यूपीएससी आईएएस (मेन) हिन्दी अनिवार्य परीक्षा पेपर UPSC IAS (Mains) Hindi Compulsory Exam Paper - 2003
यूपीएससी आईएएस (मेन) हिन्दी अनिवार्य परीक्षा पेपर UPSC IAS (Mains) Hindi Compulsory Exam Paper - 2003
Time Allowed: 3 Hours
Maximum Marks: 300
Candidates should attempt ALL questions. In the case of Question No. 3, marks will be deduced if the precis much longer or shorter than the prescribed length.
1. निम्नलिखित विषयों में से किसी एक विषय पर लगभग 300 शब्दों में निबन्ध लिखिएः 100
(क) क्षेत्राीय शक्ति के रूप में भारत
(ख) मेरे विचार में अगरत्व
(ग) दूरसंचार में क्रांति
(घ) समाचार-पत्रों और पत्रिकाओं का महत्त्व
(ङ) विज्ञान ही पर्याप्त नहीं है
2. निम्नलिखित गद्यांश को ध्यानपूर्वक पढ़िए तथा नीचे पूछे गए प्रश्नों के उत्तर अपने शब्दों में लिखिए । 60
जीवन क्या है? ज्यों ही यह प्रश्न हम पूछते हैं, हमारे सामने एक विलक्षण सत्य आता है कि हालांकि हम जीवित हैं, और हमारे इर्द गिर्द भी जीवित प्राणी हैं, हमें वास्वत में नहीं पता है कि जीवन क्या है। फिर भी हम जीवन के बारे में कुछ-कुछ जानते हैं। हम जानते हैं कि जीवित प्राणी सामान्य रसायन जैसे ऑक्सीजन, कार्बन, हाइड्रोजन एवं नाइट्रोजन से बने हैं, जिनसे हमारी पृथ्वी, उस पर जल, उसके इर्द गिर्द की वायु भी सुसंहत है। हम जानते हैं कि इन सामान्य तत्त्चों के साथ कुछ खास तत्त्व जब किसी विशिष्ट रूप में सम्मिश्रित होते हैं, जिन्हें हम अभी-भी समझे नहीं हैं, एक सूक्ष्म कोशिका निर्मित कर सकते हैं, जो जीवित होती है। तात्पर्य यह है कि यह कोशिका खाती है, वृद्धि करती है और जन्म देती है। हम यह भी जानते हैं। कि यही सूक्ष्म कोशिकाएँ मिलकर एक बड़ा जीवित प्राणी बना सकती है, जैसे कि हम हैं। एक वयस्क व्यक्ति वास्तव में अरबों जीवित कोशिकाओं का समिम्मश्रण है, जिनमें से कुछ त्वचा, कुछ पेशी, कुछ स्नायु और कुछ अस्थि का निर्माण करती है।जैसे-जैसे हम इस ग्रह पर जीवन के आरम्भिक विकास को ढूँढ़ने के लिए खुदाई करते हैं तो हमें प्राचीन समय के जीवित प्राणियों के जीवाश्म मिलते हैं, जिनसे हम जीवन के दो विशिष्ट गुणों को लक्षित कर सकते हैं। प्रथम विशिष्टता, यह कि जीवन की यह वाध्यता है कि वह हर जगह प्रसार और बेधन करता है। दूसरी विशेषता है कि जीवित प्राणियों में एक ऐसी शक्ति है कि वे अपने आपको परिस्थिति के अनुवू$ल बदल सकते हैं। लाखों वर्षों के दौरान इन दो शक्तियों ने ही विविध प्रकार के जीवों को जन्म दिया, जो आज अस्तित्व में है। अगर इस दुनिया में कहीं भी कोई उपयुक्त जगह है, जहाँ एक जीवित प्राणी की जाति अपना घर बना सकती है एवं जीवित रह सकती है, तो उसे आप वहाँ पायेंगे। तीसरी वास्तविकता यह है कि जीवन जीवन पर निर्भर है। जो कुछ भी हम और कोई भी जीवित प्राणी खाता है, उसमें से ज्यादातर चीजें एक समय से जीवित या किसी जीवित प्राणी का हिस्सा थीं। पौधे इस नियम का अपवाद है। क्योंकि फिलहाल वे निर्जीव पदार्थों पर निर्वाह करते हैं, जैसेµहवा, पानी और जमीन के रसायन, परन्तु ये भी अपने अस्तित्व के लिये जानवरों के त्याज्य पर एवं कीड़े, मकोड़ों, अन्य जीवों सहयोग पर निर्भर हैं।
सामान्य अध्ययन सिविल सेवा मुख्य परीक्षा अध्ययन सामग्री
(क) जीवन की सच्चाई जानने के प्रयत्न में हक किस सत्य का
अन्वेषण करते हैं?
(ख) एक सूक्ष्म जीवित कोशिका का निर्माण कैसे होता है?
(ग) जीवन की दो अनूठी विशेषताएँ क्या हैं?
(घ) ‘जीवन जीवन पर निर्भर है’ इस नियम के अपवाद में कौन से जीवित प्राणी आते हैं?
(ङ) ‘जीवन के आरम्भिक विकास को ढूँढ़ना’ इस कथन का क्या आशय है?
3. निम्नलिखित गद्यांश का संक्षेपण लगभग 200 शब्दों में अपनी भाषा में कीजिए। संक्षेपण को निर्धारित कागज पर ही लिखिए और अपनी उत्तर-पुस्तिका में भली-भांति नत्थी कीजिए। अपने सार-संक्षेप के अंत में प्रयुक्त की संख्या भी दीजिए। ध्यान रहे, निर्धारित कागज पर न लिखने अथवा आवश्यकता ने न्यूनाधिक शब्दों में संक्षेपण तैयार करने पर अंकों के कटौती की जायेगी। 60
संभवतः भारतीय सभ्यता की उत्कृष्ट उपलब्धि भारतीय दर्शन है, बल्कि यूं कहें भारतीय दर्शन और भारतीय धर्म। जैसा कि हम शीर्घ देखेंगे, मानव मनोदशा की दो कार्य अवस्थाएँ हैंµकल्पनाशील और ग्रहणशील, एक जो ब्रह्मा.ड का अन्वेषण करता है और दूसरा जो इस पर प्रतिक्रिया करता है। यूरोप में ये दोनों भिन्न है, कई बार परस्पर विरुद्ध भी, लेकिन भारत में अधिकांशतः अभिन्न। मैं इसलिये प्रस्ताव रखता हूँ कि दर्शन और धर्म, दोनों को एक ही शीर्षक से इस अध्याय के अन्तर्गत रखा जाए।
भारतीय दर्शन अन्य सभ्यताओं के दर्शन से नितान्त भिन्न है। इसके तीन विशिष्ट गुण हैं। पहला हैµनिरन्तरता। भारतीय विचार तीन हजार वर्षों से ब्रह्मा.ड के स्वरूप और अर्थ की खोज कर रहे है इस दूसरा गुण है शोध की तुलना केवल चीनी विचार ही कर सकतेे है दूसरा गुण है- मतैक्य। आमतौ पर सभी भारतीय विचारक इस बात से सहमत है कि ब्रह्मा.ड अपने वास्तविक स्वरूप में एक इकाई है और यह ऐक्य आध्यात्मिक है। अतः ब्रह्मा.ड जैसा कि वह प्रतीत होता है निश्चय ही एक इकाई नहीं हैं, बल्कि विषमजातीय विभिन्नता है। यह कहा जा सकता है कि अपने प्रत्यक्ष रूप में यह असंख्य वस्तुओं और व्यक्तियों का समूह है। अतः ब्रह्मा.ड के वास्तविक स्वरूप और प्रकट स्वरूप में अन्तर होना अनिवार्य है। एक ऐसा अन्तर जिसकी व्याख्या कुछ इस प्रकार की जा सकती हैµब्रह्मा.ड एक ऐसी वास्तविकता है जो विभिन्नता में प्रकट होती है जैसे कि एक धुन में स्थायी स्वर। जैसे अलग स्वरों की विभिन्नता का योग एक राग या धुन में प्रकट होता है। वस्तुतः यह सत्य है कि सभी भारतीय विचारक इस अन्तर से सहमत है। तीसरा गुणµऔर यहाँ पर हम दर्शन और धर्म के बीच की कड़ी पर आ पहुँचते हैं। भारतीय दर्शन कभी भी बौद्धिक गतिविधियों तक परिसीमित नहीं रहा है। औपचारिक रूप से कहें तो निसन्देह यह सत्य के लिये खोज का रास्ता है; लेकिन भारत में दर्शन सत्य जानने से कही अधिक और आगे ले जाता है, यह जीवन को जीने का रास्ता भी दिखाता है। वास्तव में यह अंतिम आश्रय की तरफ जीवन का रास्ता है। भारतीय दर्शन के इस व्यवहारिक प्रभाव के पीछे अपरिहार्य रूप से भारतीय दार्शनिकों के सिद्धान्त हैं।
भारतीय दर्शन यह सिखाता है कि जीवन एक अर्थ है और एक उद्देश्य भी अतः हमारा कर्तव्य है कि इसके अर्थ को खोजें और अंतिम लक्ष्य प्राप्त करने का सौभाग्य प्राप्त करें। इसलिये दर्शन सिखाता है कि जब तक सफलता न मिले तब तक अर्थ और उसे अवयवों का उद्घाटन करे। आखिर लक्ष्य किसलिये। यथार्थ में उपलब्धि प्राप्त करना, इस अर्थ में कि उपलब्धि सिर्प$ जानने में नहीं है बल्कि उसका एक अंग बनने में है। इस उपलब्धि के बीच में बाधा क्या आती है? कई बाधाएँ हैं, परन्तु मुख्य है उपेक्षा। अधिकांश रूप से असशिक्षित मन यह नहीं जानता कि प्रत्यक्ष दिखने वाली दुनिया ही वास्तव में वास्तविक दुनिया नहीं है। यह दर्शन ही है जो उसे प्रशिक्षित करता है और इस प्रशिक्षण से इस उपेक्षा (अविद्या) जिसेव$ कारण वह वास्तविकता देख नहीं पाता, उससे मुक्ति (मोक्ष) दिलाता है। इसलिये दर्शन सिर्प$ ज्ञान की वुं$जी नहीं है बल्कि वास्तविकता जानने का एक रास्ता भी है। इस रास्ते पर सिर्प$ चलना ही, जानना नहीं है, बल्कि प्रयास करना, प्रयास सफल होने के चरम तक। इसलिये एक दार्शनिक बनने के लिए सिर्प$ बौद्धिकता का अनुसरण करना ही आवश्यक नहीं है, बल्कि आवश्यक है उसका एक महत्त्वपूर्ण अनुशासन में रहना। एक अच्छे दार्शनिक को, जो सत्य की खोज में व्यस्त है, उसे अपने जीवन का आचरण ऐसा बनाना चाहिए कि वह स्वयं वास्तविकता का एक अंग बन जाये, जिसकी यह खोज कर रहा है।
असल में जीवन का एक ही रास्ता है जो कि सही रास्ता है, और सभी दार्शनिकों को उसका अनुसरण करने की आवश्यकता है, सिर्प$ दार्शनिकों को ही नहीं, बल्कि सब लोगों को, क्योंकि कर्म और नियति सबके लिए समान है।
4. निम्नलिखित अंग्रेजी गद्यांश का हिन्दी में अनुवाद कीजिएः
The question of providing employment to the educated young men of the country is assuming threating proportions. On the one hand, State Governments as well as the Union Government are trying hard to expand educational facilities in both the urban and the rural areas; on the other, our schools and colleges of the existing pattern are swelling the ranks of the educated unemployed in India. These unemployed youths are a potential danger to the functioning of democracy in the country; they threaten the very foundations of our socio-economic structure and political stability. The country, therefore, faces toady the spectre of unemployment more than ever before. This spectre haunts out hardwon freedom with threats of violent upheavals and mass unrest. There is widespread hunger and poverty in our country, and without proper employment this problem cannot be solved. There is also a yawning gulf between the educated youths and the opportunities of employment. The country has to bridge this gulf to make itself truly prosperous and strong
5. निम्नलिखित हिन्दी गद्याावतरण को अंग्रेजी भाषा में अनुवाद कीजिएः 20
अर्थशास्त्रा से अब यह झुकाव शेष समाज-विज्ञान में भी पै$ल गयी है। महत्त्वकांक्षी भारतीय इतिहासकार, समाजशास्त्राी और राजनीतिशास्त्राी आज यह मानते हैं कि उनके पेशे का लक्ष्य उन्हें पश्चिम के विद्यालयों में ले जाना चाहिए अन्यथा उन्होंने सफलता के स्तर को नहीं प्राप्त किया है। सच तो यह है कि आजकल विदेश में नौकरी प्राप्त करने की होड़ भारतीय समाजशास़्ित्रायों के महत्त्वाकांक्षापूर्ण पेशे का एक अविच्छिन्न हिस्सा बन गया है।
आश्चर्य होता है कि इन विद्वानों ने इसी प्रकार का कार्य भारत में रहकर क्यों नहीं किया? विशेषकर समाज-विज्ञान के सन्दर्भ में कहे, विदेश जाकर वे कौन से लाभ प्राप्त कर लेते हैं? हाँ, शोध के लिये बेहतर अनुदान हो सकता है, लेकिन पुरान जमाने में भारतीयों द्वारा भारत पर अनेक उत्कृष्ट शोध हुए हैं। क्या यह कहा जा सकता है कि श्रीनिवास या कोसम्बी कठिन परिश्रम या शोध परिणाम प्राप्त करने में अयोग्य थे? कतई नहीं।यह सही है कि यहाँ शोध के लिये अनुदान प्राप्त करना मुश्किल है, पूर्णतया सही नहीं, अगर वह समाज वैज्ञानिक जवाहरलाल नेहरु विश्वविद्यालय या दिल्ली स्वू$ल ऑफ इक्नोमिक्स में है। आखिरकार समाज-शोध के लिये शुद्ध विज्ञान की तरह अधिक धन की जरूरत नहीं पड़ती है। फिर यह पलायन क्यों?
मुख्य कारण यह है कि महत्त्वकांक्षी भारतीय विद्वान विदेशों में अपना कार्यकाल गुजारने के लिये इसलिये प्रेरित होते हैं क्योंकि इससे उन्हें अपने यहाँ अच्छी पहचान मिलती है।
6. (क) निम्नलिखित मुहावरों और लोकोक्तियों में से केवल पाँच का अर्थ स्पष्ट करते हुए वाक्यों में प्रयोग कीजिएµ 20
(i) आँखें बिछाना
(ii) उँगली उठाना
(iii) कान कांटना
(iv) खून खौलना
(v) घड़ों पानी पड़ना
(vi) दो नावों पर पैर रखना
(vii) एक तो करेला कुडुआ दूसरे नीम चढ़ा
(viii) थोथा चना बाजे घना
(ix) बन्दर क्या जाने अदरक का स्वाद
(x) जिस पत्तल में खाना उसी में छेद करना
(ख) निम्न वाक्यों में रेखांकित शब्दों के वचन बदलकर पुनः वाक्य रचना कीजिएः 10
(i) हमने चिड़ियाघर में हाथी, शेर, बन्दर, भालू और मगरमच्छ के
दर्शन किए।
(ii) लड़के खेलने जा रहे हें।
(iii) हमें बाजार से पुस्तक खरीदनी है।
(iv) बेईमान नेता और भ्रष्ट कर्मचारी के होते देश की व्यवस्था नहीं सुधर सकती।
(v) अच्छा लड़का और योग्य पत्नी पारिवारिक जीवन के दो वरदान है।
(vi) हमारा सैनिक विश्वास के योग्य है।
(vii) अवाज सूनकर चिड़िया उड़ गयी।
(viii) पुस्तकों के पृष्ठ उड़ रहे हैंे।
(ix) कपड़े धोने में डाल दो।
(x) मोती चमक रहा है।
(ग) निम्नलिखित युग्मों में से किन्हीं पाँच को वाक्यों में इस तरह प्रयुक्त कीजिए कि उनका अर्थ हो जाए, साथ ही उनका अंतर भी समझ में आ जाएः 10
(i) अपकार - उपकार
(ii) अन्न - अन्य
(iii) अवधि - अवधी
(iv) कान्ति - क्रान्ति
(v) चरम - चर्म
(vi) चिर - वीर
(vii) ओर - और
(viii) प्रसाद - प्रासाद
(ix) सुत - सूत
(x) धरा - धारा