(Sample Material) सामान्य अध्ययन (पेपर -1) ऑनलाइन प्रशिक्षण कार्यक्रम: भारत और विश्व का भूगोल - "भूकंप एवं ज्वालामुखी"
सामान्य अध्ययन ऑनलाइन प्रशिक्षण कार्यक्रम का (Sample Material)
विषय: भारत और विश्व का भूगोल
भूकंप एवं ज्वालामुखी
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भूकंप (Earthquakes)
भूकम्प का साधारण अर्थ है भूमि का काँपना अर्थात पृथ्वी का हिलना । दूसरे शब्दो में अचानक झटके से प्रारंभ हुए पृथ्वी के कंपन को भूकंप कहते हैं। यदि किसी तालाब के शांत जल मे एक पत्थर फेका जाए तो जल के तल पर सभी दिशाओं में तरंगे फैल जाएँगी । इसी प्रकार से जब चट्टानों मे कोई आकस्मिक हलचल होती है तो उससे कंपन पैदा होता है उसी प्रकार भू- पर्पटी में आकस्मिक कंपन पैदा होता है जिससे तरंगें उत्पन होती है। तरंगे अपनी उत्पत्ति केंन्द्र से चारो ओर आगे बढ़ती हैं ।
भूकंप का केंद्र तथा अभिकेंद्र
विश्व के अधिकांश भूकंप भूतल से 50 से 100 कि. मी. की गहराई पर उत्पन्न होते हैं। जिस स्थान पर ये उत्पन्न होते है।
उसे उद्गम केंद्र (Focus) कहते हैं। इस उद्गम केंद्र के ठीक ऊपर पृथ्वी के धरातल पर
स्थित स्थान को अधिकेंद्र (Epicentre) कहते हैं। भूकम्पीय तरंगें उद्गम केंद्र से
सभी दिशाओं में चलती हैं।
भूकंपलेखी (Seismograph) यह एक बहुत ही संवेदनशील यंत्रा है जो हजारो कि0 मी0 दूर उत्पन्न हुए इतने कम शक्ति वाले छोटे भूकंपो का भी अभिलेख कर सकता है जिनकी पहचान सामान्यतः मानव अनुभूतियों द्वारा नही की जा सकती। इसकी रचना जड़त्व के सिद्धांत (Principle of Inertia) पर आधारित है। यह किसी भी द्रव्यमान जो या तो स्थिर है या एक सीधे मार्ग मे एक समान गति की अवस्था मे है, के परिवर्तन का प्रतिरोध करने की प्रवृति है। किसी पदार्थ का द्रव्यमान जितना अधिक होगा प्रतिरोध की प्रवृति भी उतनी ही अधिक होगी । इसमे क्षैतिज गति वाला यंत्रा प्रदर्शित किया गया है। एक भारी ठोस एक उध्र्व स्तम्भ से एक तार द्वारा लटकाया जाता है इसे क्षैतिज रखने के लिए तथा इसकी ऊध्र्वाधर गति रोकने के लिए एक छड़ (Beam) का उपयोग करते हैं। भारी ठोस से एक दर्पण लगा होता है। इस पर प्रकाश की तीव्र किरणे डाली जाती है जो परावर्तित होकर एक घुमने वाले ड्रम (Drum) पर पड़ती है इस ड्रम पर फिल्म लगी होती है। यदि भूकंप न आए तो ड्रम पर किरणे एक सीधा रेखा बनाती है। भूकंप आने पर यह रेखा टेढ़ी मेढ़ी हो जाती है । ऊध्र्व स्तम्भ पृथ्वी की गहरी आधार शैल पर मजबूती से गडा़ रहता है जिसमे भूकंप के समय यह स्तम्भ भी शैल के साथ गति कर सके।
भूकंपलेखी द्वारा प्रत्यक्ष रूप से दो माप किए जाते हैं:
- अभिलेखित की गई सबसे विशाल तरंग का आयाम (Amplitude) तथा
- पी एवं एस तरंगो के आगमन समय मे अंतर।
भूकंप की भविष्यवाणी: यद्यपि भूकंप की भविष्यवाणी करना बहुत ही कठिन कार्य है तथापि इसके लिए दो विधियाँ प्रयोग की जाती हैं: (i) भूकंप के आने से ठीक पहले होने वाले विभिन्न प्रकार के भौतिक परिर्वतनों का मापन तथा (ii) भूकंप के ऐतिहासिक पृष्ठभूमि अर्थात प्रभावित क्षेत्रा का दीर्घकालीन भूकंपी इतिहास। भूकंप के समय होने वाले भौतिक परिर्वतन निम्नलिखित है:
1. पी तरंग वेग: बहुत से छोटे छोटे भूकंप पी तरंगो के वेग मे परिर्वतन कर देते है जो कि किसी बड़े भूकंप के ठीक पहले सामान्य हो जाते है। इन परिर्वतन को भूकंपलेखी पर अभिलेखीत किया जाता है।
2. भूमि उत्थान: भूकंप से पहले भूखंड के धीमी गति से खिसकने से एक बड़ क्षेत्रा की शैलो मे असंख्य छोटी छोटी दरारें पड़ जाती है। इन नवनिर्मित दरारों मे भूमि गत जल प्रवेश कर जाता है। जल की उपस्थिति द्रवचालित जैक की भाँति कार्य करती है। जिससे शैलों मे उभार उत्पन्न हो जाते है। अतः बड़े भूकंप के आने से पहले भूमि गुंबदाकार आकृति मे फूल जाती है अथवा ऊपर उठ जाती है। इस परिर्वतन को दाबखादिता (क्पसंजंदबल) कहते है।
3. रैडन निकास (Rodon Emission): रैडन गैस का निकास किसी बड़े भूकंप के आने से पूर्व बढ़ जाता है । अतः रैडन गैस के निकास पर दृष्टि रखने से किसी बड़े भूकंप के आने की चेतावनी मिल सकती है।
4. पशुओं का आचरण: प्रायः देखने मे आया है कि किसी बड़े भूकंप के आने से पहले जीव जन्तु विशेषतया बिलों मे रहने वाले जीव जन्तु असाधारण ढं़ग से व्यवहार करने लगते है। चीटिंयाँ दीमक तथा अन्य बिलों मे रहने वाले जीव अपने छिपने के स्थान से बाहर निकल आते है । चिड़ियाँ जोर जोर से चहचहाती है तथा कुत्ते एक नियत प्रकार से भौंकते तथा रोते हैं।
प्रेरित भूकंप (Induced Earthquake): ये भूकंप मनुष्य के कार्य कलाप द्वारा आते है । उदाहरणतया बम के धमाके से, रेलो के चलने से अथवा कारखानों मे भारी मशींनो के चलने से भी पृथ्वी मे कंपन होता रहता है । तेल के क्षेत्रो में द्रवस्थेैतिक दाब को बढ़ाने तथा तेल प्राप्ति मे वृद्धि करने के लिए तरल पदार्थो का पंपन किया जाता हैं । इससे छोटेे भूकंप पैदा होते है बड़े बड़े बाँध बनाने से भी भूकंप आते है । बाँधो के पीछे अथाह जलराशी की झील बन जाती है। इससे समस्थितिक संतुलन बिगड़ जाता है । और भूकंप आता है । महाराष्ट्र मे 11-12-1967 के दिन कोयना का भूकंप कोयना बाँध द्वारा अपार जलराशि जमा करने से ही आया था ।
भूकम्पो का वितरण (Distribution of Earthquakes)
भूकम्पों का विश्व - वितरण ज्वालामुखीयों के वितरण से मिलता - जुलता है। भूकम्प विश्व के कमजोर भागों मे ही अधिक आते है।
1. प्रशान्त महासागरीय पेटी - विश्व के 68% भूकम्प प्रशान्त महासागर के तटीय भागों में आते हैं । इसे अग्निवलय (Ring of fire) कहते है। यहाँ पर ज्वालामुखी भी सबसे अधिक है। चिली कैलीफोर्निया ,अलास्का जापान, फिलीपाइन, न्यूजीलैंण्ड तथा मध्य माहासागरीय भागों मे हल्के तथा भीषण भूकम्प आते रहते है। यहाँ पर उच्च स्थलीय पर्वत तथा गहरी महासागरीय खाइयाँ एक दूसरे के लगभग समानान्तर चली गई है। इससे तीव्र ढ़ाल उत्पन्न होता हैं । जो भूकम्पो को आने का महत्वपूर्ण कारण बनता है।
2. मध्य विश्व पेटी (Mid World Belt) - इस पेटी में विश्व के 21% भूकम्प आते हैं। यह पेटी मैक्सिको से शुरू होकर अटलांटिक महासागर भूमध्यसागर आल्प्स तथा काकेसस से होती हुई हिमालय पर्वत तथा उसके समीपवर्ती क्षेत्रों तक फैली हुई है।
3. अन्य क्षेत्रा- शेष 11% भूकम्प विश्व के अन्य भागों में आते है । कुछ भूकम्प अफ्रीकी झीलों लाल सागर तथा मृत सागर वाली पट्टी में आते है।
ज्वालामुखी (Volcanoes)
ज्वालामुखी पृथ्वी पर होने वाली एक आकस्मिक घटना है। इससे भू - पटल पर अचानक विस्फोट होता है , जिसके द्वारा लावा गैस, धुआँ, राख, कंकड, पत्थर आदि बाहर निकलते हैं। इन सभी वस्तुओं का निकास एक प्राकृतिक नली द्वारा होता है जिसे निकास नालिका (Ventor Neck) कहते हैं। लावा धरातल पर आने के लिए एक छिद्र बनाता है जिसे विवर या क्रेटर (Crater) कहते है। लावा अपने विवर के आस पास जम जाता है और एक शंकु के आकार का पर्वत बनाता है। इसे ज्वालामुखी पर्वत कहते हैं। कई बार लावा मंुख्य नली के दोनो ओर के रन्ध्रों मे से होकर निकलता हैं। और छोटे -छोटे शंकुओं का निर्माण करता है। जिन्हे गौण शंकु (Secondary Cone) कहते है। सभी ज्वालामुखी मैग्मा से बनते है । मैग्मा धरातल के नीचे गर्म पिघला हुआ पदार्थ है जो धरातल पर लावा या ज्वालामुखी चट्टानी टुकड़ो के रूप मे बाहर आता हैं । लावा का तापमान बहुत अधिक अर्थात 800व से 1300व से0 तक होता है तथा इसमें भाप तथा कई अन्य गैसें मिली होती हैं।
ज्वालामुखी से निःसृत पदार्थ (Materials Ejected by Volcanoes)
ज्वालामुखी से गैस, तरल तथा ठोस तीनों प्रकार के पदार्थ निकलते है
1. गैसें - ज्वालामुखी उद्गार के समय कई प्रकार की गैसें निकलती है जिनमे बहुत ही प्रज्वलित गैसें (हाईड्रोजन सल्फाइड व कार्बन डाई सल्फाइड) जहरीली गैसें (कार्बन मोनो- आक्साइड व सल्फर डाई आक्साइड) तथा अन्य गैसे हाइड्रोक्लोरिक एसिड व आमोनिया क्लोराइड आदि) सम्मिलित हैं । गैसें मे जल वाष्प का महत्व सबसे अधिक है। ज्वालामुखी से बाहर निकलने वाली गैसें मे 60 से 90% अंश जलवाष्प का ही होता है। जलवाष्प वायुमण्डल के सम्पर्क मे आते ही ठण्डा हो जाता है और मुसलाधार वर्षा करता है।
2. तरल पदार्थ- ज्वालामुखी से निकलने वाले तरल पदार्थ को लावा कहते है। यह बहुत ही गर्म होता है। ताजा निष्कासित लावे का तापमान 600से 1200 डिग्री सेल्सियस तक होता है। कई बार लावे के साथ जल भी निकलता है। लावे की गति उसकी रासायनिक संरचना तथा भूमि के ढ़ाल पर निर्भर करती है। इसकी गति अधिकतर धीमी होती है। परन्तु कभी - कभी यह 15 कि0 मी0 प्रति घण्टा की गति से भी बहता है । जब लावा अधिक तरल हो तथा भूमि का ढ़ाल अति तीव्र हो तो यह 80 कि0 मी0 प्रति घण्टा की गति से भी बहता है।
3. ठोस पदार्थ - ज्वालामुखी विस्फोट के समय गैसें तथा तरल पदार्थो के साथ - साथ ठोस पदार्थ भी बड़ी मात्रा में निःसृत होते है ये बारीक धूल कणों तथा राख से लेकर कई टन भार वाले शिला खण्ड होते हैं। मटर के दाने जितने शिला-खण्डों को लैंपिली (Lapillus) तथा छह-सात सेंटीमीटर से लेकर एक मीटर व्यास वाले शिला - खण्डों को ज्वालामुखी बम्ब (Volcanic Bomb) कहते है। कभी कभी बहुत छोटे-छोटे नुकीले शिला खण्ड लावा से चिपककर संगठित हो जाते हैं। इन्हे ज्वालामुखी संकोणश्म (Volcanic Breecia) कहते है।
ज्वालामुखी के प्रकार (Types of volcanoes)
ज्वालामुखी मुख्यतः निम्नलिखित प्रकार के होते हैं:
1. सक्रिय ज्वालामुखी (Active Volcanoes) इस प्रकार के ज्वालामुखी मे प्रायः विस्फोट तथा उद्भेदन होता ही रहता है इनका मुख सर्वदा खुला रहता है और समय समय पर लावा, धुआँ तथा अन्य पदार्थ बाहर निकलते रहते हैं और शंकु का निर्माण होता रहता है। इटली मे पाया जाने वाला एटना ज्वालामुखी इसका प्रमुख उदाहरण है जो कि 2500 वर्षो से सक्रिय है। सिसली द्वीप का स्ट्राम्बोली ज्वालामुखी प्रत्येक 15 मिनट बाद फटता है और भूमध्य सागर का प्रकाश मीनार कहलाता है।
2. प्रसुप्त ज्वालामुखी (Dorment Volcanoes) - इस प्रकार के ज्वालामुखी मे दीर्घकाल से उद्भेदन (विस्फोट) नही हुआ होता किन्तु इसकी सम्भावनाएँ बनी रहती है। ये जब कभी अचानक क्रियाशील हो जाते है तो जन धन की अपार क्षति होती है। इसके मुख से वाष्प तथा गैसें निकला करती है। इटली का विसूवियस ज्वालामुखी कई वर्ष तक प्रसुप्त रहने के पश्चात् सन् 1931 में अचानक फूट पड़ा जो इसका प्रमुख उदाहरण है।
3. विलुप्त ज्वालामुखी (Extinct Volcanoes) इस प्रकार के ज्वालामुखी में विस्फोट प्रायः बन्द हो जाते हैं। और भविष्य मे भी कोई विस्फोट होने की सम्भावना नही होती । इसका मुख, मिट्टी लावा आदि पदार्थो से बन्द हो जाता है और मुख का गहरा क्षेत्रा कालान्तर में झील के रूप मे बदल जाता है जिसके ऊपर पेड़ पौधे उग आते है। मयनमार का पोपा ज्वालामुखी इसका प्रमुख उदाहरण है।