(Sample Material) सामान्य अध्ययन (पेपर -1) ऑनलाइन प्रशिक्षण कार्यक्रम: भारत और विश्व का भूगोल - "दाब कटिबंध एवं पवन तंत्र"
सामान्य अध्ययन ऑनलाइन प्रशिक्षण कार्यक्रम का (Sample Material)
विषय: भारत और विश्व का भूगोल
दाब कटिबंध एवं पवन तंत्र
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जनवरी में वायुदाब का क्षैतिज वितरण
जनवरी माह में सूर्य दक्षिणी गोलार्द्धा पर सीधा चमकता है । अतः वहां ग्रीष्म त्रतु एवं उत्तरी गोलार्द्धा में शीत त्रतु रहती है । सूर्य के दक्षिणायन की स्थिति में महाद्वीपीय भागों में तापक्रम की अधिकता विशेषकर आस्ट्रेलिया, अफ्रीका एवं दक्षिणी अमेरिका में रहता है जिसके फलस्वरूप इन्हीं महाद्वीपीय भागों में निम्न भार क्षेत्र स्थित रहते हैं । जनवरी में महासागरों में वायुभार की अधिकता के तीन मुख्य कोपों की स्थापना महासागरों के पूर्वी भागों में होती है । उत्तरी गोलार्द्धा में इस प्रकार के विभिन्न कोष अनुपस्थित होते हैं तथा उच्च वायुभार क्षेत्र विस्तृत भू-भागों को घेरे रहते हैं । दक्षिणी गोलार्द्ध में उपध्रुवीय मुन भार अगाध मुख्य स्थान रखता है जबकि उत्तरी गोलार्द्धा से प्रशान एवं अटलांटिक महासागरों में 50° से उत्तर की तरफ मुख्य भार क्षेत्र होता है, जिन्हें आइसलैंड न्यून भार क्षेत्र तथा यूरेशिया महाद्वीप के पूर्वी क्षेत्रों के नाम से जाना जाता है । इस समय बूरेशिया महाद्वीप के पूर्वी क्षेत्रों में उच्च भार क्षेत्र स्थित होता है, जिसकी उत्पत्ति का मुख्य कारण तापक्रम की अत्यधिक कमी है। विश्व का सर्वोच्च वायुदाब 1035 मिलीबार दक्षिणी पूर्वी एवं पूर्वी साइबेरिया में अंकित किया जाता है । इस समय न्यूनतम वायुदाब आइसलैंड तथा एल्यूशियन द्वीपों पर रहता है ।
सूर्य के उत्तरी गोलार्द्ध में चमकने के फलस्वरूप महाद्वीपीय क्षेत्रों में तापक्रम के बढने से न्यूनभार केन्द्र परिश्चमोत्तर भारत के क्षेत्र तथा उत्तरी अमेरिका में स्थित होता है। उपोष्य पेटी में दक्षिणी गोलार्द्ध में उच्च वायुभार क्षेत्रों के विस्तृत कोष फैले होते हैं जो वृहद क्षेत्रों में घेरे रहते हैं।
उतरी गोलार्द्ध में अर्द्ध उष्ण जलवायु वाले क्षेत्रों में उत्तरी प्रशांत एवं उत्तरी अटलांटिक महासागरों में उष्ण भारत क्षेत्र स्मे विस्तृत भागों में फैलते हैं कि वे मध्य अक्षांशीय भागों तक स्थित हो जाते हैं । तापीय प्रभाव के फलस्वरूप पश्चिमी एवं उत्तरी अमेरिका के दक्षिणी पश्चिमी भाग में न्यून भार क्षेत्र महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं । इस समय यूरेशिया महाद्धीप के भीतरी भागों में उत्तरी भारत के बेकाल झील ब निकटर्वी भागों तक 998 से 1002 मिलीबार के मध्य न्यून बायुदाब एवं विषुवत व उपध्रुवीय सुदूर उत्तरी प्रदेशों में 1008 से 1013 मिलीबार के मध्य वायुदाब रहता है। धुवीय उच्च वायुदाब उत्तरी धुव सागर एवं ग्रीनलैंड तक मिलता है। यह 1013 से 1०20 मिलीबार के मध्य रहता है। दक्षिणी गोलार्द्ध में उपोष्ण कटिबंधीय उच्च भार मकर रेखा के आस-पास सारी पट्टी में फैला रहता है। यहां 1018 से 1०20 मिलीबार समदाब रेखाएं इस पट्टी को घेरे रहती है।
समदाब रेखाएँ
- मानचित्र पर वायुदाब को रेखाओं से दिखाया जाता है। समदाब रेखाएँ वे कल्पित रेखाएँ हैं जो समुद्रतल के बराबर घटाए हुए समान वायुदाब को मिलाती हैं।
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समदाब रेखाओं परस्पर दुरियाँ वायुदाब में अन्तर की दिशा ओर उसकी दर को दर्शाती हैं जिसे दाब प्रवणता कहते हैं । समदाब रेखाओं के पास होने से दाब प्रवणता अधिक तथा दूर होने के दाब प्रवणता कम होती है।
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दाब प्रवणता को बैरोमीट्रक ढाल भी कहते है।
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दाब प्रवणता के कारण दो प्रकार से वायु का संचार होता है- 1. उच्च वायुदाब से निम्नवायुदाब की की ओर लंबवत चलने वाली वायुधाराएँ 2. पृथ्वी तल के समानान्तर क्षैतिज रूप से चलने वाली पवनें।
कोरिओलिस बल
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1844 ई. में फ्रंासिसी वैज्ञानिक ने साबित किया कि पृथ्वी जब अपने अक्ष पर घूर्णन करती है तो पवन की दिशा को प्रभावित करती हैं इस प्रभाव से पवनें उतरी गोलार्द्ध में अपने मूल दिशा से दाहिने की ओर दक्षिणी गोलार्द्ध में बायीं ओर विक्षेपित हो जार्ती है। जब पवनों का वेग अधिक होता है तो विक्षेपण भी अधिक होता है। इसे फेरल ने प्रमाणित किया। अतः इसे फेरल नियम भी कहा जाता है।
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कोरियालिस वल अक्षांशों के कोण के सीधा समानुपात में बढता है। धुबों पर इसका प्रभाव सर्वाधिक एवं विषुवत वृत्त पर यह अनुपस्थित होता है।