यूपीएससी आईएएस (मेन) हिन्दी अनिवार्य परीक्षा पेपर UPSC IAS (Mains) Hindi Compulsory Exam Paper - 2004
यूपीएससी आईएएस (मेन) हिन्दी अनिवार्य परीक्षा पेपर UPSC IAS (Mains) Hindi Compulsory Exam Paper - 2004
Time Allowed: 3 Hours
Maximum Marks:300
In the case of Q. No. 3, marks will be deducted if the precis is much longer or shorter than the prescribed length.
1. निम्नलिखित में से किसी एक विषय पर लगभग 300 (तीन सौ) शब्दों में निबन्ध लिखिएः। 100
(क) वायु प्रदूषण के खतरे।
(ख) पर्यटनः एक संभावनाशील उद्योग।
(ग) भारत में नदी-जल विवाद।
(घ) सांस्कृतिक-चेतना की आवश्यकता।
(ङ) सार्वजनिक जीवन में हिंसा।
2. निम्नलिखित गद्यांश को ध्यानपूर्वक पढ़िए तथा उसके नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर अपने शब्दों में लिखिएः 60
उद्योग और व्यापार के लक्ष्य मानव-आवश्यकता की पुष्टि की अपेक्षा सम्पत्ति और लाभ है। परमाणुओं के आकस्मिक संयोग के उत्पाद के रूप में घोषित कर दिए गए सत्य, सौन्दर्य और साधुता के विश्व का अन्त नियत है, क्योंकि इसका प्रारम्भ हाइड्रोजन गैस के बदले में हुआ है। पुरातन धर्म।सिद्धान्तों के शाब्दिक सत्य को निरस्त करने में पूर्णतः औचित्यपूर्ण बुद्धिवाद की परिणति इस विश्वव्यापी धारणा में हो चुकी है कि ईश्वर की वास्तवत्ता अस्वीकार्य है। मनुष्य शक्ति को अन्तहीन लालसा और पाशविक इच्छा के वशीभूत दैती परमाधिकार को हड़प कर सार्वभौम मताधिकार, सामूहिक उत्पादन, आवर्तकारी सेवा और ईश्वर के आवसरिक औपचारिक गुणगान, पर टिके एक ऐसे संसार का निर्माण करना चाहता है, जिसके बारे में वह स्वयं पूरी तरह निश्चित नहीं है। जड़ मूल हीन ऐहिकता या व्यक्ति और राज्य की पूजा व अन्ततः धार्मिक मनोभावों की कृपा-दृष्टि ही आधुनिक आस्था है। जो सिद्धान्त इस पर बल देते हैं कि मनुष्य को अकेले रोटी पर जीवित रहना चाहिए, वे उसका संबंध आत्मा से काट रहे हैं और उसे पूरी तरह वर्ग और जाति, राज्य और राष्ट्र के सांसारिक समुदायों से सम्बद्ध कर रहे हैं। वह अपने हृदप्रिय स्वप्नों और अतीन्द्रिय चिन्तना के प्रति विकर्षित हो गया है और पूरी तरह ऐहिक हो रहा है। यहाँ तक कि वे भी, जो अतीन्द्रिय पंथ के रूप में भौतिकवाद को त्याग देते हैं और अपने को धार्मिक प्रदर्शित करते हैं, जीवन के प्रति भौतिकतावादी रवैया अपनाते हैं। हमारे व्यवसाय चाहे जो हों, किन्तु वे वास्तविक मूल्य, जिनके आधार पर हम जीवन जीते हैं, वैसे ही हैं, जैसे हमारे शत्राूओं केः शक्ति की लालसा, निर्दयता में खुशी और प्रभूत्व का दर्प। विश्व, पीड़ा के कोलाहल से लबालब है, जो युगों के पार न्याय की गुहार लगा रहा है।
सामान्य अध्ययन सिविल सेवा मुख्य परीक्षा अध्ययन सामग्री
(क) सत्य, सौन्दर्य और साधुता के विश्व का कैसे अन्त हो जाएगा?
(ख) बुद्धिवाद ने क्या कर दिया है?
(ग) शक्ति के प्रति अन्तहीन लालसा और पाशाविकइच्छा के वशीभूत मनुष्य किस प्रकार बदल
गया है?
(घ) आप आधुनिक आस्था का चरित्रा-चित्राण किस प्रकार करते हैं?
(ङ) वे कौन से वास्तविक मूल्य है, जिनके आधार पर मनुष्य जीवा है?
3. निम्नांकित गद्यांशों का संक्षेपण 200 (दो-सौ) शब्दों में अपनी भाषा में कीजिए। यदि संक्षेपण, इस कार्य के लिए निर्धारित कागज पर नहीं लिखा जाएगा और संक्षेपण का आकार निर्दिष्ट से बहुत कम या अधिक होगा तो अंक काट लिए जाएँगे। संक्षेपण में प्रयुक्त शब्दों की संख्या अन्त में लिख दीजिए तथा संक्षेपण । कागज को उत्तर - पुस्तिका के भीतर उपयुक्त स्थान पर नत्थी कर दीजिए। 60
तकनीकी और उदार शिक्षा के मध्य वैपरीत्य भ्रामक है। ऐसी कोई तकनीकी शिक्षा नहीं हो सकती, जो उदार न हो और कोई उदार शिक्षा नहीं हो सकती, जो तकनीकी न हो। ऐसी कोई शिक्षा उपयुक्त नहीं, जो तकनीक और बौद्धिक।दृष्टि प्रदान न करे। साधारण भाषा में, शिक्षा को छात्रा का विकास, जो कुछ वह अच्छी तरह जानता है और जो वह अच्छी तरह कर सकता है, के सहारे करना चाहिए। सिद्धान्त और व्यवहार का यह अन्तरंग समन्वय दोनों की सहायता करता है। प्रतिभा निर्यात में सर्वोत्कृष्ट कार्य नहीं करती। रचनात्मक।आवेग का उद्दीपन।विशेषकर एक बालक के मामले में, अभ्यास में त्वरित परिणति चाहता है।
शिक्षा की राष्ट्रीय प्रणाली हेतु तीन मुख्य पद्धतियाँ आवश्यक हैंे, साहित्यिक पाठ्यचर्या, वैज्ञानीकी पाठ्यचर्या और तकनीकी पाठ्यचर्या। किन्तु इनमें से प्रत्येक पाठ्यचर्या को दूसरी दोनों को भी समाहित करना चाहिए। मेरा अभिप्राय है कि शिक्षा का प्रत्येक रूप छात्रा को प्रविधि, वैज्ञानिकता, सामान्य विचारों का विविध प्रकार का संचयन और सौन्दर्य।ग्राहकता प्रदान करे तथा उसके प्रशिक्षण के इन पक्षों में से प्रत्येक पक्ष दूसरों से प्रकाशित हो। समय की कमी, सर्वाधिक रुचिवान छात्रा के लिए भी, प्रत्येक पाठ्यचर्या का पूर्ण विकास करना असंभव बना देती है। अतः बल हमेशा प्रधानता पर होना चाहिए। उन मामलों में, जब कलात्मक अवधान के कौशल के लिए प्रशिक्षण आवश्यक होता है, एकदम सीधा सौन्दर्यपरक प्रशिक्षण भी स्वाभाविक रूप से तकनीकी पाठ्यचर्या में आ मिलता है। साहित्यिक और वैज्ञानिक, दोनों प्रकार की शिक्षा में यह बड़े महत्त्व की बात है।
साहित्यिक पाठ्यचर्या में राजातीयता की विशेषता होती है। इसके भिन्न-भिन्न सभी हिस्से बहुत समन्वित होते हैं और एक दूसरे के हाथ में खेलते हैं। हम शायद ही आश्चर्यचकित हों कि ऐसी पाठ्यचर्या एक बार व्यापक रूप से स्थापित हो जाने पर शिक्षा के एकमात्रा परिपूर्ण रूप की अवस्थिति का दावा करे। इसका दोष भाषा के महत्त्व पर अनुचित रूप से बल देना है। वास्तव में मौखिक।अभिव्यक्ति का वैविध्यपूर्ण महत्त्व इतना अभिभूत करने वाला है कि उसका संयत आकलन कठिन है। वर्तमान पीढ़ियाँ, बौद्धिक जीवन में उनके विलक्षण महत्त्च की अवस्थिति के कारण साहित्य तथा अभिव्यक्ति के पुनरावर्तन को देख रही है। इस दशा में सच्चे में प्रकृति का सेवक और अनुष्ठाता होने के लिए साहित्यिक अभिवृत्ति की अपेक्षा कुछ और भी आवश्यक है। प्राकृतिक घटना।चमत्कार को देखने की कला और उस दृश्य-प्रपंच को जोड़ने वाले नियमों की शिक्षा और ज्ञान के लिए वैज्ञानिक शिाक्षा प्राथमिक रूप से एक प्रशिक्षण है। किन्तु यहाँ पुनः समय की न्यूनता द्वारा थोपी गई सीमा है। प्राकृतिक घटना-चमत्कार के अनेक रूप हैं और प्रत्येक रूप के संदर्भ में, अवलोकन के उसके विलक्षण ढंग और कानून की शिक्षा में विनियोजित उसकी अनूठी रीति के विचार के साथ विज्ञान का संवाद बनता है। सामान्यतः शिक्षा में विज्ञान का अध्ययन अंसभव हैः जो सब उपलब्ध किया जा सकता है, वह दो या तीन समवर्गी विज्ञानों का अध्ययन है। इसलिए किसी भी प्राथमिक रूप से वैज्ञानिक शिक्षा के विरुद्ध संकुचित विशेषज्ञता का आरोप लगाने की इच्छा होती है। यह स्पष्ट है कि यह आरोप पर्याप्त पृष्ट माने जाने योग्य है और यह विचार करना उपयुक्त है कि वैज्ञानिक शिक्षा की सीमाओं के भीतर तथा उस शिक्षा के लाभ के लिए खतरों को कैसे टाला जा सकता है।
ऐसी परिचर्चा में तकनीकी शिक्षा पर ध्यान देना आवश्यक है। तकनीकी शिक्षा मुख्य रूप से भौतिक उत्पादकों के उत्पादन में प्रयुक्त ज्ञान के कौशल का प्रशिक्षण है। ऐसा प्रशिक्षण हस्त-कौशल, हाथ और आँख की समन्वित क्रिया और निर्माण की प्रक्रिया के नियन्त्राण में निर्णय पर बल देता है। किन्तु उन प्राकृतिक प्रक्रियाओं के ज्ञान को अनिवार्य बना देता है, जिनके अन्तर्गत उत्पादन ही उपभोग है। इस प्रकार तकनीकी प्रशिक्षण में कहीं न कहीं वैज्ञानिक ज्ञान की शिक्षा की जरूरत है। यदि आप वैज्ञानिक पक्ष को
अधिकतम करते हैं, तो आप इसे वैज्ञानिक विशेषज्ञों तक सीमित कर देंगे और यदि आप इसे न्यूनतम करते हैं तो आप इसे मनुष्यों के किसी अनुमाप तक ले जाएँगे और वह व्यवसाय से जुड़े निदेशकों तथा प्रबन्धकों के लिए कम महत्त्व की नहीं है।
4. Translate the following passage into Hindi: 20
Young men reading in our schools and colleges cultivate the bad habit of discussion. There is no doubt that discussion has its uses in courts and in debating societies but generally the effect of discussion on social atmosphere is not good. Argument produces conflict: sometimes this takes the form of enmity. It is the aim of social functions and meetings to promote unity and amity. Argument frustrates this very purpose. So far as possible, discussion should be avoided in the society of friends and in the presence of elders.
Controversy brings hidden differences to the surface, and even in those persons, whom we have been thinking to be our friends, we begin to find defects which we never imagined before, even though these weaknesses do not affect us at all. Getting excited in controversy we, without any reason, begin to find fault in others and they retaliate in their turn. The question of victory and defeat generally arises in the argument and forthe sake of a triumph in discussion, peole lose sight of truth. It also happens that in discussion improper and harsh words are exchanged. As a result of it the two persons engaged in heated arguments, fail to maintain good relations any more.
What is the use of gaining an argument and losing a friend?
5. निम्नलिखित हिन्दी गद्यावतरण को अंग्रेजी में अनूदित कीजिएः 20
संसार में वास्तविक और स्थाई शान्ति तभी हो सकती है, जब उसकी स्थापना सार्वभौम धर्म तथा विश्व- बन्धुत्व के आधार पर हो। इस समय धर्म के अगुआओं का कर्तव्य है कि धर्म की बाह्य और क्षुद्र बातों को छोड़कर आत्मा, परमात्मा और जीवन से जुड़े सिद्धान्तों पर यथोचित जोर दें। यह उनका महान दायित्व है कि दुनिया को बताएँ कि सब धर्मों के मौलिक सिद्धान्त समान है और सभी लोग एक ही ईश्वर की संतान है। सभी लोगों को स्वाभाविक भाई चारे में बंधा होना चाहिए। दुर्भाग्यवश पारस्परिक अविश्वास और दूषित वातावरण से यह भावना दब गई है। कवि और कलाकारों को भी अपनी कला के माध्यम से इस सद्भावनाओं को पुनर्जीवित करना चाहिए। समाज का प्रत्येक वर्ग सौहार्द के इस पुनीत कार्य में महत्त्वपूर्ण भागदीदारी निभा सकता है।
राजनेताओं को भी अपनी स्वार्थलिप्सा और संकीर्णता से उ$पर उठना चाहिए तथा समाज को तोड़ने वाले तत्वों को कुचलना चाहिए। इतिहास इस बात का साक्षी है कि समाज को कभी-कभी चुनौतियों का सामना करना पड़ता हैं। वे जातियाँ और राष्ट्र ही सर्वागीण विकास कर सके हैं, जिन्होंने अलगाववादी ताकतों से कभी समझौता नहीं किया। यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि हमने अभी तक अपनी निजी कमजोरियों की पहचान करके उन पर अंकुश नहीं लगाया है।
6. (क) निम्नलिखित मुहावरों और लोकोक्तियों में से केवल पाँच का अर्थ स्पष्ट करते हुए उनका वाक्यों में प्रयोग कीजिएः 20
(i) आँखों में धूल झोंकना
(ii) आपे से बाहर होना
(iii) ईद का चाँद होना
(iv) अंधा बाँटे रेवड़ी फिर-फिर अपने को देय
(v) कहाँ राजा भोज कहाँ गंगू तेली
(vi) दुधारी गाय की लात भली
(vii) कान खड़े होना
(viii) हाथ कंगन को आरसी क्या
(ix) गड़े मुर्दे उखाड़ना
(x) भई गति साँप छछूँदर केरी।
(ख) निम्नलिखित वाक्यों में से किन्हीं पाँच वाक्यों के शुद्ध रूप लिखिएः 10
(i) हर व्यक्ति को कोई न कोई दस्तकारी का काम सीखना चाहिए।
(ii) लिखने में शुद्धताई बरतो।
(iii) राधा एक विधवा स्त्राी है।
(iv) वहाँ जाने से तुम्हें क्या लाभ प्राप्त होगा?
(v) बेफिजूल बोल रहे हो।
(vi) प्रेमचंद ने पर्याप्त मात्रा में कहानी और उपन्यास लिखे।
(vii) तुम्हें पग-पग में काँटे मिलेंगे।
(viii) अनेको स्त्राी-पुरुष उसे देखने गए।
(ix) दस स्त्रिायों और पाँच बालकों को भोजन दो।
(x) आगामी अफसर कोलकाता से आ रहे हैं।
(ग) निम्नलिखित युग्मों में से किन्हीं पाँच को वाक्यों में इस प्रकार प्रयुक्त कीजिए कि उनका अर्थ स्पष्ट हो जाए और उनके बीच का अन्तर भी समझ में आ जाएः।
(i) आवृत्ति - पुनरावृत्ति
(ii) अवस्था - आयु
(iii) विज्ञान - अभिज्ञान
(iv) श्रद्धा - भक्ति
(v) लज्जा - संकोच
(vi) युवराज - राजकुमार
(vii) उत्साह - साहस
(viii) अस्त्रा - शस्त्रा
(ix) अबला - निर्बला
(x) अनिवार्य - आवश्यक।