यूपीएससी आईएएस (मेन) हिन्दी अनिवार्य परीक्षा पेपर UPSC IAS (Mains) Hindi Compulsory Exam Paper - 2005

यूपीएससी आईएएस (मेन) हिन्दी अनिवार्य परीक्षा पेपर UPSC IAS (Mains) Hindi Compulsory Exam Paper - 2005

Time Allowed: 3 Hours

Maximum Marks: 300

Candidates should attempt ALL questions. The number of marks carried by each question is indicated at the end of the question. Answer must be written in Hindi (Devanagari Script) unless otherwise directed. In the case of Question 3, marks will be deducted if the precis is much longer or shorter than the prescribed length.

1. निम्नलिखित विषयों में से किसी एक विषय पर लगभग 300 शब्दों में निबन्ध लिखिएः 100

(क) भारत में प्रजातंत्रा का भविष्य।
(ख) पारिस्थितिकीः आजकल की चिन्ता।
(ग) नारीवादी आंदोलन और नारी सशक्तीकरण।
(घ) विश्व सरकार की आवश्यकता।
(ङ) संकट सफलता के लिए बहुत उपयोगी है।

2. निम्नलिखित गद्यांश को ध्यानपूर्वक पढ़िए तथा उनके नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर अपने शब्दों में लिखिएः 60

शिक्षा शास्त्राी ओर जन सामान्य जिनकी यह कामना है कि सभी अनुशासनों और स्तरों पर विश्वविद्यालयी शिक्षा के माध्यम के रूप में प्रांतीय भाषाओं को अपना लिया जाय, वस्तुतः इस वास्तविकता पर बल देते हैं कि बच्चे की मातृभाषा ही शैक्षणिक दृष्टि से सभी स्तरों पर शिक्षा का माध्यम हो। स्वतंत्रा देशों में इस बात पर जोर दिया जाता है कि प्राथमिक शिक्षा में लेकर उच्च स्तरीय शिक्षा तक विश्वविद्यालयों के सभी अनुशासनों की शिक्षा का माध्यम सामान्यतः मातृभाषा ही हो। यह भी तर्व$ दिया जाता है कि आजकल पूर्व महाविद्यालयों के स्तरों पर विद्यार्थियों की शिक्षा का माध्यम उनकी मातृभाषा होती है और जैसे ही वे विश्वविद्यालय में प्रवेश करते हैं उन्हें अंग्रेजी माध्यम अपनाना पड़ता है, जो शैक्षणिक दृष्टि से दोषपूर्ण है।

उनका संकेत है कि ऐसा बदलाव शिक्षा की गुणवत्ता को प्रभावित करता और ग्रहणशीलता के अभाव के परिणामस्वरूप विद्यार्थी की प्रतिक्रिया जगाने में असफल हो जाता है। इसके अतिरिक्त, राष्ट्रीय शिक्षा योजना के अंतर्गत, वह राष्ट्रीय प्रतिष्ठा जिसे वैधानिक रूप प्राप्त है, चाहती है कि विश्वविद्यालयी शिक्षा अब और लम्बे समय तक अंग्रेजी को शिक्षा का माध्यम न स्वीकार करें।

दूसरी तरफ जो लोग प्रांतीय भाषाओं का शिक्षा के माध्यम के रूप में विरोध करते हैं वे बलपूर्वक कहते हैं कि विश्वविद्यालयी शिक्षा का माध्यम कोई एक होना चाहिए न कि अनके। यह भी स्पष्ट है कि विश्वविद्यालयी शिक्षा के सभी अनुशासनों और स्तरों पर प्रांतीय भाषाओं को माध्यम के रूप मे अपना लेने से प्रांतीय को पुनः प्रश्रय मिलेगा और संभवतः राष्ट्रीय विघटन की प्रक्रिया तेज हो जाएगी।

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प्रश्नः

(क) जो लोग प्रांतीय भाषाओं को विश्वविद्यालयी शिक्षा का माध्यम बनाना चाहते हैं, उनका पहला तर्व$ क्या है?
(ख) विश्वविद्यालय के स्तर पर सहसा अंग्रेजी को शिक्षा का माध्यम बनाना क्यों अवांछनीय है?
(ग) विश्वविद्यालयी शिक्षा के माध्यम के रूप में भाषा का चुनाव निश्चित करने में राष्ट्रीय स्वाभिमान को कौन-सी भूमिका है।
(घ) जो लोग प्रांतीय भाषाओं को शिक्षा के माध्यम के रूप में अपनाने के विरुद्ध हैं, उनका पहला तर्व$ क्या है?
(ङ) प्रांतीय भाषाओं को शिक्षा के माध्यम के रूप में अपनाने के विरोध में अन्य दो तर्व$ कौन-कौन से हैं?

3. निम्नलिखित गद्यांश का संक्षेपण लगभग 200 (दो सौ) शब्दों में अपनी भाषा में कीजिए। यदि संक्षेपण इस कार्य के लिए निर्धारित कागज पर नहीं लिखा जाएगा और संक्षेपण का आकार निर्दिष्ट से बहुत या अधिक होगा तो अंक काट दिए जाएँगे। संक्षेपण में प्रयुक्त शब्दों की संख्या अंत में दीजिए तथा संक्षेपण कागज को उत्तर-पुस्तिका के भीतर उपयुक्त स्थान पर नत्थी कर दीजिएः 60

प.डित जवाहरलाल नेहरु दिवंगत होने के बहुत पहले ही संसार में एक पहचान बन चुके थे। वस्तुतः उन्हें विश्व-स्तर पर एक आदर्श नेता के रूप में मान्यता प्राप्त हो चुकी थी। यद्यपि वे अपने गुरु अर्थात् महात्मा गांधी की छत्राछाया में थे फिर भी उन्हें एक चिंतक, कुशल राजनीतिज्ञ के रूप में सर्वत्रा गौरव प्राप्त था तथा जनमानस उनका ध्यान देते थे और आदर करते थे। और जब वे भारत के प्रथम प्रधानमंत्राी बने तब उन्होंने अपनी नीतियों और योजनाओं को मूर्त रूप देना शुरू किया तो मानो ऐसा लगा कि अंतर्राष्ट्रीय मामलों में वे एक ऐसे कलाकार बन गए थे जिन्हें संसार के रंगमंच परएक विशेष भूमिका निभानी थी।

वे कौन-सी ऐसी नीतियाँ और योजनाएँ थीं जिनके कारण वे सक्षम सैन्य शक्ति से रहित स्वतंत्रा एशिया के लोगों तथा अन्य शक्तिसम्पन्न देशों के सभी नेताओं का दिल जीत रहे थे और उन्हें अत्यधिक प्रभावित कर रहे थे? सबसे पहली प्रकाशमान बात जो उनमें थी वह उनका ज्वलंत आदर्शवाद और पारदशीईमानदारी तथा मनुष्य के प्रति दया का भाव। इतना ही नहीं भारत जैसे महान देश के वे मार्ग निर्देशक थे और अपनी पूरी ताकत से भारत को संसार की एक प्रमुख शक्ति बनाने की दिशा में अग्रसर थे। कोई भी अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर प्रतिष्ठा पाने में असफल नहीं हो सकता जिसने भारत जैसे विशाल और निर्णायक देश को द्रुत गति से विकसित करने तथा अंधकारमय उपनिवेशी जकड़न से उसे मुक्त कराने का प्रयास किया हो और उसमें सफल हुआ हो।

आज अगर भारत के कदम संसदीय प्रजातंत्रा के मार्ग पर दृढ़ता से जम चुके हैं तो इसका एक मात्रा श्रेय नेहरु को जाता है। और यह श्रेय इसलिए और भी महत्त्वपूर्ण है कि वे बड़ी आसानी से एक तानाशाह बन सकते थे लेकिन इसके बजाय नये तथा आरंभिक प्रजातंत्रा के मुख्य सेवक बन गए। आम जनता के भरपूर प्रेम के बल पर और अपनी स्वाभाविक असहिष्णुता एवं बदलाव लाने की प्रबल इच्छा के कारण वे स्वेच्छाचारी शासक बन सकते थे और अपना राजनीतिक स्वार्थ सिद्ध कर सकते थे किन्तु उनमें यह समझ थी कि ये सारे बदलाव प्रजातांत्रिक प्रक्रिया द्वारा धीरे-धीरे ही आ सकते हैं। वास्तव में ऐसे लोग भी थे जो उनकी तानाशाही का स्वागत भी करना चाहते थे। लेकिन प.डित जवाहरलाल नेहरु ने एक सच्ची राष्ट्रवादी दूरदर्शिता से अपनी पूरी ताकत लगाकर एक ऐसे प्रजातंत्रा का निर्माण करना चाहा जो उनकी अनुपस्थिति में भी सुरक्षित रह सके।

इसी दूरदर्शिता ने उन्हंे भारत को एक धर्मनिरपेक्ष, औद्योगिक, आधुनिक वैज्ञानिक और समाजवादी देश बनाने की प्रेरणा दी जिसकी मजबूत शासन व्यवस्था हो। इन दिशाओं में उन्होंने जो उपलब्धि प्राप्त की उसका मूल्यांकन, भारत के साम्प्रदायिक विवाद, विदेशी और आंतरिक शोषण के कारण आर्थिक तबाही तथा स्वार्थी, व्यक्तिनिष्ठ और पिछड़ा समाज, जिसके सामाजिक मूल्य अधिकतर कृषि प्रधान थे, की पृष्ठभूमि में किया जाना चाहिए।

जिस व्यक्ति ने ब्रिटिश सरकार की जेलों में बीसों साल बर्बाद किये हों उसने ब्रिटिश सरकार के प्रति कटु और विरोधी भावनाओं को पीछे छोड़कर अपने नवनिर्मित स्वतंत्रा देश का ब्रिटेन से संबंध बनाने का निर्णय लिया जिससे ब्रिटिश कॉमनवेल्य को एक बिल्कुल ही नयी दिशा और विश्व स्तर के मामलों में विशेष महत्त्व मिला। इस प्रकार प.डित जवाहरलाल नेहरु ने अंतर्राष्ट्रीय संबंधों को एक नया रूप दिया। ब्रिटिश कॉमनवेल्थ में ब्रिटिश का प्रभाव कम होने से वह और सही रूप में कॉमनवेल्थ बना जो कि विभिन्न संस्कृतियों और परम्पराओं के स्वतंत्रा देशों के परस्पर लाभ के कार्य की एक स्वैच्छिक संस्था थी। परिमाणस्वरूप यह भी विश्व शांति के लिए कार्य करने वाली एक शक्तिशाली संस्था बनी।

4. निम्नलिखित अंग्रेजी गद्यांश का हिन्दी में अनुवाद कीजिएः

Man of us quite sincerely believe that it is impossible to foretell the future. Others, while admitting that it is sometimes possible to prodict coming events, claim that such knowledge is harmful and any attempt to obtain it should be forbidden. Oddly enough, the people who are most voeiferous in their denials that prohecy is possible, and most malicious in their attacks upon prophets, are the very people who have never seriously investigated the subject.

Meanwhile, both sceptics and believers plan out their whole lives upon the assumption that they can foretell coming events. Tomorrow's breakfast is planned for the assumption that it is possible to foretell the sun will rise the next morning. Arrangements for business, for journeys, for holidays, are made weeks or months in advance on the assumption that it is possible to foretell the circumstances that will then obtain. The farmer may make arrangements for harvesting before he sows his crop. In short, we all gamble our property and our lives upon probabilities which we think we can forsee infallibly. Even when Mr.-What's-his-name, who writes a scathing letter for the express purpose of pointing out that Astrology is all rubbish, banks upon his anticipation of reply being fulfilled. He thinks he can foretell the future even through Astrology cannot. And all the time we pay our doctors, lawyers, stockbrokers, and political leaders to foresee and provide for the future outcome of present developments.

5. निम्नलिखित हिन्दी गद्यवतरण को अंग्रेजी में अनूदित कीजिएः 20

प्रेम विवाह की सबसे बड़ी उपलब्धि यह है कि एक व्यक्ति उस व्यक्ति से परिचित हो सकता है जिसके साथ उसे जीवन बिताना है। इसमें कोई संदेह नहीं कि बहुत-सी शर्दियाँ साथी की अननुरूपता के कारण विषम परिस्थितियों में गुजरती हैं। ऐसे संयोग में आश्चर्यजनक नहीं, जीवन एक वास्तविक नरक बन जाता है। किन्तु प्रेम विवाह के समर्थन में जो नितांत तर्व$ दिया जाता है वह इसके विपरीत पड़ता है। कहा जाता है कि यह धारण गलत है कि दो युवा प्रेमी विवाह से पहले एक-दूसरे से परिचित हो सकते हें। यह इसलिए क्योकि सम्बद्ध व्यक्तियों का कभी-कभार किसी रेस्टोरेंट अथवा किसी उपयुक्त स्थान पर मिलना उसके वास्तविक व्यक्तित्व को उजागर नहीं कर पाता। व्यक्तियों का असली स्वभाव तो तभी प्रकाश में आता है जब वे एक ही छत के नीचे रहने लगते हैं।

यह तर्व$ दिया जाता है कि किसी के लिए यह संभव है कि वह कुछ घंटों में लिए अच्छा बना रह सकता है किन्तु यह संभव नहीं है कि किसी के स्वभाव को बदल दिया जाय। यह मुद्दा इस बात पर बल देता है कि दो व्यक्ति विवाह से पहले अपने आपको अच्छे से अच्छे रूप में प्रस्तुत करते हैं और उनकी बातचीत मुश्किल से जीवन के किसी अप्रिय पहलू से गुजरती है। इस प्रकार दोनों प्रेमियों के मन में एक-दूसरे की एक आदर्श छवि बन जाती है जिसका टिके रहना पूरी तरह से असंभव है। अतः स्वाभाविक है कि विवाह के बाद ही वे परस्पर भ्रम से मुक्त होते हें। शेक्सपीयर ने ठीक ही कहा है कि एक आदमी का प्रेम, एक देवी से होता है किन्तु विवाह एक औरत से।

6. (क) निम्नलिखित मुहावरों और लोकोक्तियों में से केवल पाँच का अर्थ स्पष्ट करते हुए उनका वाक्यों में प्रयोग कीजिएः 20

(i) अपना उल्लू सीधा करना
(ii) घी के दिए जलाना
(iii) चुल्लू भर पानी में डूब मरना
(iv) जान के लाले पड़ना
(v) थाली का बैंगन होना
(vi) लकीर का फकीर होना
(vii) उ$ँची दूकान फीका पकवान
(viii) एक अनार सौ बीमार
(ix) खोदा पहाड़ निकली चुहिया
(x) होनहार बिरवान के होने चीकने पात

(ख) निम्नलिखित वाक्यों में से किन्हीं पाँच वाक्यों के शुद्ध रूप लिखिएः 20

(i) मैं आपका धन्यवाद करता हूँ।
(ii) मैंने तुम्हें कल बोल दिया था।
(iii) यह भोजन दस आदमी के लिए है।
(iv) हर एक ने कमीजें पहन रखी हैं।
(v) मैंने सारी पुस्तकों का नाम लिख लिया है।
(vi) कल रात में वह सो न सका।
(vii) वह द.ड देने योग्य है।
(viii) यह एक राजनीतिक समस्या है।
(ix) वह बहुत निर्दयी है।
(x) मैं इस चित्रा को खरीदूँगा।

(ग) निम्नलिखित युग्मों में से किन्हीं पाँच को वाक्यों में इस प्रकार प्रयुक्त कीजिए कि उनका अथ स्पष्ट हो जाए और उनके बीच का अन्तर भी समझ में आ जाएः 10

(i) अनल - अनिल
(ii) कृतज्ञ - कृतघन
(iii) अविराम - अभिराम
(iv) कुल - कूल
(v) तरिण - तरणी
(vi) क्षति - क्षिति
(vii) परिषद् - पारषद्
(viii) नियत - नियति
(ix) जलद् - जलधि
(x) अस्त - अस्तु

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