(The Gist of Kurukshetra) पंचयतो की वित्तीय सुदृढ़ता [JULY-2018]
(The Gist of Kurukshetra) पंचायतों की वित्तीय सुदृढ़ता [JULY-2018]
पंचायतों की वित्तीय सुदृढ़ता
स्वराज और गणराज्य यानि जनता जे स्वतशासी गणराज्यो का विचार हमारे स्वतंत्रता के निर्माण के दौरान सविधान सभा की बहस में यह भी शामिल रहा है। इसका अभिप्राय है देश में ऐसी मजबूत पंचायती राज प्रणाली की स्थापना जो अपने आप का प्रबंधन करने की क्षमता रखती हो और शासन संचालन में सक्षम हो। लेकिन हमारा सविधान पंचायतो के बारे में गाँधी जी के उदार द्रष्टिकोण का उस हद तक समर्थन नहीं कर स्का, जितना आवश्यक था। परिणामस्वरूप पंचायतो को राज्य के निति निर्देशक सिद्धांतो में ही स्थान मिल सका। राष्ट्र ने फैसला किया की विकास और गौरव के रास्ते का पंचायतो से गुजरना जरूरी नहीं है और यह मान लिया गया की विकास का इंजन प्रत्येक व्यक्ति तक इसे पहुचायेगा। लेकिन स्वंत्रतता के बाद के दशकों में बढ़ती गरीबी दशकों में बढ़ती गरीबी और असमानताओं ने इस आम धारणा को चुनौती दी जिससे नेताओं को बैठकर विकास इंजन के सिद्धांत' के विकल्प के बारे में विचार करने पर मजबूर होना पड़ा। परिणामस्वरूप समतामूलक प्रगति के लिए विकास के विकेंद्रीकरण की धारणा सामने आई। इसके साथ-साथ इस बात का अहसास भी लगातार बढ़ता जा रहा था कि सेवा प्रदान करने में भ्रष्टाचार और कार्यकुशलता की कमी की वजह से लोगों को उपलब्ध कराई जाने वाली सेवाएं असरदार नहीं रह जातीं। इसलिए सेवा प्रदाताओं की निचले स्तर पर जवाबदेही में सुधार लाने की बात सोची गई। ये कुछ ऐसी महत्वपूर्ण प्रक्रियाएं हैं जिन्होंने |ग्राम गणराज्य या पंचायती राज प्रणाली के विचार को एक बार फिर विकास का अधिक कार्यकुशल और विकेंद्रित तरीका बना दिया है
स्थानीय सरकारों को वित्तीय अधिकारों का विकेंद्रीकरण -
चौदहवें वित्त आयोग ने कई ऐसी पहल की हैं जिनसे पंचायतों के कामकाज में क्रांतिकारी बदलाव आने की संभावना बनी है। ग्रामीण और शहरी स्थानीय निकायों को संसाधनों के आबंटन में पिछले वित्त आयोगों के मुकाबले भारी बढ़ोतरी की गई है। (देखे तालिका-1) पिछले केंद्रीय वित्त आयोगों से हटकरचौदहवें वित्त आयोग ने पंचायतों के लिए काफी बड़ी राशि का आबंटन किया है और वह भी ग्राम पंचायतों के लिएजो सेवा प्रदान करने का कार्य करती हैं। चौदहवें वित्त आयोग ने ग्राम पंचायतों के लिए 200292 करोड़ रुपये का आबंटन किया है जो तेरहवें वित्त आयोग द्वारा किए गए आबंटन के मुकाबले तीन गुना से भी अधिक है। आयोग ने स्थानीय निकायों पर बुनियादी सुविधाओं की व्यवस्था करने के लिए भरोसा किया है। इतना ही नहीं चौदहवें वित्त आयोग के दिशानिर्देशों में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि पंचायतों का पैसा सरकार के पास 15 दिन से ज्यादा की अवधि के लिए पड़ा नहीं रहना चाहिए। अगर इसमें देरी होती है तो ग्राम पंचायतों को ब्याज का भुगतान न किया जाना चाहिए ।
अनुदान का उद्देश्य
अनुदान राशि दो तरह से जाती है: बुनियादी अनुदान और कार्यनिष्पादन अनुदान। बुनियादी अनुदान का उद्देश्य बुनियादी सेवाओं जैसे पानी की आपूर्ति, स्वच्छतासीवेज और ठोस अपशिष्ट प्रबंधनबरसाती पानी की निकासी, सामुदायिक परिसंपत्तियों के रखरखाव, सड़कों, पगडंडियों और स्ट्रीट लाइटों श्मशान व कब्रिस्तान के रखरखाव जैसे उन बुनियादी कार्यों के लिए होता है। जो कानून के तहत उन्हें सौंपी गई हैं। वित्त मंत्रालय द्वारा जारी दिशानिर्देशों में कहा गया है कि बुनियादी अनुदान की राशि का उपयोग किसी ऐसे कार्य के लिए नहीं किया जा सकेगा जिसकी जिम्मेदारी संगत कानून के तहत स्थानीय निकाय को न सौंपी गई हो। ग्रामीण स्थानीय निकाय को बुनियादी अनुदान देते समय 2011 की जनगणना के आधार जनसंख्या को 90 प्रतिशत और क्षेत्र को 10 प्रतिशत महत्व दिया जाएगा।
चौदहवें वित्त आयोग ने बुनियादी सेवाओं के घटक क रूप में संचालन और रखरखाव (ओ एंड एम) और पूंजीगत खर्च में अंतर नहीं किया है। यह सलाह दी गई है कि संचालन और रखरखाव (ओ एंड एम) और पूंजीगत खर्च के लिए तकनीकी और प्रशासनिक सहायता की लागत किसी भी हालत में ग्राम पंचायत या नगरपालिका को आबंटित की जाने वाली राशि या स्थानीय निकाय के खर्च के 10 प्रतिशत से अधिक नहीं होनी चाहिए। वित्त मंत्रालय ने तकनीकी और प्रशासनिक सहायता की इस 10 प्रतिशत राशि के समुचित उपयोग के लिए राज्यों को विस्तृत दिशानिर्देश भी जारी किए हैं। राज्य गतिविधियों संबंधी परामर्श सूची के आधार पर अपनी प्राथमिकता सूची जारी कर सकते हैं। इन्हीं के आधार पर पंचायतों में उपलब्ध बुनियादी ढांचे और जनशक्ति के आधार पर धनराशि का उपयोग किया जा सकेगा। गतिविधियों संबंधी एक भी तैयार की गई है और चौदहवें वित्त आयोग की सिफारिशों के अनुपालन में किसी बड़े विचलन को कम- से - कम करने की सलाह दी गई है।
ग्राम पंचायत विकास योजना के लिए पंचायत आंत्रप्रन्योरशिप सूट (पीईएस)
वर्तमान नियोजन प्रणाली के अंतर्गत मोटे तौर पर कार्यक्रमो के अनुसार जिला - स्तर पर योजनाएं तैयार करनी होती है जिसमे अक्सर सरकार की अन्य योजनाओं के साथ तालमेल नहीं बन पाता। इन सरकारों पर गौर करने के लिए पंचायती राज मंत्रालय ने प्लान प्लस नाम का एक सॉफ्टवेयर तैयार कराया है। इसमें तमाम नियोजन इकाइयों की सभी परियोजनाओं को समन्वित और समेकित करने की सुविधा उपलब्ध है। पंचायतों द्वारा तैयार की गई। ग्राम पंचायत विकास योजनाओं को इस सॉफ्टवेयर पर अपलोड कर दिया जाता है और नागरिक भी अपने-अपने इलाकों में बनाई जा रही योजनाओं और किए जा रहे कार्यों को देख सकते हैं। इस समय प्लान प्लस के जरिए योजना तैयार करना कार्य निष्पादन अनुदान प्राप्त करने के लिए आवश्यक शर्त है। इसके अलावा एक्शन सॉफ्ट एक अन्य पीईएस एप्लिकेशन है जो प्लान प्लस के साथ तालमेल के साथ कार्य करता है। यह कार्य पूर्ण किए जाने की प्रक्रिया और अन्य कार्यक्रमों के साथ तालमेल रखता है और इस बात का भी ध्यान रखता है कि कार्यान्वयन की अवधि में किनकिन विभिन्न स्रोतों से धन प्राप्त हो रहा है। इस तरह यह कार्य की भौतिक और वित्तीय प्रगति के बारे में सूचना देने में पूर्ण पारदर्शिता लाता है। इसी तरह ‘प्रिया सॉफ्ट' एक अन्य पीईएस एप्लिकेशन है जिसमें वाउचर प्रविष्टियों के जरिए अनुमोदित सूची के कार्यों के लिए प्राप्तियों और खर्च का हिसाब रखा जा सकता है।
अच्छे नतीजे
14वें वित्त आयोग द्वारा स्थानीय निकायों को धन के हस्तांतरण की व्यवस्था से उनके कुल संसाधनों में बढ़ोतरी हुई है। परिणामस्वरूप पैसा खर्च करने के बारे में पंचायतों की भूमिका और महत्वपूर्ण हो गई है। इसके कुछ सकारात्मक पहलुओं को संक्षेप में इस तरह बताया जा सकता है--
स्थानीय सरकारों को विकेंद्रीकरण में वृद्धि से प्रति व्यक्ति धन की उपलब्धता में बढ़ोतरी हुई है और यह ग्यारहवें वित्त आयोग के समय प्रति व्यक्ति 96 रुपये के स्तर से बढ़कर 12वें वित्त आयोग के कार्यकाल में 240 रुपये हो गई। इसके बाद यह 13वें वित्त आयोग के समय में 488 रुपये के स्तर पर पहुंच गई। प्रति व्यक्ति धन की उपलब्धता बढ़ने से ग्रामीण लोगों का जीवन-स्तर सुधरा है। यह गांवों के विकास के विभिन्न क्षेत्रों के बारे में समुचित नियोजन की वजह से संभव हो सका है।
14 वें वित्त आयोग ने ग्राम पंचायतों को ग्रामसभाओं द्वारा तैयार और अनुमोदित ग्राम पंचायत योजना तैयार करने की जिम्मेदारी सौंपी है। अब पंचायतो को इस बात का फैसला करने की अधिक स्वायत्तता मिल गई है कि बुनियादी सुविधा पर अधिक पैसा खर्च होना चाहिए।
पंचायतों द्वारा स्थानीय रूप से तालमेल कायम करने के कई उदाहरण हैं, जबकि अन्य
योजनाओं जैसे मनरेगा, प्रधानमंत्री आवास योजना आदि के पैसे से इन योजनाओं को पूरा
कर सेवाओं की गुणवत्ता में वैसा सुधार नहीं लाया जा सकता था। इसके अलावा 14वां
वित्त आयोग पंचायतों की अनुदान राशि का दसवां हिस्सा कार्य निष्पादन के आधार पर देने
की सिफारिश करता है। इस अनुदान के लिए पात्र होने के लिए स्थानीय निकायों को पिछले
साल का अंकेक्षित लेखा देना होता है और यह साबित | करना पड़ता है कि उसने अपने
राजस्व में बढ़ोतरी की है। स्पष्ट है कि पंचायतों को मिलने वाली अनुदान राशि अच्छे
कार्य के लिए पुरस्कार की तरह होती है न कि नाकामयाबी को छुपाने के लिए सहायता के
तौर पर। स्थानीय निकायों को प्रासंगिक बने रहने
और अधिक जवाबदेह बनाने के लिए यह एक बड़ा प्रोत्साहन है।
चुनौतियां
राज्यों को धन के अंतरण के लिए साल में दो किस्तें पहले से निर्धारित होने से बड़े पैमाने पर पैसे का उपयोग न हो पाने की गुंजाइश कम है। लेकिन राज्य सरकारों द्वारा ग्राम पंचायतों के लिए चौदहवें वित्त आयोग के धन के उपयोग में भारी अंतर देखा गया है। देखें तालिका-2) पिछले दो वर्षों में गुजरातमणिपुर और आंध्र प्रदेश सबसे अधिक खर्च करने वाले राज्य रहे हैं जिनके बाद त्रिपुरातेलंगाना और हरियाणा का स्थान है। तालिका में बताए गए बाकी राज्य आबंटित संसाधनों में से आधे से भी कम का उपयोग कर सके। उत्तर प्रदेश, जहां गरीबों की संख्या काफी अधिक , केवल 202 प्रतिशत राशि का उपयोग कर सका जबकि प्रगतिशील व धनी राज्य महाराष्ट्र अंतरित धनराशि के 3.76 प्रतिशत का ही उपयोग कर सका चूंकि ये आंकड़े भारत सरकार के प्लान प्लस सॉफ्टवेयर से लिए गए हैं, जिसमें प्रत्येक राज्य से अपेक्षा की जाती है कि वह ग्रामीण क्षेत्रों के लिए 14वें वित्त आयोग से संबंधित खर्च की जानकारी देगा, सूचना देने में कमी रह जाने की गुंजाइश बनी हुई है। कई राज्यों ने अपने आंकड़े इसलिए नहीं दिए हैं क्योंकि उन्होंने पंचायत खातों के धन के प्रबंधन के लिए अपने सॉफ्टवेयर जैसे मध्य प्रदेश ने पंचायत दर्पण और कर्नाटक ने पंचतंत्रविकसित कर लिए हैं। धन का पूरापूरा उपयोग न हो पाने का एक कारण यह भी नजर आता है।
निष्कर्ष
चौदहवें वित्त आयोग की सिफारिशें लीक से हटकर और क्रांतिकारी हैं जिनसे हमारी स्थानीय सरकारें सुदृढ़ होंगी। वित्तीय विकेंद्रीकरण और भरोसे पर आधारित दृष्टिकोण ने हमारी ग्राम -सभाओं और ग्राम पंचायतों को स्थानीय आवश्यकताओं के अनुसार सशक्त किया है। धन के आबटन से भी ग्रामीण क्षेत्रों में जनसेवाओं के प्रभाव, गुणवत्ता और संवेदनशीलता पर असर पड़ा है। जीपीडीपी के गठन और पीईएस एप्लिकेशन के जरिए पंचायतों के रिकार्ड के डिजिटलीकरण से समूची प्रणाली ज्यादा पारदर्शी, जवाबदेह और कारगर बन गई है। स्थानीय स्तर पर समुचित नियोजन से दी जाने वाली धनराशि का उपयोग और अधिक समावेशी विकास के लिए किया जा सकेगा। राज्य सरकारों को ग्राम पंचायतों पर और अधिक भरोसा करना चाहिए और उन्हें स्थानीय आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए धनराशि के उपयोग की छूट होनी चाहिए। अगर नागरिकों की मांगों की सुनवाई होती है, उन्हें स्वीकार किया जाता है और पूरा किया जाता है तो विकेंद्रित नियोजन उनके लिए भी एक प्रेरक प्रयास साबित होगा।
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Courtesy: Kurukshetra