यूपीएससी आईएएस (मेन) हिन्दी अनिवार्य परीक्षा पेपर UPSC IAS (Mains) Hindi Compulsory Exam Paper - 1995
यूपीएससी आईएएस (मेन) हिन्दी अनिवार्य परीक्षा पेपर UPSC IAS (Mains) Hindi Compulsory Exam Paper - 1995
Time Allowed: 3 Hours
Maximum Marks: 300
Candidate should attempt ALL questions.
The number of marks carried by each question is indicated at the and of the question.
Answers must be written in Hindi unless otherwise directed.
In the case of Question No. 3, marks will be deducted if the precis is much longer or shorter than the prescribed length.
1. निम्नलिखित विषयों में से किसी एक पर लगभग 300 शब्दों में निम्बन्ध लिखिएः 100
(क) लोकतंत्रा के लिए शिक्षा
(ख) उपभोक्ता-मंच
(ग) उदार अर्थव्यवस्था में महिलाओं के लिए कार्यक्षेत्रा
(घ) आधुनिक तकनीकीकरण-अभिशाप या वरदान?
(ङ) सभी कुछ चमकीला, सोना नहीं होता
2. निम्नलिखित अवतरण को ध्यान से पढ़िए और इसके बाद दिए गए प्रश्नों के उत्तर अपने शब्दों में लिखिएः 60
केवल अग्नि ही उन तत्त्वों में प्रमुख है जो भय उत्पन्न करता है।
(i) हम साँस लेते हैं, पृथ्वी पर पैर रखते हैं, जल में स्नान करते हैं। हम केवल अग्नि के निकट सम्मानपूर्वक जाते हैं। यही एक ऐसा तत्त्व है जो सदा जागरूक रहता है और दूर से देखने में सदा सुखकारी प्रतीत हातेा है। कभी-कभी कुछ शीतप्रधान देशों को छोड़कर हम जिस वायु में साँस लेते हैं, उस वायु को देख नहीं पाते। और कौन कहेगा कि ऐसा दृश्य मनोहर होता है? हम पृथ्वी को घूमते हुए नहीं देख पाते। उसके भीतर से जन्म लेने वाले वृक्ष तथा अन्यान्य वनस्पतियाँ इतने धीरे-धीरे बाहर निकलते हैं कि उन्हें देखने पर कोई आनन्द नहीं आता। पृथ्वी को देखने पर भी किसी का धैर्य छूट सकता है, क्योकि वह भी तो अन्ततः विशाल अग्निशिखाओं की एक पतली पपड़ी जैसी है जिसका निर्माण अपेक्षाकृत अर्वाचीन है। इन दृश्यों के पीछे लालायित रहना धैर्य का द्योतक नहीं है।
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(ii) नदी के रूप में प्राप्त होने वाला जल एकाघ क्षण के लिए देखते समय अवश्य रमणीय प्रतीत होता है। फिर उसके बाद जल की नियमित गतिशीलता थकाने वाली हो जाती है।
(iii) विविधता तथा रमणीयता की दृष्टि से केवल संपूर्ण समुद्र का जल ही अग्नि की प्रतिस्पर्धा कर सकता है। किन्तु एक इमारत के प्रज्वलित होते समय जिस प्रकार का शानदार प्रदर्शन दिखाई देता है, उसकी तुलना में समुद्र का सर्वोत्तम प्रदर्शन भीµउदाहरणार्थ अटलांटिक महासागर का तूफानµकम रोमांचक प्रतीत होता है। जहाँ तक अन्य बातों का सम्बन्ध है, समुद्र की नीरसता तथा उकताहट के अलग-अलग अवसर होते हैं, भले ही वह पूर्ण रूप से प्रशांत लगता हो। किसी जाली या झँझरी के भीतर रखी हुई थोड़ी-सी अग्नि तब तक मनोरंजक और प्रेरणाप्रद लगती है जब तब आप उसे बाहर न निकालें। इस प्रकार की अग्नि एक मुट्ठी भरी मिट्टी अथवा गिलास-भरे जल के समान है जो आँखों के लिए आन्नद का विषय तो बनती ही हैं, वह किसी गौरवपूर्ण महत्ता का संकेत भी करती है।
अन्य तत्त्व, भले ही प्रचुर नमूनों के रूप मंे विद्यमान हों, अग्नि की पवित्राता की अपेक्षा हमें कम प्रभावित करते हैं। पौराणिक आख्यान के अनुसार केवल अग्नि को स्वर्ग से पृथ्वी पर उतारा गया था; अन्य तत्त्व प्रारंभ से ही यहाँ पर विद्यमान थे।
(क) अग्नि किस प्रकार अन्य तत्त्वों की अपेक्षा अधिक भयानक है? 12
(ख) जल देखने में कब रमणीय लगता है और कितने समय तक? 12
(ग) अग्नि की शोभा समुद्री जल की शोभा से किस प्रकार श्रेष्ठ है? 12
(घ) मिट्टी की अपेक्षा अग्नि आँखों को क्यों अधिक आन्नद देती है? 12
(ङ) अन्य तत्त्वों की अपेक्षा अग्नि को पवित्रा और स्वर्गीय क्यों माना जाता है? 12
3. निम्नलिखित अवतरण का सारांश लगभग 200 शब्दों में लिखिए। सारांश यथासंभव आपके शब्दों में हो। उसे निर्धारित शीट पर लिखें और उत्तर-पुस्तिका के अन्दर मजबूती से बाँध दें। अपने उत्तर प्रयुक्त शब्दों की संख्या का उल्लेख कर दें। 60
स्नायुजन्य तनावों से भरी हुई संसार की वर्तमान परिस्थिति में हमारा यह अति आवश्यक और महत्त्वपूर्ण कार्य है कि नवीन वास्तविकताओं से सामंजस्य किया जाए, तथा नए-नए भयानक विनाशकारी साधनों का दुरुपयोग रोकने के लिए युक्तियाँ निकाली जाएँ। हमें एक नए प्रकार की सुनम्यता, सर्जनात्मक अंगीकरण की एक नवीन शक्ति विकसित करनी चाहिए।
आज सैन्यवाद तथा राष्ट्रवाद बहुत पुराने पड़ गए हैं, अप्रचलित हो गए हैं। हैराक्लिटस ने युद्ध को सारे परिवर्तनों का जनक ठहराया था। शताब्दियों तक युद्ध को अन्तर्राष्ट्रीय विवादों की समाघानकारी पद्धति के रूप में प्रयुक्त किया जाता रहा जिसके परिणाम अत्यंत भयंकर हुए। उसने पूरी की पूरी सभ्यताओं का नाम-निशान तक मिटा दिया और संपूर्ण जातियों का संहार कर डाला। किन्तु नवीन अस्त्रा-शस्त्रों ने युद्धस्थिति का स्वरूप बिल्कुल बदल दिया है। आज यदि कोई सार्वजनिक समझौता नहीं किया जाता, यदि परस्पर विश्वास करने की पुनः प्रतिष्ठा नहीं की जाती, यदि प्राणघाती दौड़ लगाने की प्रतिस्पर्धा जारी रहती है, तो हम सभी एक ऐसे अनिश्चय में जीवित रहेंगे जहाँ सभी को मृत्यु-दण्ड का आदेश धमकाता रहेगा। वर्तमान युग में युद्ध करने का तात्पर्य मानव-मात्रा का जीवित रहना नहीं है। उसका तात्पर्य आत्महत्या करना। अन्तराष्ट्रीय विवादों की समाधानकारी पद्धति के रूप में युद्ध को त्याग देना होगा। शांति का कोई दूसरा विकल्प नहीं है। कभी यह तर्व$ दिया जाता है कि युद्ध अवश्यभावी हैµइसलिए नहीं कि मनुष्य की प्रकृति नहीं सुधारी जा सकती, बल्कि इसलिए कि राज्य नहीं सुधर सकते। अतः युद्ध-सम्बन्धी विचार-धारा को हमें अवश्य बदलना होगा।
मानव-जाति के उतार-चढ़ाव भरे इतिहास में हमने अपनी विशेष जीवन-प्रणालियों को बनाए रखने के लिए बार-बार परस्पर संघर्ष किए हैं। विशेष जीवन-प्रणाली से चिपके रहने की उस सहज वृत्ति को आज मानव-विकास के वर्तमान स्तर पर राष्ट्र-राज्य में अपना लिया है। राष्ट्रवाद स्वार्थपरता का एक सामुहिक रूपातरण है। प्रत्येक जाति, प्रत्येक धार्मिक पंथ, प्रत्येक राष्ट्र अपने आपको ईश्वर द्वारा भविष्य के लिए निर्वाचित, अथवा मानव-जाति के शिक्षक रूप में चयनित मानता है। प्रत्येक राष्ट्र अपनी संस्कृति तथा जीवन-पद्धति के विषय में एक दंभपूर्ण दृष्टि अपना लेता है, और सचेतन रूप से नहीं तो अचेतन रूप से ही वह अपनी तर्व$-बृद्धि को मनोवेगों का अनुगामी बना लेता है। तब उसके भीतर उन सभी लोगों के प्रति आकामक विद्वेष की भावना उत्पन्न होने लगती है जो इस पद्धति को नकारते हैं, तथा दूसरी जीवन-प्रणाली के प्रति समर्पित होते हैं। हम जिसे नहीं समझते।
उसका उपहास करते हैं हम जिसे नहीं पहचानते उसे अस्वीकार करते हैं। राष्ट्रीय अहंकार सभी राष्ट्रों का चारित्रिक लक्षण हैµवे चाहे पूर्व के हों अथवा पश्चिम के हो। प्राचीन यूनानियों ने जिस महान सभ्यता का विकास किया, उसे राज्यों के प्रति अत्यधिक भावुकता और प्रबल आसक्ति के कारण नष्ट कर दिया। ला फोन्तेन ने राष्ट्रीय गर्व का उल्लेख करते समय फ्रांस वालों को स्पेन वालों से अलगाते हुए कहा थाµ‘‘हमारा गर्व कहीं अधिक मूर्खतापूर्ण है; उनका गर्द कहीं अधिक उन्मादपूर्ण है।’’ किसी फ्रांसीसी ने घोषित किया था कि अंग्रेजी वह सरल पैं$च भाषा हैं जिसका लेखन तथा उच्चारण अशुद्ध है।
जब राष्ट्रीय नेता आधुनिक तकनीकी उपकरणों रेडियो, दूरदर्शन आदि का प्रयोग करते हैं तो अपने जातीय समूहों को बतलाते हैं कि पराजय से वे अपमानित होते हैं। वे अपने पड़ोसियों द्वारा धमकाए जाते हैं। वे सारी स्थितियों का सामना करें और आवश्यक होने पर अपनी पितृभूमि, मातृभूमि अथवा विचारधारा की रक्षा करने के लिए प्राणों तक की बलि चढ़ा दें। जातियों को अलग रखने वाले अवरोधक इस प्रकार और गहरे हो जाते हैं। व्यक्तिगत मानव प्राणी के रूप में समझदार हैं; विनम्र, उदार और दूसरों के प्रशंसक हैं। एक या दूसरे राष्ट्र-राज्य के सदस्य रूप में हम कड़वाहट से भरे हैं; अक्खड़ दंभी और प्रायः असहनीय है। एक ऐसे विश्व के सामने, जहाँ हमने अंतरिक्ष पर विजय प्राप्त करली हो, राष्ट्र-राज्य बहुत ही संकीर्ण हैं।
4. निम्नलिखित अवतरण का हिन्दी में अनुवाद कीजिएः 20
But I could see even than that the British officials who spoke of Gandhi with a mixture of amusement and disapproval, also genuinely liked and admired him, after a fashion. No body ever suggested that he was corrupt, or ambitious in any vulgar way, or that anything he did was actuated by fear or malice. In judging a man like Gandhi one seems instinctively ot apply high standards, so that some of his virtues have passed almost unnoticed. For instance, it is clear even from the autobiography that his natural physical courage was quite outstanding: the manner of his death was a later illustration of this, for a public man who attached any value to his own skin would have been mor adequately guarded.
Again, he seems to have been quite fee from the maniacal suspiciousness which, as E.M. Forster rightly says in 'A Passage to India', is the besetting Indian vice, as hypocrisy, is the British vice. Although no doubt he was shrewd enough in detecting dishonesty, he seems whenever possible, to have believed that other people were acting in good faith and had a better nature through which they could be approached. And though he came of a poor middle-class family, started life rather unfavourably, and was probably of unimpressive physical appearance, he was not afflicted by envy or by the feeling of inferiority.
निम्नलिखि अवतरण का अंग्रेजी में अनुवाद कीजिएः 20
इन सभी महीनों की समायावधि में मैंने प्रायः लिखने के विषय में
विचार किया है, उसके आवेग का अनुभव किया है, और उसी के साथ-साथ एक अनिच्छा का भी
अनुभव किया है। मेरे मित्रों ने तो निर्विवाद रूप से स्वीकार कर लिया कि में लिखूँगा
और एक दूसरी पुस्तक तैयार कर डालूँगा जैसा कि मैंने अपने पूर्व कारावास की शर्तों
के अन्तर्गत किया था। वैसा करना मेरे लिए प्रायः एक आदत जैसी बन गई थी।
फिर भी मैंने लिखा नहीं। ऐसी पुस्तक लिखकर रखने में मुझे वु$छ अरुचि हो गई जिसकी
कोई विशेष सार्थकता न हो। मात्रा लिख देना बड़ा सरल होता। किन्तु वु$छ ऐसा लिखकर रखना
जो बासी या पुराना न पडे-जबकि मैं कारागृह के भीतर बैठकर पाण्डुलिपि तैयार करता और
संसार बदलता रहताµएक कठिन कार्य था। तब मैं आज या कल के लिए नहीं, बल्कि किसी
अज्ञात और संभवतः दूरवर्ती भविष्य के लिए लिखता। मैं किसके लिए लिखता? और कब के लिए
लिखता? शायद मैं जो वु$छ लिखता वह कभी प्रकाशित नहीं होता। क्योकि जितने वर्षों तक
मैं कारागृह में निवास करता, उसी अवधि के भीतर न जाने कितने महान विप्लव और संघर्ष
साक्ष्य बनकर घटित हो जाते। उनकी संख्या विरात महायुद्ध में समाप्त वर्षों की
अपेक्षा कहीं अधिक होती। भारत स्वयं एक रणक्षेत्रा नब जाता, अथवा किसी प्रकार की
नागरिक उत्तेजना पै$ल जाती।
और भले ही हम इन सभी संभाव्य परिणामों से बच निकलते, फिर भी अब आगामी समय के लिए वु$छ लिखना एक जोखिम भरा साहसिक कार्य होता। क्योंकि आज की समस्याएँ समाप्त हो जातीं अथवा दफना दी जातीं, और उनके स्थान पर नवीन समस्याएँ उत्पन्न हो जातीं। तब एक विरात और अदृश्यमान युग के विषय में मेरे तुच्छ लेखन का क्या मूल्य रह जाता है?
6. (क) निम्नलिखित मुहावरों तथा लोकोक्तियों में से किन्हीं पाँच के अर्थ लिखिए और उनका वाक्यों में प्रयोग कीजिएः 20
(1) आसमान सिर पर उठाना
(2) गागर में सागर भरना
(3) दाँत खट्टे करना
(4) पू$टी आँख नहीं देखना
(5) लहू का घूँट पीना
(6) जंगल में मोर नाचा कितने देखा
(7) उ$ँट के मुँह में जीरा
(8) हाथ वं$गन को आरसी क्या
(9) दूध का दूध पानी का पानी
(10) तुम डाल-डाल हम पात-पात
(ख) निम्नलिखित वाक्यों में से किन्हीं पाँच को शुद्ध कीजिएः 20
(1) श्याम की माँ ने उसे आशीर्वाद प्रदान की।
(2) वह कक्षा का सर्वश्रेष्ठ अच्छा विद्यार्थी है।
(3) सन्ध्याकाल के समय मेरे मित्रा आएँगे।
(4) उसने अपनी भूल के लिए दया माँगी।
(5) नीचे को मत देखो।
(6) हम हिन्दी सीख लिए हैं।
(7) भाई मुझे दिल्ली बुलाया है।
(8) माता-पिता परआदर रखना चाहिए।
(9) उनकी व्यवहार अच्छी नहीं है।
(10) उसने कहा कि मैं चार भाई हूँ।
(ग) निम्नलिखित अभिव्यक्तियों में से किन्हीं पाँच के लिए एक-एक उपयुक्त समानार्थक शब्द लिखिएः 10
(1) जो मोक्ष पाना चाहता
(2) जो बिना बुलाए आया हो
(3) जिसके समान कोई दूसरा न हो
(4) जो संसार का संहार करता हो
(5) जो आदर करने योग्य हो
(6) जो पहले कभी घटित न हुआ हो
(7) जहाँ नदियों का मिलन हो
(8) जिसके पार देखा जा सकता हो
(9) जिसको ईश्वर पर विश्वास न हो
(10) जिसने अभी विवाह न किया हो