(Sample Material) सामान्य अध्ययन (पेपर -1) ऑनलाइन प्रशिक्षण कार्यक्रम: भारतीय राजव्यवस्था एवं अभिशासन - "संविधान का संशोधन"
सामान्य अध्ययन ऑनलाइन प्रशिक्षण कार्यक्रम का (Sample Material)
विषय: भारतीय राजव्यवस्था एवं अभिशासन
संविधान का संशोधन
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किसी अन्य लिखित संविधान के समान भारतीय संविधान में भी परिस्थितियों एवं आवश्यकताओं के अनुरूप उसे संशोधित और व्यवस्थित करने की व्यवस्था है। हालांकि इसकी संशोधन प्रक्रिया ब्रिटेन के समान आसान अथवा अमेरिका के समान अत्यधिक कठिन नहीं है। दूसरे शब्दों में, भारतीय संविधान न तो लचीला है, न कठोर यद्यपि यह दोनों का सम्मश्रण है।
संविधान के भाग ग्ग् के अनुच्छेद-368 में संसद को संविधान एवं इसकी व्यवस्था में संशोधन की शक्ति प्रदान की गई है। यह उल्लिखित करता है कि संसद अपनी संविधायी शक्ति का प्रयोग, करते हुए इस संविधान के किसी उपबंध का परिवर्धन, परिवर्तन या निरसन के रूप में संशोधन कर सकती है। हालांकि संविधान उन व्यवस्थाओं को संशोधित नहीं कर सकता, जो संविधान के मूल ढांचे से संबंधित हों। यह व्यवस्था उच्चतम न्यायालय द्वारा केशवानंद भारती मामले (1973) में दी गई थी ।
संशोधन प्रकिया
अनुच्छेद 368 में संशोधन की प्रक्रिया का निम्नलिखित तरीकों से उल्लेख किया गया है-
1. संविधान के संशोधन का आरंभ संसद के किसी सदन में इस प्रयोजन के लिए विधेयक पुरः स्थापित करके ही किया जा सकेगा और राज्य विधानमण्डल में नहीं ।
2. विधेयक को किसी मंत्री या गैर-सरकारी सदस्य द्वारा पुनः स्थापित किया जा सकता है और इसके लिए राष्ट्रपति की पूर्व स्वीकृति आवश्यक नहीं है ।
3. विधेयक को दोनों सदनों में विशेष बहुमत से पारित कराना अनिवार्य है। यह बहुमत (50 प्रतिशत से अधिक) सदन की कुल सदस्य संख्या के आधार पर सदन में उपस्थित सदस्यों के दो-तिहाई बहुमत या मतदान द्वारा होना चाहिए ।
4. प्रत्येक सदन में विधेयक को अलग- अलग पारित कराना अनिवार्य
है। दोनों सदनों के बीच असहमति होने पर दोनों सदनों की संयुक्त बैठक में विधेयक को
पारित कराने का
प्रावधान नहीं है ।
5. यदि विधेयक संविधान की संघीय व्यवस्था के संशोधन के मुद्दे पर हो तो इसे आधे राज्यों के विधानमंडलों से भी सामान्य बहुमत से पारित होना चाहिए। यह बहुमत सदन में उपस्थित सदस्यों के बीच मतदान के तहत हो ।
6. संसद के दोनों सदनों से पारित होने एवं राज्य विधानमंडलों की संस्तुति के बाद जहां आवश्यक हो, फिर राष्ट्रपति के पास सहमति के लिए भेजा जाता है ।
7. राष्ट्रपति विधेयक को सहमति देंगे। वे न तो विधेयक को अपने पास रख सकते हैं और न ही संसद के पास पुनर्विचार के लिए भेज सकते हैं हूं
8. राष्ट्रपति की सहमति के बाद विधेयक एक अधिनियम बन जाता है । (संविधान संशोधन अधिनियम) और संविधान में अधिनियम की तरह इसका समावेश कर लिया जाएगा ।
संशोधनों के प्रकार
अनुच्छेद 368 दो प्रकार के संशोधनों की व्यवस्था करता है। ये हैं- संसद के विशेष बहुमत द्वारा और आधे राज्यों द्वारा साधारण बहुमत के माध्यम से संस्तुति द्वारा। लेकिन कुछ अन्य अनुच्छेद संसद के साधारण बहुमत से ही संविधान के कुछ उपबंध संशोधित हो सकते हैं, यह बहुमत प्रत्येक सदन में उपस्थित एवं मतदान (साधारण विधायी प्रक्रिया) द्वारा होता है। उल्लेखनीय है कि ये संशोधन अनुच्छेद 368 के उद्देश्यों के तहत नहीं होते ।
इस तरह संविधान संशोधन तीन प्रकार से हो सकता है-
(i) संसद के साधारण बहुमत द्वारा संशोधन ।
(ii) संसद के विशेष बहुमत द्वारा संशोधन ।
(iii) संसद के विशेष बहुमत द्वारा एवं आधे राज्य विधानमंडलों की संस्तुति के उपरांत
संशोधन।
संसद के साधारण बहुमत द्वारा संविधान के अनेक उपबंध संसद के दोनों सदनों साधारण बहुमत से संशोधित किए जा सकते हैं। ये व्यवस्थाएं अनुच्छेद 368 की सीमा से बाहर हैं। इन व्यवस्थाओं में शामिल हैं:
1. नए राज्यों का प्रवेश या गठन ।
2. नए राज्यों का निर्माण और उसके क्षेत्र, सीमाओं या संबंधित राज्यों के नामों का
परिवर्तन ।
3. राज्य विधानपरिषद का निर्माण या उसकी समाप्ति ।
4. दूसरी अनुसूची - राष्ट्रपति, राज्यपाल, लोकसभा अध्यक्ष, न्यायाधीश आदि के लिए
परिलब्धियां, भले विशेषाधिकार आदि।
5. संसद में गणपूर्ति ।
6. संसद सदस्यों के वेतन एवं भत्ते ।
7. संसद में प्रक्रिया नियम ।
8. संसद, इसके सदस्यों और इसकी समितियों को विशेषाधिकार।
9. संसद में अंग्रेजी भाषा का प्रयोग ।
10. उच्चतम न्यायालयों में अवर न्यायाधीशों की संख्या ।
11. उच्चतम न्यायालय के न्यायक्षेत्र को ज्यादा महत्व प्रदान करना।
12. राजभाषा का प्रयोग ।
13. नागरिकता की प्राप्ति एवं समाप्ति ।
14. संसद एवं राज्य विधानमंडल के लिए निर्वाचन ।
15. निर्वाचन क्षेत्रों का पुनर्निधौरण ।
16. केंद्रशासित प्रदेश ।
17. पांचवीं अनुसूची- अनुसूचित क्षेत्रों एवं अनुसूचित जनजातियों का प्रशासन ।
18. छठी अनुसूची-जनजातीय क्षेत्रों का प्रशासन ।