
और न्यायिक शक्तियां प्राप्त होती हैं। यद्यपि राज्यपाल को राष्ट्रपति के समान
कूटनीतिक, सैन्य या आपातकालीन शक्तियां प्राप्त नहीं होतीं ।
राज्यपाल की शक्तियों और उसके कार्यों को हम निम्नलिखित शीषर्कों के अंतर्गत समझ
सकते हैं-
1. कार्यकारी शक्तियां ।
2. विधायी शक्तियां ।
3. वित्तीय शक्तियां ।
4. न्यायिक शक्तियां ।
कार्यकारी शक्तियां
राज्यपाल की कार्यकारी शक्तियां इस प्रकार हैं-
1. राज्य सरकार के सभी कार्यकारी कार्य औपचारिक रूप से राज्यपाल
के नाम पर होते हैं ।
2. वह इस संबंध में नियम बना सकता है कि उसके नाम से बनाए गए और कार्य निष्पादित
आदेश और अन्य प्रपत्र कैसे प्रमाणित होंगे ।
3. वह राज्य सरकार के कार्य के लेन-देन को अधिक सुविधाजनक और उक्त कार्य के मंत्रियों
में आवंटन हेतु नियम बना सकता है ।
4. वह मुख्यमत्री एवं अन्य मंत्रियों को नियुक्त करता है। वे सब राज्यपाल के
प्रसादपर्यंत पद धारण करते हैं। बिहार, मध्य प्रदेश और उड़ीसा में राज्यपाल द्वारा
नियुक्त जनजाति कल्पाण मंत्री होगा ।
5. वह राज्य के महाधिवक्ता को नियुक्त करता है और उसका पारिश्रमिक तय करता है।
महाधिवक्ता का पद राज्यपाल के प्रर्सादपर्यंत रहता है ।
6. वह राज्य निर्वाचन आयुक्त को नियुक्त करता है और उसकी सेवा शर्तें और कार्यावधि
तय करता है हालांकि राज्य निर्वाचन आयुक्त को विशेष मामलों या परिस्थितियों में उसी
तरह हटाया जा सकता है जैसे उच्च न्यायालय के न्यायाधीश को ।
7. वह राज्य लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष और सदस्यों को नियुक्त करता है। लेकिन उन्हें
सिर्फ राष्ट्रपति ही हटा सकता है, न कि राज्यपाल
8. वह मुख्यमंत्री से प्रशासनिक मामलों या किसी विधायी प्रस्ताव की जानकारी प्राप्त
कर सकता है।
9. यदि किसी मंत्री ने कोई निर्णय लिया हो और मंत्रिपरिषद ने उस पर संज्ञान न लिया
हो तो राज्यपाल, मुख्यमंत्री से उस मामले पर विचार करने की मांग सकता है ।
10. वह राष्ट्रपति से राज्य में संवैधानिक आपातकाल के लिए सिफारिश कर सकता है राज्य
में राष्ट्रपति शासन के दौरान उसकी कार्यकारी शक्तियों का विस्तार राष्ट्रपति के
प्रतिनिधि के रूप में हो जाता है ।
11. वह राज्य के विश्वविघालयो का कुलाधिपति होता है, वह राज्य के विश्वविघालयों के
कुलपतियों की नियुक्ति करता है ।
विधायी शक्तियां
राज्यपाल, राज्य विधानसभा का अभिन्न अंग होता है। इस नाते उसकी निम्नलिखित विधायी शक्तियां एवं कार्य होते हैं-
1. वह राज्य विधान सभा के सत्र को आहूत या सत्रावसान और विघटित
कर सकता है ।
2. वह विधानमंडल के प्रत्येक चुनाव के पश्चात पहले और प्रतिवर्ष के पहले सत्र को
संबोधित कर सकता है ।
3. वह किसी सदन या विधानमंडल के सदनों को विचाराधीन विधेयकों या अन्य किसी मसले पर
संदेश भेज सकता है ।
4. जब विधानसभा अध्यक्ष और उपाध्यक्ष का पद खाली हो तो वह विधानसभा के किसी सदस्य
को कार्यवाही सुनिश्चित करने के लिए नियुक्त कर सकता है ।
5. राज्य विधानपरिषद के कुल सदस्यों के छठे भाग को वह नामित कर सकता है। जिन्हें
साहित्य, विज्ञान, कला, सहकारिता आंदोलन और समाज सेवा का ज्ञान हो या इसका
व्यावहारिक अनुभव हो ।
6. वह राज्य विधानसभा के लिए एक आंग्ल- भारतीय समुदाय से एक सदस्य की नियुक्ति कर
सकता है ।
7. विधानसभा सदस्य की निरर्हता के मुद्दे पर निर्वाचन आयोग से विमर्श करने के बाद
वह इसका निर्णय करता है ।
8. राज्य विधानमंडल द्वारा पारित किसी विधेयक को राज्यपाल के पास भेजें जाने पर:
(अ) वह विधेयक को स्वीकार कर सकता है, या
(ब) स्वीकृति के लिए उसे रोक सकता है, या
(स) विधेयक को (यदि यह धन-संबंधी विधेयक न हो) विधानमंडल के पास पुनर्विचार के लिए
वापस कर सकता है। हालांकि राज्य विधानमंडल द्वारा पुनः बिना परिवर्तन के विधेयक को
पास कर दिया जाता है तो राज्यपाल को अपनी स्वीकृति देनी होती है, या
(द ) विधेयक को राष्ट्रपति के विचार के लिए सुरक्षित रख सकता है। एक ऐसे मामले में
इसे सुरक्षित रखना अनिवार्य है, जहां राज्य विधानमंडल द्वारा पारित विधेयक उच्च
न्यायालय की स्थिति को खतरे में डालता है। इसके अलावा यदि निम्नलिखित परिस्थितियां
हों तब भी राज्यपाल विधेयक को सुरक्षित रख सकता है
(i) अधिकारातीत अर्थात संविधान के उपबंधों के विरूद्ध हो ।
(ii) राज्य नीति के निदेशक तत्वों के विरूद्ध हो ।
(iii) देश के व्यापक हित के विरूद्ध हो ।
(iv) राष्ट्रीय महत्व का हो ।
(v) संविधान के अनुच्छेद 31 क के तहत संपत्ति के अनिवार्य अधिग्रहण से संबंधित हो ।
9. जब राज्य विधानमंडल का सत्र न चल रहा हो तो वह औपचारिक रूप से अध्यादेश की घोषणा कर सकता है। इन विधेयकों की राज्य विधानमंडल से छह हफ्तों के भीतर स्वीकृति होनी आवश्यक है। वह किसी भी समय किसी अध्यादेश को समाप्त भी कर सकता है, यह राज्यपाल का सबसे महत्वपूर्ण अधिकार है ।
10. वह राज्य के लेखों से संबंधित राज्य वित्त आयोग, राज्य लोक सेवा आयोग और नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक की रिपोर्ट को राज्य विधानसभा के सामने प्रस्तुत करता है।
वित्तीय शक्तियां
राज्यपाल की वित्तीय शक्तियां एवं कार्य इस प्रकार हैं-
1. वह सुनिश्चित करता है कि वार्षिक वित्तीय विवरण (राज्य- बजट)
को राज्य विधानमंडल के सामने रखा जाए ।
2. धन विधेयकों को राज्य विधानसभा में उसकी पूर्व सहमति के बाद ही प्रस्तुत किया जा
सकता है ।
3. बिना उसकी सहमति के किसी तरह के अनुदान की मांग नहीं की जा सकतीं ।
4. वह किसी अप्रत्याशित व्यय के वहन के लिए राज्य की आकस्मिकता निधि से अग्रिम ले
सकता है ।
5. पंचायतों एवं नगरपालिका की वित्तीय स्थिति की हर पांच वर्ष बाद समीक्षा के लिए
वह वित्त आयोग का गठन करता है।
न्यायिक शक्तियां
राज्यपाल की न्यायिक शक्तियां एवं कार्य इस प्रकार हैं-
1. राज्य के राज्यपाल को उस विषय संबंधी, जिस विषय पर उस राज्य की कार्यपालिका शक्ति का विस्तार है, किसी विधि के विरूद्ध किसी अपराघ के लिए सिद्धदोष ठहराए गए किसी व्यक्ति के दण्ड को क्षमा, उसका प्रविलंबन, विराम या परिहार करने की अथवा दंडादेश के निलबत, परिहार या लघुकरण की शक्ति होगी ।
2. राष्ट्रपति राज्यपाल द्वारा संबंधित राज्य के उच्च न्यायालय के न्यायाधीश की नियुक्ति के मामले में राष्ट्रपति से विचार किया जाता है ।
3. वह राज्य उच्च न्यायालय के साथ विचार कर जिला न्यायाधीशों की नियुक्ति, स्थानांतरण और प्रोन्नति कर सकता है ।
4. वह राज्य न्यायिक आयोग से जुड़े लोगों की नियुक्ति भी करता है (जिला न्यायाधीशों के अतिरिक्त) इन नियुक्तियों में वह राज्य उच्च न्यायालय और राज्य लोक सेवा आयोग से विचार करता है ।