(GIST OF YOJANA) वित्तीय समावेश में वंचित वर्गों का सशक्तीकरण [August] -2018


(GIST OF YOJANA) वित्तीय समावेश में वंचित वर्गों का सशक्तीकरण [August] -2018


वित्तीय समावेश में वंचित वर्गों का सशक्तीकरण

भारतीय संविधान निर्माताओं ने देश के कमजोर वर्गों के लिए न्याय, समानता, सामाजिक सुरक्षा और आर्थिक/वित्तीय सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए संविधान में पर्याप्त और अनिवार्य प्रावधान किए थे। बाद की सरकारों ने भी व्यापक वित्तीय समावेश हेतु सामाजिक और आर्थिक अनिवार्यताओं को समझा और गरीब तबकों को बराबरी पर लाने के लिए समय-समय पर महत्वपूर्ण नीतिगत परिवर्तन किए। इसके लिए संविधान में आवश्यक संशोधन भी किए गए और आम जन को सामाजिक और आर्थिक सुरक्षा प्रदान के लिए विधायी ढांचा तैयार किया गया। । बैंकों का राष्ट्रीयकरण शुरुआती कदम था, इसके बाद बैंकों के लिए यह अनिवार्य किया गया कि उन्हें प्राथमिक क्षेत्र के लिए ऋण देना होगा। इसके अतिरिक्त अग्रणी बैंक योजना को शुरू किया गया जिससे सरकारी नीतियों को आकार दिया जा सके। ग्रामीण निवासियों को लास्ट माइल कनेक्टिविटी देने के लिए क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक (आरआरबी) की स्थापना की गई ताकि उन्हें आसानी से बैंकिंग सुविधाएं उपलब्ध हो - इस प्रकार सेवा क्षेत्र की अवधारणा सामने आई। जरूरतमंद लोग आजीविका और आर्थिक आत्मनिर्भरता के लिए कारोबार कर सकें, इसके लिए स्वयं सहायता समूह - (एसएचजी) बैंक लिंकेज कार्यक्रम शुरू किया गया। इस प्रकार पिछले कई वर्षो में भारतीय रिज़र्व बैंक (आरबीआई) ने समाज के गरीब वर्गों के लिए अनेक कदम उठाए।

वित्तीय समावेश की दिशा में चुनौतियां

कुछ शोध अध्ययनों से पता चला है कि । पर्याप्त संख्या में कानून, नीति निर्माताओं के ईमानदार प्रयासों, आरबीआई के दिशानिर्देशों, अग्रणी बैंक योजना और लोकपाल की नियुक्ति के बावजूद देश में पूर्ण वित्तीय समावेश की दिशा में अभी भी कुछ बाधाएं हैं:

डी.बी. भारती (2016) के अनुसार, निम्न आय, गरीबी, निरक्षरता और जागरूकता की कमी के कारण लोगों का वित्तीय समावेश नहीं हो पाया है। यह तो वित्तीय समावेश का मांग पक्ष है। आपूर्ति पक्ष में वित्तीय समावेश की बाधाओं में बैंक शाखा की निकटता, समय, बोझिल दस्तावेज और प्रक्रियाएं, बैंक कर्मचारियों का व्यवहार और भाषा मुख्य कारण हैं।

रंजीनी और बापट (2015) ने पाया कि वित्तीय समावेश की बाधाओं में निम्नलिखित शामिल हैं-दस्तावेजों में कठिनाइयों के कारण बैंकों से संपर्क न कर पाना, ऋण को मंजूर करने की दुष्कर प्रक्रिया, पुनर्भुगतान की कठोर शर्ते, अपनी आवश्यकता के विषय में न बता पाना, छोटे कर्ज के लिए बैंक आने में हिचकिचाहट।। चरण सिंह (2014) का मानना है। कि भारतीय रिजर्व बैंक और भारत सरकार के विभिन्न उपायों के बावजूद संतोषजनक परिणाम अभी देखने बाकी हैं। उन्होंने चुनौतियों को ग्राहक संबंधित और तकनीकी मुद्दों के रूप में वर्गीकृत किया है। वित्तीय समझ न रखने वाले ग्राहकों के लिए मोबाइल नंबर पंजीकरण और पिन नंबर जनरेट करना बहुत बड़ी समस्याएं हैं। बैंकों के लिए एक्सेस चैनल, मोबाइल सेवा ऑपरेटरों के साथ समन्वय स्थापित करना भी दूसरी चुनौतियां हैं। इसके अतिरिक्त वित्तीय सेवाओं की कम पहुंच, व्यापार संवाददाताओं की कम दक्षता = वित्तीय समावेश की सफलता को सीमित है करते हैं।

आशु (2014) के अनुसार ग्रामीण क्षेत्रों में बैंक शाखाओं की स्थापना आर्थिक रूप से व्यावहारिक नहीं है, क्योंकि इनमें लेनदेन की लागत अधिक है। व्यापार संवाददाता (बीसी) । मॉडल ग्रामीण क्षेत्रों में प्रतिबंधित माना जाता है। वित्तीय साक्षरता और वित्तीय उत्पादों के विपणन की कमी के कारण शहरी गरीब तबका अनौपचारिक क्रेडिट स्रोतों पर निर्भर होता है जो उनकी सुविधा के अनुसार काम करते हैं। इस कारण से भी यह तबका वित्तीय समावेश के दायरे से स्वेच्छा से बाहर हो जाता है। हालांकि वित्तीय सेवा बाजार उत्पादों की एक विस्तृत श्रृंखला प्रदान करता है। लेकिन जागरूकता की कमी के कारण इन उत्पादों का उपयोग नहीं हो पाता।

एस. के. राव (2010) का अध्ययन बताता है कि 1969 में बैंकों के राष्ट्रीयकरण से समावेशी विकास हासिल हुआ। अध्ययन के लिए उन्होंने आरबीआई द्वारा प्रकाशित आंकड़ों का विश्लेषण किया ताकि यह साबित हो सके कि राष्ट्रीयकरण के बाद असंबद्ध और ग्रामीण क्षेत्रों में बैंकों के पहुंचने से बैंकिंग का विकास हुआ। उनका मानना है कि बैंकों के विस्तार के बावजूद अभी समस्याएं दूर नहीं हुई और देश में पूर्ण समावेशी विकास के लिए नए तंत्रों को चिन्हित करन की आवश्यकता है।

एस.एन.बदाजेना और प्रो. एच गुडिमेडा (2010) ने 2008 में सोलह राज्यों में वित्तीय समावेश में स्वयं सहायता समूहों के प्रभाव का अध्ययन किया। अध्ययन में पाया गया कि औपचारिक बैंकिंग नेटवर्क के विशाल कवरेज के बावजूद बुनियादी वित्तीय सेवाएं अब भी समाज के बड़े तबके तक नहीं पहुंच पाई हैं।

वित्तीय समावेश और सरकार

राष्ट्रीय अनुसूचित जाति वित्त और विकास निगम (एनएससीएफडीसी): एनएसएफडीसी की स्थापना फरवरी 1989 में कंपनी अधिनियम, 1956 की धारा 25 (अलाभ कंपनी) के तहत एक सरकारी कंपनी के रूप में की गई थी।

एनएससीएफडीसी का व्यापक उद्देश्य दोहरी गरीबी रेखा (डीपीएल) से नीचे रहने वाली अनुसूचित जातियों के आर्थिक सशक्तीकरण के लिए वित्त पोषण और सहज वित्त उपलब्ध कराना है।

एनएसएफडीसी राज्य चैनलिंग एजेंसियों और क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों (आरआरबी) के माध्यम से पुनर्वित्त के रूप में डीपीएल से नीचे जीवनयापन करने वाली अनुसूचित जातियों को रियायती दरों पर ऋण ( टर्म ऋणलघु वित्त और शिक्षा/व्यावसायिक शिक्षा और प्रशिक्षणउपलब्ध कराता है। प्रचार गतिविधियों के तहत एनएसएफडीसी कौशल विकास और विपणन के लिए लक्षित समूहों को सीधे सहायता प्रदान करता है।

31 मार्च, 2015 में स्थापना के बाद से एनएसएफडीसी ने 3019.87 करोड़ रुपए का कुल ऋण संवितरित किया है। इससे डीपीएल वाली अनुसूचित जातियों के कुल 941034 व्यक्तियों को लाभ प्राप्त हुआ।

एनएसटीएफडीसी प्रति यूनिट 25 लाख रुपए तक की व्यवहार्य परियोजनाओं के लिए सावधि ऋण प्रदान करता है। इस योजना के तहत परियोजना की 90 प्रतिशत लागत तक के लिए वित्तीय सहायता दी जाती है और शेष राशि सब्सिडीप्रमोटर योगदान/मार्जिन मनी के माध्यम से मिलती है। ब्याज दर 5 लाख रुपए तक 6 प्रतिशत, 10 लाख रुपए तक 8 प्रतिशत और 10 लाख रुपए से अधिक पर 10 प्रतिशत सालाना है। निगम अनुसूचित जनजाति की महिला सशक्तीकरण योजना (एएमएसवाई) भी संचालित करता है जो अनुसूचित जनजाति की महिलाओं के आर्थिक विकास की एक विशेष योजना है। इसमें 4 प्रतिशत सालाना की ब्याज दर पर 1 लाख रुपए तक की परियोजना के लिए 90 प्रतिशत ऋण प्रदान किया जाता है।

31 मार्च, 2017 तक एनएसटीएफडीसी ने 1,654.92 करोड़ रुपए संवितरित किए हैं। इसके अतिरिक्त हाल ही में निगम ने अनुसूचित जनजातियों के शैक्षिक कौशल विकास के लिए नई योजनाएं शुरू की हैं। जैसे एएसआरवाई, जागरूकता बढ़ाना इत्यादि।

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राष्ट्रीय सफाई कर्मचारी वित्त और विकास निगम (एनएसकेएफडीसी): एनएसकेएफडीसी, कंपनी अधिनियम, 1956 की धारा 25 के तहत 24 जनवरी 1997 को ‘अलाभकारी कंपनी' के रूप में स्थापित किया गया था। यह पूरी तरह से भारत सरकार के स्वामित्व वाला निगम है। और इसकी अधिकृत शेयर पूंजी 600 करोड़ रुपए है।

राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग वित्त और विकास निगम (एनबीसीएफडीसी): एनबीसीएफडीसी सामाजिक न्याय और सशक्तीकरण मंत्रालय के तहत एक सरकारी उपक्रम है। कंपनी अधिनियम 1956 की धारा 25 के तहत 13 जनवरी, 1992 को 1500 करोड़ रुपए की अधिकृत शेयर पूंजी के साथ इसकी स्थापना की गई थी। 2017 के अंत तक इसे केंद्र सरकार द्वारा 1124 करोड़ रुपए की भुगतान पूंजी प्रदान की गई थी। इस अलाभकारी संस्था का उद्देश्य पिछड़ा वर्ग के लाभ के लिए आर्थिक और विकासपरक । गतिविधियों को बढ़ावा देना और इस वर्ग के । गरीब तबके में दक्षता विकास और स्वरोजगार को प्रोत्साहित करना है। निगम विभिन्न राज्यों में 46 राज्य चैनलिंग एजेंसियों (एससीए) के माध्यम से अपनी गतिविधियां संचालित करता है। 31 मार्च, 2017 तक एनबीसीएफडीसी ने अन्य पिछड़ा वर्ग के 2300363 व्यक्तियों को 3575.52 करोड़ रुपए संवितरित किए हैं।

राष्ट्रीय अल्पसंख्यक वित्त और विकास निगम (एनएमडीएफसी): एनएमडीएफसी की स्थापना 30 सितंबर, 1994 को कंपनी अधिनियम 1956 की धारा 25 के तहत अलाभकारी कंपनी के रूप में की गई थी। एनएमडीएफसी का उद्देश्य अल्पसंख्यकों को रोजगार/आय उत्पादन गतिविधियों के लिए रियायती दर पर वित्त प्रदान करना है। राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग अधिनियम, 1992 के अनुसार अधिसूचित अल्पसंख्यकों में मुस्लिम, ईसाई, सिख, बौद्ध और पारसी शामिल हैं। इसके बाद जनवरी 2014 में जैन समुदाय को भी अधिसूचित अल्पसंख्यक समुदाय की सूची में शामिल किया गया। एनएमडीएफसी कार्यक्रम के तहत कारीगरों और महिलाओं को वरीयता दी जाती है। अपनी स्थापना के बाद 30 जून, 2018 तक एनएमडीएफसी ने 14,26,308 लाभार्थियों को 4280.16 करोड़ रुपए के ऋण दिए हैं। 2017-18 के दौरान 1,70,489 लाभार्थियों को 570.83 करोड़ रुपए की राशि वितरित की गई थी। चालू वित्त वर्ष 2018-19 (30 जून, 2018 तक) में एनएमडीएफसी 10,800 लाभार्थियों को 1,12.00 करोड़ रुपए ऋण दे चुका है।

राष्ट्रीय दिव्यांग जन वित्त और विकास निगम (एनएचएफडीसी): एनएचएफडीसी की स्थापना भारत सरकार द्वारा दिव्यांग जनों (पीडब्ल्यूडी) के आर्थिक सशक्तीकरण में उत्प्रेरक भूमिका निभाने के लिए की गई थी। इसे कंपनी अधिनियम, 1956 की धारा 25 के तहत 24 जनवरी, 1997 को 400 करोड़ रुपए की अधिकृत शेयर पूंजी के साथ स्थापित किया गया था। यह देश में दिव्यांग जनों (पीडब्ल्यूडी) के लाभ के लिए सर्वोच्च निगम के रूप में काम कर रहा है।

निगम पीडब्ल्यूडी के लाभ के लिए वित्तीय सहायता प्रदान करता है ताकि उनका आर्थिक सशक्तीकरण हो और उन्हें आर्थिक सामाजिक पायदान पर आगे बढ़ाने में मदद मिले। निगम पीडब्ल्यूडी की आय उत्पन्न करने वाली गतिविधियों की स्थापना/विस्तार के लिए रियायती ब्याज दर पर वित्तीय सहायता प्रदान करता है। ब्याज की रियायती दर पर पीडब्ल्यूडी की उच्च शिक्षा के लिए भी वित्तीय सहायता दी जाती है। एनएचएफडीसी ने 31 मार्च, 2017 तक देश में 142349 पीडब्ल्यूडी के लाभ के लिए 801.66 करोड़ रुपए जारी किए हैं।

राष्ट्रीय महिला कोष (आरएमके): राष्ट्रीय महिला कोष (आरएमके) महिला एवं बाल विकास मंत्रालय (एमडब्ल्यूसीडी) के तहत एक स्वायत्त संगठन है। यह सोसाइटी पंजीकरण अधिनियम 1860 के तहत पंजीकृत एक लघु वित्त संगठन है। इसका उद्देश्य गरीब महिलाओं को आजीविका और आय सृजन की गतिविधियों के लिए रियायती त दरों पर लघु वित्त प्रदान करना है जिससे उनका सामाजिक आर्थिक विकास संभव हो। आरएमके अपने मध्यस्थ संगठनों के जरिए गरीब और संपत्ति हीन महिला उद्यमियों को 6 प्रतिशत के सामान्य ब्याज पर लघु वित्त प्रदान करता है। ये संगठन स्वयं सहायता समूहों को 14 प्रतिशत के सामान्य ब्याज पर ऋण देते हैं।

मुद्रा योजनाः वित्त वर्ष 2015-16 के लिए वित्त मंत्री श्री अरुण जेटली ने मुद्रा । बैंक के गठन की घोषणा की। प्रधानमंत्री ने 8 अप्रैल 2015 को गैर-कॉर्पोरेट, गैर-कृषि छोटे/सूक्ष्म उद्यमों को 10 लाख तक ऋण प्रदान करने के जरिए इस योजना का शुभारंभ किया। इसके लिए वाणिज्यिक बैंक, आरआरबी, लघु वित्त बैंक, सहकारी बैंक, एमएफआई और एनबीएफसी द्वारा ऋण दिए जाते हैं।
इसके लिए व्यक्ति ऋण देने वाले किसी भी संस्थान से संपर्क कर सकता है या मुद्रा पोर्टल के माध्यम से ऑनलाइन आवेदन कर सकता है। पीएमएमवाई के तहत मुद्रा ने तीन प्रोडक्ट्स तैयार किए हैं - शिशु, किशोर और तरुण। इसमें लाभार्थी लघु इकाई/उद्यमी की वृद्धि/विकास के चरणों और वित्त पोषण की आवश्यकताओं को प्रकट किया गया है, साथ ही यह विकास के अगले चरण के लिए एक संदर्भ बिंदु भी प्रदान करता हैं।

स्टैंडअप इंडिया योजना: इस योजना के तहत कम से कम एक अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति और कम से कम एक महिला को ग्रीनफील्ड उपक्रम लगाने के लिए प्रत्येक बैंक द्वारा 10 लाख रुपए से लेकर 1 करोड़ रुपए तक का बैंक ऋण दिया जाता है। ये उपक्रम मैन्यूफैक्चरिंग, सेवा या व्यापार क्षेत्र के हो सकते हैं। ब्याज दर संबंधित निर्धारित श्रेणी (रेटिंग श्रेणी) के लिए बैंक द्वारा प्रयोज्य न्यूनतम ब्याज दर होगी, जो (आधार दर (एमसीएलआर) 3 प्रतिशत आशय प्रीमियम) से अधिक नहीं होगा। इस योजना में 25 प्रतिशत मार्जिन राशि का प्रावधान है, जोकि पात्र केंद्रीय/राज्य योजनाओं के रूपान्तरण से उपलब्ध कराया जा सकता है।

योजना के शुरू होने के बाद से 7 मार्च, 2018 तक स्टैंड-अप इंडिया स्कीम के तहत सार्वजनिक क्षेत्र, निजी और क्षेत्रीय बैंकों द्वारा दिए गए ऋण की संख्या क्रमशः 51,888, 2445 और 1,009 है। क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों ने योजना के आरंभ से इस तिथि तक अनुसूचित जातियों के उधारकर्ताओं को 180 ऋण मंजूर किए हैं।

वेंचर कैपिटल फंड योजनाः भारत सरकार के सामाजिक न्याय और सशक्तीकरण मंत्रालय द्वारा प्रारंभ किए गए अनूठे वेंचर कैपिटल फंड के तहत उद्यमिता को बढ़ावा देने के लिए अनुसूचित जातियों को रियायती वित्त प्रदान किया जाता है।

क्रेडिट वृद्धि गारंटी योजनाः जुलाई, 2014 को केंद्रीय बजट भाषण (2014-15) के दौरान वित्त मंत्री ने घोषणा की थी कि अनुसूचित जाति के युवाओं को क्रेडिट वृद्धि सुविधा देने और स्टार्ट-अप उद्यमिता को बढ़ाने के लिए 200 करोड़ रुपए आवंटित किए जाएंगे, चूंकि वे भी नव मध्यम वर्ग की श्रेणी में शामिल होने के इच्छुक हैं। इससे समाज के निचले स्तर में उद्यमशीलता को प्रोत्साहन मिलेगा, अनुसूचित जातियों में भरोसा पैदा होगा और रोजगार सृजन भी होगा। सामाजिक न्याय और सशक्तीकरण मंत्रालय के तहत सामाजिक न्याय और सशक्तीकरण विभाग, भारत सरकार ने अपने सामाजिक क्षेत्र के कार्यक्रमों के तहत “ अनुसूचित जातियों के लिए क्रेडिट वृद्धि गारंटी योजना'' प्रायोजित की।

पात्र उधारकर्ता और जोखिम कवरः 31 दिसंबर, 2017 तक कुछ सदस्य ऋण संस्थानों द्वारा 21.27 करोड़ रुपए के ऋण को मंजूरी दे दी गई है जिसके लिए आईएफसीआई द्वारा 14.40 करोड़ रुपए का कुल गारंटी कवर प्रदान किया गया है। डीआईसीसीआई के विभिन्न चैप्टर्स के सहयोग से सेमिनार, सम्मेलन और जागरूकता कार्यक्रम आयोजित किए गए हैं और राज्य स्तरीय बैंकर समिति (एसएलबीसी) की बैठकों में भाग लेने के माध्यम से व्यापक प्रचार किया गया है ताकि इस योजना को प्रोत्साहन मिले। देश भर में पीएसयू बैंकों को संवेदनशील बनाया जा रहा है।

प्रधानमंत्री जन धन योजना (पीएमजेडीवाई): प्रधानमंत्री ने 15 अगस्त 2014 को प्रधानमंत्री जन धन योजना (पीएमजेडीवाई) की घोषणा की। इसका उद्देश्य बैंकिंग, पेंशन और बीमा सेवा के जरिए समाज के कमजोर वर्गों का वित्तीय समावेश करना है। इससे पूर्व योजनाओं के नकारात्मक प्रभाव को कम किया जा सकेगा और कमजोर वर्गों को वित्तीय स्वतंत्रता और स्थिरता मिलेगी। इस योजना के तहत देश भर में 1.5 करोड़ बैंक खाते खोले गए। इन योजनाओं से स्पष्ट रूप से उजागर होता है कि सरकार समाज के कमजोर द्वारा 14.40 करोड़ रुपए का कुल गारंटी कवर प्रदान किया गया है। डीआईसीसीआई के विभिन्न चैप्टर्स के सहयोग से सेमिनार, सम्मेलन और जागरूकता कार्यक्रम आयोजित किए गए हैं और राज्य स्तरीय बैंकर समिति (एसएलबीसी) की बैठकों में भाग लेने के माध्यम से व्यापक प्रचार किया गया है ताकि इस योजना को प्रोत्साहन मिले। देश भर में पीएसयू बैंकों को संवेदनशील बनाया जा रहा है।

प्रधानमंत्री जन धन योजना (पीएमजेडीवाई): प्रधानमंत्री ने 15 अगस्त 2014 को प्रधानमंत्री जन धन योजना (पीएमजेडीवाई) की घोषणा की। इसका उद्देश्य बैंकिंग, पेंशन और बीमा सेवा के जरिए समाज के कमजोर वर्गों का वित्तीय समावेश करना है। इससे पूर्व योजनाओं के नकारात्मक प्रभाव को कम किया जा सकेगा और कमजोर वर्गों को वित्तीय स्वतंत्रता और स्थिरता मिलेगी। इस योजना के तहत देश भर में 1.5 करोड़ बैंक खाते खोले गए। इन योजनाओं से स्पष्ट रूप से उजागर होता है कि सरकार समाज के कमजोर वर्गों के समावेशी सशक्तिकरण के लिए प्रतिबन्ध हैं। जैसा की कहा गया हैं, गरीबो को खत्म करने और समाज के वंचित वर्गों को सशक्त बनाने के लिए वर्तमान सरकार द्वारा ऐतिहासिक पहल की गयी हैं।

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Courtesy: Yojana