यूपीएससी आईएएस (मेन) हिन्दी अनिवार्य परीक्षा पेपर UPSC IAS (Mains) Hindi Compulsory Exam Paper - 2002

यूपीएससी आईएएस (मेन) हिन्दी अनिवार्य परीक्षा पेपर UPSC IAS (Mains) Hindi Compulsory Exam Paper - 2002

Candidates should attempt ALL questions.

In case of Question No. 3, marks will be deducted if the precis is much longer or shorter than the prescribed length.

1. निम्नलिखित विषयांे में से किसी एक विषय पर लगभग  300 शब्दों में निबन्ध लिखिएः 100

(क) भारत की युवा पीढ़ी में बेरोजगारी दूर करने के उपाय
(ख) बस-यात्रा के संकट
(ग) साहरापूर्ण जीवन
(घ) स्थायी शांति आज की जरूरत है
(ङ) बुनियादी चुनाव-सुधार

2. निम्नलिखित गद्यांश को ध्यानपूर्वक पढ़िए तथा नीचे पूछे गए प्रश्नों के उत्तर अपने शब्दों में लिखिएः

हर युग में संत-महात्माओं का आगमन होता आया है। वे जिस किसी भी देश या धर्म के हों, लेकिन उन सबका संदेश एक ही रहा है किµ‘भगवान को पहचानो और जन्म-मरण के आवागमन से चक्र से मुक्ति या लो।’ नर्य धर्म की स्थापना करना तथा अलग-अलग सम्प्रदायों और फिरकों को बनाना इनके संदेशों का कतई लक्ष्य नहीं रहा है। इस तरह के विभिन्न सम्प्रदायों और फिरकों से तो भावातिरेक में प्रकोप का ही प्रजनन होता है जिससे अनिवार्यतः संघर्ष और झगड़े होने लगते हैं, जबकि संसार में प्रेम और सद्भाव को बढ़ाना ही संत-महात्माओं के उपदेशों का सार होता है।

जब तक कोई संत-महात्मा जीवित होते हैं हम उनकी बातों को मानते हैं, लेकिन उनके कथनुसार सच्चे अर्थ में जीवन का आचरण नहीं करते। जैसे ही वे इस भौतिक संसार को छोड़ जाते हैं हम उनके बताये रीति-रिवाजों या बाह्य कर्म-का.ड मात्रा की परवाह करते हैं, और उनके उपदेशों के सच्चे अर्थ को भुला देते हैं। हम फिर एक बार उनके उदात्त संदेश का स्तर घटाकर, उस महानुभाव के अनुभवों की सच्चाई को किसी सम्प्रदाय या फिरके का जामा पहनाना शुरू कर देते हैं, और ऐसा करके पू$ट और नफरत के बीज बोने लगते हैं। हम यह सब अपने स्वार्थ के लिए करते हैं और राष्ट्रीय गौरव या देश के या सनातन धर्म के सम्मान के साथ इसे जोड़कर अपने कर्म को न्यायसंगत सिद्ध करना चाहते हैं। उस महान् जनोद्धारक के संदेश को विकृत कर या अधूरा समझकर या गलत जानकर उसके महत्त्व को घटाने के साथ-साथ संकुचित सम्प्रदायों या फिरकों में उनके उपदेशों को सीमित कर देने से बढ़कर उस महानुभव के प्रति और क्या अन्याय हो सकता है? यदि उपदेशों की खोज, अध्ययन और छँटाई करेंगे तथा उपदेशों में निहित अध्यात्म-तत्त्वों को निष्पक्ष बुद्धि से परखेंगे तो पता चलता है कि सभी संत-महात्मा या सद्गुरु, एक ही संदेश को भगवान के घर से लाते हैं।

सामान्य अध्ययन सिविल सेवा मुख्य परीक्षा अध्ययन सामग्री

(क) सभी संतों एवं सदगुरुओं का क्या संदेश रहा है?
(ख) नये धर्मों और सम्प्रदायों की स्थापना उनका लक्ष्य क्यों नहीं रखा?
(ग) उनके उपदेशों की सच्चाई या सार हम क्यों विस्मृत करते हैं?
(घ) हम उनके प्रति कौन-सा अन्याय करते हैं?
(ङ) शांत और निष्पक्ष भाव से जब हम उनके उपदेशों का अध्ययन करते हैं तो हमें क्या पता चलता है?

3. निम्नलिखित गद्यांश का संक्षेपण अपनी भाषा में लगभग 200 शब्दों में कीजिए। इसे इसके निर्धारित कागज पर ही लिखिए और उत्तर-पुस्तिका के अन्दर इसे नत्थी कर दीजिए। संक्षेपण में अपने द्वारा व्यक्त-संख्या का उल्लेख अवश्य कीजिए। निर्धारित कागज पर संक्षेपण नहीं करने पर आपके अंक काट दिए जाएँगे। इसका ध्यान रखें। 60

नीतिवादियों की यह साधारण बात है कि आनदं या खुशी की प्राप्ति इसके पीछे पड़ने से नहीं मिलती। यह बात तभी सच होती है, जब आपके प्रयास में विवेक नहीं होता। मॉन्टे कार्लो में, जुआरी लोगों में से अधिकांश धन के पीछे पड़कर उसे खो देते हैं, जबकि धन कमाने के और भी कई मार्ग हैं जहाँ अधिकतया सफल हो सकते। ऐसे ही आनंद ही प्राप्ति के भी। मद्यपान से यदि आनंद प्राप्त करना चाहते हो तो उससे जुड़े अनर्थों को भला रहे हो। एपिक्यूरस ने सौहार्दपूर्ण समाज में रहकर आनंद की प्राप्ति करनी चाही, सिर्प$ सूखी रोटी खाकर और कभी-कभार त्यौहार के दिन मक्खन लगाकर। आनंद-प्राप्ति का उसका तरीका उसके लिए सफल सिद्ध हुआ क्योंकि वह एक रोगी था, लेकिन दूसरो को इससे बढ़कर शक्ति की आवश्यकता होती है। खुशी की तलाश में भटकते अधिकांश लोगों को जब तक आनंद-प्राप्ति के कई अनुपूरक पर्याप्त मात्रा में नहीं मिल जाते, तब तक उनके व्यक्तिगत जीवन-विज्ञान में संतोष एक बहुत ही अमूर्त और मात्रा सैद्धान्तिक विषय लगता है। लेकिन मैं सोचता हूँ कि कुछ ओजस्ंवी संदर्भों को छोड़ आप जो भी जीवन-विधान अपना लें वह आनन्द-प्राप्ति में असंगत न लगे।

ऐसे बहुत से महान् लोग हैं जिनके पास संतोष या आनन्द पाने के बहुत से प्रसाधन हैंµजैसे स्वास्थ्य और आवश्यक आमदनी, फिर भी वे बहुत दुःखी हैं। अमेरिका के संदर्भ में यह बात और भी सत्य है। तब, इससे लगता है कि जीने के लिए बनाया इनका गलत सिद्धांत या विधान ही इसका कारण है। इसका एक यह भी अर्थ समझ सकते हैं कि वै$से जीना है, इसको लेकर बने सिद्धांत में ही गलती है। हम अपने-आप सोचते हैं कि हम जानवरों से बहुत भिन्न हैं। जानवर आवेगशील जीवन जीते हैं और जब तक बाहरी पारिस्थितियाँ अनुवू$ल होतीं हैं, तब तक वे आनंद से रहते हैं। अगर आपकी बिल्ली है तो उसका जीवन तब तक संतोषपूर्ण होता हैं जब तब उसको खाने-रहने की सुविधाएँ उपलब्ध रहती हैं और कभी-कभी उसे छत पर सोने का अवसर मिल जाता है। आपकी जरूरतों आपको बिल्ली की जरूरतों से भी ज्यादा जटिल होती है। फिर भी मूल इच्छाओं में आधारभूत समानताएँ पायीं जाती हैं। सभ्य समाजों में विशेषकर अंग्रेजी का प्रयोग करने वाले समाजों में इस बात को भुलाने की प्रवृत्ति अधिक है। लोग अपने आप में कोई एक सर्वोच्च लक्ष्य ठान लेते हैं और उस लक्ष्य-प्राप्ति में योग न देने वाले सभी आवेगों को नियंत्रित कर लेते हैं। एक व्यापारी धनवान बनने के लिए बहुत ही उत्युक हो सकता है, जिसको साधने वह अपने स्वास्थ्य और व्यक्तिगत स्नेहानुरागों को भी दांव पर लगाता है। जब वह अंत में धनवान बनता है तो उसके पास दूसरों को अपने जीवन-आदर्श का अनुपालन करने के लिए प्रबोधन देने के अलावा और कोई आनन्द नहीं रहता। जिन धनी महिलाओं के पास साहित्य या कला के आस्वादन का कोई वरदान नहीं होता, वे अपने उबाउ$ समय में नयी किताबों में शौकीन होने की बातें कर उन्हें जानने का प्रयास करने की बात सोचती है। उन्हें ऐसा नहीं लगता कि किताबें आनन्द प्रदान करने के लिए लिखी जाती हैं, न कि किसी मिथ्याभिमानी को ऐसा मौका देने के लिए।

ऐसे स्त्राी-पुरुषों को जिन्हें आग खुश मानते हैं, देखने से यह पता चलता है कि उनमें कुछ बातें हैं जो समान हैं। उनमें सबसे महत्त्वपूर्ण बात है एक ऐसा कार्य जो आदमी को अधिकांश समय में अपने आप आनन्द प्रदान कर सके और इसके अलावा जो क्रमशः कुछ ऐसा निर्माण करे जिसे अस्तित्व पाते देख आप आनंद का अनुभव करते हैं। जिन महिलाओं में अपनी संतान के प्रति सहज आनन्द की अनुभूति हो (जो अधिकांश पढ़ी-लिखी स्त्रियों में दिखाई नहीं देती) उन्हें इस तरह की तृप्ति का अनुभव अपने परिवार की देखभाल में मिल जाता है। कलाकार, लेखक और वैज्ञानिकों को इस प्रकार का आनन्द अपने-अपने कामों में ही मिलने लगता है, जो उन्हें अच्छा भी लगता है। लेकिन ऐसा ही आनन्द प्रदान करने वाले और भी कई निम्न कोटि के तरीके होते हैं।
4. निम्नलिखित अंग्रेजी गद्यांश का हिन्दी में अनुवाद कीजिएः

The achievement was celebrate today is but a step, an opening of opportunity, to the greater tirumphs and achievements that await us. Are we brave enough and wise enough to grasp this opportunity and accept the challenge of the future?

Freedom and power bring responsibility. That responsibility rests upon this Assembly, a sovereign body representing the sovereign people of India. Before the birth of freedom, we have endured all the pains of labour and our hearts are heavy with the memory of this sorrow. Some of those pains continue even now. Nevertheless, the past is over it is the future that beckons to us now. That future is not one of ease or resting but of incessant striving so that we may fulfil the pledges we have so often taken and the one we shall take today. The service of India means the service of the millions who, suffer. It means the ending of poverty andignorance and disease and inequality of opportunity. The ambition of the greatest man of our generation has been to wipe every tear from every eye. That may be beyond us, but as long as there are tears and sufferings, so long our work will not be over.

5. निम्नलिखित हिन्दी गद्यावतरण को अंग्रेजी में अनूदित कीजिएः 20

एक सौ करोड़ से भी अधिक आबादी में स्वतंत्रा रूप से अकेली ही सभी अवरोधों को लांघकर साहस के साथ पुरुष की बराबरी में खड़ी होने वाली कामकाजी महिलाएँ संख्या में बहुत कम हैं। सच तो यह है कि आज भी औरतें जन्म से ही पक्षपात का शिकार हो रही है। भारत के सभी पिछड़े जिलों में लड़कियों की शिशु हत्याएँ बढ़ती ही जा रही हैं, क्योंकि लड़की को एक बोझ समझा जाता है। अपने को शिक्षित मानने वाले आधुनिक उपकरणों की सहायता से गर्भ में स्थित शिशु की लिंग-पहचान कर बच्ची होने पर गर्भपात करवाने का या बच्ची के पैदा होते ही उसे मार डालने के अनेक कृत्रिम उपायों का प्रयोग करते हैं। गैर-कानूनी होने पर भी, लिंग की पहचान करने वाले लिंग-परीक्षण के अस्पतालों की संख्या शहरी इलाकों में कुकुरमुत्तों की तरह बढ़ती जा रही है। यह इसलिए कि इनकी माँग हैं और यह निर्धारण कर लेने की भी कि लड़कियों पैदा न हो।

यह अपराध तो समूचे देश में जोरों पर चल रहा है। बस इतना ही कि आवृत्ति और साक्षरता के आधार पर अलग-अलग राज्यों में इनकी स्थिति में अंतर दिखाई देता है। केरल जैसे अधिक साक्षरता वाले राज्य में आबादी के बढ़ने की मात्रा भी कम है और लिंगश् भेदकता भी कम है। उत्तर भारत के ग्रामीण प्रांतों में जहाँ सामंती जीवन प्रचलित है वहाँ ब्याह में दहेज की बड़ी माँग होती है, इसलिए कन्या को बोझ माना जाता है। दहेज की परेशानी जाति-वर्ग की सीमाओं को लांघकर सर्वत्रा देखी जाने पर भी लगातार नारी का स्थान, पुरुषों के स्वामित्व सेµ भले ही पिता, पति, पुत्रा भी क्यों न हो µ थोड़ा सा उ$ँचा ही रहता आया है। आज भी लड़के को बुढ़ापे के बीमा-पत्रा के रूप में और वंश का नाम आगे बढ़ाने वाले उत्तराधिकारी के रूप में देखा जाता है। यदि लिंगµभेदकता को सचमुच समाप्त करना है तो पहले सामाजिक कुरीतियों को और रूढ़ियों को तोड़ना है। सही मायने में, युद्ध-स्तर पर भारत को यदि 21वीं सदी में प्रवेश कराना है तो इसका एक मात्रा समाधान है लोगों में साक्षरता पै$लाकर उन्हें शिक्षित करना और उनमें जागृति पैदा करना।

6. (क) निम्नलिखित मुहावरों और लोकोक्तियों में से केवल पाँच का अर्थ स्पष्ट करते हुए वाक्यों में प्रयोग कीजिएः 20

(i) बेल मंढे़ चढ़ना
(ii) भगीरथ प्रयत्न
(iii) नौ नकद न तेरह उधार
(iv) खरबूजे को देख खरबूजा रंग बदलता है
(v) कोल्हू का बैल ;अपद्ध अंगूठा दिखाना
(vi) अधजल गगरी छलकत जाए
(vii) गागर में सागर भरना
(viii) एक ही थैले के चट्टे बट्टे
(ix) रंगे हाथ पकड़े जाना

(ख) निम्नलिखित युग्मों में से किन्ही पाँच को वाक्यों में इस तरह प्रयुक्त कीजिए कि उनका अर्थ स्पष्ट हो जाए, साथ ही उनके बीच का अंतर भी समझ में आ जाएः 10

(i) प्रेषित - प्रोषित
(ii) सवर्ण - सुवर्ण
(iii) अपमान - उपमान
(iv) अतल - अतुल
(v) किला - कीला
(vi) चिता - चिंता
(vii) तरणी - तरुणी
(viii) ढलाई - ढिलाई
(ix) पतन - पावन
(x) आद्यि - आधी

(ग) निम्नलिखित वाक्यों में से किन्हीं पाँच वाक्यों के शुद्ध रूप लिखिएः 10

(i) तुमने अच्छा काम करा।
(ii) आप हम से नहीं बोलो।
(iii) परीक्षा की प्रणाली बदलना चाहिए।
(iv) तुम्हारे से कोई काम नहीं हो सकता।
(v) दंगे में बालक युवा, नर-नारी सब पकड़ी गई।
(vi) इस काम में देर होनी स्वाभाविक थी।
(vii) जिसका लाठी उसके भैंस वाली कथा चरितार्थ होती है।
(viii) प्रयोग विश्वविद्यालय ने नेहरु जी को उपाधि वितरित की।
(ix) इसका मूल्य नापा या तौला नहीं जा सकता।
(x) यह बात एक उदाहरण से स्पष्ट किया जा सकता है।

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