(Sample Material) सामान्य अध्ययन (पेपर -1) ऑनलाइन प्रशिक्षण कार्यक्रम: भारत और विश्व का भूगोल - "पृथ्वी का आंतरिक भाग"
सामान्य अध्ययन ऑनलाइन प्रशिक्षण कार्यक्रम का (Sample Material)
विषय: भारत और विश्व का भूगोल
पृथ्वी का आंतरिक भाग
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पृथ्वी की आन्तरिक संरचना के बारे में मनुष्य का ज्ञान अभी तक सीमित ही है। इस सम्बन्ध में हमें अधिकांश ज्ञान परोक्ष रूप से प्राप्त हुआ है।
प्रत्यक्ष रूप से प्राप्त किया गया ज्ञान बहुत ही कम है।
प्रत्यक्ष ज्ञान हमें खानों से प्राप्त होता है । विश्व की सबसे गहरी खान दक्षिणी अफ्रीका में राँबिन्सन गर्त (Robinson Deep) है जहाँ से सोना निकाला जाता है। इसकी गहराई 4कि0मी0 से भी कम है। तेल की खोज के लिए खोदे गए कुओ की गहराई भी लगभग 6 कि0 मी0 तक ही पहुँच पाई है। यह गहराई पृथ्वी के 6370 कि0 मी0 व्यास की तुलना में बहुत ही कम है। इस प्रकार का प्रत्यक्ष रूप में तो भू पर्पटी के ऊपरी भाग की ही जानकारी प्राप्त की जा सकती है। यह भाग धरातल के ठीक नीचे स्थित है। इससे निचले भाग की जानकारी हमें केवल परोक्ष वैज्ञानिक प्रमाणों से ही मिल सकती है। पृथ्वी की आन्तरिक संरचना के सम्बन्ध में अभी भी वैज्ञानिकों में मतभेद है। भू गर्भ में पाई जाने वाली परतो की मोटाई, घनत्व, तापमान, भार तथा वहाँ पर पाए जाने वाले पदार्थ की प्रकृति पर अभी पूर्ण सहमति नही हो पाई है। फिर भी वैज्ञानिक इस बात के बारे में एकमत हैं कि पृथ्वी का आंतरिक भाग लगभग संकेन्द्रीय परतों द्धारा बना हुआ है। सबसे ऊपरी परत को भू पर्पटी कहते है इसकी औसत मोटाइ 33 कि. मी. है। यह एक ठोस परत है जिसकी रचना चट्टानों से हुई है। इसके तुरंत नीचे मैंटल (Mantle) हैं जो 2900 कि0 मी0 की गहराई तक विस्तृत है। मैंटल को दो प्रमुख परतों मे बाटा गया है जिन्हे क्रमशः ऊपरी मैंटल तथा निचला मैंटल कहते हैं ऊपरी मैंटल के उपरी 400 कि. मी. की गहराई तक वाले भाग को एस्टोनोस्फेयर (Asthenosphere) तथा 400 से 650 कि0 मी0 के बीच वाली परत को संक्रमण कहते है । मैंटल के नीचे अर्थात 2900 कि0 मी0 से अधिक गहराई पर पृथ्वी का क्रोड ;ब्वतमद्ध है जो पृथ्वी के केंद्र तक विस्तृत है। इसे बाहृा क्राड (द्रव) तथा आंतरिक क्रोड (ठोस) में बाँटा गया है। इन दोनों परतों को संक्रमण क्षेत्रा (द्रव) एक दूसरे से अलग करता है। संक्रमन क्षेत्रा 4600 से 5151 कि. मी. की गहराई के बीच स्थित है।
भूकम्पीय तरंगो का व्यवहार
भूकम्पीय तरंगे को सिस्मोग्राफ (Seismograph) नामक यन्त्रा द्वारा रेखांकित किया जाता है। इससे इनके व्यवहार के सम्बन्ध मे निम्नलिखित तथ्य निकलते हैं:
1. सभी भूकम्पीय तरंगो का वेग अधिक घनत्व वाले पदार्थो मे से गुजरने पर घट जाता
है।
2. केवल प्राथमिक तरंगे ही पृथ्वी के केन्द्र्र्र्र्र्रीय भाग से गुजर सकती है
परन्तु वहाँ पर उनका वेग कम हो जाता है।
3. गौण तरंगे द्रव पदार्थ मे से नही गुजर सकती ।
4. एल तरंगे केवल धरातल के पास ही चलती है।
5. विभिन्न माध्यमों मे से गुजरते समय ये तरंगे परावर्तित (Reflect) तथा आवर्तित
(Refract) होती हैं।
इन तरंगो का व्यवहार को देखने से स्पष्ट हो जाता है। भूकम्प के केन्द्र के निकट P, S तथा L तीनो प्रकार की तरंगे पहुँचती है पृथ्वी के भीतरी भागो मे ये तरंगे अपना मार्ग बदलकर भीतर की ओर अवतल मार्ग पर यात्रा करती है। इससे इस बात की पुष्टि होती है कि पृथ्वी के आन्तरिक भागो मे घनत्व अधिक है भूकम्प केद्र से धरातल के साथ 11000 कि0 मी0 की दुरी पर P तथा S तरंगे पहुँचती है इन तरंगो की गति भी गहराई के साथ साथ बदली जाती है । किन्तु यह क्रम 2900 कि0 मी0 की गहराई तक ही सीमित है इसके बाद S तरंगे लुप्त हो जाती है और च् तरंगो की गति कम हो जाती है इस क्रम से पता चलता है कि पृथ्वी के धात्विक क्रोड का स्वभाव तरल पदार्थ जैसा है जबकी 2900 कि0 मी0 की गहराई तक चट्टानों का आचरण ठोस पदार्थ जैसा है क्रोड (Core) पर पहुँचने पर S तरंगे लुप्त हो जाती है और P तरंगे आवर्तित हो जाती है इस कारण भूकम्प के केन्द्र से 11000 कि0 मी0 के बाद लगभग 5000 कि0 मी0 तक कोई भी तरंग नही पहुँचती इन क्षेत्रा को छाया क्षेत्रा (Shadow Zone) कहा जाता है इस छाया क्षेत्रा की उपस्थिति से इस बात का प्रमाण मिलता है कि पृथ्वी का केन्द्रीय भाग भारी पदार्थ का बना हुआ है जिसमे लोहा तथा निकिल जैसी भारी पदार्थो की प्रधानता है। इसे धात्विक क्रोड कहते है और इसका घनत्व 11 से 12 तक है।